नवरोज़ – पारसी नव वर्ष दिवस पर विशेष
मुंबई के हृदय स्थल में बने हुए पारसियों के अग्नि मंदिर ‘आताशगाह’ (Fire Temple) की दीवारों पर बने कलात्मक भित्ति चित्र, और यह तख़्ती कि गैर पारसियों का प्रवेश वर्जित है, को देखते हैं, तो स्वाभाविक ही है कि आकर्षण और तीव्र हो जाता है. हमेशा इक्षा होती थी कि टोपी पहन कर जबरन घुस जाएँ और देखें की आख़िर है क्या जिसे ये हमसे छिपा रहे हैं. किसी भी धर्मस्थल में प्रवेश की वर्जना हमें दु:खी कर देती है. आख़िर जब ईश्वर एक है और सभी ऐसा ही मानते हैं तो फिर यह रोक क्यों. चलिए आज भारत में बसे उन पारसियों के बारे में जाने जिनकी आबादी विलुप्ति की ओर तीव्रता से अग्रसर हो रही है. लेकिन पहले थोड़ा सा उनके वैभवशाली इतिहास को भी देख लें.
विश्वास नहीं होता कि आज से वर्षों पहले ईसा पूर्व 6वीं शताब्दी में एक महान पारसीक (प्राचीन ईरान वासी) साम्राज्य (Achaemenis Persian Empire) की स्थापना ‘पेर्सेपॉलिस’ में हुई थी जिसने 3 महाद्वीपों और 20 राष्ट्रों पर लंबे समय तक शासन किया. इनका राज धर्म, ज़रतोश्त या ज़रथुस्त्र के द्वारा 2600 वर्ष पूर्व स्थापित, “जोरोस्त्रियन” था और इसके करोड़ों अनुयायी रोम से लेकर सिंधु नदी तक फैले थे. सन 576 ईसा पूर्व साम्राज्य की स्थापना करने वाला था ‘साइरस महान’ (फ़ारसी: कुरोश) जो ‘हक्कामानिस’ (Achaemenes) वंश का था. इसी वंश के सम्राट ‘दारयवउश’ प्रथम, जिसे ‘दारा’ या ‘डेरियस’ भी कहा जाता है, के शासन काल (522-486 ईसापूर्व) को पारसीक साम्राज्य का चरमोत्कर्ष काल कहा जाता है. प्रकृति का नियम ही है कि जहाँ उत्कर्ष है वहाँ पतन भी निश्चित है. ईसा पूर्व 330 में सिकंदर के आक्रमण के सामने यह साम्राज्य टिक ना सकी. सन 224 ईस्वी में जोरोस्त्रियन धर्मावलंबी ‘अरदाशीर’ (अर्तकशिरा) प्रथम के द्वारा एक और वंश “सॅसेनियन” की स्थापना हुई और इस वंश का शासन लगभग 7 वीं सदी तक बना रहा. भारत के गुजरात तट से ऊपर पश्चिमी भागों में भी इस वंश ने राज किया है.
इनके साम्राज्य के पतन के बाद, मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा सताए जाने से बचने के लिए, ईरान से इनका पलायन प्रारंभ हो गया. हम जिन्हें पारसी कह रहे हैं वे ईरानी ही हैं जो गुजरात से तो पहले से परिचित थे क्योंकि काफ़ी पहले से ही भारत से व्यापार में वे सलग्न थे और उनका तो पूर्व में शासन भी रहा है. शरणार्थी का पहला समूह मध्य एशिया के खुरासान ( पूर्वी ईरान के अतिरिक्त आज यह प्रदेश कई राष्ट्रों में बँट गया है – जैसे हमारा पंजाब या बंगाल) प्रांत से समुद्री रास्ते गुजरात के ‘दीव’ (Diu) द्वीप पर 8 वीं से 10 वीं सदी के बीच पहुँचा. एक स्थानीय शासक ‘जाडी राणा’ या ‘जादव राणा’ ने उन्हें शरण दी पर साथ में हिदायत भी दी कि वे स्थानीय बोली और रीति रिवाज़ अपना लें. ऐसा कहा जाता है कि पहले तो जादव राणा ने इन आगंतुक पारसियों की योद्धाओं सा डील डौल आदि को देख उनके पुरोहित दस्तूर नेर्योसांग धावल को एक कटोरे में दूध भिजवा दिया यह जताने के लिए कि वे इस देश में अवांछनीय हैं परन्तु उस पुरोहित ने उस कटोरे में कुछ शक्कर डाल कर वापस राजा के पास लौटा दिया जिसका अर्थ था के पारसी लोग स्थानीय लोगों में इस तरह घुल मिल जायेंगे कि मिठास आ जाये.
इन पारसी शरणार्थियों ने अपने पहले बसाहट को ‘संजान’ नाम दिया क्योंकि इसी नाम का एक नगर तुर्कमेनिस्तान में है, जहाँ से वे आए थे. कुछ वर्षों के अंतराल में दूसरा समूह (खॉरसानी या कोहिस्तानी) आया जो अपने साथ धार्मिक उपकरण (अलात) लाया. स्थल मार्ग से एक तीसरे समूह के आने की भी जानकारी है. संजान मे पारसियों के द्वारा आकर बसने की जानकारी “किस्सा-ए-संजान” में उपलब्ध है जिसकी रचना ‘बहमान कैकोबाद’ द्वारा सन 1599 में की गयी थी. यह ग्रंथ आज पारसियों के लिए सन्दर्भ ग्रंथ बन गया है हालाकि इसे बसाहट के 5 या 6 सौ साल बाद लिखा गया था.
पारसियों के संजान में बसने के 5 वर्षों के अंदर ही इन्होंने ईरान से बचाकर लाए गये पवित्र अग्नि “अताश बहराम” को स्थापित करने के लिए एक मंदिर का निर्माण किया. भले ही इन्होंने स्थानीय भाषा और रहन सहन को अपना लिया था पर अपनी संस्कृति और धार्मिक परंपराओं को संजोए रखा. 10 वीं सदी के अंत तक इन्होंने गुजरात के अन्य भागों में भी बसना प्रारंभ कर दिया. 15 वीं सदी में संजान पर मुसलमानों के द्वारा आक्रमण किए जाने के कारण, वहाँ के पारसी जान बचाकर पवित्र अग्नि को साथ ले नवसारी चले गये. 1516 में वह पवित्र अग्नि, मंदिर में स्थापित हुआ. पुरोहितों के आपसी झगड़े के कारण 1742 में वही पवित्र अग्नि “उदवदा” स्थानांतरित की गयी (उदवदा आज यह एक पर्यटन स्थल भी है – समुद्री किनारे की एक बस्ती जहाँ अधिकतर पारसी रहते हैं).
सन 1620 के लगभग ही सूरत में अँग्रेज़ों की फॅक्टरी स्थापित हुई और सूरत एक प्रमुख व्यापारिक अड्डा बन गया. बड़ी संख्या में पारसी, कारीगरी तथा व्यापार से जुड़ गये थे इसलिए वे सूरत में आकर बसने लगे. अंग्रेज भी उनके मध्यम से व्यापार करते थे जिसके लिए उन्हें दलाल नियुक्त कर दिया जाता था. कालांतर में ‘बॉमबे’ अँग्रेज़ों के हाथ लग गया और उसके विकास के लिए कारीगरों आदि की आवश्यकता थी. विकास के साथ ही पारसियों ने बंबई की ओर रुख़ किया. गुजरात में उत्पन्न हुई अकाल की स्थिति ने भी पारसियों को बड़ी संख्या में बंबई जाने के लिए प्रेरित किया. सन 1640 के पूर्व से ही पारसी, बंबई मे बसे हुए थे. दोराबजी नानाभाई नामक एक पारसी के 1640 में बंबई में पाए जाने के अभिलेख हैं. अधिकतर जो लोग सूरत से बंबई आए वे जुलाहे, कारीगर और व्यापारी थे. अँग्रेज़ों को भी पारसियों के मध्यम से व्यापार करना सुहाता था. अँग्रेज़ों से मान्यता प्राप्त प्रथम दलाल के रूप में एक नाम आता है, ‘रुस्तोम मानेक’ जिसे सेठ की पदवी मिली. उसी के पुत्र ‘नवरोज़’ ने सन 1728 में पारसी पंचायत की स्थापना की थी. मूलतः यह पंचायत समाज के अंदर स्व-शासन के लिए बना था पर विवादों के चलते अब केवल सामाजिक कल्याण में लगा एक न्यास रह गया है. पारसियों के समझ में आ गया था कि उन्नति करनी हो तो समाज को शिक्षित होना होगा. 1849 में उनके द्वारा एक अँग्रेज़ी स्कूल की स्थापना की गयी थी जो उस जमाने में ही सह शिक्षा पर आधारित (को-एजुकेशनल) थी. बाद में जाकर लड़कों और लड़कियों के लिए अलग अलग व्यवस्था कर दी गयी. भारत मे रहकर इस समुदाय ने हर क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम भी इस से अछूता नहीं रहा. फ़िरोज़ शाह मेहता, दादाभाई नावरॉजी, भीकाजी कामा इनमे प्रमुख हैं. अन्य क्षेत्रों में होमी जे भाभा, होमी के भाभा, सेम मानेकशा, सूनी तारापोरेवाला, जमशेदजी टाटा, वाडिया, गोदरेज, २० वीं सदी के महान अधिवक्ता नानी ए पालकीवाला (उन्मुक्त जी की टिपण्णी देखें) आदि अग्रणी रहे हैं.
जोरोस्त्रियन धर्म के संस्थापक ‘ज़रथुस्त्र’ (ज़रथ का अर्थ है प्रेम करना और उस्तरा का अर्थ है ऊँट) का भी जन्म ईसू मसीह की तरह ही एक कुंवारी माता ‘दुघदोवा’ से हुआ था. “अहुरा मज्दा” इनके इश्वर को कहा कहा जाता है और ‘ज़रथुस्त्र’ इनका पैगम्बर. पवित्र ग्रन्थ ‘अवेस्ता’ कहलाता है जिसमे ‘ज़रथुस्त्र’ के द्वारा ही रचित श्लोकों का संकलन “गाथा” भी निहित है. इनका धर्म सत्य पर आधारित अच्छे विचार, अच्छे बोल (शब्द) और अच्छे कर्म की सीख देता है. पारसी लोग अग्नि की पूजा करते हैं. पूजा करते समय एक ऊन से बना, हाथ से बुना, कमरबंद (कुश्ती) पहनना अनिवार्य होता है. हिन्दुओं के उपनयन संस्कार के सदृश उनके यहाँ नवजोत (सेद्रेपूशी) होता है. ७ से ९ वर्ष की आयु के मध्य बच्चों को (लड़का हो या लड़की) जोरोस्त्रियन धर्म में दीक्षित किया जाता है. इस समय ही वे कमर में कुश्ती पहनते है. कुश्ती एक प्रकार का कमरबंद है जो भेड़ के ऊन के ७२ धागों से बनाया जाता है. इसे कमर में तीन बार लपेट कर पहने रखते हैं. इस अवसर पर सब लोग माथे पर सिंदूर का टीका भी लगाते हैं. पृथ्वी, अग्नि और जल को पवित्र माना जाता है अतः उन्हें दूषित होने से बचने के लिए मृत देह को आकाश को अर्पित किया जाता है. एक ऊंचे बुर्ज (दाख्मा) पर मृत देह को छोड़ दिया जाता है, गिद्ध, चील आदि द्वारा खाए जाने के लिए. मुंबई के मलाबार हिल में अँग्रेज़ों ने पारसियों के प्रथम “दाखमा” (शव निपटान बुर्ज) के लिए ज़मीन दी, जो सन 1673 में बना. उनके पवित्र अग्नि का मंदिर जो सबसे पुराना है, सन 1709 में बना था जो बनाजी गली में अकबरली शो रूम के सामने है. एक दूसरा मंदिर जो सन 1733 का है, नरीमन स्ट्रीट, सी.एस.टी के पास है.पूरे विश्व में पारसियों की संख्या 1,25,000 से भी कम रह गयी है और भारत में उनकी आबादी लगभग 80,000 है. अधिकतर ये सब मुंबई में ही बसे हुए हैं. साल दर साल इनकी आबादी कम ही होती जा रही है. इस का प्रमुख कारण है दूसरों को अपने धर्म में स्वीकार ना करना. इनके लड़के हों या याज्ड (ईरान) का प्राचीनतम दाख्मा
लड़की, यदि दूसरे धर्म में विवाह कर लेते हैं तो फिर उनसे उत्पन्न होंने वाली संतान जोरोस्त्रियन धर्म में शामिल नहीं किए जाते. दूसरा एक बड़ा कारण यह भी रहा है कि इनके युवा बहुत ही विलंब से, लगभग ४० वर्ष की उम्र में शादी करते हैं. आज के इस आधुनिक युग की पारसी लड़कियाँ इतने लंबे समय तक कुँवारी रहने के बजाय किसी अन्य धर्मावलंबी युवक के साथ रिश्ता बना लेती हैं. समाज के बुद्धिजीवियों में बहस जारी है और कुछ सुधारवादी पहल किए जाने की संभावनाएँ बन रही हैं.
जोरोस्त्रियन धर्म में दूसरे धर्म के लोगों का धर्मन्तरण प्रतिबंधित कहा गया है. यहाँ यह उल्लेखनीय है की विगत कुछ वर्षों पहले भारतीय पारसियों का डी.एन.ए अध्ययन किया गया था और पाया गया कि उनमे पुरुष अंश तो ईरानी ही हैं परंतु स्त्री अंश गुजराती है. यह इस बात का प्रमाण है कि पारसी जब गुजरात में आकर बसे थे, उस समय उन्होने स्थानीय स्त्रियों से संबंध बनाने मे परहेज नहीं किया था.
मुंबई के दाखमा के अन्दर – दुर्लभ दृश्य
मार्च 21, 2009 को 7:13 पूर्वाह्न
सुब्रमनियन जी ,
आपने अच्छी जानकारी दी -आज के दीगर हिन्दू भी हैं जिनके वाई जीन मार्कर आज के इरानी कुलों से मिलते हैं जैसे एक मैं स्वयम ! साईब्लाग पर इसकी पूरी दास्ताँ जीनोग्रैफी के अंतर्गत देखियेगा ! अवेस्ता और ऋग्वेद के कई अंशों में अद्भुत साम्य है !
अग्नि इन्द्रादि देव यहाँ भी हैं वहां भी है ! लगता तो यही है कि पारसियों के रूप में एक दो अंतिम इरानी महाभिनिष्क्रमण बहुत बाद में हुए जबकि इन्ही की पूर्वज सन्ततियां हजारो वर्ष पहले भी भारत में पहुँची थीं ,ऋग वेद और अवेस्ता बस नाम और कालांतर के कई भौगोलिक और भाषाई परिवर्तनों के चलते दो ग्रन्थ बने -मूलतः वे एक हैं !
दुर्भाग्य है कि वंश शुचिता बनाए रखने के चक्कर में यह समूह कट्टर होता गया और अपनी अनुवंशिकीय कब्र खोदने में जुटा रहा -और भयावह परिणाम सामने है -बढियां लिखा है आपने !
मार्च 21, 2009 को 8:06 पूर्वाह्न
सीखने को बहुत कुछ है इस आलेख से।
मार्च 21, 2009 को 8:32 पूर्वाह्न
पारसी समुदाय के बारे में बहुत अच्छी जानकारी मिली है आज के लेख में | धन्यवाद |
मार्च 21, 2009 को 8:58 पूर्वाह्न
काफी दिनों से खोज में थी….पारसी समुदाय पर इतनी डीटेल्स कहीं नहीं मिली….बहुत शुक्रिया ..
मार्च 21, 2009 को 9:00 पूर्वाह्न
It’s an informative artical. No doubt, The Zorastrian Rligion was a branch of Sanatana Dharma, and even today it has core similarities with Vaidik Tradition. The ‘kusht’ described by you is even today given to an aspirant of Brahmacharyashrami ‘Batuk’ in Maharashtra (Brahmins), and after a while, sometimes before marrige this part of Yajnopaweet is ceremonially discarded. It is a variation of the kind. The Yajnopaveet in India is made of cotton, wheras the kusht , – of wool. The word Ustarh is close to sanskrit “Ushtrah”. There is another word for the camel : ‘kramelakah’, etymologically it means ‘krame’ +’lakah’, The animal that walks in a line. The word “camel” itself is a variation of ‘kramelakah’.
मार्च 21, 2009 को 10:16 पूर्वाह्न
हमारे शहर मे भी पारसी जो बड़े व्यापारी थे रहते थे उनमे से कुछ अब भी है लेकिन बुडे हो गए शादी नहीं करी . उनमे से एक naariman pariwaar के 50 से jyaada petrol pump है
मार्च 21, 2009 को 10:17 पूर्वाह्न
अच्छी जानकारी.
हाल ही में वडोदरा के पारसी मन्दीर को अन्य लोगो के लिए कुछ समय के लिए खोला गया था.
कट्टरता अस्तीत्व के लिए खतरा बन जाती है, यह समझ लेना चाहिए.
मार्च 21, 2009 को 12:52 अपराह्न
बमुश्किल आज आप तक आ पाया हूँ,
इतना महत्वपूर्ण आलेख बुकमार्क तो किया ही है,
आपकी सूझभरी ब्लागिंग के सम्मुख नतमस्तक हूँ..
जय हिन्द !
मार्च 21, 2009 को 1:15 अपराह्न
बहुत दिन पहले मलिका साराभाई का पारसी समुदाय की उत्पति पर एक नाटक देखा था .तब से पारसी समुदाय के बारे में आगे जानने की उत्सुकता हुई थी …आज आपके लेख से बहुत सी बाते पता चली …पर क्या पारसी समुदाय की आज की जनरेशन भी अभी कट्टर वादिता से इन बातों को मानती है .? आखिर इसको बचाने के लिए कुछ तो उपाय या रास्ता इन्होने खुद hi तलाश करना है ..
मार्च 21, 2009 को 1:42 अपराह्न
बहुत अच्छी जानकारी दी है | म १० साल सूरत में रहा हूँ | वहा इनकी संख्या बहुत ही कम हो रही है | अब इनके शावदागृह भी सोर ऊर्जा चालित है जिसमें शव को जलाया जाता है |
मार्च 21, 2009 को 3:11 अपराह्न
सुब्रमणियम जी, आपने बहुत ही विस्तारपूर्वक पारसी धर्म के बारे में जानकारी प्रदान की…..इसके लिए आपका अति धन्यवाद………किन्तु बहुत पहले से ही इस धर्म के बारे में मेरे मन में कुछ शंकाए/जिज्ञासाएं विधमान रही हैं,जिनका निवारण आज तक नहीं हो पाया….आज इस विषय में आपकी पोस्ट देखी तो सोचा शायद आपके माध्यम से इन जिज्ञासाओं का शमन हो सके.
1. संस्कृ्त भाषा और इनकी अवेस्तन भाषा में इतनी अधिक समानता का क्या कारण है?
हुमत, हुख्त, हुवर्श्त,अहुर मज्दा, जैसे अवेस्तन भाषायी शब्द संस्कृ्त के क्रमश: सुमत, सूक्त, सुवर्तन,असुर मेधा जैसे शब्दों के उच्चारण में कितनी अधिक समानता दिखाई पडती हैं.
2.भाषायी समानता के साथ ही उनके धर्म ग्रन्थ जन्द अवेस्ता और ऋग्वेद के कुछ अंशों में भी बहुत ही साम्यता है( जैसा कि अरविन्द मिश्रा जी ने अपनी टिप्पणी में भी दर्शाया है) ऎसा क्यों?
3. पारसी शब्द कहीं “फारसी” का ही अपभ्रंश तो नहीं?
आशा करता हूं कि आप इन उपरोक्त वर्णित प्रश्नों के उत्तर के जरिए मेरे मन की जिज्ञासा का शमन करने का प्रयास अवश्य करेंगे……..अग्रिम धन्यवाद स्वीकार करें.ज्ञा
मार्च 21, 2009 को 3:34 अपराह्न
संजय बेंगाणी की टिप्पणीं एकदम सटीक है। कट्टरता अस्तित्व के लिए खतरा बन जाती है। पासरी समुदाय व उनके धर्म पर अच्छी जानकारी लेकिन अगर इस विषय पर आप हमें ज्ञान देने का सिलसिला जारी रखेंगे तो काफी जिज्ञासाएं शांत
मार्च 21, 2009 को 3:38 अपराह्न
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी. किन्तु इनकी संख्या में कमी पर एक मत इनके विदेशों में पलायन को भी माना जा रहा है.
मार्च 21, 2009 को 3:47 अपराह्न
क्या बात है काश मैं भी पहले सामाजिक पढा होता तो शायद आज आपसे भी कुछ बात कर सकता पारसी समुदाय पर
धन्यवाद आप मेरी ये कमी भी पूरी करा रहे हो
मार्च 21, 2009 को 4:53 अपराह्न
paarsi samuday mujhe isliye pasand hai kyonki ve aaj bhi apni paramparon ka nirvahan karte hain.
मार्च 21, 2009 को 6:30 अपराह्न
सुब्रमनियम जी,
पारसी समुदाय के बारे में बढ़िया जानकारी दी. इनके धर्म के जो नियम आपने बताये हैं, उन्हें पढ़कर मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ कि जहाँ इसाई और मुस्लिम जबरन दूसरों को धर्मांतरण कराने पर लगे हुए थे तो पारसी लोग अपने धर्म को बचाने में लगे थे.
मार्च 21, 2009 को 6:35 अपराह्न
बहुत खूब…
मार्च 21, 2009 को 6:50 अपराह्न
बहुत बढ़िया जानकारी दी आपने. शायद पहली बार पारसियों के बारे में विस्तृत आलेख पढ़ा. दादा.. आपका आभार.
मार्च 21, 2009 को 8:10 अपराह्न
बहुत सुंदर जानकारी दी है आपने।
बदलते समय के साथ समाज की मान्यताओं में परिवर्तन जरूरी होते हैं और इससे संस्कृति की उत्तरजीविता बढ़ती ही है। हो सकता है देर-सबेर पारसी समाज भी सुधारों का मार्ग अपनाए।
अपने लेखन में आपने पारसी और हिन्दू रीति-रिवाजों की जो समानताओं की चर्चा की है, वे इस बात की ओर इशारा करती हैं कि अवेस्ता और ऋग्वेद के रचयिताओं के पूर्वज एक ही थे। इस मामले में डा. अरविन्द मिश्र जी के विचारों से सहमत हूं।
मार्च 21, 2009 को 8:48 अपराह्न
आपने बडा ही सुंदर आलेख छापा है पारसी समुदाय के बारे मे. हमारे भी कुछ पारसी परिवार दोस्त हैं और उनकी कट्टरता के बारे मे हालांकि वो कुछ खुल कर नही बोलते. पर इस कट्टरता का विरोध वो इसलिये भी नही करते कि उनके सामाजिक ताने बाने मे जो सुरक्षा उनको हासिल है वो दुसरे समाजो से कहीं बहुत ज्यादा है. और यही बात ज्यादातर युवकों को दुसरे समाज मे शादी नही करने देती.
खैर इस विषय पर इससे ज्यादा लिखा जाना ठीक नही है. आपने बहुत बेहतरीन जानकारी पाठकों को दी है.
रामराम.
मार्च 21, 2009 को 9:22 अपराह्न
मैं प्रशंसा के अतिरेक से बह रहा हूं। कितनी मेहनत से बनाई होगी आपने यह पोस्ट! और कितना ज्ञान इसने मुझे दिया।
वीडियो शायद उपलब्ध नहीं हैं। पर उनका न होना पोस्ट की कीमत किसी तरह कमतर नहीं करता।
मार्च 21, 2009 को 11:32 अपराह्न
वाह बहुत अच्छा लगा यह लेख पढ कर . पारसियों के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी पाकर । वैसे ये लोग ऊपरी तौर पर काफी मिलन सार होते हैं ।
मार्च 22, 2009 को 12:21 पूर्वाह्न
बहुत सुंदर आलेख है … पारसी समुदाय के बारे में अच्छी जानकारी दी है आपने।
मार्च 22, 2009 को 12:58 पूर्वाह्न
बहुत तथ्य परक जानकारी है इसमें .इतनी अच्छी और गवेश्नात्म्क लेखन के लिए आपको धन्यवाद .यह वाकई चिंता की बात है .काफी समय से इस विषय पर चिंतन चल रहा है परन्तु पारसी समाज के ताजे आंकडे तो और भी नकारत्मक संकेत दे रहें हैं .आप ने एक अति महत्त्वपूर्ण विषय पर लेखनी चलाई है .इस लेख से कुछ एक ऐसे तथ्यों के बारे में मुझे आज जानकारी मिली है जो कि मुझे पहले न थी .
मार्च 22, 2009 को 5:21 पूर्वाह्न
रोचक जानकारी है। पारसी स्वभाव से शान्त व नम्र होते हैं व शायद ही किसी ने इन्हें लड़ते झगड़ते देखा हो। भारतीय जीवन में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इनकी जनसंख्या कम होना दुखद है।
घुघूती बासूती
मार्च 22, 2009 को 5:25 पूर्वाह्न
रोचक जानकारी।
मार्च 22, 2009 को 8:48 पूर्वाह्न
बहुत ही खोजपरक तथ्य उपलब्ध कराए हैं आपने। पारसी धर्म को लेकर उपजी अनेक जिज्ञासाओं का समाधान यह आलेख प्रदान करता है।
पारसियों के जिस अग्नि मन्दिर को आपने ‘उद् वदा’ कहा है, पारसी लोग उसे ‘अग्यारी’ कहते हैं। मुझे स्मरण हो रहा है कि मुम्बई के कालबादेवी या धोबी तालाब क्षेत्र में कहीं, मुख्य सडक पर ही पारसियों का एक अग्नि मन्दिर स्थित है जिसके बाहर ‘पारसी अग्यारी’ लिखा हुआ है।
एक बात और। अग्यारी के अनुशासन को बनाए रखते हुए उसका संचालन बहुत ही खर्चीला हो गया है। पारसियों में पुरोहितों का भी अकाल हो गया है। प्रथमत: तो पुरोहित मिलते ही नहीं और यदि मिलते भी है तो उनका ‘पारिश्रमिक’ अत्यधिक होता है। इन्हीं बातों के कारण, पारसियों के मन्दिर अर्थात् ‘अग्यारी’ देश में गिनती के स्थानों पर ही हैं।
इस आलेख से जुडते हुए, संजय बेंगाणी का वाक्यांश ‘कट्टरता अस्तित्व के लिए खतरा बन जाती है’ बहुत ही महत्वपूर्ण है। विशेषकर, ‘हिन्दू धर्म को कट्टरता की ओर धकेले जाने से परेशान हो रहे हिन्दुओ के लिए।
मार्च 22, 2009 को 12:09 अपराह्न
पारसी समुदाय की जनसंख्या घटने का मूल कारण है जैनेटिक विशुद्धता को लेकर उनका बेहद सतर्क होना । अध्ययनशीलता के आग्रह के चलते युवक बड़ी उम्र तक विवाह नहीं करते । साथ ही लड़कियाँ लड़कों से ज़्यादा पढ़ लिख जाती हैं ऎसे में वे अपने समुदाय की बजाय बाहर शादियाँ कर लेती हैं या अविवाहित रहना पसंद करती हैं ।
मार्च 22, 2009 को 1:32 अपराह्न
एम. वी. कामथ ने नानी ए. पालकीवाला की जीवनी लिखी है। इस पुस्तक के प्रथम अध्याय में पारसियों का इतिहास भी लिखा है। इसमें, उनके बीच एक प्रचलित प्रसंग की चर्चा है। इसके अनुसार जब सर्वप्रथम पारसी भारत आए तो उनको एक हिन्दू राजा ने दूध से भरा हुआ बर्तन भेजा। जिसका अर्थ था,
उनके साथ आये पारसी संत ने उसमें चीनी घोल कर उसे वापस भेज दिया। जिसका अर्थ था,
पारसी संत की बात सच ही थी। पारसियों के भारत में रहने के कारण हमारा समाज समृद्वि ही हुआ है। मैंने इस पुस्तक की समीक्षा यहां लिखी है।
मार्च 22, 2009 को 8:49 अपराह्न
सुब्रमनियन जी, आपके पास भारत और भारतीय समाज के बारे में जानकारी का इतना अथाह भंडार है कि आप को जल्दी ही नॉल पर लिखना चालू कर देना चाहिये. नहीं तो अब आपके द्वारे हडताल पर बैठना पडेगा.
अलेख बहुत ही जानकारीपरक है
सस्नेह — शास्त्री
मार्च 22, 2009 को 9:46 अपराह्न
सुन्दर और रोचक .
कहाँ से इतनी जानकारी एकत्र करते हैँ आप
मार्च 22, 2009 को 10:20 अपराह्न
सुब्रमनियन जी,कल घर पर नही था इस लिये आप का यह सुंदर लेख पढ नही सका, आज पढा तो बहुत सी बाते पता चली ईसाईयो के बारे मै, बहुत ही सुंदर जानकारी मिली, मेरे दोस्तो मे बहुत से अलग अलग धर्मो के लोग है, लेकिन हम ने कभी भी एक दुसरे के धर्म के बारे कभी इतना नही पुछा, लेकिन आप के इस लेख से बहुत कुछ पता चला.
धन्यवाद
मार्च 22, 2009 को 10:54 अपराह्न
DER SE AANE KE LIYE MUAAFI CHAHUNGA..
MAGAR BAHOT HI ROCHAK AUR UPLABDHATA LIYE HUYE HAI YE POST ,BAHOT HI SHAANDAAR LIKHA HAI AAPNE…. AAPKI BHASHAA SHAILI BHI KAMAAL KI HOTI HAI…POST PE MERI BHI HAAZIRI LAGAAI JAAYE…
MAIN APNE NAI GAZAL PE AAPKA PYAR CHAHUNGA AGAR AAPKO PASAND AAYE…
ARSH
मार्च 23, 2009 को 8:12 पूर्वाह्न
अमूल्य जानकारी.आभार.
मार्च 23, 2009 को 10:43 पूर्वाह्न
hamesha kee hee tarah gyan se bhara. antim kriya par video dikha kar aapne antardwnd bhee dikhaya hai .
aapko padhna lagatar gyan me ijafa karta hai, man ko santosh deta hai . jitna aap cover karte hain, vah ek vyakti ko sansthan ka darza deta hai .
मार्च 23, 2009 को 11:43 पूर्वाह्न
इतनी सारी बातें और जानकारी तो आप के ब्लॉग पर ही पढ़ने को मिलती है ।
पर वीडियो नही देख पाये क्योंकि मन मे कुछ अजीब सा फील होने लगा था ।
मार्च 23, 2009 को 3:50 अपराह्न
कमाल की जानकारी दी है आपने ।
धन्यवाद,
मार्च 23, 2009 को 8:11 अपराह्न
आप ने तो पूरा इतिहास खोल कर रख दिया। इतनी विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद।
इस कौम को भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए कुछ तो कट्टरपन कम करना चाहिए। ऐसी पवित्रता भी किस काम की कि आने वाले समय में सिर्फ किताबों में ही उपस्थिति मिले।
मार्च 23, 2009 को 8:23 अपराह्न
बहुत शुक्रिया पारसियों के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी के लिए !
मार्च 23, 2009 को 10:53 अपराह्न
गलती सुधार ईसाईयो की जगह पारसी पढे.
धन्यवाद
मार्च 24, 2009 को 2:43 पूर्वाह्न
पारसी समुदाय के बारे में इतनी अधिक जानकारी शायद हिंदी में कहीं उपलब्ध नहीं होगी.उन के इतिहास और वर्तमान में स्थिति सभी कुछ पर आप ने लिखा है.
विडियो देखा ,जो शायद कभी पहले किसी ने नहीं देखा होगा!उन महिला की बात और तर्क भी सुने.
आप ने बहुत रिसर्च कर के यह लेख लिखा है.इस जानकारी को हम सभी तक पहुँचने हेतु आभार.
http://www.alpana-verma.blogspot.com
मार्च 24, 2009 को 11:57 पूर्वाह्न
Very informative
मार्च 24, 2009 को 2:02 अपराह्न
बहुत ही रोचक और विस्तृत जानकारी दी आपने. पहली बार पारसियों के बारे में आपके आलेख पढ़ इतना कुछ जानने का अवसर मिला….बहुत बहुत आभार आपका ……
मार्च 24, 2009 को 3:15 अपराह्न
Behtreen aur rochak jankari…
मार्च 25, 2009 को 8:49 पूर्वाह्न
mantr mugdh kr diya kochi ki sundrta or akarshk chitro ne…..bhut rochak aalekh.
Regards
अप्रैल 3, 2009 को 8:55 अपराह्न
parsis are real minorties.they never demaded for reservation or any govenment aid.
फ़रवरी 15, 2011 को 1:06 अपराह्न
bahut acchi jankari de hi or bahut logo ko parsi samudaye ke bare me nahi pata hoga unke leye accha hi
दिसम्बर 9, 2011 को 9:00 अपराह्न
musalman sasak talwar ke chot per nahi islam failaye nahi to aaj puri dunia musalmaan hoti
जनवरी 13, 2014 को 1:09 पूर्वाह्न
Bahut hi achha lekh h. Me Parasi dharm ke liye mere mann me samman aur bhi badh gaya hai. Sarkar aur sabhi logo ko iss samuday ka samman karna chahiye aur inhe suvidhae di jani chahiye kyuki asli minority ye hai, Muslims nhi.
दिसम्बर 27, 2016 को 12:53 अपराह्न
Very nice