रामलाल वर्षों से भवन निर्मण से जुड़े ठेकेदार के साथ मिस्त्री का काम करते करते जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुका था. उसे लगने लगा कि अब आराम करना चाहिए. बीबी बच्चों, नाती पोतों के साथ आराम से रहूँगा. उसने अपने मन की बात अपने मालिक से बताई. एक अच्छे कारीगर को सेवा से निवृत्त कर उसे खो देने का ठेकेदार को दुख था. लेकिन यह तो एक दिन होना ही था. उसने कुछ सोचा और मिस्त्री को बुलाकर कहा, चलो अब जाते जाते एक घर मेरे कहने पर बना दो.
रामलाल वैसे तो मन से नहीं चाहता था कि अब और कोई काम किया जाए, पर उसने अपने मालिक की बात रख ली. इस आख़िरी काम को जल्द निपटाने के लिए उसने काम शुरू भी कर दिया. जैसा कि ऐसी स्थितियों में देखा गया है, रामलाल का मन काम में लगता नहीं था. लेकिन क्या करे, काम को पूरा करना ही था इसलिए जैसे तैसे कुछ महीनों में ही एक काम चलाऊ घर बना ही डाला. घर के बन जाने के बाद ठेकेदार ने उसका निरीक्षण किया फिर रामलाल को बुला कर उस घर की चाबी उसे ही सौंपते हुए कहा “लो अब यह घर तुम्हारे ही लिए है, मेरी तरफ से उपहार.” यह सुन रामलाल सकते में आ गया. उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वो अपना ही घर बना रहा है. उसने बड़ी शर्मिंदगी महसूस की. पहले से पता होता कि उसे ही उसमे रहना है तो वह एक बेहतरीन घर बनाता.
ऐसे ही विचारों से घिरे रहकर जीवन में हम बहुत से कार्य करते हैं. जब बात स्वयं पर आकर रुकती है, तभी हमें आभास होता है. अतः सब हम पर ही है. हम अपने जीवन के ताने बाने बुनते ही रहते हैं. निर्माण चलता रहता है. इस निर्माण में हम अपनी क्षमता का अंश मात्र ही प्रयोग में लाते हैं. झटका तब लगता है जब पता चलता है, अरे यह तो हमारे लिए ही था. हमने ही तो बुना/गढ़ा. काश पहले से मालूम होता तो इसे बेहतर बनाते.
अब बुनने/गढ्ने के लिए वापस जाना संभव नहीं है. हमने अपनी नियति का ही तो निर्माण कर लिया. हम सब रामलाल की तरह ही हैं. जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण और जो चयन हम आज कर रहे हैं उसी से तो अपना घरोंदा बनेगा.
इसी बात पर हमें एक और लघु कथा याद आ रही है:
एक नयी नवेली दुल्हन ने कहा “प्रेम”. यह ग़रीबी में भी अमीरी का एहसास कराती है (सर्दी में गर्मी का भी !), आँसुओं को मीठा बनाती है, थोड़े को भी ज़्यादा बना देती है, इसके बगैर तो कोई सौंदर्य है ही नहीं.
एक सिपाही ने कहा ‘सौंदर्य’ तो ‘शांति’ में ही है. युद्ध तो विकृति है. इसलिए जहाँ शांति है वहीं सौंदर्य भी है.
विश्वास, प्रेम और शांति, इन्हें मैं कैसे चित्रित करूँ, असमंजस में पड़ जाता है चित्रकार.
अपने घर जाता है. अपने बच्चों की आँखों में उसे विश्वास दिखता है, पत्नी की आँखों में प्रेम और अपने ही घर में प्रेम और विश्वास द्वारा बनी शांति को महसूस करता है.
पारंपरिक
आप के घरोंदे में अमन चैन और संपन्नता लेकर आवे आने वाला नव वर्ष – इन्ही शुभकामनाओं के साथ