प्रातःकाल भद्राचलम पहुँच कर गोदावरी नदी में सबने खूब उछल कूद करते हुए स्नान किया और फिर पहुँच गए श्री रामचंद्र जी के दरबार में उपस्थिति देने, वहां के प्रसिद्द मंदिर में, जो एक पहाडी पर बना है.
भद्र नामक एक ऋषि हुआ करते थे जो मेरु के पुत्र थे. इन्होने त्रेता युग की समाप्ति तक इस पहाडी पर तप किया और भगवान् राम ने यहीं पर उन्हें दर्शन देकर मोक्ष प्रदान किया. इसीलिये नाम पड़ गया भद्राचलम. कहते हैं कि यहाँ का मंदिर पहले छोटा था जिसका १७ वीं सदी में गोपन्ना ने पुनर्निर्माण करवाया. गोपन्ना को रामदास के नाम से अधिक जाना जाता है. वे बड़े ही महान राम भक्त थे. अब्दुल हसन ताना शाह के दरबार में वे एक तहसीलदार रहे. उन्होंने शाही खजाने में वसूली की राशि जमा करने के बजाय पूरा धन मंदिर निर्माण में लगा दिया. इस अपराध के लिए उन्हें गोलकोंडा के किले के एक काल कोठरी में बंदी बनाकर रखा गया था. कहते हैं कि प्रभु राम सुलतान को स्वप्न में प्रकट होकर सारी गबन की गयी राशि के खजाने में जमा किये जाने की रसीद दे दी. सुबह उठ कर सुलतान अचंभित हुआ और पहला काम जो उसने किया, वह गोपन्ना की तत्काल रिहाई थी. इसके बाद सुलतान ने भी भद्राचलम के राम मंदिर के लिए आभूषण आदि भेंट किये. मंदिर के खर्चे के लिए भी एक निश्चित राशि प्रति माह दिए जाने की व्यवस्था की. यह व्यवस्था निजाम के ज़माने में भी जारी रही. वह कोठरी जहाँ गोपन्ना कैद कर रखा गया था आज भी देखी जा सकती है. रामदास ने कारावास में रहते हुए प्रभु श्री राम जी की प्रशस्ति में कीर्तनों की रचना की. उनके द्वारा रचित कीर्तन पूरे आन्ध्र में अत्यधिक लोकप्रिय हुए और आज भी गाये जाते हैं.मंदिर में पहुँच कर सीधे भगवान् के दर्शन के लिए अन्दर चले गए. पुजारी ने जब हम पांच लोगों को एक साथ देखा तो समझ ही गया कि ये बाहर से आये हैं. उसे भी कुछ मुद्रा प्राप्ति का योग बनता दिखा होगा और पूछ बैठा अर्चना करेंगे. हम ने हामी भर दी. फिर उसने आरती उतारी कुछ मन्त्र पढ़े और हम सबों के सर पर चांदी के मुकुट को छुला दिया. अभिषेक किया हुआ जल सब कि हथेलियों पे डाला और प्रसाद भी दिया. मांकड़ (मराठी मित्र) ने हम लोगों का ध्यान आकर्षित कर कहा “अबे यहाँ तो विष्णु जी हैं और बगल में श्री राम खड़े हैं” तत्काल किशोरी ने कहा “नहीं बे देख ये हाइब्रिड मूर्ती है. ऊपर के हाथों में शंख और चक्र है लेकिन नीचे एक हाथ में तीर और दूसरे में धनुष है. इसका क्या मतलब”. इस पर हमारे तेलुगु मित्र बुगता ने स्पष्टीकरण दिया “ठीक बोलता है साला गोंड. श्री राम के साथ सीता जी हैं. राम विष्णु का अवतार है इसीलिये ऐसा बनाया होगा. बगल में देखो कौन खडा है. लक्ष्मण ही तो होगा”.हम सब सुन रहे थे. हमने भी अपनी तरफ से कह दिया “हाँ यार एक प्रकार का ट्राइबल इम्प्रोवैसेशन. सेंस ऑफ़ प्रोपोर्शन दिख ही नहीं रहा है, हाथ देखो कितने बड़े बनाये हैं. और सीता जी को गुडिया बना दिया”. मांकड़ (मराठी) बोल पड़ा “किशोरी के परदादा लोग बनाये होंगे”. अब तक भाईलाल (गुजरती) कुछ बोल नहीं रहा था. उसने बीच में आकर बोला “अबे मत लडो. मान भी लो कि किसी आदिवासी ने उस मूर्ती को बनाया हो, लेकिन देखो कितना दिमाग लगाया. विष्णु में उसने हमें राम को दिखा दिया”. अब किशोरी की बारी थी. उसने कहा “देखा.. हम लोगों के पास भी दिमाग है” हमारी आपस की बातें पुजारी सुन रहा था. उसने कहा ये बाबू और तेलुगुवाला बाबू ठीक बोलता. हम लोगों ने उसे अनसुनी कर दी कि कहीं और दक्षिणा न मांग बैठे और बाहर निकल पड़े.
बाहर निकल कर होटल तलाश ली ताकि कुछ पेट पूजा कर ली जावे. बड़ी भूक लगी थी. खाने को इडली वडा और मसाला दोसा मिल गया. वैसे पूरी सब्जी भी मिल रही थी. हमने “पेसारट” (मूंग का चीला) की मांग की और मिल भी गयी. दूसरे मित्रों ने भी दोसा के बदले “पेसारट” खाया और लोगों को अच्छा लगा. यह इन सब के लिए (बुगता को छोड़) एक नयी चीज थी. ऊपर से एक एक कप चाय भी पी ली. इसके बाद हम लोग निकल पड़े “पर्णशाला” देखने जो लगभग ३० किलोमीटर की दूरी पर है.
पर्णशाला गोदावरी नदी के ही तट पर वो जगह है जहाँ श्री रामचंद्र जी ने कुटिया बनाकर अपने १४ वर्षों के वनवास के दौरान कुछ समय बिताया था. यहीं से सीता मैय्या का रावण के द्वारा अपहरण भी किया गया था. वैसे यहाँ देखने के लिए एक रामचंद्र जी का मंदिर है और कुटिया भी है जो निश्चित ही रामायण काल की तो नहीं हो सकती. एक चबूतरे पर सीता मैय्या के पैरों के निशान पत्थर पर अंकित हैं जहाँ लोग श्रद्धा से माथा टेकते है. मंदिर में श्री राम शोकाकुल अवस्था में बताये जाते हैं. स्थानीय लोग उन्हें शोकाकुल राम ही (तेलुगु में) संबोधित भी करते हैं. सामने गोदावरी नदी के उस पार ऊंची पहाडियां है और दृश्य तो बड़ा ही मनोरम है. आगे नदी के दोनों तरफ पहाडिया मिलती हैं. इन पहाडियों को “पापीकोंडालू” कहा जाता है.
पर्णशाला के मंदिर में जब हम लोग दर्शनार्थ पहुंचे तो पंडित ने सबकी ओर से व्यक्तिगत अर्चना संपादित की थी. इसके लिए वह नाम पूछता और फिर गोत्र. एक के बाद एक अर्चना होती गयी. जब किशोरी का नंबर आया तो उसने अपना नाम तो किशोरी बताया परन्तु जब गोत्र पूछा गया तो उसने “गोंड” कह दिया. पुजारी भी सहज तरीके से अपने मन्त्र में “किशोरी नामस्य, गोंड गोत्रह” का समावेश कर लिया. अंत में मांकड़ (मराठी) की बारी आई तो उसने अपना पूरा नाम “सदाशिव तुकाराम मांकड़” बताया परन्तु गोत्र में उसे अटकता पाकर किशोरी ने मदद की. उसने कह दिया “शेडूल्ड” , पुजारी भी “शेडूल्ड” को साथ ले अर्चना कर दी. बहुत समय तक किशोरी और मांकड़ के बीच तू तू मै मै होती रही. हंसते हंसते हम लोगों का बुरा हाल था.मंदिर से बाहर आने पर सड़क के किनारे ताडी के फल (अन्दर का मलाईदार माल) बिक रहे थे. हम लोगों से पूरा टोकरा ही खरीद लिया और नदी में नौका विहार पर निकल पड़े. आजकल तो सुन्दर सुन्दर और बड़ी बड़ी नौकाएं चलती है. कुछ तो लक्सरी क्रूज़ नौकाएं भी चलने लगी हैं जो भारत के पूर्वी तट राजमुंदरी (गोदावरी का मुहाना) से प्रारंभ होती हैं और लगभग भद्राचलम तक आती और जाती हैं. हम सब लोग नौका विहार का आनंद लेकर कोटा के लिए निकल पड़े जहाँ हमें खाना खाना था और उसी दिन रात सकुशल जगदलपुर भी पहुँच गए थे. किसी ने जानने की जिज्ञासा जताई कि वापसी में सल्फी पी या नहीं. वापसी में लगभग शाम शाम को रास्ते में सल्फी का इंतज़ाम भी हो गया था. वैसे ताडी और सल्फी में हम अंतर नहीं कर पाए. दोनों लगभग एक जैसे स्वाद के थे. भले ताज़ी रही हो, नशा तो करता ही है. ऐसा नहीं कि नल खोल कर मटका भर लिया. पेड़ से बूँद बूँद कर रिसाव होता है जो कई घंटों के बाद ही भरता है.
भद्राचलम में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पिछले कुछ दशकों में बहुत कार्य हुआ है. मंदिर से कुछ दूरी पर एक विशालकाय हनुमान की मूर्ती लगायी गयी है. एक तरफ रावण के साथ युद्ध करते रामचंद्र जी के पुतले आदि बनाये गए हैं. पर्यटन विभाग ने सुन्दर विश्राम गृह और एक धर्मशाला भी बनवा दी है. हाँ विश्राम गृह की बात पर याद आया, वहा श्री राम चन्द्र जी को शबरी के हाथों बेर खाते आदम कद बुत बने हैं जो बड़े ही आकर्षक हैं.
भद्राचलम पहुँचने के लिये कई रास्ते हैं. हैदराबाद, विजयवाडा से अच्छी बसें चलती हैं. उत्तर की ओर से आने वालों के लिए हमारे दृष्टिकोण से दिल्ली – चेन्नई मुख्य मार्ग पर वारंगल में उतरना चाहिए. वहां देखने के लिए बहुत कुछ है. प्राचीन मंदिर, किला आदि. उन्हें देख कर बस से भद्राचलम जाया जा सकता है. वैसे मुख्य मार्ग पर नजदीकी रेलवे स्टेशन “खम्मम” पड़ता है. खम्मम से ही एक ब्रांच लाइन है जिसपर भद्राचलम रोड (कोथागुडेम) स्टेशन पड़ता है जो भद्राचलम से ४० किलोमीटर की दूरी पर है. यहाँ से भी टेक्सियों की व्यवस्था है.