Archive for जून, 2009

गुलाबी नगरी – जयपुर

जून 29, 2009

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कल ही अलबेला खत्री जी के ब्लॉग पर जाना हुआ और और देखिये क्या लिखा है उन्होंने जयपुर के बारे में:

सुबह गुलाबी शाम गुलाबी

दिवस गुलाबी रात गुलाबी

जित देखूं तित बात गुलाबी

हमारे पिछले तीन आलेख जयपुर से ही सम्बंधित रहे. लेकिन जयपुर के ऐतिहासिक स्मारकों के बारे में कह नहीं पाए थे. सबसे पहली बात तो यही होगी की इस शहर को गुलाबी नगरी क्यों कर कहा जाता है. उत्तर भी सीधा है, क्योंकि सभी भवन हलके कत्थई रंग से रंगे हुए हैं. वहां पाए जाने वाले पत्थर के रंग के, जिनसे बहुतेरे प्राचीन भवनों का निर्माण हुआ था. लेकिन इतना ही नहीं है. सन १८७६ में इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ तथा युवराज अलबर्ट के आगमन पर शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित कर दिया गया था और तब से ही जयपुर गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) कहलाने लगी. भले ही नगर निगम क्षेत्र लगभग ६५ वर्ग किलोमीटर हो परन्तु वास्तविक गुलाबी नगरी तो १० वर्ग किलोमीटर के दायरे में सिमटी हुई है. सन १७२७ में सवाई राजा जय सिह द्वीतीय के द्वारा इस नगर की स्थापना की गयी थी और कुछ लोग तो मानते हैं की संभवतः यह भारत की सर्वप्रथम योजनाबद्ध तरीके की बसावट रही है. किसी किले के सदृश यह शहर भी एक परकोटे के अन्दर बसाया गया है. नगर में प्रवेश के लिए सात द्वार हैं.0512-NEW GATE

0513-PORTA JAIPUR

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0524-BADI CHAUPAR

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जैसे कुतुब मीनार दिल्ली की पहचान है वैसे ही “हवा महल” जयपुर की पहचान है. आमेर जाने वाले मुख्य मार्ग पर इसे सन १७९९ में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने महल की स्त्रियों को शहर के बाज़ार को निहारने और हवा खोरी करने के लिए बनवाया था. पिरामिड नुमा इस पांच मंजिले भवन में जो राज प्रसाद से लगा हुआ है, कुल ९५३ झरोखे बने हुए हैं.पीछे से ऊपर जाया भी जा सकता है.526-HAWA MAHAL

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0528-HAWA MAHAL

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हमारी नज़र में जयपुर की दूसरी बड़ी पहचान वहां की वेधशाला “जंतर मंतर” की है. यह सवाई राजा जैसिंह ने ही खगोलीय अध्ययन हेतु बनवाई थी. उन्होंने ही ऐसी वेधशालाएं दिल्ली सहित चार अन्य नगरों में भी बनवाई थीं.यहाँ की वेधशाला बहुत ही अच्छी स्थिति में है क्योंकि रखरखाव पर विशेष ध्यान दिया गया है. वैसे तो यहाँ बहुत सारे यंत्र लगे हुए हैं परन्तु उनकी कार्यप्रणाली को समझ पाना हमारे बस का रोग नहीं था.
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0518-LAGHU SAMRAT YANTRA

0521-CHAKRA YANTRA

0519_REL_GIO_DE_SOL

0520_OBSERVAT_RIOयह हमारे समझ में आ रहा है. वेधशाला से ही नाहरगढ़ का किला दिख रहा है

अब हम आते हैं जयपुर शहर के केंद्र में स्थित सिटी पैलेस में. रियासत के वैभव का एक अनूठा एहसास. इस परिसर के अन्दर कई भव्य इमारते है. यहाँ दाखिल होते हैं इस सिंह द्वार के जरिये1.City Palace Main Entry

2.CITY PALACE-ENTRADA

3.CIDADE_ENTRADA

4.Massive Doorsयह दरवाजा विशाल भी है और खूबसूरत भी

5.PAL_CIO_CIDADE

नीचे के दोनों चित्र चन्द्र महल के हैं. यह इमारत सात मंजिलों की है. हम लोग केवल प्रथम दो तलों को ही देख सकते हैं क्योंकि वे संग्रहालय के हिस्से हैं. हर मंजिल का अलग नाम है. इनमे महत्वपूर्ण तो शोभा महल है जो चौथी मंजिल पर है. कहते हैं कि यहाँ स्वर्ण, शीशे और अभ्रक की कलाकारी है. सबसे ऊपर की मंजिल मुकुट महल कहलाती है. सही भी है. मुकुट की तरह ही तो लगती है. 6.-CHANDRA MAHAL

7.CHANDRA MAHAL

अब जो चित्र है यह मुबारक महल का है. महल में आनेवाले अतिथियों के स्वागत हेतु. इसे १९ वीं सदी के उत्तरार्ध में बनवाया था महाराजा माधो सिंह द्वीतीय ने. इसके नीचे वाले हिस्से में कार्यालय  और ग्रंथालय हैं जब कि ऊपर की मजिल में वस्त्रों का संग्रहालय.8.M.MAHAL

यह राजेंद्र पोल कहलाता है. इसी से गुजरकर दीवान-ए-ख़ास तक पहुँचते हैं9.RAJENDRA POLये रहा दीवान-ये-ख़ास10. Dewane Khas

नीचे के दोनों ही चित्र रिद्धी सिद्धि पोल के हैं. पहला तो दीवान-ए-ख़ास से लिया गया है.13.RIDDHI SIDDHI POL

14-RIDDHI SIDDHI POL

यहाँ एक प्रीतम चौक नामका दालान भी है और प्रवेश के लिए चार सुन्दर अलंकृत द्वार. सबसे सुन्दर तो दूसरा वाला ही है जहाँ हमारे जिल दम्पति अपने हसीन लम्हों को समेट रहे हैं.15.PRITAM CHOWK

16.Pritam Chowk

हमने सुन रखा था कि एक भारतीय राजा जब इंग्लैंड गया तो साथ में पीने के लिए एक बहुत बड़े भारी चांदी के घडे में गंगा जल ले गया था. अब पता चला कि वह राजा सवाई माधो सिंह द्वितीय था. सचमुच वे दो घडे विश्व के घडों में सबसे बड़े थे और गिन्निस बुक इस बात की पुष्टि करता है.यहाँ उनके दर्शन भी हो गए.11.URNA REFLEXO

देखिये बंदूकों को गोलाई में एक ढाल के चारों ओर दीवार पर कितना सुन्दर सजाया गया है 12. ARMAS

हम लोगोंने रामबाग में बने प्रिन्स अलबर्ट हॉल को भी देखा था जिसमे एक संग्रहालय है. इनके अतिरिक्त देखने के लिए जयपुर में और भी बहुत सारी जगहें हैं. जैसे गैटोर, नाहरगढ़ की तलहटी में राजाओं के स्मारक (छतरियां), मोती डोंगरी (यहाँ का गणेश मंदिर प्रसिद्द है), और बहुत से मंदिर आदि. जलमहल को तो हम लोगों ने सड़क पर खड़े होकर दूर से ही देखा था. नाहरगढ़ से भी सुन्दर दिखता है. जयगढ़ को भी देखने से चूक गए. कहते हैं वह भी अच्छे हालत में है. वहां की जल संग्रहण प्रणालि पुराने लोगों की बुद्धिमता का प्रतीक है. चारों ओर पहाडियों से घिरे तलहटी में जल संगृहीत होता था. हमें बहुत खेद है कि जयगढ़ नहीं जा पाए हमें तो लगा कि केवल भ्रमण के लिए कम से कम चार या पांच दिन देना होगा. हमारे पास समय नहीं था. मायूस होकर लौट आये. एक बार फिर आने की आस लिए.

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सभी चित्र श्री जिल Gil के सौजन्य से

trotter@sapo.pt

नाहरगढ़ या शेरगढ़ (जयपुर)

जून 22, 2009

हमें नाहरगढ़ के बारे में मालूम नहीं था परतु आमेर से दिख रहा था इसलिए अपने आटो चालक से उसके बारे में पुछा तो उसने बताया कि वह तो नाहरगढ़ है. उसने हमें निरुत्साहित भी कर दिया यह कह कर कि वहां कुछ नहीं है. संभवतः उसे हमें वहां ले जाने की इक्षा नहीं थी. खैर हम लोग आमेर से जयपुर शहर के अन्दर घूमते हुए अपने होटल में वापस आ गए. फिर हमने नाहरगढ़ के बारे में पूछ ताछ करी तो पता चला की शाम ४.३० के बाद वहां प्रवेश नहीं दिया जाता. दूसरे दिन जाने का कार्यक्रम बना और हम लोग बाज़ार घूमने निकल गए थे.

आरावली की पर्वत श्रृंखला के कोर (edge) पर आमेर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस किले को सवाई राजा जैसिंह द्वितीय ने सन १७३४ में बनवाया था. यहाँ एक किंवदंती है कि कोई एक नाहर सिंह नामके राजपूत की प्रेतात्मा वहां भटका करती थी. किले के निर्माण में व्यावधान भी उपस्थित किया करती थी. अतः तांत्रिकों से सलाह ली गयी और उस किले को उस प्रेतात्मा के नाम पर नाहरगढ़ रखने से प्रेतबाधा दूर हो गयी थी. १९ वीं शताब्दी में सवाई राम सिंह और सवाई माधो सिंह के द्वारा भी किले के अन्दर भवनों का निर्माण कराया गया था जिनकी हालत ठीक ठाक है जब कि पुराने निर्माण जीर्ण शीर्ण हो चले हैं. यहाँ के राजा सवाई राम सिंह के नौ रानियों के लिए अलग अलग आवास खंड बनवाए गए हैं जो सबसे सुन्दर भी हैं. इनमे शौच आदि के लिए आधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था की गयी थी. किले के पश्चिम भाग में “पड़ाव” नामका एक रेस्तरां भी है जहाँ खान पान की पूरी व्यवस्र्था है. बियर प्रेमियों के लिए वह भी उपलब्ध है, हाँ कुछ अधिक कीमत पर. कहते हैं कि यहाँ से सूर्यास्त बहुत ही सुन्दर दिखता है. परन्तु हम पूरा दिन वहां गुजारना नहीं चाहते थे इसलिए दुपहर में ही वापस जयपुर के अन्य ऐतिहासिक स्थलों को देखने लिकल गए.

अब इन चित्रों का रसास्वादन करें. किसी ने पूर्व में भी लिखा था कि हम तो आमेर घूम आये परन्तु चित्रों से ही पता चला था कि वह जगह इतनी सुन्दर है. हमारे समझ में नहीं आया कि जब हम किसी ऐतिहासिक जगह को देखते हैं तो हम क्या कर रहे होते हैं. चित्र इतने सुन्दर क्यों दिखते है. क्या यह कोई दृष्टि भ्रम है.1. NAHARGARH

2. Entranceऊपर के चित्र में मुख्य प्रवेश द्वार है

3.Patioदालान

4.Madhavendra Bhawanमाधवेन्द्र भवन (महल)

5.Portal

6.Door

7.Window

8.INTERIOR

9.Decoration

10.FRESCO

11.Window

12.Terraceछत

13Jaipur Viewजयपुर का विहंगम दृश्य

14.Jal Mahalदूर से दिखता जल महल

सभी चित्र श्री जिल Gil के सौजन्य से

trotter@sapo.pt