पालघाट या आज का पालक्काड केरल में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थल है. यही एक दर्रा है जहाँ से केरल के अन्दर प्रवेश हो सकता है और प्राचीन काल से प्रवेश होता रहा है. यह बताना आवश्यक तो नहीं परन्तु फिर भी कह देते हैं कि पश्चिमी घाट पर्वत श्रंखला दक्षिण में लगभग अभेद्य है. एक और दर्रा नीचे है, कोल्लम के पास. यह भी विदित हो कि प्राचीन समय से केरल के बंदरगाह विदेशों से व्यापार के लिए प्रसिद्द रहे हैं. अतः केरल के पूर्व दिशा से जो भी माल निर्यात के लिए आता अथवा आयातित होता सभी पालघाट/पालक्काड होकर ही गुजरते रहे होंगे. व्यावसायिक और सामरिक दृष्टिकोण से निश्चित ही एक संवेदनशील जगह थी और जो भी शासक रहे होंगे, उन्होंने इस दर्रे पर अपना नियंत्रण बनाये रखना चाहा ही होगा. कहते हैं कि यहाँ पर प्राचीन काल से ही एक किला रहा है परन्तु हमें आज जो वहां दिख रहा है वह तो बहुत पुराना नहीं कहा जा सकता.केरल जाने पर हमें कोयम्बतूर भी जाना होता था. वैसे कोयम्बतूर है तो तामिलनाडू में परन्तु केरल से लगा हुआ, पालघाट दर्रे के उस पार. हम थ्रिस्सूर से पालक्काड होकर ही कोयम्बतूर जा सकते हैं. बस से जाना अधिक सुविधाजनक है और हमारी बस पालक्काड के किले के समीप से ही जाती भी है. तब हमें किले का परकोटा, बुर्ज सामने का मैदान सब दिखता ही है. कई बार ऐसा भी हुआ कि हमने पालक्काड के लिए बस ले ली और वहां से दूसरी बस पकड़ ली कोयम्बतूर के लिए. कभी किले की दीवारें स्याह रंग की तो कभी काई के कारण हरे रंग की भी दिख पड़ती है. वैसे समूचा किला तो लगभग १५ एकड़ के भू भाग पर चौकोर बना है और चारों तरफ है एक बड़ा मैदान. एक खुली जगह शहर के बींचों बीच. कभी क्रिकेट का मैच चल रहा होता है तो कभी फुटबॉल का. शहर के बाशिंदों के लिए यही तो उनकी मैरीन ड्राइव है. बच्चों के लिए एक उद्यान है जिसमे झूले आदि लगे है. नाम “वाटिका” है. एक ऑडिटोरियम और ड्राइविंग स्कूल भी वहीँ पर है. इस किले के मैदान में समय बिताने के लिए आने वालों को शायद ही इसके खूनी इतिहास की जानकारी होगी, न ही कोई जानता होगा कि हजारों लोगों के रक्त से इस मैदान की मिटटी सनी हुई है.

by Praveen
कहानी प्रारंभ होती है पालक्काड के राजा कोम्बी अच्चन से. कालीकट (कोज्हिकोड़) के शक्तिशाली शासक ज़मोरिन (सामूदिरी) (यह वहां के शासक का पद नाम है) के द्वारा पालक्काड के उपजावू भूभाग एवं जंगलों पर अपना स्वामित्व दर्शाए जाने के कारण दोनों के बीच वैमनस्य उत्पन्न हो गया था. यह बात १७५७ की है जब हैदर अली का दक्कन में वर्चस्व बढ़ रहा था. आगे की घटनाओं के कारण हैदर का केरल की सीमा में प्रवेश एवं चार दशकों तक मैसूर और मालाबार के बीच सतत युद्ध सुनिश्चित हो चला था. पालक्काड के राजा ने हैदर अली से मदद की गुहार लगायी जो उन दिनों दिंडीगल में था. वैसे हैदर अली इसके लिए तैयार न था परन्तु राजा के द्वारा एक किले के निर्माण के लिए जगह उपलब्ध करने और नजराने के बतौर कुछ रकम हासिल होने के लोभ के आगे उसने तत्काल मदद देने की स्वीकृति दे दी. हैदर अली ने अपने साले मुकद्दम अली को २००० घुड़सवारों एवं ५००० पैदल सिपाहियों की फौज देकर ज़मोरिन पर आक्रमण करने के लिए भिजवा दिया. ज़मोरिन ने जब देखा कि स्थितियां प्रतिकूल हैं, तो उसने हैदर अली के सामने घुटने टेक दिए परन्तु हैदर अली को ज़मोरिन पर विश्वास नहीं था इसलिए उसने १२ लाख की फिरौती मांगी. क्योंकि फिरौती की रकम की अदायगी वर्षों तक नहीं की गयी इसलिए हैदर अली आपे से बाहर हो गया. दूसरी तरफ पालक्काड के राजा ने मैसूर की आधीनता स्वीकार कर ली और ५००० फनम ( १ रूपया = १२ फनम) सालाना अदा करने के लिए तैयार हो गया. स्वयं हैदर अली कनारा (कर्णाटक के दक्षिणी भाग) में सन १७६६ में ही प्रवेश किया था. चूंकि ज़मोरिन ने कई वर्षों तक फिरौती की रकम नहीं भिजवाई, हैदर अली ने पुनः एक करोड़ रुपयों की मांग करते हुए कालीकट पर फतह हासिल करने अपनी सेना भेज दी. ज़मोरिन हताशा में अपने परिवार को पोन्नानी भिजवा दिया. अपने महल “मनंचिरा कोविलाकम” को आग लगा दी और आत्म हत्या भी कर ली. इस विजय के बाद हैदर अली पालक्काड होते हुए कोयम्बत्तूर चला गया था. कालीकट में नायरों के विद्रोह को दबाने के लिए हैदर अली ने अपनी सेना का सहारा लिया. हजारों नायर मार डाले गए और १५००० नायरों को निष्कासित कर उन्हें कनारा (कर्णाटक का दक्षिणी भाग) भिजवा दिया गया. गज़टियर में उल्लेख है कि केवल २०० नायर ही जीवित बचे थे. हैदर अली ने इस घटना के बाद आम माफ़ी की घोषणा कर दी.

by Dilip
पालक्काड में किले का निर्माण फ्रांसीसी इंजीनियरों की सहायता से १७५७ -१७६४ के बीच प्रारंभ हुआ. इस किले को बनाने के पीछे उद्देश्य तो हैदर के आधीन आ गए दो नए प्रदेशों पर नज़र रखने और उन्हें नियंत्रित करने की रही. पालक्काड और कोयम्बत्तूर के बीच आवागमन पर भी पैनी नज़र रखी जा सकती थी. किले के मैदान में हैदर अली के फौज के हाथियों को रखा जाता रहा. १७६८ में कैप्टेन वुड ने किले पर अपना कब्जा जमा लिया परन्तु उसी वर्ष नवम्बर में हैदर अली ने अंग्रेजों से युद्ध कर पुनः किले को अपने अधिकार में ले लिया. उन दिनों पालक्काड को पालघाटचेरी के नाम से भी जाना जाता था. अंग्रेजों से हुए युद्ध में किले को भरी क्षति पहुंची थी परन्तु हैदर अली ने पुनः उसे मजबूत आधार देकर निर्मित कराया. दिसम्बर १७८२ में हैदर अली के मृत्यु के पश्चात बागडोर उसके बेटे टीपू सुलतान ने संभाला. १७८३ में कर्नल फुलरटन के नेतृत्व में अंग्रेजों ने टीपू पर गंभीर रूप से प्रहार किया और किले को अपने कब्जे में ले लिया हालाकि इस युद्ध में भी किले को भारी क्षति उठानी पड़ी. कालीकट के ज़मोरिन ने भी पालक्काड पर अपनी संप्रभुता कायम कर ली. १७८८ में पुनः एक बार टीपू उस किले को अंग्रेजों से मुक्त कराने में सफल हुआ लेकिन अल्पकाल के लिए ही. कर्नल स्टुअर्ट ने १७९० में किले को एक बार फिर हासिल कर लिया और इसके बाद तो अंग्रेजों के आधीन ही रहा. अंग्रेजों ने इस किले को अपनी सैनिक छावनी के लिए प्रयोग किया और टीपू के खिलाफ होने वाले अभियानों के लिए एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बना.

by Rosebowl
कर्नल फुलरटन की रिपोर्ट से इस बात का खुलासा होता है कि सुलतान के सैनिकों द्वारा बारम्बार हो रहे आक्रमण से त्रस्त होकर और उनके द्वारा चलाये जा रहे कत्ले आम से बचने के लिए ज़मोरिन ने किले को खाली करवा दिया था. मालाबार मेनुअल के पृष्ट क्रमांक ४५४ में बताया गया है कि १७९० में अंग्रेजों के द्वारा किले पर अंतिम रूप से विजय प्राप्त करने के बाद वहां से जो दस्तावेज मिले उनमे सुलतान के द्वारा अपनी सैनिक टुकडियों को दिया गया एक आदेश भी था जिसमे निर्देश थे कि जिले के प्रत्येक व्यक्ति को इस्लाम से नवाजा जाए. लोग जहाँ भी छिपे हों, उन्हें ढूँढ निकाला जावे. धर्मान्तरण सुनिश्चित करने के लिए किसी भी हथकंडे के प्रयोग की पूरी छूट भी दी गयी थी.
१७९२ में अंग्रेजों और टीपू के बीच का लगातार होने वाले युद्ध का अंत हुआ, एक संधि के तहत. टीपू द्वारा मालाबार के सभी विजित क्षेत्र अंग्रेजों को हस्तांतरित हो गए. उन्होंने पालक्काड किले की सन १७९७ में मरम्मत करवाई. इस दौरान उस किले को टीपू के किले के रूप में संबोधित किया जाता रहा. अंग्रेजों के अधिपत्य के बाद उसे तहसीलदार की कचहरी बना दी गयी. और भी कई सरकारी कार्यालय किले के अन्दर लगने लगे थे. कालांतर में कन्नूर और दीगर जेलों में जगह की कमी के कारण सन १८७७ से १८८१ के बीच यह किला एक जेल में परिवर्तित कर दिया गया था.
२० वीं शताब्दी में पुनः यह किला तहसील कार्यालय बना दिया गया. आजकल यह किला भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India). के आधीन है. अन्दर एक छोटा सा संग्रहालय भी है. “राप्पाडी” नामक एक मुक्त आकाश सभागार किले के पीछे और बच्चों के खेलने के लिए “वाटिका” नामक उद्यान जिसका उल्लेख पहले ही कर दिया गया था, यहाँ अवस्थित हैं. अरे हम एक बात तो बताना भूल ही गए थे. किले में प्रवेश के लिए जो पुल दिख रहा है, यह तो आधुनिक है. पहले यहाँ पटियों का पुल था जिसे किले की ओर से उठाया या गिराया जा सकता था.
प्रेरणा: उल्लतिल मन्मधन
जुलाई 6, 2009 को 6:44 पूर्वाह्न
बहुत सुंदर लेख। बचपन की यादें ताजा हो गईं। मैं पालक्काड में रहा हूं और किले को रोजाना ही देखा करता था, पर उसका पूरा इतिहास इतने ब्योरे के साथ आज मालूम पड़ा। अगली बार जाब पालक्काड जाऊंगा इस ऐतिहासिक स्थल को एक नई दृष्टि से देखने की कोशिश करूंगा।
जुलाई 6, 2009 को 6:52 पूर्वाह्न
पालक्काड के इतिहास और भूगोल की इतनी विस्तृत जानकारी के लिए शुक्रिया
जुलाई 6, 2009 को 7:32 पूर्वाह्न
मान्यवर
पोस्ट तो अच्छी है पर समझ में कम आ रही है .
एक तो यदि भारत का नक्शा साथ में होता तो इस जगह का सामरिक महत्व ज्यादा समझ आता.
दूसरा किले के विवरण समझ नहीं आ रहे जैसे कि आपकी हर पोस्ट में होते हैं.
आपकी अन्य पोस्ट पढ़कर लगता है हम वहीं घूम रहे हों
जुलाई 6, 2009 को 7:42 पूर्वाह्न
भारतीय इतिहास के एक और अध्याय से अवगत कराने का आभार। बहुत सुंदर आलेख।
जुलाई 6, 2009 को 7:52 पूर्वाह्न
बेहतरीन प्रस्तुति .
जुलाई 6, 2009 को 8:17 पूर्वाह्न
बहुत आभार आपका. इस किले के बारे में आपने बहुत ही महती जानकारी दी है. जिसके बारे में मैं बहुत ही जानने को उत्सुक था.
रामराम.
जुलाई 6, 2009 को 9:27 पूर्वाह्न
धर्मान्तरण के लिए किसी भी हथकंडे के प्रयोग की अनुमति कहें या बलात धर्मपरिवर्तन करवाने की छूट कहें , सत्ता के विस्तार और स्थायित्व के लिए तत्कालीन शासकों की यह रणनीति उनका “स्याह पक्ष” है ! यूं समझिये बलात धर्मान्तरण और नरबलि में कोई अंतर नहीं है ! उस समय पराजित का दासत्व / भाग्य ऐसे ही निर्धारित किया जाता था ! मेरे ख्याल से , ‘राजतन्त्र’ सदैव से मानव मूल्यों और गरिमा के विरोधी तथा उत्पीडनकर्ता / दमनकर्ता रहे हैं !
मुझे इन सारे किलों / महलों से इंसानी रक्त की गंध और पराजितों के आर्तनाद का अहसास होता …… और फिर इन विशाल भवनों के सुन्दर मुखौटे और सुन्दर लैंडस्केप, यथावत देखने की मेरी कोशिश धरी की धरी रह जाती है !
जुलाई 6, 2009 को 9:34 पूर्वाह्न
पुनश्च : कृपया मेरी टिप्पणी के शुरू में : “आदरणीय सुब्रमनियन जी” और अंत में :
“आदर सहित” जोड़ कर पढ़ा जाये !
जुलाई 6, 2009 को 10:25 पूर्वाह्न
@अनुपम जी: आपके अमूल्य अभिमत के लिए आभार. एक नक्शा लगा दिया है
जुलाई 6, 2009 को 10:58 पूर्वाह्न
इतिहास के एक ऐसे नए तथ्य से अवगत कराया आपने, जिससे हम अब तक अनजान थे.
जुलाई 6, 2009 को 11:33 पूर्वाह्न
ेआप एक से एक बढ कर सुन्दर जगह का विवरण ले कर आते हैं अब तो ये समझ नहीं आ रहा कि कौन सी जगह पर जाया जाये हमेशा की तरह सुन्दर आकर्शक पोस्ट बधाई
जुलाई 6, 2009 को 11:40 पूर्वाह्न
इतने विस्तार से दी गयी इस महत्वपूर्ण जानकारी का शुक्रिया । आभार ।
जुलाई 6, 2009 को 11:48 पूर्वाह्न
ak aur atihasik aur amuly jankari dene ke liye anek dhanywad.
abhar
जुलाई 6, 2009 को 12:22 अपराह्न
पालक्काड के इतिहास की इतनी विस्तृत जानकारी के लिए आभार
regards
जुलाई 6, 2009 को 1:09 अपराह्न
बहुत सुंदर जानकारी दी आप इस किले के बारे, ओर हर पोस्ट मै हमे भारत घुमा रहे है, इतनी अच्छी जानकारी तो किसी अन्य वेब साईट पर भी ना मिले.
आप का धन्यवाद
जुलाई 6, 2009 को 2:00 अपराह्न
बहुत सुंदर एवं भव्य किला( खास तौर पर सुरक्षा व्यवस्था ) दिखाने के लिए आपका शुक्रिया !
जुलाई 6, 2009 को 3:36 अपराह्न
Humesha ki tarah behtreen post…
जुलाई 6, 2009 को 3:58 अपराह्न
रोचक जानकारी।
जुलाई 6, 2009 को 7:51 अपराह्न
श्री सुब्रमणियन जी, आप हिन्दी की सामग्री इतनी एन-रिच कर रहे हैं इण्टरनेट पर कि कोई भी उत्तर भारतीय उसकी गुणवत्ता से लजा जाये!
जुलाई 6, 2009 को 8:03 अपराह्न
पहली बार जाना इस के बारे में रोचक शुक्रिया
जुलाई 6, 2009 को 8:23 अपराह्न
श्री सुब्रमणियन जी,
पालक्काड के इतिहास को जानने का आज सुन्दर अवसर आपने प्रदान किया। आपकी हिन्दी लेखनी पसन्द आई।
हार्दिक मगलभावनाओ सहीत
आभार
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
जुलाई 7, 2009 को 1:39 अपराह्न
आप काफी विस्तार से लिखते हैं. बधाई एक शानदार पोस्ट के लिये.
जुलाई 8, 2009 को 10:09 पूर्वाह्न
waah bahut badhiyaa lekh kuchh pallakkad ki jaankari bhi mili bahut hi khub!!
जुलाई 8, 2009 को 11:53 पूर्वाह्न
Very well written article on Palakkad fort.
Nowhere else one can find these many details in Hindi.
Thanks Sir.
Just to add–
-This is one of the best preserved fort by Archeological department.
-Also there is a lord Hanuman [Anjaneya]temple in this fort.
Few years before,I saw this place.guide showed us few closed underground tunnels also]
I feel-
Tippu Sultan was a better and kind ruler than his father thts why it is remembered by his name-‘tipppu sultan ka kila’
-[I read about this fort in details while preparing matter in hindi for taau weekly magazine]
-Pictures are very clear and beautiful.
जुलाई 8, 2009 को 11:56 पूर्वाह्न
[transliteration tool in not working thats why i wrote in english ]
जुलाई 8, 2009 को 2:56 अपराह्न
@अल्पना:
हमने वहां की सुरंगों को तो नहीं देखा था. वैसे हर किले में बच निकलने के लिए गुप्त मार्गों की व्यवस्था रही है. आपने बिलकुल ठीक कहा है, अन्दर हनुमान का मंदिर भी है. हमने दीवार पर गणेश को भी देखा है. लगता है यह बाद की करामात है. केरल में ही एक और किला है “बेकल” वहां भी प्रवेश द्वार के समीप ही हनुमान जी का मंदिर बना है.. “Tippu Sultan was a better and kind ruler” इसपर हमने आपको अलग मेल किया हुआ है.
जुलाई 8, 2009 को 4:56 अपराह्न
किले की वास्तुकला बहुत शानदार है। जानकारी के लिए आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जुलाई 9, 2009 को 9:12 पूर्वाह्न
बहुत सुंदर चित्रों के साथ रोचक विवरण जो आपकी विशेषता है । पालक्कड की हमें तो बिलकुल जानकारी न थी, इसीसे आपका और भी आपका आभार ।
जुलाई 9, 2009 को 9:13 पूर्वाह्न
बहुत सुंदर चित्रों के साथ रोचक विवरण जो आपकी विशेषता है । पालक्कड की हमें तो बिलकुल जानकारी न थी, इसीसे आपका और भी आभार ।
जुलाई 9, 2009 को 6:43 अपराह्न
श्री सुब्रमणियन जी,
दक्षिण के प्राँतोँ का गौरवशाली इतिहास और प्रथाएँ आप इसी तरह प्रस्तुत करते रहीयेगा बहुत आभार इस सुँदर सचित्र आलेख के लिये
– लावण्या
जुलाई 11, 2009 को 11:05 पूर्वाह्न
श्री सुब्रमणियन जी,
आपके द्वारा इतनी बढिया जानकारी देने का शुक्रिया.
अभी अभी पिछले दिनों शिवाजी के दो किलों- रायगढ और जंजीरा देख कर आया हूं. तीन महिने पहले वेल्लोर के किले को भी देखने पहुंचा था जो इस किले के जैसा ही था लगभग- याने भुईकोट या जमीन पर बांधा हुआ किला. क्या यह किला भी ऐसा ही है?
वेल्लोर के किले में भी टीपु सुल्तान का महल है. उनके बारे में अलग से कोई जानकारी मुझे भी मेल कर सकते है?
जुलाई 11, 2009 को 11:22 पूर्वाह्न
मेरा मतलब टीपु सुल्तान के बारे में है.
जुलाई 12, 2009 को 9:01 अपराह्न
आपके श्रम को देखकर श्रद्धा होती है !
जुलाई 14, 2009 को 5:58 अपराह्न
बहुत अच्छा.
सितम्बर 11, 2012 को 11:31 अपराह्न
bahut acha laga
aapke lekh ne hame nai jankari pardan ki