सर्पों की एक और क्रीडा स्थली

पाम्बू मेकाट्टू मना :

Mekattumana

पिछले पोस्ट में हमने मन्नारशाला के बारे में जाना था. केरल में  सर्पों के लिए प्रख्यात एक दूसरी जगह भी है, “पाम्बू मेकाट्टू मना”. यह थ्रिस्सूर से दक्षिण में लगभग २५ किलोमीटर की दूरी पर माला नामके क़स्बे में है. “मना” वास्तव में कोई मंदिर नहीं है परन्तु नाम्बूदिरियों का पारंपरिक आवास है. इन्हें इल्लम भी कहा जाता है. साधारणतया नाम्बूदिरियों के आवास की बनावट एक विशेष प्रकार की होती है. उन्हें “नालू केट्टू” अर्थात चारों तरफ निर्माण और बीच में बड़ा सा दालान या आँगन. यहाँ इस पाम्बू मेकाट्टू मना में ऐसे दो निर्माण हैं इसलिए इसे “एट्टू केट्टू” कहा गया है. “एट्टू” आठ का पर्यायवाची शब्द है जब की “नालु” चार के लिए प्रयुक्त होता है. प्रवेश द्वार में विभिन्न सर्प आकृतियाँ उकेरी गयीं हैं.Mala Map

यह आवासीय परिसर ६ एकड़ के भूभाग पर फैला हुआ है और इस परिसर के अन्दर सर्पों के ५ “कावू” या चबूतरे हैं. बड़े बड़े वृक्षों, बेलों एवं अन्य जंगली वनस्पतियों से आच्छादित

Kavu1

. चमगादडों की भी भरमार है. जहाँ वास्तव में मंदिर का गर्भ गृह बताया जाता है वह परिसर के पूर्वी भाग में है. अन्दर दो कांसे से बने बड़े दीप अनवरत जलते रहते है. इन्हें “केडा विलक्कू” (अखंड ज्योति) कहा जाता है अर्थात कभी न बुझने वाला. ये जो दिए हैं वे वासुकी और नागयक्षी के प्रतीक स्वरुप हैं. वहां कोई प्रतिमा नहीं है. इस कक्ष में प्रवेश कुछ ख़ास दिनों में ही दिया जाता है. साधारणतया केवल उच्च वर्ण के लोग ही “कावू” के निकट जा सकते हैं. कुछ अवसरों पर सभी के लिए यह खुला रहता है. जैसे शबरी मला जाते हुए अय्यप्पा भक्तों के लिए नवम्बर के माह में परन्तु प्रवेश के पहले वहां के बावडी में स्नान कर गीले वस्त्रों को धारण कर ही जा सकते हैं.  यहाँ पर नैवेद्य के रूप में चांवल का आटा और दूध अथवा केले की एक स्थानीय प्रजाति “कदली” चढावे के रूप में भक्तों द्वारा दिया जाता है. “कदली” का अर्थ ही होता है केला परन्तु यह एक छोटे प्रकार का केला है जिसे हमने महाराष्ट्र में भी पाया है. नम्बूदिरी लोगों के पूजा विधान में मन्त्र की अपेक्षा तंत्र का प्रयोग अधिक होता है क्योंकि वे शक्ति साधना करते हैं अतः परिसर के अन्दर ही एक काली माता (भद्रकाली) का मंदिर भी है. वैसे साधारणतया हर “मना” में ऐसे मंदिर या तो परिसर के अन्दर ही होते हैं या फिर निकट ही. किसी नम्बूदिरी को पूजा संपन्न करते हुए देखना भी एक अलग अनुभव है. मंत्रों का उच्चारण कम परन्तु हस्त मुद्राओं से लगता है मानो कथकली कर रहे हों.

अब इस स्थल से जुडी किंवदंतियों को देखें तो प्रमुखतया बताया जाता है कि किसी जमाने में यह “मना” आर्थिक रूप से विपन्न हो गया था. यहाँ के बुजुर्ग नम्बूदिरी से गरीबी बर्दाश्त नहीं हुई. उसने तिरुवंचिकुलम (कोडूनगल्लुर / Cranganore) के शिव मंदिर में (यह केरल के प्राचीनतम शिव मंदिरों में से एक है) जो उनके “मना” से १५ किलोमीटर की दूरी पर ही था, तपस्यारत हो गया. १२ वर्षों के घोर तपस्या के बाद एक दिन जब वह नम्बूदिरी बावडी में जल लेने गया तो उसे दिव्यरुप में वासुकी

Vasuki

के दर्शन हुए. नम्बूदिरी के समर्पण से प्रसन्न होकर वरदान भी दे दिया. नम्बूदिरी ने वासुकी

से आग्रह किया कि वे उनके “मना” में हमेशा उपस्थित रहें. तथास्तु तो होना ही था. वासुकी ने कहा ठीक है तुम जावो और अपने “मना” में दो दीप सदैव जलाये रखो. मेरी संगिनी भी आएगी. नम्बूदिरी ने वैसा ही किया और तब से उस “मना” के भाग्य खुल गए और दीप भी जल रहे हैं. एक दूसरी किंवदंती के अनुसार नम्बूदिरी को वासुकी से एक अभूतपूर्व मणि की प्राप्ति होती है और जब तक वह मणि “मना” में रहेगी, वहां समृद्धि का वास होगा ऐसा वासुकी ने कहा था. खैर जो भी रहा हो.

बचपन में हमने जिद की थी और अपने पिताश्री के साथ वहां गए भी. कहा जाता था कि वहां चारों तरफ सर्प घूमते रहते हैं. हम तो अपने ही घर में इन सर्पों को रोजाना देखने के आदी हो चले थे. यहाँ दो चार अधिक थे. वैसे वे होते तो हैं शर्मीले/डरपोक, वे अपने रस्ते चले जाते हैं. यहाँ की एक बड़ी विशिष्टता यह है कि यहाँ सर्पदंश से पीड़ित लोगों का उपचार भी किया जाता है. यहाँ के नम्बूदिरी विष शास्त्र के बड़े जानकार हैं और हमारे पारंपरिक चिकित्सा के द्वारा ही पीडितों की सहायता करते हैं. उस क्षेत्र के सभी लोग सर्प दंश से पीड़ित होने पर सर्वप्रथम यहीं आते हैं. कहा जाता है कि वहां के नम्बूदिरी वैद्य को पहले से आभास हो जाता है कि फ़लाने दिशा से कोई पीड़ित आज आएगा. अपने अधीनस्तों को वह आवश्यक सामग्री आदि जुटाकर तैयार रहने के निर्देश भी दे देता है. कभी कभी जब उसे मालूम हो जाता है कि जो  व्यक्ति  आने वाला है उसे बचाया नहीं जा सकता तो वह अपने कर्मियों को भिजवा कर रास्ते में ही सर्प दंश से पीड़ित व्यक्ति के बंधुओं को सूचित कर देता है कि यहाँ आने से कोई लाभ नहीं होगा. अन्तेय्ष्टि कर दें.

यह सब तो सुनी सुनाई बातें हैं. आज के इस आधुनिक युग में जब हम हर चीज को विज्ञान के नजरिये से देखते हैं तो ऐसी बातें गले नहीं उतरतीं. संभवतः लोगों में आस्था जागृत करने और बनाये रखने के लिए किस्से कहानियां प्रचारित होती हैं. लेकिन एक बात अवश्य ही कहेंगे कि हमारी पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली भी समृद्ध है. केरल में ऐसे कई जगह हैं जहाँ विष चिकित्सा में लोग पारंगत हैं. एंटी वेनम तो आधुनिक चिकित्सा के अर्न्तगत आता है परन्तु पहले हमारे ग्रामीण अंचलों में इन्हीं वैद्यों के उपचार से लोग ठीक हुआ करते थे. सर्प दंश के मामले में समय का बड़ा महत्त्व है. समय रहते चिकित्सा उपलब्ध हो जावे तभी पीड़ित व्यक्ति बच सकता है. यह बात तो आज के आधुनिक चिकित्सा प्रणाली पर भी लागू होती है.

28 Responses to “सर्पों की एक और क्रीडा स्थली”

  1. समीर लाल Says:

    बहुत आभार आपका इस बेहतरीन जानकारी का. चित्र भी बढ़िया हैं.

  2. संगीता पुरी Says:

    बहुत सुंदर जानकारी दी आपने .. धन्‍यवाद !!

  3. Dr.Arvind Mishra Says:

    “पाम्बू मेकाट्टू मना” के बारे में जानकारी के लिए शुक्रिया !

  4. seema gupta Says:

    “पाम्बू मेकाट्टू मना” इस जगह के बारे में पहली बार जाना , आभार इस रोचक प्रस्तुती पर.

    regards

  5. सतीश Says:

    एक और अनूठी जानकारी देने के लिए शुक्रिया !

  6. बालसुब्रमण्यम Says:

    सुंदर आलेख, नागपंचमी के अनुकूल भी।

  7. arsh Says:

    BAHOT HI ROCHAN AUR JAANKARI PARAK POST HAI YE BAHOT HI KHUBRAHI YE TO BAHOT SAARI JAANKARI EK SAATH MILI BAHOT BAHOT BADHAAYEE ISKE LIYE…

    ARSH

  8. Dr.Manoj Mishra Says:

    अद्भुत भारत.

  9. Abhishek Says:

    Savan ke mahine mein Sarpon ki mahatwapurn charcha cher rahe hain aap, haal hi mein Uttar Bharat mein ‘Nag Panchami’ bhi manai gai hai.

  10. Vineeta Yashswi Says:

    baehtreen aur gyanvardhak jankari…

  11. nirmla Says:

    फमेशा की तरह पाम्बू मेकाट्टू मना” की जानकारी भी बहुत बडिया है मैने पहले क्भी नहीं सुना इसके बारे मे आभार्

  12. पं.डी.के.शर्मा"वत्स" Says:

    बहुत ही सुन्दर एवं रोचक जानकारी !

  13. Dilip kawathekar Says:

    आप हमेशा की तरह बढिया सामग्री लायें हैं हमारे लिये, जिसकी जानकारी अन्यथा होना संभव नहीं.

    धन्यवाद!!

  14. नरेश सिह Says:

    बहुत अच्छी जानकारी दी है । अभार

  15. Gagan Sharma Says:

    आपकी रचनायें पढ कर लगता है जैसे कोई शिक्षक बड़े मनोयोग से अपने छात्रों को समझा रहा हो। सच है बिना गये ही सारी तस्वीर साफ सामने ला देते हैं आप।
    मैंने भी एक अनोखे शिव स्थल के बारे में पोस्ट डाली है। प्रतिक्रिया का इंतजार करुंगा।

  16. हरि जोशी Says:

    रोचक और ज्ञान से भरपूर आलेख के लिए आभार।

  17. ज्ञान दत्त पाण्डेय Says:

    नम्बूदिरी वैद्य?
    ग्रेट, आदिशंकर अगर महायोगी न होते तो महावैद्य बन जाते। सुश्रुत की परम्परा और जीवन्त होती!
    मेरे मन में नम्बूदरी ब्राह्मणों के प्रति बहुत आदर है।

  18. mahendra mishra Says:

    बहुत सुंदर जानकारी

  19. alpana verma Says:

    ‘कहा जाता है कि वहां के नम्बूदिरी वैद्य को पहले से आभास हो जाता है कि फ़लाने दिशा से कोई पीड़ित आज आएगा.’
    सच में आश्चर्यजनक बात है.

    केरल वैसे भी प्राकृतिक और आयुर्वेद के इलाज़ के लिए बहुत प्रसिद्द है.

    सर्पों और विष दंश के इलाज़ सम्बंधित aaj नयी जानकारी मिली.
    धन्यवाद.

  20. Ratan singh Says:

    बहुत आभार आपका इस बेहतरीन जानकारी का

  21. भारतीय नागरिक Says:

    बहुत रोचक जानकारी. आभार

  22. sanjay vyas Says:

    आनंद आ गया. यहाँ जोधपुर में प्रवासी मलयाली समुदाय मकर विलक्कू पर्व मनाता है संक्रांति पर. विलक्कू शब्द का अर्थ आपके आलेख से पता चला. आभार

  23. - लावण्या Says:

    सुभ्ब्रह्मणियम जी , आपने बड़ी विलक्षण बातें बतलाईं हैं थीस्सूर का ये इलाका , वाकई अजीबोगरीब बातें लियर हुए है

    – लावण्या

  24. yoginder moudgil Says:

    बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार साधुवाद

  25. sbai Says:

    जानकारी के लिए आभार।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

  26. Sudhir Kumar Says:

    जानकारी के लिए आभार। good knowlegs
    .

  27. Asha Joglekar Says:

    आप हमेशा ही सर्वथा नवीन जानकारी देते हैं जो ज्यादातर लोगों को आसानी से उपलब्ध नही होती । नागपंचमी के अवसर पर तो यह जानकारी कुछ और भी खास होगई ।

  28. BestSunny Says:

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