केरल में गर्मी से बचने के लिए हम बच्चों के साथ पहाड़ियों की सैर में निकल पड़े थे जैसा पिछले पोस्ट “केरल में मस्ती भरी एक शाम” में बताया था. दूसरे दिन सुबह होते ही चिल्हर पार्टी, शाम फिर कहीं बाहर जाने के लिए उतावली थी. रात हमें बताया गया था कि हमारी माताराम इस तरह हम लोगों के उपनयन संस्कार के पूर्व बाहर जाने पर नाखुश थी. वह चाहती थीं कि सभी संस्कार सही सलामत निपटाया जावे फिर जहाँ जाना हो जावें. हम सब के पास समय बहुत कम था इसलिए उपलब्ध समय का सदुपयोग करना चाह रहे थे. हमने बच्चों से कहा कि जावो पहले दादी अम्मा को पटाओ. नुस्खा भी बता दिया. कहना “त्रिप्रयार” मंदिर जायेंगे और यह भी कह देना कि दर्शन के पहले समुद्र में नहा कर पवित्र भी हो लेंगे. मंदिर जाने के नाम पर तो अब किसी रोक टोक की गुंजाइश नहीं रही. वैसे पहाड़ों से वापस आकर समुद्र तट चलने का सुझाव हमारी भांजी का था. नाम भी इठलाते हुए बताया था “स्नेह तीरम“. दो दो गाड़ियों को ले चलने के बदले हमारे सबसे छोटे भाई रमेश ने एक बड़ी गाडी की व्यवस्था करवा दी. वह स्वयं नहीं आया क्योंकि उसीके बालक का उपनयन होना था. पिता तथा पुत्र का घर से बाहर जाना प्रतिबंधित था.
गाड़ी में कुल १० लोग समां गए और फिर निकल पड़े “त्रिप्रयार” के लिए जो हमारे घर से पश्चिम की ओर २५ किलोमीटर की दूरी पर था. त्रिप्रयार, थ्रिस्सूर से भी उतनी ही दूर है. त्रिप्रयार से लगा हुआ ही वह सुन्दर समुद्र तट है जिसे “स्नेह तीरम” कहा जाता है. त्रिप्रयार में एक सुन्दर नदी भी है जिसके किनारे वहां का प्राचीन और प्रसिद्द श्री राम मंदिर है. सालों पहले मुख्य सड़क, मंदिर के सामने, नदी के इस पार समाप्त हो जाती थी और नदी पार कर मंदिर जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता था. परन्तु अब पुल बन गया है. हम लोग नदी के इस किनारे ५.३० बजे पहुँच गए थे. हमने गाडी रुकवा दी और ध्यानमग्न हो गए.
त्रिप्रयार वास्तव में “तिरुपुरैयार” कहलाता था. कहते हैं कभी उस भूभाग के तीन तरफ नदी बहती थी. लोगों का ऐसा विश्वास है कि यहाँ के मंदिर में जिस मूर्ती की पूजा होती है वह मूलतः द्वारका में श्री कृष्ण द्वारा पूजित श्री राम है. द्वारका के समुद्र में समाने से श्री राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न की मूर्तियाँ भी समुद्र में पड़ी रहीं जो कालांतर में मछुआरों के जाल में फंस कर किनारे लायी गयीं और एक स्थानीय मुखिया “विक्कल कैमल” को सुपुर्द कर दी गयीं. विक्कल कैमल ने ज्योतिषियों को बुलवा कर मंत्रणा की. उन्होंने सलाह दी कि श्री राम की मूर्ति ऐसी जगह स्थापित की जावे जहाँ के आकाश में एक दिव्य मयूर दिखाई पड़े. मूर्ति स्थापना की पूरी तैय्यारी कर ली गयी परन्तु कई दिनों तक कहीं कोई मयूर नहीं दिखा. फिर एक दिन एक भक्त अपने हाथों में मोरपंख लिए वहां पहुंचा और पीछे पीछे एक मयूर भी आ गया. जिस जगह वह भक्त और मयूर दोनों ही प्रकट हुए थे वहीँ मूर्ती की स्थापना कर दी गयी और मंदिर भी बना.
वाह्य परिक्रमा पथ – अन्दर भी है
लक्ष्मण की मूर्ती वहां से १० किलोमीटर दूर “मूरिकुन्नी” नामक गाँव में, भरत की मूर्ती “इरिन्जालाकुडा” में और शत्रुघ्न की मूर्ती निकट ही “पायमेल” में स्थापित की गयी. उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत में विभिन्न देवताओं को एक निश्चित स्वरुप देकर गढ़ने की परंपरा २री सदी के आस पास ही प्रारंभ हुई थी. त्रिप्रयार के श्री राम मंदिर में प्राप्त एक शिलालेख के आधार पर कहा जा सकता है कि यहाँ मूर्ति की स्थापना ११ वीं सदी में हुई थी.
कहा जाता है कि यहाँ श्री राम की मूर्ती की जब स्थापना हुई तो वह घूमा करती थी और एक साधू द्वारा आधार स्थल पर एक कील ठोंक कर मूर्ती को नियंत्रित किया गया था. दो हाथों में शंख और चक्र तथा दूसरे दो हाथों में धनुष एवं पुष्पहार लिए हुए, वक्ष स्थल श्रीवत्स एवं कौस्तुभ से अलंकृत, यहाँ की भव्य मूर्ति महा विष्णु की मानी गयी है. कुछ समय पश्चात श्री देवी एवं भू देवी की स्थापना भी उनके अगल बगल कर दी गयी थी. यहाँ की एक और विशेषता यह भी है कि गर्भ गृह में मुख्य मूर्ति के पीछे दक्षिणामूर्ति और गणेश उपस्थित है और साथ ही एक द्वीप भी प्रज्वलित रहता है. कुछ लोग यहाँ की स्थापना को त्रिमूर्ति भी मान रहे हैं. केरल के अधिकतर मंदिरों की भांति गर्भ गृह वाह्य रूप से तो वृत्ताकार है परन्तु अन्दर आयताकार है. छत पिरामिड नुमा ताम्बे की चादर से आच्छादित है. सामने एक मंडप है जिसे नमस्कार मंडप कहा जाता है. यहाँ पहले प्रार्थना करनी होती है. काष्ट से निर्मित भाग की कलात्मकता अद्वितीय है. नव ग्रहों को उकेरा गया है. दीवारों पर भित्ति चित्र बने हैं जो रामायण के विभिन्न प्रसंगों को दर्शाते हैं. इनका विशेष उल्लेख होता रहा है. माना जाता है कि हनुमान जी यहाँ सदैव उपस्थित रहते है जबकि उनकी कोई मूर्ति नहीं है. प्रेत बाधा से पीड़ित लोगों के लिए यह मंदिर अत्यधिक प्रभावी माना जाता है. यहाँ के श्री राम जी चढ़ावे में भक्तों से फटाका फुड्वाते हैं जिसके लिए मंदिर में पर्ची कटवानी पड़ती है. फटाकों की संख्या के अनुसार शुल्क जमा कराना होता है. फटाके दिन भर फूटते रहते हैं.
हमारी एक प्रिय भतीजी ने हमें बड़े जोर से हिलाया. ठीक है. अब बस करो. सब समझ गए. आगे तो चलें. हमने भी तपाक से कहाँ बेटे दादी पूछेगी तो कुछ तो बता पाओगी. हम भी भूल गए थे कि हमें तो “स्नेह तीरम” जाना है. गाडी आगे बढ़ी. एक भतीजे ने चालक को निर्देशित किया कि गाडी मुख्य प्रवेश स्थल से दूर ले जावे. यहाँ का समुद्र तट केरल के पर्यटन विकास निगम के देख रेख में है. शनिवार और रविवार के अतिरिक्त अन्य दिनों में यहाँ भीड़ कम ही रहती है. सबसे बड़ी बात यह कि यहाँ का तट पूर्णतः प्रदूषण मुक्त है. कहीं भी आपको गन्दगी नहीं मिलेगी. हाँ, संभव है कि आपको यहाँ का तट गन्दा दिखे, कारण वहां की काली रेत. पानी भी काला सा लगता है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है. मुख्य प्रवेश द्वार में फव्वारे बने है और पर्यटकों के लिए सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं.
ढलती समुद्री शाम की लहरों को देख सभी पुलकित हो उठे. “चलो जल्दी चलो कहीं दूर” कह रही थीं कन्यायें. रेत में कुछ दूर चलकर हम लोगों ने एक निर्जन किनारा पसंद कर लिया. छोटी बड़ी मछुवारों की नौकाएं किनारे रेत पर रख दी गयी थीं और उनमें मछली पकड़ने के जाल वाल आदि भी रखे थे. बच्चों की मस्ती प्रारंभ हो गयी. सब टूट पड़े लहरों की तरफ और फिर हमारे आगाह किये जाने पर ठिटक गए. हम से भी रहा नहीं गया और समुद्र स्नान का आनंद प्राप्त किया. नवनीत उतरने से कतरा रहा था यह कह कर कि उसके पास चड्डियों का स्टाक कम है. परन्तु उसे खींच ले गए. हमारा भाई त्यागराज किनारे कपडे आदि की रखवाली करते हुए दूर से ही आनंद प्राप्त करता रहा.
लगभग घंटे भर यह जल क्रीडा चली और फिर सब एक बड़ी नाव के पास इकट्ठे हो गए. फोटो सत्र प्रारंभ हुआ. बारी बारी से लोगों ने अपनी जगह बदली और फिर अंत में नाव की ओट में कपडे भी बदल लिए. वहां का सूर्यास्त भी मन को प्रसन्न कर गया.
जून 17, 2010 को 7:05 पूर्वाह्न
धन्यवाद! वैसे तो सारा केरल ही सुन्दर है परन्तु आपका वर्णन और चित्र भी बहुत सुन्दर बन पड़े हैं.
जून 17, 2010 को 8:35 पूर्वाह्न
आपके वृत्तान्त हमेशा ही ज्ञानपरक और सुखदाई होते हैं ! आज भी ऐसा ही हुआ ! चिल्हर पार्टी , फोटो सेशन में जगह बदलाव और नवनीत की चड्डियों का स्टाक …अदभुत !
जून 17, 2010 को 9:20 पूर्वाह्न
लगता है हम भी आपके साथ आज कल केरल मे ही हैं। सुन्दर तस्वीरों ने मन बाँध लिया है अब वापिस चलें ? शुभकामनायें
जून 17, 2010 को 9:20 पूर्वाह्न
बहुत ही रोचक ! नयनाभिराम ! आपके यात्रा वृत्तांत वर्णन की तो बात ही और है !
जून 17, 2010 को 9:37 पूर्वाह्न
बहुत बढ़िया वर्णन है, ऐसा लगा कि हम लोग साथ में ही घूम रहे हैं, जहाँ भी घूमने जा रहे हों, अगर वहाँ पर रुकने के लिये बजट होटल का विवरण भी दॆंगे तो और भी अच्छा हो जायेगा।
जून 17, 2010 को 10:56 पूर्वाह्न
बहुत मजा आया हमें भी ।
सादर,
जून 17, 2010 को 11:34 पूर्वाह्न
hamari bhi piknik ho gai ji
जून 17, 2010 को 12:25 अपराह्न
मन्दीर को अन्दर से देखने की इच्छा अधूरे रह गई. शायद तस्वीर लेना मना होगा. कभी जाना हुआ तो देख पाऊँगा. विवरण सरस था.
जून 17, 2010 को 12:28 अपराह्न
दक्षिण में त के लिए भी th लिखा जाता है, मार उच्चारण का रहता है? “थिरू” आ “तिरू”. तिरूपति व जाललिता बोला जाता है.
उत्तर नें नाम के आगे श्री लगाते है. श्री आनी लक्ष्मी. तिरू का अर्थ भी लक्ष्मी होता है और नाम के आगे लगाते है.
जून 17, 2010 को 12:29 अपराह्न
की बोर्ड में गड़बड़ हुई है. दुबारा लिख रहा हूँ.
दक्षिण में त के लिए th लिखा जाता है, मगर उच्चारण क्या रहता है? “थिरू” या “तिरू”. तिरूपति व जाललिता बोला जाता है.
उत्तर नें नाम के आगे श्री लगाते है. श्री यानी लक्ष्मी. तिरू का अर्थ भी लक्ष्मी होता है और नाम के आगे लगाते है.
जून 17, 2010 को 1:14 अपराह्न
प्रिय संजय श्री जी,
आपने सही पकड़ा है. दक्षिण में त के लिए th ही लिखा जाता है. उच्चारण त ही होता है. T को ट मानते हैं. हम भी उत्तर में रहते रहते हिंदी में भी थिरू लिख बैठे जब की तिरु ही सही है. तिरु सदैव श्री के लिए प्रयुक्त होता हो ऐसा नहीं है. “जी” जैसे सम्मान सूचक अर्थ में भी होता है. श्री का प्रयोग क्या लक्ष्मी के लिए ही हुआ है?. “श्री श्री १००८ पपोराजी का अतिशय क्षेत्र ” क्या यहाँ “श्री” लक्ष्मी हो सकती है?
सस्नेह,
सुब्रमनियन
जून 17, 2010 को 2:38 अपराह्न
बढ़िया। हम भी केरल घूम लिए।
घुघूती बासूती
जून 17, 2010 को 4:09 अपराह्न
केरल कि सैर की और तस्वीरों से मन भी खुश हो गया. ऐसे ही सब अपनी यात्राओं का विवरण दे और अवगत कराएँ तो हम पूरे विश्व को घूम तो नहीं सकते हैं लेकिन देख सकते हैं और जान सकते हैं.
जून 17, 2010 को 6:34 अपराह्न
मैं भी इस वर्ष केरल घूमने अवश्य जाऊंगा… बहुत मनोरम दृश्य दिखाये आपने, धन्यवाद..
जून 17, 2010 को 7:43 अपराह्न
“स्नेह तीरम” बेहद खूबसूरत लगा.
शत्रुध्न की भी मूर्ति कहीं है जानकार सुखद आश्चर्य हुआ.
श्री राम मंदिर की स्थापना की कथा बहुत रोचक है.
बिना हनुमान जी के मूर्ति भी उनकी पूजा अर्चना ,
अचम्भा हुआ जानकार कि चढावे में पटाखें चलाये जाते हैं!
बेहद अनूठा चढावा है.
-‘चिल्हर गुट ‘की मस्ती देखने लायक है ,वाकई बेहद यादगार ट्रिप रही आप की.
-चित्रों में सभी बेहद नयनाभिराम दृश्य हैं.खास कर ढलती शाम का दृश्य.
अद्भुत!
जून 17, 2010 को 9:30 अपराह्न
केरल घुमने की उत्सुक्ता और बढ गयी है .
जून 18, 2010 को 3:55 अपराह्न
tourism deptt ko aapke blog ki khabar hai? bahut sundar. dhanyavad aur badhai.
जून 19, 2010 को 6:43 अपराह्न
हमारी इच्छा भी मंदिर के भीतर मूर्ति के भगवान् के चित्र देखने की है अगर आपने लिए हों तब दीख्लाईयेगा
हमेशा की तरह आपके परिवार को समुद्र तट पे प्रसन्न देख कर खुशी हुई
सा दर,
– लावण्या
जून 19, 2010 को 8:12 अपराह्न
सुन्दर वृतांत!
जून 19, 2010 को 10:00 अपराह्न
आपकी स्नेह तीर्थम् की यात्रा का विवरण बहुत पसंद आया । केरल की सुंदरता वहां की नदियां समुद्र और वनस्पती संपदा से है । आँखें तृप्त हो जाती हैं । मंदिर के भीतर चितेर खींचने की अनुमती नही होगी शायद वर्ना आप चितेर जरूर दिखाते । आशा है जनेऊ अच्छी तरह संपन्न हो गया होगा और बहुत आनंद भी आया होगा ।
जून 19, 2010 को 10:41 अपराह्न
बढिया फोटो।
आप तो पूरे जोश में लग रहे हो। बच्चों के साथ बच्चे बन रहे हो।
जून 19, 2010 को 11:22 अपराह्न
बहुत सुंदर चित्र ओर अति सुंदर विवरण, मंदिर के अंदर के चित्र भी दिखाते तो बहुत अच्छा लगता.
धन्यवाद
जून 20, 2010 को 11:39 पूर्वाह्न
सच में केरल तो स्वर्ग है,सालों से सोच रहा हूं केरल जाऊंगा मगर चांस ही नही मिल रहा है,
जून 20, 2010 को 9:05 अपराह्न
इस श्रंखला में में कुछ मस्ती कुछ अलग सा आपका नया रूप महसूस हो रहा है ! आनंद आ गया , शुभकामनायें !
जून 22, 2010 को 12:20 अपराह्न
आपके वृत्तांत जहाँ अपार ज्ञानवर्धक होते हैं,वहीँ रोचक वर्णन शाली अपने में गम कर यात्रा का आनंद भी दे दिया करती है…घर बैठे मुफ्त में हमारी भी यात्रा हो जाती है….
बहुत बहुत आभार इस सुन्दर पोस्ट के लिए…
जुलाई 3, 2010 को 6:33 पूर्वाह्न
[…] सुब्रमणियन द्वारा हम बच्चों सहित स्नेहतीरम समुद्र तट की यात्रा कर रात घर […]
मार्च 22, 2012 को 1:29 अपराह्न
Haven’t seen snehatheeram. Good pics. The temple view from the bridge is beautiful. I could not get such a pic. as my zoom lens developed a problem.