हम अपने आपको पर्यावरण के लिए समर्पित होने का स्वांग रचते रहे. ख़ास कर जब हम अपने मित्रों के साथ पिकनिक में जाया करते . वहां दूसरों द्वारा फैलाये हुए कचरे को इकठ्ठा कर उठा लाते. यह मेरी आदत नहीं थी, लगता है एक मजबूरी रही जिससे लोग मुझे पर्यावरण प्रेमी के रूप में जानें. अपने आप को इस तरह पर्यावरण के लिए संवेदनशील होने का भ्रम पाल रखा है.
पर्यावरण के लिए सजग और प्रकृति से घनिष्ट राजस्थान के बिश्नोई समाज के बारे में कुछ लिखने की चाहत एक अरसे से रही है परन्तु आज ऐसा कुछ हुआ कि लिखने की जरूरत ही नहीं पड़ी. यहाँ मैं उल्लेख करना चाहूँगा श्री राहुल सिंह के सिंहावलोकन में उनकी ताजा प्रविष्टि “फ़िल्मी पटना” का जहाँ उनके शब्दों के जादू से ही सिनेमास्कोप बन गया है. चित्रों की आवश्यकता ही नहीं है. शब्द अपने आप में सक्षम हैं इस बात से कोई विरोध नहीं है परन्तु चित्र भी उतने ही सक्षम होते हैं.
यह चित्र श्री विजय बेदी के द्वारा काफी मशक्कत के बाद लिया गया है और श्री गौरव घोष जी के टिपण्णी से सहमति जताने के बाद के खोज बीन में यहाँ उपलब्ध हुआ था: http://sixteenbynine.co/thousand-words-in-snap
एक और चित्र गूगल बाबा की मेहरबानी से मिला जिसे श्री हिमांशु व्यास ने लिया है. हिन्दुस्थान टाइम्स में वे छायाकार हैं.
रतन सिंह शेखावत जी के द्वारा प्रेषित मेल में निहित सुझाव का सम्मान करते हुए एक वीडिओ भी प्रस्तुत है: