Archive for अक्टूबर, 2010

राजस्थान का बिश्नोई समाज

अक्टूबर 19, 2010

हम अपने आपको पर्यावरण के लिए समर्पित  होने का स्वांग रचते रहे. ख़ास  कर जब हम अपने मित्रों  के साथ  पिकनिक में जाया करते . वहां दूसरों द्वारा फैलाये हुए कचरे को इकठ्ठा कर उठा लाते. यह मेरी आदत नहीं थी, लगता है एक मजबूरी रही जिससे लोग मुझे पर्यावरण प्रेमी के रूप  में जानें. अपने आप को इस तरह पर्यावरण के लिए संवेदनशील होने का भ्रम पाल रखा है.

पर्यावरण के लिए सजग और प्रकृति से घनिष्ट राजस्थान के  बिश्नोई समाज के बारे में कुछ लिखने की चाहत एक अरसे से रही है परन्तु आज ऐसा कुछ हुआ कि लिखने की जरूरत ही नहीं पड़ी. यहाँ मैं उल्लेख करना चाहूँगा श्री राहुल सिंह के सिंहावलोकन में उनकी ताजा प्रविष्टि  “फ़िल्मी पटना” का जहाँ उनके शब्दों के जादू से ही सिनेमास्कोप बन गया है. चित्रों की  आवश्यकता ही नहीं है. शब्द अपने आप में सक्षम हैं इस बात से कोई विरोध नहीं है परन्तु चित्र भी उतने ही सक्षम होते हैं.

यह चित्र श्री विजय बेदी के द्वारा काफी मशक्कत के बाद लिया गया है और श्री गौरव घोष जी के टिपण्णी से सहमति जताने के बाद के खोज बीन में यहाँ उपलब्ध हुआ था: http://sixteenbynine.co/thousand-words-in-snap

एक और चित्र गूगल बाबा की मेहरबानी से मिला जिसे श्री हिमांशु व्यास ने लिया है. हिन्दुस्थान टाइम्स में वे छायाकार हैं.

रतन सिंह शेखावत  जी के द्वारा प्रेषित मेल में निहित  सुझाव का सम्मान करते हुए एक वीडिओ भी प्रस्तुत है:

 

पौराणिक रावण ही क्यों हर वर्ष पीड़ा सहता है

अक्टूबर 17, 2010

कुछ दिन पूर्व  ही किसी ब्लॉगर मित्र की एक गंभीर पोस्ट पढ़ी थी जिसमे सबसे बड़ा सवाल था कि आखिर रावण ही क्यों जलता है. हम भी सोचने के लिए मजबूर हो गए थे. आखिरकार रावण एक महान पंडित था, हर विषय का, चाहे विज्ञान ही क्यों न हो. श्री राम ने भी अपने अनुज लक्ष्मण को निर्देशित किया था कि वह मृत प्रायः  पड़े रावण से कुछ ज्ञान प्राप्त कर ले. रावण ने  केवल एक गलती की थी, केवल सीता का अपहरण,  उससे आगे कुछ नहीं. चाहता तो कर भी सकता था. यह उसने जान बूझ कर ही किया था, जन्नत की प्राप्ति के लिए. एक महान पंडित के नाते उसे तो मालूम ही था कि श्री राम कौन हैं और उनके हाथों मृत्यु प्राप्त होती है तो उसे मोक्ष ही मिलेगा.  मंदोदरी  के सलाह दिए जाने पर कि वह सीता को मुक्त कर दे, तो रावण का जवाब था कि फिर तो श्री राम के हाथों उसे  मुक्ति नहीं मिलेगी.


यह एक विसंगति प्रतीत होती है कि विजयदशमी के दिन दक्षिण में विद्यारम्भ अथवा किसी कला के अर्जन के लिए प्रथम पहल की जाती है. बच्चों को विधिवत, किसी भी अन्य संस्कारों की तरह, लिपि से साक्षात्कार  कराया जाता है.
वहीँ उत्तर भारत में समूचे रावण को बुराई  का प्रतीक ही माना जाता है और प्रति वर्ष भस्मसात होता है. उसके भ्रष्ट आचरण का प्रतिशत संभवतः १०  से अधिक नहीं था. यह तो आज के सन्दर्भ में मान्य है.-:) आज हम देश में देखें तो रावण ही रावण दिखाई पड़ते है. १० प्रतिशत वाले नहीं बल्कि ९० वाले. प्रत्यक्ष से कोई नहीं भिड़ना चाहता. हमारे रामायण के रावण की फजीहत हर वर्ष बाकायदा हो रही है. हम इससे ही संतुष्ट है.


इस वर्ष मध्य प्रदेश का सबसे ऊंचा रावण जिसे १०८ फीट का बताया जाता है, भोपाल के उपनगर कोलर में बनाया गया और इस पोस्ट को लिखते तक भस्मसात हो चुका है,
क्योंकि आतिशबाजी प्रारंभ हो चुकी है. हमारे छत  से लिया गया एक चित्र :