कुछ दिन पूर्व ही किसी ब्लॉगर मित्र की एक गंभीर पोस्ट पढ़ी थी जिसमे सबसे बड़ा सवाल था कि आखिर रावण ही क्यों जलता है. हम भी सोचने के लिए मजबूर हो गए थे. आखिरकार रावण एक महान पंडित था, हर विषय का, चाहे विज्ञान ही क्यों न हो. श्री राम ने भी अपने अनुज लक्ष्मण को निर्देशित किया था कि वह मृत प्रायः पड़े रावण से कुछ ज्ञान प्राप्त कर ले. रावण ने केवल एक गलती की थी, केवल सीता का अपहरण, उससे आगे कुछ नहीं. चाहता तो कर भी सकता था. यह उसने जान बूझ कर ही किया था, जन्नत की प्राप्ति के लिए. एक महान पंडित के नाते उसे तो मालूम ही था कि श्री राम कौन हैं और उनके हाथों मृत्यु प्राप्त होती है तो उसे मोक्ष ही मिलेगा. मंदोदरी के सलाह दिए जाने पर कि वह सीता को मुक्त कर दे, तो रावण का जवाब था कि फिर तो श्री राम के हाथों उसे मुक्ति नहीं मिलेगी.
यह एक विसंगति प्रतीत होती है कि विजयदशमी के दिन दक्षिण में विद्यारम्भ अथवा किसी कला के अर्जन के लिए प्रथम पहल की जाती है. बच्चों को विधिवत, किसी भी अन्य संस्कारों की तरह, लिपि से साक्षात्कार कराया जाता है. वहीँ उत्तर भारत में समूचे रावण को बुराई का प्रतीक ही माना जाता है और प्रति वर्ष भस्मसात होता है. उसके भ्रष्ट आचरण का प्रतिशत संभवतः १० से अधिक नहीं था. यह तो आज के सन्दर्भ में मान्य है.-:) आज हम देश में देखें तो रावण ही रावण दिखाई पड़ते है. १० प्रतिशत वाले नहीं बल्कि ९० वाले. प्रत्यक्ष से कोई नहीं भिड़ना चाहता. हमारे रामायण के रावण की फजीहत हर वर्ष बाकायदा हो रही है. हम इससे ही संतुष्ट है.
इस वर्ष मध्य प्रदेश का सबसे ऊंचा रावण जिसे १०८ फीट का बताया जाता है, भोपाल के उपनगर कोलर में बनाया गया और इस पोस्ट को लिखते तक भस्मसात हो चुका है, क्योंकि आतिशबाजी प्रारंभ हो चुकी है. हमारे छत से लिया गया एक चित्र :
अक्टूबर 17, 2010 को 10:42 अपराह्न
यह सब सांकेतिक ही होता है। मध्य प्रदेश में ही ऐसे कुछ स्थान हैं जहॉं रावण की प्रतिमाऍं स्थापित की हुई हैं और जिनकी नियमित पूजा होती है। मन्दसौरवाले तो रावण को अपना दामाद मानते हैं। उनका मानना है कि मन्दोदरी के नाम पर ही मन्दसौर नामकरण हुआ है।
अक्टूबर 17, 2010 को 10:44 अपराह्न
रावण कहां मरा है. वह तो हर वर्ष एक नये रूप में नजर आता है, पहले से और अधिक उग्र होकर..
अक्टूबर 17, 2010 को 10:54 अपराह्न
लंकाधिपति रावण सर्वविदित विद्वान थे। किन्तु विजयदशमी के दिन उन्हे जलाने के बहाने से ही लोग याद तो करते है तथा उनकी विद्वता का लोहा भी मानते है। वैसे भी रावण की बुराई को हम आज के परिपेक्ष्य मे देखते है जबकि सतयुग मे स्त्री अपहरण बहुत बडा अपराध माना जाता रहा होगा, वो भी एक राज्य की महारानी का।रही आज के रावण की बात , उन्हे तो जलाकर भी अग्नि का अपमान होगा , उन्हे तो गन्दी नाली मे सडने के लिए फेंकना अधिक बेहतर होगा।
अक्टूबर 17, 2010 को 11:27 अपराह्न
आप से सहमत हे, उस रावण ने तो एक नारी का हर्ण किया थ, ओर आज के रावण ओर उस की हराम की ओलाद हर रोज सीता का हरण ही नही सु का शिल भी भंग करते हे, इन्हे कोन सजा देगा? ओर कब?
अक्टूबर 18, 2010 को 12:17 पूर्वाह्न
बहुत अच्छी प्रस्तुति .
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं .
अक्टूबर 18, 2010 को 1:58 पूर्वाह्न
रावण ने केवल एक गलती की थी, केवल सीता का अपहरण, उससे आगे कुछ नहीं.
मामला इससे कहीं ज़्यादा था। बात इतनी सी होती तो बात इतनी नहीं बढती। महापंडित रावण के हाथों इससे पहले अनेकों कुकर्म हुए थे जिनके फल इकट्ठे होते रहे और समय आने पर फ़ट पडे।
इक लख पूत सवा लख नाती
ता रावण घर दिया न बाती ॥
अक्टूबर 18, 2010 को 6:25 पूर्वाह्न
1.परम आदरणीय सुब्रमणियन जी, योग में रावण का अर्थ मन है जो त्रिकुटी से ऊपर की सीधी रेखा (सीता) को अपनी चंचलता से हर लेता है. तब तटस्थ चेतन तत्त्व (राम) सीधी रेखा की पुनर्स्थापना करता है, उसे छुड़ा लेता है. साधक शांति प्राप्त करता है.
2.कथाओं का इतना दुरुपयोग हुआ कि आज की तारीख में ब्राह्मण भी स्वयं को उसका वंशज मानते हैं और दलित भी (असुर, दैत्य शब्दों की परिभाषा के कारण). आप पुरात्त्व से जुड़े रहे हैं. कभी आपकी कलम से निकला तत्विषयक लेख देखना चाहता हूँ. साहित्य, शिलालेखों आदि को कितना भ्रष्ट किया गया है आप बता पाएँगे.
अक्टूबर 18, 2010 को 8:11 पूर्वाह्न
आपने बिल्कुल साईं कहा है, क्यों ना इस पर्व को मनुष्य के अंदर की बुराईयों को जलने के लिए मनाया जाए. सबको मिलकर एक पहल करनी होगी.
अक्टूबर 18, 2010 को 8:25 पूर्वाह्न
देखिये उस वक़्त रक्ष समाज और आर्यों के समाज की अपनी अपनी भिन्न मान्यताएं और जीवन शैली थी , अतः नैतिक अनैतिक का निर्णय भी निज समाज के मूल्यों के आधार पर ही हुआ करता होगा ! तब युद्ध के लिए हालात गढे गये थे इस लिए युद्ध की पृष्ठभूमि में वास्तविक कारण सीताहरण से इतर और एकाधिक हैं !
आपके आलेख पर केवल इतना ही कहना चाहूँगा कि मुझे तो यहां पर मसला विजेता समाज द्वारा पराजित की थू थू जैसा अधिक लगता है वर्ना रावण से ज्ञान की सीख का सन्देश तो श्री राम नें स्वयं भी दिया था !
अक्टूबर 18, 2010 को 8:55 पूर्वाह्न
उपयोगी जानकारी।
अक्टूबर 18, 2010 को 9:46 पूर्वाह्न
जय लंकेश, जय राजा रावण की, यह जयघोष हमारे यहाँ उज्जैन में बहुत सुनने को मिलेगा। क्यों करते हैं वह पता नहीं, शायद रावण के पांडत्य से प्रभावित होकर ।
अक्टूबर 18, 2010 को 9:52 पूर्वाह्न
सीता हरण के अतिरिक्त रावण का शायद ही कोई दोष हो. उसका हार जाना ही उसके खलनायक बन जाने का कारण रहा है. शेष तो प्रेरणादायी व्यक्तित्त्व है.
अक्टूबर 18, 2010 को 10:12 पूर्वाह्न
रावण का वध किस कारण हुआ -यह इतिहास का विषय नहीं -अब राम चूँकि विजेता हुए और विजेता का ही गुणगान सहज है अतः आज राम राम रावण रावण है
विचारणीय !
अक्टूबर 18, 2010 को 10:46 पूर्वाह्न
एक बात जो कहना शायद ज़रुरी है …श्री हरि विष्णु का आर्य कुल में अवतार होगा जिस दिन यह घोषित किया गया युद्ध उसी दिन तय हो चुका था दोनों समाजों के मध्य ! माता सीता के जन्म से बहुत पहले युद्ध का निर्धारण ! भला क्यों ?
वैसे मित्रगण इसे विधि का विधान / होनी कह कर काम चलायें तो मुझे कोई आपत्ति ना होगी !
अक्टूबर 18, 2010 को 11:04 पूर्वाह्न
बेचारा रावण !
आँखें खोलने वाली पोस्ट है जिधर देखो रावण ही रावण …मगर कोई मानने को तैयार नहीं !
रावण के मुकाबले अधिक गुनाहगार हम लोग सोंचने को भी तैयार नहीं !
बेचारा रावण …उसे हर साल हम ब्रह्म राक्षस जला कर जश्न मना उस महाब्राह्मण को रावण और अपने को पुण्यात्मा समझ मस्त रहते हैं !
दुबारा बधाई एक बढ़िया पोस्ट के लिए भाई जी
अक्टूबर 18, 2010 को 11:18 पूर्वाह्न
श्री सुब्रमणियन जी, क्षमा करना मैं यहाँ पर अपनी डा. दाराल के ब्लॉग पर दी गयी टिप्पणी फिर से दोहरा रहा हूँ…श्री राहुल कुमार सिंह को धन्यवाद जताते!
“…जीवन का सत्य जानना यदि इतना सरल होता तो बात ही क्या थी, विशेषकर कलियुग के अंत के निकट, यानि श्रृष्टि के आरंभ में – जब हिन्दू-मान्यतानुसार, यानि पहुंचे हुए योगियों के अनुसंधान के आधार पर अर्जित ज्ञान के अनुसार, कुछ परोपकारी देवता और अधिकतर स्वार्थी राक्षशों के मिलेजुले योगदान के चलते चारों ओर विष व्याप्त था, और कलियुग के दौरान मानव की कार्य क्षमता केवल शून्य से बढ़ अधिकतम पच्चीस प्रतिशत के बीच ही थी… तो फिर ‘आम आदमी’ को कैसे पता चलता कि सर्वगुण संपन्न, निराकार नादबिन्दू, के शून्य यानि घोर अज्ञान कि स्तिथि से आरंभ कर लक्ष्य प्राप्ति यानि अनंत शिव तक पहुँचने हेतु विभिन्न क्षेत्र से सम्बंधित अनंत विषयों पर अनंत दृष्टिकोण से क्या क्या विचार उसके मन में समय समय पर उठे होंगे? जिनका उसने अवश्य समाधान कालांतर में प्राप्त कर ही लिया होगा 🙂 और जिनके विषय में द्वापर से सम्बंधित ‘कृष्णलीला’ और त्रेता से सम्बंधित ‘रामलीला’ के माध्यम से भी सांकेतिक भाषा में विचार पढने को मिल सकते हैं…(कलियुग में ‘रावण लीला’ कहना शायद सही होगा जब आप जैसे परोपकारी थोड़े से ही देखने को मिल सकते हैं 🙂
दशहरे-दिवाली (माँ दुर्गा और काली से सम्बंधित पूजा आदि) के शुभ अवसर पर सभी को अनेकानेक बधाइयां!”
अक्टूबर 18, 2010 को 11:26 पूर्वाह्न
The issue here is how correct or incorrect were Ravan / Ram but how varied our culture is in relation to the central theme of Ramayana. The poets who interpreted the valmiki ramayana at different times at different places, have interpreted this great epic suititing to their culture, food habits, life style, etc.
It will be of interest to you that in Kerala there is a prominent version of this great epic called Mapplia Ramayanam (Mappila=Mopla=Muslim) among the northern kerala (elderly) muslims. This poem, the creative work of one Muslim Poet (I think it is Moideen Kunju Vaidyar?), written with great respect to Shriram and mother Sita, is part of the varied muslim literature in Kerala.
अक्टूबर 18, 2010 को 1:39 अपराह्न
हमे तो आज भी रावण महगाई और भ्रष्टाचार के रूप में जीवित दिखाई देता है? इस सुंदर विचारों वाली पोस्ट हेतु आभार |
अक्टूबर 18, 2010 को 1:42 अपराह्न
PLEASE READ MY COMMENT AS
“THE ISSUE HERE IS NOT HOW CORRECT OR INCORRECT WERE RAVAN / RAM WAS BUT HOW VARIED OUR CULTURE IS ….
अक्टूबर 18, 2010 को 2:03 अपराह्न
“यह एक विसंगति प्रतीत होती है कि विजयदशमी के दिन दक्षिण में विद्यारम्भ अथवा किसी कला के अर्जन के लिए प्रथम पहल की जाती है. बच्चों को विधिवत, किसी भी अन्य संस्कारों की तरह, लिपि से साक्षात्कार कराया जाता है.”
यह परंपरा उत्तर भारत में भी है और उत्तर भारत में भी रावण के महापंडित होने के बारे में कोई संदेह नहीं है. यहां भी लोगों के मन में महापंडित होने के नाते आज भी रावण के प्रति उतना ही सम्मान है. लेकिन, बात केवल महापंडित होने की ही नहीं है. रावण ज़ॉर-ज़बर्दस्ती के शासन में विश्वास करता था. महापंडित होना एक बात है, लेकिन फासिस्ट होना दूसरी बात है. असल में विरोध उस आतंक के साम्राज्य से है, जो रावण ने क़ायम कर रखा था और किसी न किसी रूप में वह आज भी क़ायम है. लोग रावण को तो मार नहीं पाते, सो पुतला जलाकर हो-हो कर लेते हैं और इसी तरह अपनी कुंठा शांत कर लेते हैं.
अक्टूबर 18, 2010 को 2:23 अपराह्न
ye to bilkul nayi baat pata chali Rawan ke baare mai…
अक्टूबर 18, 2010 को 2:42 अपराह्न
पुतला जला कर क्या होगा .जब सजीव रावण खुले आम घूमते हैं .विचारणीय आलेख.
अक्टूबर 18, 2010 को 2:50 अपराह्न
Now even the Raavan refuses to die. Check this http://j.mp/cpm4e6
अक्टूबर 18, 2010 को 3:26 अपराह्न
रावण के पांडित्व को किसी ने नहीं नकारा है, उसको राम ने भी स्वीकार किया उसके वध का कारण सिर्फ उसकी बुराइयाँ थी और फिर अंत तो सभी का होना है, राम का भी हुआ . रावण को बुराई का प्रतीक मानकर जलाया जाता है , व्यक्ति रावण के प्रति आज भी देश में श्रद्धा के भाव देखे जा सकते हैं. उस रावण के भी कुछ नैतिक मान्यताएं थीं और उसने उनको कभी नहीं तोडा. आज के रावण तो निर्बाध और निरंकुश घूम रहे हैं और अब कोई राम भी पैदा होने का साहस नहीं कर पाता है क्योंकि इनकी भीड़ में राम ही मार दिए जाते हैं. रावण इस कलियुग में अमर होकर आये हैं.
अक्टूबर 18, 2010 को 7:37 अपराह्न
पुनश्च: ऐसा प्रतीत होता है कि ‘भारत’ की मिटटी ने प्राचीन काल से कितने ही प्रलय आदि के बावजूद भी – निरंतर बदलते परिवेश में – ‘आम भारतीय’ के मानस पटल पर ‘सादा जीवन और उच्च सोच’ की छाप सदा बनाये रखने का प्रयास किया है,,, जिसे प्राकृतिक कह सकते हैं,,,जिस कारण यद्यपि परम सत्य यानि काल के परे अमृत आत्मा, (बाहरी भौतिक शरीर की मृत्यु का कारक ‘विष’ का उल्टा ‘शिव’), को निराकार जाना गया, मानव जीवन में – यद्यपि अस्थायी और असत्य (मायावी) होते हुए भी – ‘सत्य’ उसे माना गया जो समय यानि काल पर निर्भर नहीं है…
रामायण अथवा रामलीला के सार के सन्दर्भ में कहा जाता है कि राम ने तो प्रत्यक्ष रूप में केवल कुछेक, रावण, कुम्भकर्ण, मेघनाद, आदि जैसे राक्षशों की ही नैय्या पार लगायी, उन्हें बैकुंठ पहुंचाया, किन्तु उसके नाम ने अनगिनत लोगों (स्वार्थी मानव यानि राक्षशों की) नैय्या निरंतर पार लगाईं है…इस कारण आम आदमी का ‘भारत’ में लक्ष्य भले ही जीते जी न आये, कम से कम मरते समय मुंह में राम का नाम आना माना गया…इस लिए हर वर्ष रामलीला के माध्यम से रावण के साथ साथ राम का नाम तो लिया ही जाता है (जो शायद इस जीवन को सफल बनाने का काम करे 🙂
अक्टूबर 18, 2010 को 10:54 अपराह्न
यहां आने पर पोस्ट के साथ टिप्पणी पढ़ना भी भाता है.
अक्टूबर 18, 2010 को 11:37 अपराह्न
सर कुछ हट कर कहूं ?
हम ढोंगी हैं और हमारा रावण दहन एक नौटंकी .आज तो रावण ही रामलीलाओं का आयोजन करवाते हैं और रावण दहन कराते हैं . रावण ही रावण को जला रहा है . हर राम तो बस तमाशबीन होकर देख रहा है या बहुतों की तरह घर में दुबक कर बैठ गया है अपनी सीता की रखवाली करता . क्योंकि अब उसकी सीता का अपहरण हुआ तो वह रावण को मार पाना तो दूर सीता को गिदगिड़ा कर भी वापस नहीं पा सकेगा .
वैसे उत्तर भारत में भी रावण दहन के साथ ही ‘ शस्त्र ‘ पूजन भी होता है क्षत्रियों में .
अक्टूबर 19, 2010 को 12:23 अपराह्न
आपने ऐसा विषय उठाया की इसी बहाने बहुत कुछ पढने को मिल गया…
वैसे तो राज जी ने जो कहा है आज का यथार्थ वही है…पर बात राम रावन की करें तो निसंदेह रावन ज्ञानी थे और राम ने भी इसी कारन लक्ष्मण को उनसे शिक्षा लेने को कहा था,परन्तु बात यह है की वह ज्ञान ही कैसा जो आचरण में न हो,व्यक्ति को सदाचारी न बनाये..अज्ञानी यदि पापकर्म में लिप्त होता है तो यह इतनी बड़ी बात नहीं होती,परन्तु कोई ज्ञानी और परम शक्तिशाली यदि ऐसा करे तो यह निश्चित रूप में अक्षम्य होना ही चाहिए…
अक्टूबर 19, 2010 को 7:49 अपराह्न
मनोरंजक पौराणिक कहानियों में – यद्यपि वे किसी विशेष काल से सम्बंधित थे – राम (सबसे अच्छे अथवा पुरुषोत्तम दर्शाए गए) और उसी समय रावण (सबसे बुरे भी) आदि मानवरूपी पात्रों द्वारा मानव जीवन का सत्य, यानि प्रकृति में व्याप्त विविधता की झलक और इस कारण किसी भी समय, द्वैतवाद (‘माया’?) के कारण, आम आदमी की भी अपेक्षित झलक दर्शाई गयी है,,, यानि कोई भी व्यक्ति किसी व्यक्ति विशेष की नज़र में, या अधिकाँश के दृष्टिकोण से, ‘भला’ अथवा ‘बुरा’ मानते देखा जाएगा – संभव है सबकी नज़र में नहीं (क्यूंकि मान्यतानुसार सब भगवान् के ही प्रतिबिम्ब हैं!)…
इसकी पृष्ठभूमि के बारे में यदि कोई गहराई में जानना चाहे तो वो पायेगा कि ‘हिन्दू’ मान्यतानुसार योगियों द्वारा अनंत प्रतीत होने वाले काल-चक्र को चार युगों में बांटा गया है, जिन्हें सत्य युग (स) , त्रेता युग (त) , द्वापर युग (द), और कलियुग (क) कहा गया,,, जिसमें कलियुग ४,३२,००० वर्ष का और अन्य युग इसका दुगुना (द), तिगुना (त) और चार गुना (स) बताये गए जिनके दौरान मानव की कार्य-क्षमता (स में) १००% से ७५%, (त में) ७५% से ५०%, (द में) ५०% से २५%, और (क में) २५% से ०% जानी गई…इन चारों युगों को (स से क तक) मिला उसे उन्होंने एक महायुग बताया (४३,२०,००० वर्ष का),,,और ऐसे संख्या में १००० से ऊपर चक्र चलते रहते हैं (४ अरब से ऊपर समय में) श्रृष्टि-कर्ता ब्रह्मा के केवल एक दिन में बताया गया उनके द्वारा! और वर्तमान में वैज्ञानिक हमारे सौर-मंडल यानि पृथ्वी की भी आयु को लगभग ४.६ अरब वर्ष आंकते हैं!
सोचने वाली बात यह है कि क्या उपरोक्त दर्शायी गयी जानकारी ग्रहण करना संभव है किसी आम आदमी द्वारा जिसकी आयु मात्र १०० वर्ष (+/ -) तक ही संभव है, कम से कम वर्तमान में? योगियों ने परमात्मा के अंश, आत्मा, को हर मानव शरीर के भीतर बताया है और अपने जीवनकाल में उससे सम्बन्ध स्थापित करने का उपदेश दिया है…
अक्टूबर 19, 2010 को 9:16 अपराह्न
crowd mentality. we do not apply our own mind independently
अक्टूबर 21, 2010 को 3:17 अपराह्न
किसी पात्र के केवल विद्वान, ब्राम्हण, शक्तिशाली या\और राजा होने से उसे व्याभिचारी या अत्याचारी बनने की छूट नहीं मिल सकती। कोई भी मनुष्य बुराईयों व अच्छाईयों का मिश्रण होता है। जहाँ तक मंदसौर या मेरठ वालों के इस बात पर इतराने की बात है कि रावण उनके शहर से था या उनका दामाद था, इसमें अचरज की कोई बात नहीं। किसी भी बड़े चरित्र के साथ कोई न कोई साम्यता निकालना मानवसुलभ ही है, चाहे वह खलनायक ही क्यों न हो। अब चूंकि हम वर्तमान के रावणों का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे, तो इन प्रतीकात्मक रावणों को भी न जलायें, यह भी कहाँ का न्याय होगा?
इस बहाने सब को न सही दस प्रतिशत बच्चों को या दो प्रतिशत बच्चों को भी हम अच्छाई व बुराई का फ़र्क समझा सकें तो मेरे नजरिये से ये कुछ गलत नहीं।
अक्टूबर 21, 2010 को 8:01 अपराह्न
बिल्कुल सही बात है इन 90 प्रतिशत वालों को तो रावण भी नहीं कह सकते है। मै भी कई बात सोचता रहता हूं कि वास्तव में क्या बुराई थी उसमें ।उसने मन्दोदरी की कभी किसी बात का बुरा नहीं माना हालंाकि मन्दोदरी ने भी उससे ऐसी बाते तक कही जो आज की पत्नि पति से कह दे उनकी आपस में मारपीट होने लगे । अशोक वाटिका में सीता के पास गया तो अकेला नहीं नहीं गया मन्दोदरी को साथ लेकर गया । वैसे भी युध्द और राजनीति में सब जायज है तो वह भी योघ्दा था छल बल सब उसने भी किये । अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ कर
अक्टूबर 21, 2020 को 12:13 अपराह्न
कई लोगों के लिए रावण सिर्फ एक पुतला है जिसे द्यूशहरा के पवित्र दिन जलाया जाना है। लेकिन लोगों के लिए जो असामान्य है वह यह था कि रावण, रामायण के महाकाव्य इतिहास में खलनायक के राजा होने के अलावा एक महान विद्वान और शानदार वीणा वादक थे और अपने समय के सबसे बुद्धिमान लोगों में से एक थे। राजा रावण एक आधा ब्राह्मण और आधा रक्षशा था क्योंकि उसके पिता विशेश्व एक पंडित थे और उनकी माता इलविदा जाति से रक्ष थीं। https://hi.letsdiskuss.com/why-do-some-people-think-that-ravana-is-great-hi