वन्य प्राणी सप्ताह

उन दिनों हम कक्षा ९ वीं के क्षात्र थे. वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा था. स्कूली  क्षात्रों के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं  का आयोजन वन विभाग के द्वारा कराया जा रहा था. निबंध, कवितायेँ, छाया चित्र, पेंटिंग आदि की. हमारे पास तो नया नया डब्बा कैमरा था ही. सोचा हमें भी इस अवसर पर कुछ करना चाहिए. अब जंगली जानवर की तस्वीर कैसे खींच पाते. तभी ख्याल आया की जगदलपुर के राज महल के अन्दर एक बाड़े में बहुत सारे हिरन पल रहे थे. पास के बड़े हौज़ में रंगीन मछलियाँ भी थीं. निकल पड़े राज महल की ओर अपना डब्बा लिए. अन्दर जाने पर बड़ी निराशा हुई. हिरन तो थे पर ऊंची  जालियां व्यवधान डाल रही थीं.  चित्र लिए जरूर थे परन्तु बात नहीं बनी.

धुन तो सवार था ही. दो दिन बाद  किसी ने बताया कि महल में एक तेंदुआ लाया गया है.  भागे फिर राज महल की ओर.  महल के मुख्य  दरवाज़े से घुसने पर पहले दंतेश्वरी मंदिर पड़ता है उसके बाद बायीं ओर ही एक बड़ा लकड़ी का दरवाज़ा था. उसके अन्दर बहुत से मकान आदि बने थे.  हमें उसी रास्ते से अन्दर जाना पड़ा. एक जगह राजा के गाड़ियों के लिए गिराज बने थे. वहीँ पिंजड़े में तेंदुआ था. उसकी देख रेख के लिए एक आदिवासी युवा भी तैनात था. वास्तव में वह तेंदुवे का बच्चा था. अब तस्वीर कैसे लें. पिंजड़े की सलाखें सब चौपट कर रही थी. अगल बगल देखा तो एक बाड़ा  दिखा जो ऊंची दीवार से घिरा था. उसके प्रवेश द्वार से झाँकने पर अन्दर भुट्टे के पौधे लगे थे. ऊंचे भी हो गए थे. हमने उस युवा आदिवासी को फुसलाया. एक दुवन्नी उसे पकडाई. वह सहयोग करने के लिए तैयार हो गया. तेंदुवे के बच्चे के गले में सांकल बंधी थी. हमारे साथ एक दोस्त भी था. हम लोग उस बाड़े में घुस गए और फोटो खींचने के लिए अपनी पोजीशन ले ली. सांकल थामे आदिवासी तेंदुवे को बाड़े  में ले आया. फोटो खींचने पर सांकल भी दिख पड़ेगी यह सोच उस आदिवासी से आग्रह किया कि उसे छोड़ दे. वह नहीं माना तब हमने कहा तू एक किनारे बैठ जा और सांकल को जमीन पर रख दे. बड़ी मशक्कत के बाद तीन तस्वीरें खींच ही ली.  और उनमें दो तो आउट ऑफ़ फोकस हो गयीं परन्तु सौभाग्यवश एक ठीक ठाक थी. उसे ही हमने प्रतियोगिता में प्रविष्टि के रूप में जमा करवा दिया था.  पूरे जिले में हमें तृतीय स्थान ही मिल पाया, जिसका हमें अफ़सोस रहा. अब निर्णायकों ने तस्वीर की गुणवत्ता देखी होगी परन्तु उसके पीछे जो हमारी दौडधूप रही उसका तो उन्हें अंदाज़ नहीं रहा होगा. खैर पुरस्कार में एक बड़ा सा बण्डल मिला. वन विभाग एवं प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित ढेर सारी पुस्तकें.

नीचे एक और फोटो है. काश यह जंगली जानवर कहला सकता. इस तस्वीर को लेने के लिए हमने सबसे पहले फ्लेश गन का प्रयोग किया था. हर बार एक बल्ब लगाना पड़ता था जो सस्ती नहीं हुआ करतीं थी.

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35 Responses to “वन्य प्राणी सप्ताह”

  1. Bharat Bhushan Says:

    एकदम चित्रात्मक शैली में आपने अपनी बात कही है. बहुत सुंदर वर्णन बन पड़ा है. बधाई. जीवट का काम कर रहे थे आप…हम देख रहे हैं. ऐसे कैमरे बचपन में देखे थे. आज इन्हें देख कर अतीतराग उमड़ आता है.

  2. arvind mishra Says:

    इस दूसरी वाली को आपको फोटो प्रतियोगिता में भेजना था …क्यूरियासिटी किल्स द कैट के कैप्शन से ….
    बाकी आपकी दौड़ धूप ,रोमांच साहस दुस्साहस को मैं अहसास कर पा रहा हूँ क्योंकि कभी मेरे जूते ने मुझे ऐसे ही काट खाया था दर दर भटकता था क्लिक थर्ड लेकर चिड़ियों के फेर में …..तब दूसरी प्रजाति की तितलियों और चिड़ियों का भान तक न था ..अब अफ़सोस होता है ….हम भी शुरू से ही भटके राही ही रहे 🙂

  3. राहुल कुमार सिंह Says:

    इस चित्र में तेंदुए का फोटो लेने के लिए किया गया उद्यम और हुआ रोमांच ही सबसे बड़ा हासिल है. यह भी लगा कि आप सफल फोटो जर्नलिस्‍ट या वन्‍य प्राणी छायाचित्रकार हो सकते थे और होते तो न जाने किन जोखिमों को आमंत्रित करते.

  4. Indranil Bhattacharjee Says:

    चित्र बहुत सुन्दर बन पड़ा है … दोनों ही …. और आपका विस्तृत विवरण कि कैसे आपने वन्य प्राणी सप्ताह के चित्र के लिए तिकडम लगाया, अत्यंत उपभोग्य रहा …
    हम जब बच्चे थे तब श्वेत-श्याम चित्र ही होते थे … मेरे पिताजी के पास भी एक कैमरा हुआ करता था … आज न जाने कहाँ है … उस कैमरा से खिंचा हुआ कई तस्वीर है जिसे देखकर आज भी मन रोमांचित हो जाता है … बचपन की यादें उमड़ आती है

  5. ajit gupta Says:

    फोटो खेंचने का जुनून ही आपको इतने सुन्‍दर चित्र दे पाया। आपको बधाई। आप इसी प्रकार बेहतरीन चित्र लेते रहें।

  6. समीर लाल Says:

    चित्र रोमांचित कर रहे हैं..उत्तम पोस्ट!!

  7. भारतीय नागरिक Says:

    शानदार फोटो.. डिजिटल से पहले बहुत मंहगा था यह शौक..

  8. RAJ SINH Says:

    खूब ! उस कैमरे में लगने वाले ,सिर्फ एक बार ही प्रयोग कर पाने वाले बल्ब ,उसकी कीमत भी बता देते .बाप रे बाप ! उस वक्त कितनी मंहगी पड़ती थी फोटोग्राफी .आपके कहने ,बताने ,दिखाने का अंदाज़ तो मनमस्त करता ही है .अब ये भी जाना की जोखिम उठाने और साथ ही मजाहिया नज़र के आप जन्म जात धनी थे .तभी तो हम आज उसका लाभ उठा रहे हैं .

  9. सुज्ञ Says:

    संस्मरण में वन्य प्राणी सप्ताह के माध्यम से वन्य जीवो की आज़ादी लूंट्ने पर शानदार बिंब का प्रयोग हुआ है…कैमरा………सलाखें……जन्जीर। ला-जवाब प्रयोग।

    रोमांच साहस दुस्साहस और तृतीय स्थान…………शानदार व्यंग्य!!

    चित्र भी स्वयं को व्यक्त करते है। अभिनंदन

  10. amar Says:

    रोचक!

  11. नरेश सिंह Says:

    सचमुच उस वक्त फोटोग्राफी बहुत महंगा शौक था | आज यह शौक कि जगह टाईमपास हो गया है |

  12. vinay vaidya Says:

    तो बचपन से ही आपको यायावरी का शौक था,
    जिसने आपको कार्य के लिये उत्साहित किया,
    और आपने जीवन में बहुत से अनुभव पाए, जिसे
    आप मित्रों से बाँट रहे है ।
    उस उम्र में, और असुविधाओं के चलते भी आपने
    जो तस्वीरें खींचीं, वे आज के लोग अच्छी सुविधा
    वाले कैमरों से भी कहाँ खींच पाते हैं ?
    आभार एवं धन्यवाद !

  13. नीरज जाट जी Says:

    मैं आज तक अपनी जी-जान लगा देता हूं कि किसी जंगली जानवर का फोटो खींचने को मिल जाये लेकिन कभी सफल नहीं हुआ।
    इतनी दौडधूप के बाद किसी जानवर का फोटू मिल जाये तो क्या कहने!

  14. ताऊ रामपुरिया Says:

    बहुत नायाब चित्र, आभार.

    रामराम.

  15. puja upadhyay Says:

    उतने पुराने समय के हिसाब से फोटो तो बहुत ही अच्छी आई है…इसको प्रथम स्थान न देकर बड़ी नाइंसाफी की गयी…ऐसा नहीं होना चाहिए था.
    आपके फोटोग्राफी प्रेम को देख कर बहुत अच्छा लगा…और दुस्साहस का क्या कहना 🙂

  16. ali syed Says:

    आदरणीय सुब्रमनियन जी ,

    उस ज़माने में दुअन्नी का इंसेटिव और भारी रिस्क फिर भी , तीसरा नम्बर ,बहुत नाइंसाफी है ये तो !

  17. प्रवीण पाण्डेय Says:

    साहस का कार्य है यह चित्र खींचना, अच्छा भी बहुत खिचा है।

  18. संजय @ मो सम कौन? Says:

    सुब्रमणियन साहब,
    You are great, simply great.
    दोनों ही चित्र एकदम अनूठे, आभार हम सबके साथ शेयर करने के लिये।

  19. कॄष्ण कुमार मिश्र Says:

    aap se vinamra anurodh hai ki dudhwalive ke liye kuchh likhe

  20. आशा जोगळेकर Says:

    बडे बहादुर थे आप तब से ही, बढिया फोटो । उन्होने चाहे तृतीय पुरस्कार दिया हो, यदि आप इससे जुडी कथा लिखते तो प्रथम ही मिलना था । बिल्ली दूध की हांडी में क्या बात है ।

  21. nirmla.kapila Says:

    fफोटो के चक्कर मे बिल्ली के आगे हाँडी ही रख दी? अगर तेंदूआ है तो आपके साहस की दाद देनी पडेगी। क्या तेंदूय भी दूध पीते है? बहुत अनूठी तस्वीरें। धन्यवाद।

  22. rashmi ravija Says:

    एक से एक तस्वीरें निकल कर आ रही हैं…आपके कैमरे से.
    जिला स्तर पर कोई भी पुरस्कार पाना बहुत बड़ी बात है.
    बिल्ली कि तस्वीर भी नायाब है..:)

  23. Gyandutt Pandey Says:

    आपका साहस देख सलीम अली की याद आ रही है। वे भी पक्षी का चित्र लेने में गहरी झील में गिरते गिरते बचे थे!

  24. budhaaah Says:

    Waah! aaap toh wakaei may umda tasveerein kheencha kartey theyy. And the requisite dedication was there too 🙂 Very nice pictures.

    By the way the pix with my poem was not by me , it was the photo prompt for which I had to write 🙂 thanks a ton for ur kind words and support

  25. संजय बेंगाणी Says:

    उस समय का खर्चिला, समय-खाऊ और उस पर भी तस्वीर कैसी आए कह नहीं सकते थे. प्राणियों की खास कर जंगली हो तो तस्वीर लेना हँसी खेल नहीं था. इस दृष्टि से शानदार तस्वीरें.

  26. रंजना Says:

    वाह !!!
    सचमुच बहुत हिम्मत का काम किया आपने…
    बहुत बढ़िया आया है चित्र…

  27. हरि जोशी Says:

    आपका आलेख पढ़कर बहुत दिन बाद अपने पुराने कैमरे याद आए…साझा करने के लिए आभार।

  28. shobhana Says:

    बहुत अच्छे चित्र और इसके साथ जुडी हुई बाते भी बहुत अच्छी लगी |
    बिल्ली मौसी सारा दूध चाट करके ही मानेगी? लगता तो ऐसे ही है ?
    अपने पुराने अनुभव बाँटने के लिए आभार |

  29. sanjay vyas Says:

    क्या बात है सर! लगता है अब पुराना खजाना हमारे हाथ आ रहा है धीरे धीरे ही सही.एक पूरा पुस्तकालय आपके अपने काम को लेकर बन सकता है.बन ही गया है बल्कि.

  30. Zakir Ali Rajnish Says:

    यादों ने चित्रों में सजीवता सी ला दी है।

    ———
    ईश्‍वर ने दुनिया कैसे बनाई?
    उन्‍होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।

  31. drmihirbhoj Says:

    आप तो मेरे फैवरेट ब्लोगर बनते जा रहे हो…..

  32. अनुराग शर्मा Says:

    चित्र तो आपके गज़ब के होते हैं, यहाँ भी हैं।

  33. zeal ( Divya) Says:

    A wonderful post with great pics !

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  35. Alpana Says:

    मानना पड़ेगा कि आप ने स्कूल के समय उन दिनों तेंदुए का चित्र खींचने की हिम्मत की..यह बताता है कि फोटोग्राफी शौक का कितना जुनून रहा होगा.उन दिनों तो प्रतियोगिता में तीसरा स्थान पाना भी बड़ी बात रही होगी.
    दोनों चित्र बहुत सुंदर हैं .ये चित्र और साथ जुडी यादें बहुमूल्य हैं.

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