छतीसगढ़ की राजधानी, रायपुर से लगभग ४५ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में तीन नदियों का संगम है. महानदी (चित्रोत्पला), पैरी तथा सोंढुर. महानदी और पैरी दो अलग अलग भागों से आकर यहाँ मिल रही है और एक डेल्टा सा बन गया है जबकि तीसरी नदी सोंढुर कुछ दूरी पर सीधे महानदी से मिल रही है. महानदी अथवा चित्रोत्पला को प्राचीन साहित्य में समस्त पापों का हरण करने वाली परमपुण्यदायिनी कहा गया है. महाभारत के भीष्म पर्व में तथा मत्स्य एवं ब्रह्म पुराण में भी चित्रोत्पला का उल्लेख है. इस नदी के उदगम के बारे में जो बातें मिलती हैं उससे कोई संदेह नहीं रह जाता कि यह नाम महानदी के लिए ही प्रयुक्त किया गया था. महानदी जैसे पापनाशिनी में दो अन्य नदियों के संगम के कारण यह एक परमपुण्य स्थली मानी जाती है. यही है छत्तीसगढ़ का प्रयाग. संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम तट पर पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण आदि करते हुए लोगों को देखा जा सकता है. यहाँ एक प्राचीन नगर राजिम भी है जो महानदी के दोनों तरफ बसा है. उत्तर की ओर की बस्ती नवापारा (राजिम) कहलाती है जब कि दक्षिण की केवल राजिम. यह पूरा क्षेत्र पद्म क्षेत्र कहलाता है और एक अनुश्रुति के अनुसार पूर्व में यह पदमावतीपुरी कहलाता था. राजिम नामकरण के पीछे भी कई किस्से कहानियां हैं, जिसमे राजिम नाम की एक तेलिन से सम्बंधित जनश्रुति प्रमुख है. एक धार्मिक तथा सांस्कृतिक केंद्र के रूप में राजिम ख्याति प्राप्त है. यहाँ मंदिरों की बहुलता तथा वहां आयोजित होने वाले उत्सव आदि इस बात की पुष्टि करते प्रतीत होते हैं.
यह पूरा क्षेत्र, अपनी वन सम्पदा एवं कृषि उत्पाद के लिए सदियों से प्रख्यात रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए उस क्षेत्र की प्राकृतिक सम्पदा के दोहन हेतु अंग्रेजों के शासन काल में बी.एन.आर रेलवे द्वारा रायपुर से धमतरी तथा उसी लाइन पर अभनपुर से नवापारा (राजिम) की एक नेरो गेज रेलवे लाइन प्रस्तावित की गयी. सन १८९६ में छत्तीसगढ़ में अकाल पड़ा था अतः उस प्रस्तावित रेलमार्ग को स्थानीय लोगों को रोजगार दिलाने (या यों कहें कम खर्च में काम चलाने के लिए) राहत कार्य के अंतर्गत रेल लाइन का निर्माण प्रारंभ कर दिया गया. सन १९०० में रेल सेवा भी प्रारंभ हो गयी थी. राजिम के आगे गरियाबंद वाले रस्ते के जंगलों के भीतर भी रेल लाइन होने के प्रमाण मिलते हैं. कहीं कहीं पटरियां भी हमने देखी हैं परन्तु वह लाइन कहाँ तक गयी थी और कहाँ जाकर जुडती थी, इस बात से अवगत नहीं हो सके. विषयांतर हुआ जाता प्रतीत हो रहा है. राजिम के लिए रेलमार्ग के संदर्भवश रेलवे की कहानी संक्षेप में कह डाली. रायपुर से राजिम जाने के लिए सड़क मार्ग ही बेहतर है जबकि रेलमार्ग कष्टदायक.
बात तो राजिम की ही होनी थी. ऊपर हमने वहां मंदिरों की बहुलता का उल्लेख किया था. पुराने मंदिरों में, सर्वाधिक ख्याति प्राप्त राजीव लोचन का मंदिर है जिसके अहाते में ही कई और हैं. राजेश्वर, दानेश्वर, तेलिन का मंदिर, उत्तर में सोमेश्वर, पूर्व में रामचंद्र तथा पश्चिम में कुलेश्वर, पंचेश्वर एवं भूतेश्वर. इन सभी मंदिरों में अग्रणी एवं प्राचीनतम है राजीव लोचन का मंदिर. इस मंदिर के स्थापत्य के बारे में यहाँ सूक्ष्म वर्णन मेरा उद्देश्य नहीं है अपितु संक्षेप (जो कुछ लम्बा भी हो सकता है) में कुछ कहना सार्थक जान पड़ता है. मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से यह मंदिर छत्तीसगढ़ के अन्य मंदिरों से भिन्न है एवं अपने आप में विलक्षण है. विद्वानों का मत है कि राजीव लोचन मंदिर का स्थापत्य दक्षिण भारतीय शैली से प्रभावित हुआ है. उदाहरण स्वरुप, मंदिर के अहाते में प्रवेश हेतु गोपुरम सदृश प्रवेश द्वार, प्रदक्षिणा पथ, खम्बों में मानवाकार मूर्तियाँ आदि.
मंदिर का अहाता पूर्व से पश्चिम १४७ फीट और उत्तर से दक्षिण १०२ फीट है. मंदिर बीच में है. उत्तरी पूर्वी कोने पर बद्री नारायण, दक्षिणी पूर्वी कोने पर वामन मंदिर, दक्षिणी कोने पर वराह मंदिर तथा उत्तरी पश्चिमी कोने पर नृसिंह मंदिर बना हुआ है जिन्हें मूलतः बने राजीव लोचन मंदिर के सहायक देवालय कहा जा सकता है परन्तु उनका निर्माण कालांतर में ही हुआ है. राजीव लोचन मंदिर के पश्चिम में अहाते से लगभग २० फीट दूर राजेश्वर मंदिर तथा दानेश्वर मंदिर हैं. दोनों ही शिव मंदिर हैं. परन्तु दानेश्वर मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है जहाँ नंदी मंडप बना हुआ है. राजिम में ऐसा अन्यत्र कहीं नहीं. ये दोनों मंदिर भी राजीव लोचन मंदिर के समकालीन नहीं हैं परन्तु स्थापत्य में कुछ समानताएं हैं. इन्ही मंदिरों के आगे राजिम तेलिन का मंदिर है या यों कहें की सती स्मारक है.
इस मंदिर के महामंड़प में बारह खम्बे हैं जिनमे बेहद कलात्मक शिल्प उकेरे गए है. गर्भ गृह का प्रवेश द्वार तो लाजवाब है. पत्थर के विशाल चौखट को बड़ी तल्लीनता से शिल्पियों ने अलंकृत
किया है. चौखट के ऊपर शेषासायी विष्णु अद्भुत है. गर्भ गृह में प्रतिष्ठा शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किये हुए महाविष्णु की है और यही राजीव लोचन कहलाते हैं.
प्रतिदिन उन्हें प्रातः बालरूप में, मध्याह्न युवारूप में और सायं वृद्धरूप में श्रृंगारित किया जाता है परन्तु सिले सिलाये कपडे पहनाने का रिवाज़ नहीं है. कपड़ों को मोड़ कर उढ़ा दिया जाता है यहाँ तक कि गाँठ बांधना भी वर्जित है. एक बात और हमने जो जानी वह ये कि यहाँ के परंपरागत पुजारी क्षत्रिय हैं न कि ब्राह्मण.
कुछ लोगों में भ्रम है कि राजीव लोचन मंदिर भगवान् श्री रामचन्द्रजी के लिए बना था. इसका एक कारण यह है कि महामंड़प के पीछे की दीवार में जगपाल देव (१४ वीं सदी) का एक शिलालेख जड़ा हुआ है जिसमे श्री रामचन्द्रजी के लिए एक नए मंदिर के निर्माण की बात कही गयी है. जगपाल देव कलचुरी शासक पृथ्वी देव द्वितीय का सामंत था. वास्तव में इस सामंत के द्वारा बनवाया गया रामचंद्र मंदिर पूर्व दिशा में अभी भी विद्यमान है. उसी शिलालेख के बगल में एक दूसरा शिलालेख भी है जिसमे राजीव लोचन मंदिर के निर्माण का उल्लेख है. इस शिलालेख में कोई तिथि तो नहीं दी गयी है परन्तु राजा का नाम विलासतुंग बताया गया है. यह नल वंशी था जिनका बस्तर पर अधिपत्य रहा. यही नल वंश सिरपुर के सोमवंशियों का उत्तराधिकारी बना था. शिलालेख की लिपि एवं स्थापत्य के आधार पर राजीव लोचन मंदिर का निर्माण काल सन ७०० ईसवी का मान लिया गया है. समय समय पर विभिन्न शासकों द्वारा मंदिर के मूल संरचना में कुछ नए निर्माण आदि कर परिवर्तित/संरक्षित किया जाता रहा है.
पैरी और महानदी के संगम पर नदी के बीच ९ वीं सदी का कुलेश्वर महादेव मंदिर (उत्पलेश्वर) है और यह मंदिर भी विलक्षण है. नीचे श्री राहुल सिंह जी से प्राप्त और उनके सुझाव पर चित्रों को दे रहा हूँ परन्तु इस मंदिर और अन्य शिव मंदिरों के बारे में अलग आलेख की आवश्यकता का अनुभव करता हूँ.
पिछले वर्षों में यहां का परम्परागत माघ पूर्णिमा मेला अब विशाल हो कर राजिम कुंभ कहलाने लगा है, यह आयोजन आगामी 18 फरवरी से आरंभ होगा.
उपयोगी लिंक्स:
http://www.chhattisgarhtourism.net/
दिसम्बर 17, 2010 को 8:14 पूर्वाह्न
शेषशायी राजीवलोचन अद्भुत लगे।
यह बताने भी आया हूँ कि मैंने इस ब्लॉग का ई मेल फीड लिया हुआ है। अगर यहाँ आना न हो सके तो हर गम्भीर पाठक को ऐसा करने की सलाह दूँगा। इस ब्लॉग की एक भी कड़ी छूटनी नहीं चाहिए।
आभार।
दिसम्बर 17, 2010 को 9:51 पूर्वाह्न
रोचक !
छत्तीसगढ़ वास्तव में अन्वेषण और पर्यटन की दृष्टि
से बहुत अद्भुत् और रोमाँचक है ।
प्रस्तुति के लिये आभार,
सादर्,
दिसम्बर 17, 2010 को 9:58 पूर्वाह्न
अच्छा लगा यह पढ़ना राजिम के बारे में। लगता है यहां उत्तर और दक्षिण का संगम हो रहा है। स्थान का भी, स्थापत्य का भी।
दिसम्बर 17, 2010 को 10:15 पूर्वाह्न
हमेशा की तरह आपकी पोस्ट ज्ञान समृद्ध कर गई, लेकिन सर आपने कहा कि लोगों को भ्रम है कि राजीव लोचन मंदिर श्रीराम के लिये बना है, यदि यह भ्रम है तो वास्तविकता क्या है, यह पक्ष स्पष्ट नहीं किया गया। अगर इस पर भी कुछ प्रकाश डालते तो बेहतर रहता।
रायपुर तो हमें जाना है कभी न कभी, राहुल सिंह जी से जबरन वादा ले लिया है कि हमारे मेजबान बनेंगे, राजिम भी जरूर जायेंगे:)
दिसम्बर 17, 2010 को 10:23 पूर्वाह्न
@ संजय:
पोस्ट में ही स्पष्ट किया है “गर्भ गृह में प्रतिष्ठा शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किये हुए महाविष्णु की है और यही राजीव लोचन कहलाते हैं.”
दिसम्बर 17, 2010 को 10:25 पूर्वाह्न
समृद्ध करने वाली पोस्ट, समृद्ध करने वाला ब्लॉग.
दिसम्बर 17, 2010 को 10:29 पूर्वाह्न
जब आप रेलवे की तरफ जा रहे थे, तो आनन्द बढने लगा था। कृपया किसी दिन इसके बारे में विस्तार से बताना।
जब मैं राजिम की यात्रा करूंगा, तो रायपुर से ट्रेन से ही करूंगा। चाहे कितनी भी कष्टदायक हो।
दिसम्बर 17, 2010 को 11:02 पूर्वाह्न
तस्वीरें देख कर और आपकी पोस्ट पढ कर मन आनन्द से भर गया। जब कभी कोई पूछेगा कि आपने भारत भ्रमण किया है तो कहूँगी कि हाँ किया है मल्ल्हार के सौजन्य से। जानती होऔँ कहीं आने जाने का अभी तक तो सोचा ही नही। धन्यवाद और शुभकामनायें।
दिसम्बर 17, 2010 को 11:57 पूर्वाह्न
छत्तीसगढ़ में अद्वितीय धरोहरे हैं…
दिसम्बर 17, 2010 को 1:29 अपराह्न
अच्छी जानकारी है. आभार!
दिसम्बर 17, 2010 को 1:39 अपराह्न
राजिम के विषय में विस्तृत जानकारी देता हुआ सुन्दर पोस्ट!
आपने लिखा है
“प्रतिमा का अलंकरण दिन में कई बार बदला जाता है”
इस सन्दर्भ में मैं जानकारी देना चाहूँगा कि राजीव लोचन के प्रतिदिन तीन बार श्रृंगार होते हैं अनेक बार नहीं। प्रतिदिन उन्हें प्रातः बालरूप में, मध्याह्न युवारूप में और सायं वृद्धरूप में श्रृंगारित किया जाता है।
दिसम्बर 17, 2010 को 2:23 अपराह्न
@ जी.के. अवधिया जी:
अलंकरण सम्बंधित आपके विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण टीप के लिए आभार. मूल आलेख को परिवर्तित कर दिया है.
दिसम्बर 17, 2010 को 5:28 अपराह्न
पहली बार शेषशायी नारायण की प्रतिमा देखी है इतने महत्वपूर्ण स्थल की जानकारी देने के लिए आपका आभार !
दिसम्बर 17, 2010 को 9:29 अपराह्न
राजिम के नामकरण लोक और शास्त्र का समन्वय है. लोक की मान्यता राजिम तेलिन और उसकी कहानी है तो शास्त्र अनुसार राजीव लोचन तात्पर्य कमल नयन (राम की शक्ति पूजा- निराला जी की कविता) से है. कुलेश्वर महादेव की तस्वीर उचित समझें तो जोड़ लें. मो सम को खुलेआम सार्वजनिक तौर पर इस मंच से आमंत्रित कर रहा हूं.
दिसम्बर 17, 2010 को 11:13 अपराह्न
बहुत ही सुंदर ओर अच्छी जानकारी, आप के लेख पढ कर तो दिल करता हे हर जगह घुमे, लेकिन ऎसा केसे हो, लेकिन कुछ खास जगह आप के ब्लांग से हम ने भी ढुढा ली हे, बहुत बहुत धन्यवाद
दिसम्बर 17, 2010 को 11:14 अपराह्न
नक्काशी देख कर तो विस्मय होता है।
दिसम्बर 18, 2010 को 12:36 पूर्वाह्न
आदरणीय सुब्रमनियन जी ,
सुन्दर आलेख ! वैसे…
मो सम कौन के लिए राहुल सिंह जी की मेजबानी वाला विचार कैसा लगा आपको ? मैं भी इस मामले में गंभीरता से सोच रहा हूं !
दिसम्बर 19, 2010 को 7:50 पूर्वाह्न
നമസ്കാരം അന്ന. प्राचीन स्थापत्य के प्रति आपका प्रेम अद्भुत है. आपका कैमरा विस्तार बहुत कुछ समेट कर हमारे लिए लाता है. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
दिसम्बर 19, 2010 को 9:26 अपराह्न
राजिम को अब तक केवल सन्त कवि/राजनेता पवन दीवान के कारण ही जानता था। आपने राजिम का वह परिचय दिया जो अब गुप्त था। चित्र तो सदैव की तरह प्रणवान हैं ही।
दिसम्बर 20, 2010 को 9:23 पूर्वाह्न
सुब्रमणियन जी, जानकारी के लिए अनेकानेक धन्यवाद्!
‘राजिम’ अथवा ‘राजीव’ के सम्बन्ध में मैं संक्षेप में कहना चाहूँगा की प्राचीन हिन्दू- मान्यतानुसार साकार ब्रह्माण्ड/ संसार की रचना निराकार नादबिन्दू (विष + अणु यानी विष्णु) द्वारा ब्रह्मनाद से की गयी. और संसार की उत्पति उनके विभिन्न अवतारों के माध्यम से दशाई गयी: प्रथम अवतार मीन के रूप में, और विष्णु समान सुदर्शन-चक्र धारी अष्टम अवतार कृष्ण, (भगवद्गीता के स्रोत, जिसके अनुसार कर्म तीन श्रेणी में बांटे गए हैं जिसमें से एक है राजसिक, विष्णु की नाभि से उत्पन्न ब्रह्मा से सम्बंधित जो तथाकथित कमल पर विराजमान हैं, यानी आकाश में विचरण करते ‘विष्णु के वाहन’ गरुड़ समान विद्यमान, यानी पृथ्वी पर ऊर्जा के मुख्य स्रोत, सूर्य ),,,
इस सन्दर्भ में आधुनिक खगोलशास्त्री के माध्यम से हमें और जानकारी मिलती है कि कैसे शनि (विष्णु के साकार रूप?), और जुपिटर (बृहस्पति, गुरु जिनकी देख-रेख में ‘क्षीरसागर मंथन’ किया गया) ग्रह आदि भी, ‘चक्रधारी’ हैं, यद्यपि शनि की तुलना में बृहस्पति के चक्र मैले हैं,,, और क्यूंकि प्राचीन हिन्दू पहुंचे हुए योगी, ‘सिद्ध पुरुष’, थे जो मानव शरीर को सौर्य-मंडल के ९ सदस्यों (सूर्य से ‘सूर्य-पुत्र शनि’ तक के सार से बना जाने, जिनमें से मानव शरीर में सूर्य का स्थान पेट में है जबकि पृथ्वी. ‘देवताओं के राजा’ का नयन ‘तीसर्री आँख’, ‘आज्ञां-चक्र’, में.,, इन से हम शायद अनुमान लगा सकते हैं कि कैसे प्राचीन ज्ञानी मानव को ब्रह्माण्ड का प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब माने…
दिसम्बर 20, 2010 को 1:00 अपराह्न
छत्तीसगढ़ के प्रयाग राजिम की पुरातात्विक विशेषताओं /संदर्भ से पूरित यह लेख बहुत सुन्दर और जानकारीपूर्ण बन पडा है आभार !
दिसम्बर 20, 2010 को 3:38 अपराह्न
काफी पुरानी यादें ताजा हुई…इस जगह हम जा चुके हैं मगर आपकी कलम और तस्वीरों से आनन्द आ गया. आभार.
दिसम्बर 20, 2010 को 6:48 अपराह्न
आपकी हर पोस्ट संग्रहणीय होती है…बहुत सारी जानकारी मिली और सुन्दर तस्वीरों ने तो मन मोह लिया.
बहुत ही उपयोगी पोस्ट
दिसम्बर 20, 2010 को 6:58 अपराह्न
सुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया जानकारी
दिसम्बर 20, 2010 को 7:29 अपराह्न
गिरिजेश जी की टिप्पणी से पूर्णतः सहमत .मैं भी फीड से ही जान लेता हूँ .और आने पर हमेशा नया आनंद पाता हूँ .
दिसम्बर 21, 2010 को 2:20 पूर्वाह्न
राजीव लोचन अर्थात कमल नयन वाले विष्णु जी के इस मंदिर का स्थापत्य वाकई अद्भुत है.
खासकर द्वार पर कि गयी कारीगरी बेहद आकर्षक और विस्मित कर देने वाली है.
कुछ नयी बातें भी मालूम हुई जो इस मंदिर जो औरों से खास बनाती हैं कि यहाँ प्रतिदिन भगवान को प्रातः बालरूप में, मध्याह्न युवारूप में और सायं वृद्धरूप में श्रृंगारित किया जाता है.दूसरे यहाँ के पुजारी क्षत्रिय हैं ब्रह्मिण नहीं.
मंदिरों की बहुलता छतीसगढ़ में है और इस राज्य में पुरातत्व और एतिहासिक दृष्टि से इतना कुछ जानने समझने को है यह जान कर भी आश्चर्य हुआ .
इस पोस्ट से ‘छत्तीसगढ़ का प्रयाग’ सम्बन्धी नयी जानकरियां प्राप्त हुईं.
कुलेश्वर मंदिर ऊँचे टीले पर निर्मित दीखता है उसके विषय में कभी विस्तार से लिखियेगा और वहाँ के नजदीकी चित्र भी कभी बताईयेगा.
आभार
आभार.
दिसम्बर 21, 2010 को 4:37 अपराह्न
भरत भूमि के विशाल प्रांगन में कितने तीर्थ स्थल छुपे हैं इसके लिए अभी जानकारी बहुत कम है. आप कि इस प्रस्तुति से एक नए प्रयाग के बारे में जानकारी मिली. आपके देशाटन से सम्बंधित आलेख बहुत ही महत्व पूर्ण और संग्रहनीय भी हैं.
दिसम्बर 22, 2010 को 1:29 अपराह्न
सुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया जानकारी!!!
दिसम्बर 22, 2010 को 9:00 अपराह्न
आपने बहुत ही सरल-सहज अंदाज़ में काफी ज्ञानवर्द्धक सूचनाएँ प्रस्तुत कर दी हैं, इस पोस्ट के माध्यम से…धन्यवाद!
आप यक़ीनन टाइम पास करने या मनोरंजन हेतु ब्लॉगिंग नहीं कर रहे हैं…एक सार्थक दखल का प्रशंसनीय प्रयास है आपका यह ब्लॉग…महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं आप…साधुवाद!
दिसम्बर 22, 2010 को 11:36 अपराह्न
Vakai jaankariyon se paripurn ek khojparak post. Nirmala ji se bhi sahmat hun ki aapki posts se Bharat Bhraman ka anubhav bhi prapt ho jata hai. Aabhar.
दिसम्बर 23, 2010 को 1:04 अपराह्न
आपके द्वारा उपलब्ध करायी जाने वाली रोचक जानकारियां रोमांचित कर दिया करती हैं…
आपके कष्टसाध्य सद्प्रयास के लिए हम आपके बहुत बहुत आभारी हैं… कितना कुछ जानने को मिल जाता है आपकी वजह से…
दिसम्बर 23, 2010 को 5:42 अपराह्न
आपके लिखे यात्रा विर्तांत वहां की सैर करवा देते हैं .बहुत सुन्दर जगह है यह वाकई कभी तो जाना होगा यहाँ ..शुक्रिया
दिसम्बर 23, 2010 को 5:57 अपराह्न
@ Zeal :(दिव्या जी),
आपके सन्देश के लिए (हमारे अंग्रेजी ब्लॉग पर) आभार. यहाँ कमेन्ट का बक्सा तो काम कर रहा है. लगता है, वर्डप्रेस के सर्वर की bandwidth कम पड़ रही है. पोस्ट करने में भी कई बार दिक्कत होती है.
दिसम्बर 23, 2010 को 7:32 अपराह्न
bahut hi gyaan vardhak jankari hai.
दिसम्बर 23, 2010 को 8:49 अपराह्न
राजिम तेलिन का प्रसंग सुना था रमेन्द्रनाथ मिश्र जी से.
क्षत्रिय पुजारी का प्रसंग नहीं जानता था.
१८९६ का रेल निर्माण भी पहली बार जाना…
ज्ञान वर्धन की स्वीकृति औपचारिकता लगती है.
सो बच रहा हूँ.
दिसम्बर 24, 2010 को 12:29 अपराह्न
Aapke blog par aakar hamesha kee tarah dnyan men vruddhi huee. Chhattisgarh ke prayg ke bare men to bilkul anabhignya thee, halanki Raipur to jana hua hai ek do bar. Aap itani rochak shaili men jankariyan upalabdh karate hain iska aabhar. chitr bahut sunder hain khas kar sheshshayee vishnu bhagwan ka. Ramjee ko vishesh roop se Rajeev lochan kaha jata hai shayad isee se logon ko bhram raha ho ki ye Ramji ka Mandir hai. Hain to Ramji bhee vishnu awatar hee.
मार्च 4, 2017 को 12:54 अपराह्न
प्रयाग राज राजिम के नाम से पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है राजिम कुंभ भगवान कुलेश्वर महादेव तीन नदियों के संगम के ठीक बीचो बीच स्थित हैं और ठीक सामने नदी के किनारे भगवान राजीव लोचन स्थित हैं