अपने ब्लॉग को क्रियाशील बनाये रखने के लिए कुछ न कुछ लिखते रहना ही पड़ता है. अब सवाल है लिखें तो लिखें क्या. हम भी कई बार इसी दुविधा से गुजर चुके हैं और तभी लिखा जब हमारे पास कुछ ठोस जानकारी परोसने के लिए थी. आज अपने इमेल में एक फॉरवर्ड देखा. अचानक लगा कि मामला बन गया, एक पोस्ट के लिए. अब काहे को देरी ये लीजिये परोस रहे हैं.
एक बहादुर सिंह, किसी उद्योगपति के घर चौकीदार था. एक दिन तडके वह उद्योगपति प्रातःकालीन फ्लाईट पकड़ने के लिए अपनी कार से निकल रहा था. उसे कोई महत्वपूर्ण व्यापारिक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने थे. इतने में बहादुर दौड़ते हुए आया और गेट पर ही अपने मालिक को रोक दिया.
सर जी, सर जी, क्या आप हवाई जहाज में जाने वाले हो?
हाँ क्या बात है?
सर जी आप अपना टिकट केंसल करा लो.
क्यों?
कल रात मैंने सपने में देखा कि आप का जहाज़ क्रेश होने वाला है. उद्योगपति सेठ ने आगाह किया “यह सही नहीं निकला तो तुम्हारी ऐसी तैसी कर दूंगा” करोड़ों का मामला है.
अपशकुन मान उद्योगपति ने अपनी यात्रा तो रद्द कर ही दी.
दूसरे दिन अख़बारों में खबर आई कि वास्तव में सेठ जिस जहाज़ से जाने वाला था वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया.
खुदा का शुक्र है, बहादुर की बात मान कर हमने अपनी यात्रा स्थगित कर दी, उद्योगपति ने सोचा और बहादुर को बुला भेजा. जब बहादुर पहुंचा तो उद्योगपति ने उस तारीख तक की तन्खाव देकर बहादुर की छुट्टी कर दी.
पुरस्कृत करने की जगह ऐसा अन्यायपूर्ण व्यवहार उद्योगपति ने क्यों किया, यह बेताल का प्रश्न है.