Archive for जून, 2011

अपने नियोक्ता पर ज्यादा जान न छिडकें

जून 30, 2011

अपने ब्लॉग को क्रियाशील बनाये रखने के लिए कुछ न कुछ लिखते रहना ही पड़ता है. अब सवाल है लिखें तो लिखें क्या. हम भी कई बार इसी दुविधा से गुजर चुके हैं और तभी लिखा जब हमारे पास कुछ ठोस जानकारी परोसने के लिए थी. आज अपने इमेल में एक फॉरवर्ड देखा. अचानक लगा कि मामला बन गया, एक पोस्ट के लिए. अब काहे को देरी ये लीजिये परोस रहे हैं.

एक बहादुर सिंह, किसी उद्योगपति के घर चौकीदार था. एक दिन तडके वह उद्योगपति प्रातःकालीन फ्लाईट पकड़ने के लिए अपनी कार से निकल रहा था. उसे कोई महत्वपूर्ण व्यापारिक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने थे. इतने में बहादुर  दौड़ते हुए आया और गेट पर ही अपने मालिक को रोक दिया.

सर जी, सर जी, क्या आप हवाई जहाज में जाने वाले हो?

हाँ क्या बात है?
सर जी आप अपना टिकट केंसल करा लो.
क्यों?
कल रात मैंने सपने में देखा कि आप का जहाज़ क्रेश होने वाला है. उद्योगपति सेठ ने आगाह किया “यह सही नहीं निकला तो तुम्हारी ऐसी तैसी कर दूंगा” करोड़ों का मामला है.

अपशकुन मान उद्योगपति ने अपनी यात्रा तो रद्द कर  ही दी.
दूसरे दिन अख़बारों में खबर आई कि वास्तव में सेठ जिस जहाज़ से जाने वाला था वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया.

खुदा का शुक्र है,  बहादुर की बात मान कर हमने अपनी यात्रा स्थगित कर दी, उद्योगपति ने सोचा और बहादुर को बुला भेजा. जब बहादुर पहुंचा तो उद्योगपति ने उस तारीख तक की तन्खाव देकर बहादुर की छुट्टी कर दी.

पुरस्कृत करने की जगह ऐसा अन्यायपूर्ण व्यवहार उद्योगपति ने क्यों किया, यह बेताल का प्रश्न है.

बिलिम्बी (Averrhoa bilimbi)

जून 22, 2011

केरल में हमारे घर के सामने एक घर है. वह पहले एक छोटा सा मकान था जहाँ एक लुहार दम्पति रह रहे  हैं. अब वह दुमंजिला मकान बन रहा है.

दाहिनी तरफ हमारा घर है और बायीं तरफ लता का

लता, हाँ वही नाम है उस महिला का परन्तु लतिका कहलाना उसे अच्छा लगता है.  पूरा काम अपनी देख रेख में करवा रही थी. पति तो दुबई में है. एक ६ वर्ष की प्यारी  बिटिया भी है.  लतिका ने अपनी सुरक्षा के लिए एक कुत्ता और एक बिल्ली पाल रखा था. मेरी माँ ने एक अलग सन्दर्भ में बताया था कि उसके पास रात को कोई फटक भी नहीं सकता. मुझे बताया गया था कि उनकी पालतू बिल्ली ने इस बार चार बच्चे जने और एक एक कर सब को खुद ही खा गयी. बड़ा कौतूहल हुआ. कहीं माँ भी अपने ही बच्चों को खा सकती है. बिल्ला खा जाता है यह तो सुन रखा था.

प्रसव के बाद मेरे भांजी द्वारा लिया गया चित्र

हमने सोचा यह बिल्ली तो मीडिया में नहीं आ पाएगी, क्यों न अपने ब्लॉग रुपी मीडिया में ही उसे धिक्कारा जाए. अब उसकी तस्वीर चाहिए थी. लतिका,  उसकी बेटी और बिल्ली तीनों का हमारे घर आना जाना बना रहता है क्योंकि हमारे ही घर उनकी निर्माण सामग्री का ढेर पिछले डेढ़ साल से बना हुआ है.  इस कारण उसके घर बे झिझक चले गए थे. वैसे बिल्ली का स्वभाव तो सौम्य लगा.

कैमरे में उसकी तस्वीर कैद कर जब निकल ही रहा था तो उनके आँगन में एक पेड़ दिखा जिसमे गुच्छे में परवल जैसे फल तने में ही लटके हुए थे. पहले  इस फलसे हमारी मुलाक़ात नहीं हुई थी. अब हमारे लिए यह फल उस बिल्ली से भी अधिक महत्वपूर्ण हो गयी.

पूछे जाने पर लतिका ने हमें बहुत शर्माते हुए बताया कि यह “इरुम्बनपुली” है और हम लोग इसे झींगा और मछली पकाने में प्रयोग करते हैं. उसे मालूम था कि हम लोगों के लिए मांस मछली वर्जित है और पारंपरिक रूप से ऐसे खाने वालों के घरों से  दूर ही रहते हैं.

घर आकर अपने माताजी से बातचीत की. उन्होंने भी बताया कि यह एक प्रकार की इमली है और इसका प्रयोग नीची जाति के लोग करते हैं. हमने तर्क दिया यह तो एक वनस्पति है और उसका प्रयोग कोई भी कर सकता है. ऊंची  या नीची जाति में क्यों बाँध रहे हो. उनका जवाब था हमारे घरों में प्रयुक्त नहीं होता क्योंकि उसका इस्तेमाल  मछली पकाने के लिए किया जाता है. हमने सोचा कैसी विडम्बना है. मछली पकाने के लिए नून, मिर्ची, तेल, हल्दी ये सब भी तो प्रयुक्त होते हैं. उनका फिर बहिष्कार क्यों नहीं करते.

हमने फिर अपनी जानकारी बढ़ाने की कोशिश की तो पता चला कि इसे केरल में भी कई नामों से जाना जाता है. इरुम्बन पुली, इरिम्बी, चेम्मीन पुली, कीरिचक्का आदि. परन्तु सार्वभौमिक रूप में यह बिलिम्बी (Averrhoa bilimbi) है. प्रधानतया यह दुनिया भर में  उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में होता है. इसके अतिरिक्त यह फ्रांस में भी पाया जाता है. इसका अचार, शरबत भी बनता है. चर्म रोगों में इसके गूदे का लेप लाभदायक बताया गया है.

http://en.wikipedia.org/wiki/Averrhoa_bilimbi