Archive for जुलाई, 2011

कचनार

जुलाई 27, 2011

फूलों की इस शृंखला में आज सबके जाने पहचाने कचनार की बारी है, इसलिए नहीं कि इसकी कली से अचार बनाया जा सकता है अथवा इसकी छाल औषधीय गुणों से युक्त है.बल्कि इसमे मेरा स्वार्थ है. मैने इनके कुछ चित्र जो लिए हैं. उन्हें दिखाना भी तो है.

                                              यह सर्वत्र दिखाई देती है

कचनार Mountain Ebony

Kachnar

भारत में ही इनकी १२ प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमे कुछ बेल का रूप भी धारण कर लेते है.  कचनार का वृक्ष मध्यम आकार का होता है, इसकी छाल भूरे रंग की और लम्बाई में फटी हुई होती है. फूलों की दृष्टि से कचनार तीन प्रकार का होता है- सफेद, पीला और लाल. तीनों प्रकार का वृक्ष  पूरे देश में सर्वत्र पैदा होता है. बाग-बगीचों में सुंदरता के लिए इसके वृक्ष लगाए जाते हैं. फरवरी-मार्च में पतझड़ के समय इस वृक्ष में फूल आते हैं और अप्रैल-मई में फल आते हैं. इस .की पत्तियों  दो भागों में बंटी होती हैं. मुड़े हुए पत्ते को खोल दिया जाए तो वह ऊँट के पंजे से मेल खाती हैं इसलिए इसे केमल्स फुट भी कहा जाता है.

आयुर्वेदिक औषधियों में ज्यादातर कचनार की छाल का ही उपयोग किया जाता है. इसका उपयोग शरीर के किसी भी भाग में ग्रंथि (गांठ) को गलाने के लिए किया जाता है. इसके अलावा रक्त विकार व त्वचा रोग जैसे- दाद, खाज-खुजली, एक्जीमा, फोड़े-फुंसी आदि के लिए भी कचनार की छाल का उपयोग किया जाता है.

इसके कई नाम मिलते हैं. संस्कृत- काश्चनार, हिन्दी- कचनार, मराठी- कोरल, कांचन, गुजराती- चम्पाकांटी, बंगला- कांचन, तेलुगू- देवकांचनमु, तमिल- मन्दारे, कन्नड़- केंयुमन्दार, मलयालम- मन्दारम्‌, पंजाबी- कुलाड़, कोल- जुरजु, बुज, बुरंग, सन्थाली- झिंजिर, इंग्लिश- माउंटेन एबोनी, लैटिन- बोहिनिआ वेरिएगेटा।

मेडागास्कर पाम

जुलाई 23, 2011

कोयम्बतूर के रेस कोर्स रोड पर एक प्यारा सा छोटा उद्यान है, थॉमस पार्क.सायंकालीन पैदल भ्रमण में इस उद्यान के पास से गुजरना हुआ. एक किनारे अपने चंपा का बड़ा पेड़ दिखा और गुच्छों में सफ़ेद फूल लगे थे. ध्यान से देखा तो यह वृक्ष भिन्न ही लगा. तने और डगालों में काँटों का अम्बार दिखा.  पूरे पेड़ का चित्र तो आसानी से ले लिया परन्तु फूलों के चित्र के लिए पसीना बहाना पड़ा क्योंकि वे डगालों के अंत में काफी ऊँचाई पर थे. जैसा कि अपने पूर्व के पोस्ट “कनक चंपा” के बारे में लिखा था, इस पेड़ के विषय में भी जानकारी स्थानीय तौर पर उपलब्ध नहीं हो पाई. पुनः एक बार “गूगल शरणम् गच्छामि”.

इस पेड़ को मेडागास्कर पाम (Madagascar Palm – Pachypodium Lamerei aka) की संज्ञा दी गयी है और कहा गया है कि यह सीधे किसी पाम की तरह ऊपर जाता है और ऊपरी छोर में फूल लगते हैं. साधारणतया यह वृक्ष शाखाओं में नहीं बंटती इसीलिए इसे पाम कहा गया है जब कि यह है नहीं. इसका तना  केक्टस की तरह रसदार होता है. इस वृक्ष का मूल भी मेडागास्कर ही है और एक दुर्लभ पजाति का है. कोयम्बतूर में पाया गया यह पेड़ तो और भी विशिष्ट है क्योंकि यह कई शाखाओं में विभाजित है. संभवतः यह काफी पुराना भी होगा क्योंकि वह पूरा रेस कोर्स का इलाका एक विदेशी कंपनी “टी. स्टेंस एंड को” के स्वामित्व में है. 

हम उस उद्यान का नाम भूल गए थे. दूरभाष पर मेरी बहू ने एक तो मेरा भ्रम दूर कर दिया और चिढाते हुए यह भी बताया कि आज की तारीख में वह पेड़  पूरी तरह फूलों से लदा है. यहाँ तक कि पत्ते नहीं दिख रहे हैं. यह भी बताया कि टीवी पर आनेवाले कार्टून नेटवर्क पर यह पेड़ एक प्रमुख किरदार है. काश वह तस्वीर भेज पाती, जिसके लिए अफ़सोस जताया. उसने तो एक हप्ते पहले महिलाओं की पिकनिक में अपना केमरा गुमा दिया है.