कोयम्बतूर (कोवई भी कहते हैं) में रेस कोर्स रोड पर १५ दिनों के लिए रहना हुआ था. पहले ही दिन रात को भोजन के पश्चात कालोनी में टहल रहे थे. कुछ दूर जाने पर ही वातावरण में एक मादक सुगंध का आभास हुआ. पेड़ भी दिख गया और फूल लदे थे. हाथ में उस समय केमेरा न होने के कारण दूसरे दिन प्रातः चित्र लेने की सोची. दूसरे दिन जब पेड़ के पास पहुंचे तो लगभग सभी फूल झड चुके थे. एक फूल तक निशाना साधा जा सकता था. फूल सफ़ेद थे और काफी बड़े भी. तस्वीर ले ली. इस फूल से हमारा कभी वास्ता नहीं पड़ा था सो ज्ञान पिपासा की पूर्ति हेतु पहले तो वहां के चौकीदार से पूछ बैठे. उसने तामिल में नाम बताया “वेंनंगु”.
फिर कुछ जानकार मित्रों से पूछा. दूरभाष पर मैंने पेड़ और फूल की रूप रेखा बताई. हमारे बताने और उनके सझने में निश्चित रूप से गड़बड़ी हुई थी. चित्र को मोबाइल से भेजने की व्यवस्था भी नहीं थी. मन मसोस कर रह गए थे.
चेन्नई पहुँचने पर मै गूगल बाबा का शरणागत हुआ. पता चला कि इसके पेड़ को “मेपल लीव्ड बयूर ट्री” कहते हैं. मुख्यतः यह भारत और म्यांमार (बर्मा) में पाया जाता है. हिंदी में ही तीन नाम मिले. कनक चंपा, मुचकुंद तथा पद्म पुष्प. बंगाली में रोसु कुंडा तथा सिक्किम में इसे हाथीपैला कहते हैं. मतलब यह कि यह भारत में ही कई जगह पाया जाता है. वैज्ञानिक नाम Pterospermum acerifolium इसकी लकड़ी लाल रंग की होती है और इसके तख्ते बनते हैं.
जुलाई 20, 2011 को 7:35 पूर्वाह्न
फूल देखा हुआ है. इसका नाम पता नहीं था. आपको ब्लॉग पर आने का लाभ ही यही है कि कुछ नया सीखने को मिल जाता है. आभार.
जुलाई 20, 2011 को 8:10 पूर्वाह्न
बहुत बढ़िया जानकारी! धन्यवाद!
कबीर ने कहा, “कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाए / इक खाय बौराए जग / इक पाए बौराय”!
गेहूं/ सोना तो पीला, यानि सुनहरा, होता है… किन्तु यह फ़ूल तो सफ़ेद है, यानि रूपहला! जैसा आपने कहा, इसकी खुशबू मादक अवश्य है!
जुलाई 20, 2011 को 8:32 पूर्वाह्न
जिज्ञासा का साथ पा कर जीवन का रोमांच सदैव युवा बनाए रखता है.
जुलाई 20, 2011 को 9:42 पूर्वाह्न
कनक चंपा, रूप घन सा,
दीखता आकाश प्यासा।
जुलाई 20, 2011 को 12:13 अपराह्न
ओह!! यह है कनक चंपा….आभार!!
जुलाई 20, 2011 को 1:32 अपराह्न
भारत में कभी मेरे बगीचे में भी यह था। कमरे में इसके फूल रख दिए जाएँ तो सूखने के कई दिन बाद तक घर में सुगंध आती रहती है।
कवि अज्ञेय की पंक्तियाँ इस संदर्भ में सर्वाधिक ख्यात हैं –
तुम्हारी देह मुझको/ कनक चंपे की कली है / दूर से ही/ स्वप्न में भी / गंध देती है/
जुलाई 20, 2011 को 2:34 अपराह्न
सुन्दर पुष्प है आज नाम भी पता चल गया.
जुलाई 20, 2011 को 2:38 अपराह्न
बहुत बढ़िया जानकारी, धन्यवाद!.
जुलाई 20, 2011 को 5:38 अपराह्न
सुब्रमणीयम जी बहुत दिन बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर अच्छा लगा। हमेशा की तरह रोचक जानकारी। आभार।
जुलाई 20, 2011 को 6:22 अपराह्न
कई वर्ष पहले एक दिन एक दक्षिण भारतीय महिला के जूड़े में नारंगी फूलों की वेणी देखी तो पूछे बिना न रहा गया कि उसका नाम क्या था?!… उन्होंने बताया कि उस का नाम ‘कनकाम्बरम’ है… आपके कारण ‘कनक’ से उस फूल का नाम भी अभी अभी याद आगया! और अभी अभी इन्टरनेट में भी देखा तो पाया कि यह फूल सुगंध रहित है और यह मूलतः दक्षिण अफ्रीका, भारत, लंका आदि कुछ देशों से सम्बंधित है… इसका बौटेनिकल नाम Crossandra infundibuliformis है…
है…
जुलाई 20, 2011 को 6:33 अपराह्न
यह कनकचंपा है। एक चंपा का फूल भी होता है ना? वह अलग है कि यही है?
जुलाई 20, 2011 को 8:20 अपराह्न
ॐ
नाम इतना सुन्दर कनक चंपा , पद्म पुष्प भी वाह जानकारी बढ़िया लगी
सस्नेह, सादर,- लावण्या
जुलाई 20, 2011 को 8:49 अपराह्न
@गगन शर्मा जी:
आप कोलकत्ता में रहे हैं. संभवतः आपको पीले या फिर सफ़ेद रंग की चंपा याद आ गयी होगी. अभी भी यदि रायपुर में हैं तो विवेकानंद आश्रम के अन्दर उसका पेड़ है.
जुलाई 20, 2011 को 9:06 अपराह्न
बहुत बढिया जानकारी मिली, स्वर्ण चंपा के बारे में सुना था, क्या कनक चंपा और स्वर्ण चंपा एक ही हैं? या अलग अलग हैं?
रामराम.
जुलाई 20, 2011 को 10:59 अपराह्न
@ ताऊ रामपुरिया जी, जैसा इन्टरनेट में उपलब्ध जानकारी से प्रतीत होता है गोल्डन चंपा रंगीन है (Michelia champaca) और यह भी दक्षिण भारत में होता है…
जुलाई 20, 2011 को 11:44 अपराह्न
मोहक पुष्प, और खुशबू तो निसंदेह मादक होगी.
जुलाई 21, 2011 को 6:12 पूर्वाह्न
फूल, पत्ते, झुशबू, चित्र, वर्णन सभी सुन्दर!
जुलाई 21, 2011 को 9:44 पूर्वाह्न
कनक चंपा के बारे में पता चला . लेख से भी और टिप्पणियाँ पढकर भी.
जुलाई 21, 2011 को 3:37 अपराह्न
सुन्दर जानकारी दी आपने…
आभार …
जुलाई 22, 2011 को 12:04 पूर्वाह्न
बहुत ही सुन्दर फ़ूल है.
कनक चम्पा नाम में ही खनक है.
अच्छी जानकारी भी मिली .
जुलाई 24, 2011 को 2:50 पूर्वाह्न
आपकी पोस्ट पढी तो समझ आया कि बरसों पहले जिस फूल की तीखी गन्ध कपाल में चढ बैठी थी वह कनक चम्पा था।
जुलाई 25, 2011 को 1:35 अपराह्न
सुंदर फ़ूल की बढ़िया जानकारी धन्यवाद
जुलाई 26, 2011 को 4:38 अपराह्न
काश की नेट से सुगंध भी प्रेषित हो पाती…