कुछ महीनों पहले हमारे भोपाल के घर में पनाह लेने आया था एक वाइपर और बड़ी मशक्कत के बाद उसे पकडवा कर जंगल में छुडवा दिया गया था. अभी अभी जब हम केरल के अपने घर में रात का खाना खा ही रहे थे कि खबर आई, घर के बाहर की गली में एक बड़ा सांप निकला है. हमने तुरंत ही कहला भेजा था कि सांप को खेतों की तरफ जाने के लिए प्रेरित करें. इस बीच घर के सामने (२५० फीट) रहने वाली लतिका ने लोगों को बुला लिया था. जल्दी जल्दी खाना खाकर जब हम वहां पहुंचे, तब तक सांप का काम तमाम हो चुका था. वह बेचारा अपनी प्राण रक्षा के लिए हमारे कम्पौंड के अन्दर चला गया था और जमा कर रखी गयी लकड़ियों के नीचे छुप गया. उन लोगों ने लकड़ियों को हटाकर उसे बाहर निकाला और लाठियां बरसाई. उसे तो ढेर होना ही था.
हमने अपनी अप्रसन्नता जाहिर की तो उन्होंने कहा, सर यह बहुत खतरनाक सांप है. मरे हुए सांप को उलट पुलट कर हमें दिखाया और हमने भी पाया यह तो उसी प्रजाति का है जो हमारे भोपाल के घर में भी आया था.
हमने उनसे प्रश्न किया, क्या हम लोग (मनुष्य) कम जहरीले हैं. इस इलाके में क्या यह अकेला ही था. मुझे मालूम है और वे भी इस बात को जानते थे कि हमारे घर के आस पास ही दर्जनों सांप हैं. पूरे गाँव की बात तो छोड़ ही दें. वहां पशु चिकित्सा में अध्ययनरत एक और युवा भी था जिसने पुष्टि करते हुए कहा कि वह खतरनाक था और हमें समझा रहा था. हमें तो बड़ा गुस्सा आ रहा था और हमने एक प्रकार से उसकी क्लास ले ली थी.
हमने सामने वाली लतिका को बहुत सुनाया था. उन्हें याद भी दिलाया कि केरल में सर्पों की पूजा की लम्बी परंपरा रही है जो आज भी बदस्तूर जारी है. यही लोग नित्य घर में सर्पों के लिए बने चबूतरे में दीप भी जलाते हैं. यह कैसा विरोधाभास, एक तरफ सर्प मूर्तियों की पूजा करते हैं और दूसरी तरफ सप्राण दिख जाए तो उसकी हत्या करने से भी नहीं चूकते. उस निरीह प्राणी को अपने रस्ते जाने दिया जाता या फिर जाते तक उस पर निगाह रखते कि घर में न घुसे. लठैतों को बुलाने की क्या जरूरत थी. लतिका ने सब चुप चाप सुना. शायद उसे आत्म ग्लानि हुई हो क्योंकि वह खुद भी उनके लिए दीप जलाती है.
अब क्या किया जा सकता था. वहीँ खेतों के पास ही अंत्येष्टि करा कर इस उम्मीद से कि लोग भविष्य ऐसा काम नहीं करेंगे, घर के अन्दर चले गए.