Archive for अक्टूबर, 2012

चिद्ड़े (Dragonfly) फुर्फुन्दी

अक्टूबर 31, 2012

बचपन में तितलियों का पीछा किया करते थे परन्तु पकड़ लिए जाने पर उनके परों से रंग छूट जाया करता और उँगलियों में समां जाता. मानों  प्रकृति ने ही उनके परों पर रंगोली रची हो. फिर ध्यान चिड्डों (Dragonfly/Damselfly) पर पड़ा. उनकी पूँछ के कारण वे आसानी से पकड़ में आ जातीं. उनके भी सुन्दर सुन्दर पर हुआ करते थे. अब बाल काल की बात थी. हम बच्चों ने कुछ खेल सीख लिए थे. सब एक एक चिद्ड़े को पकड़ लाते और फिर खेल शुरू होता. उनसे वेट लिफ्टिंग करवाई जाती. उनकी पूँछ पकड़ कर छोटे छोटे कंकडों पर बिठाया जाता और ऊपर की  तरफ उठाया जाता. चिद्ड़े उन कंकडों को उठा लेते. धीरे धीरे कंकडों के आकर को बड़ा करते जाते. जिस बच्चे का चिद्दा सबसे बड़े कंकड़ को उठा लेता उसकी जीत मानी जाती. लगभग एक आध घंटे तक यह खेल चलता. इसके बाद खेल का दूसरा दौर प्रारंभ होता. सभी बच्चे एक ही लम्बाई (लगभग ५ फीट) के धागे ले लेते और चिड्डों के पूँछ में गठान डाल  देते. धागे के दूसरे सिरे को हाथ में पकडे चिद्ड़े को उड़ने देते, पतंग की तरह. जिसका चिद्डा सबसे ऊंचा उठता उसकी जीत होती.  चिद्ड़े तो कुछ देर में ही थक कर जमीन पर बैठ जाते  तब  उन्हें धागे से अलग कर  आजाद कर दिया जाता. 

निश्चित ही  हम लोगों का खेल उस निरीह प्राणी पर घोर अत्याचार ही था परन्तु आनंद के उन क्षणों में चिद्ड़े की पीड़ा का एहसास कभी नहीं हुआ. आज फिर नज़र पड़ी एक लाल चिद्ड़े पर और बालकाल की स्मृतियों में क्षण भर के लिए खो गया. सोचा क्यों न इन्हें संग्रहीत करूं, उन्हें  अपने केमरे में.पकड़ कर. हैं न ये भी खूबसूरत ?

तितलियों की तरह चिड्डों का भी कायापलट तक एक जीवन चक्र होता है जो मात्र तीन चरणों में पूरा हो जाता है, अंडा, निम्फ फिर वयस्क चिद्डा. अंडे स्थिर जलीय भूमि में दी जाती है और अंडे से निकला हुआ पूँछ रहित निम्फ पानी में ही रहता है और अन्य छोटे जलीय जीवों को अपना आहार बनाता है. वह स्वयं भी मेंढकों का आहार भी बन जाया करता है. निम्फ का कायापलट चिद्ड़े के रूप में होता है जो उड़कर पानी के बाहर आ जाता है.वयस्क चिड्डों को पानी के ऊपर मंडराते हुए हमने देखा ही होगा. यह अंडे देने के लिए उपयुक्त जगह की तलाश में किया जाने वाला उपक्रम है. पूरे जीवन चक्र को दर्शाने वाला एक चित्र नीचे है. 

जैव विविधता – बरसात के बाद

अक्टूबर 22, 2012

इस बार के ओणम के लिए मैं गाँव में था. कभी बारिश तो कभी धूप. मौसम वैसे सुहाना ही था परन्तु कभी कभी लगातार होने वाली बारिश से उबासी भी होने लगती थी.मौसम की अनुकूलता के कारण भूमि में दबे पड़े कई प्रजातियों के पौधों के बीज आदि अंकुरित हो उठते हैं और एक प्रकार से जंगल सा दिखने लगता है. चारों तरफ पेड़ पौधे फूलों से लदे रहते हैं. यही कारण भी है कि हर घर के आँगन में  ओणम के दिनों में फूलों की पंखुड़ियों का प्रयोग  कर रंगोलियाँ सजती हैं. उसके लिए सूर्योदय के पूर्व ही फूलों को बीनने बच्चे निकल पड़ते हैं. हमारा घर गाँव के एक छोर पर है. घर से निकलते ही दायें तरफ से एक गलीनुमा सड़क जाती है जो गाँव का चक्कर लगाते हुए राजमार्ग से जुडती है.

खाली समय, अपने ही घर के बाड़े में उग आये वनस्पतियों से रूबरू हो लेने का अवसर होता है और ऐसे अवसर दिन में कई बार आते हैं. नाना प्रकार के फूलों के अतिरिक्त  रंग बिरंगे कीट पतंगों की भी कोई कमी नहीं रहती. उनमेंसे कुछ जाने पहचाने तो कुछ अनजाने भी होते हैं. कभी कभी सोचता हूँ काश वनस्पति शास्त्र एवं कीट विज्ञानं  का भी अध्ययन कर लिया होता.

Jewel Beetle – Curis Viridicyanea?

ऐसे ही एक दिन हरी भरी झाड़ियों में एक सुन्दर हरे रंग का ही भंवरा दिखा, प्रकृति ने उस निरीह प्राणी की आत्म रक्षा के लिए ही तो ऐसा रंग दिया होगा. माँ कह रही थी कि हरे टिड्डे (grass  hoppers) अब नहीं दीखते. लेकिन यहाँ तो भरपूर हैं. माँ शायद घर के  अन्दर की बात कर रही थी.  दो कामुक  टिड्डे गुत्थम गुत्थी हो रहे थे. हमारी भनक से वे अलग हो गए. रंग बिरंगे पेट वाले ऐसे टिड्डे देखे नहीं थे. उन्हें पकड़ कर बारीकी से जांच करने की इच्छा भी हुई परन्तु न जाने क्या सोच कर आगे बढ़ गए थे.

इतने सारे झाड झंकाड़ में नाना रंग  रूप लिए तितलियाँ भी हमारे जैसे ही मटरगस्ती कर रहीं थी सोचा था कहीं कोई दुर्लभ प्रकार की तितली दिख जाए परन्तु  केमरा को फोकास करने के पहले ही उड़ जातीं. हाँ कुछ लार्वा दिखे. क्या मालूम यही कोई ख़ास हो.

दो पग आगे बढ़ते ही एक पौधे पर लाल रंग के कुछ कीट दिखे. पहले सोचा ये भौरे ही होंगे परन्तु बारीकी से देखने पर चींटों जैसे ही थे. हाँ शारीरिक बनावट में थोड़ी बद्लावट थी. अब इन चींटों को इतना भड़कीला लाल रंग देकर प्रकृति ने अच्छा नहीं किया. ये तो पक्षियों द्वारा आसानी से पकड़ा जायेंगे. यह विचार भी आया फिर सोचा ये यहाँ कर क्या रहे होंगे. शायाद इंतज़ार, मधुशाला के खुलने का एक फूल के खिलने का. यही तो मैंने जाना कुछ देर में.

Passion Flower (Passiflora incarnata)

घर के बाहर निकल कर बगल में ताऊजी के फेंसिंग में वह बेल दिखी जिसमे कली, फूल तथा फल तीनों ही लगे थे. फूल छोटे होते हुए भी अति आकर्षक थे. पहले कली निकलती है फिर फूल खिलती है, फूल झडती है और फल को उत्पन्न करती  है,  हाँ यही तो क्रम है. मन  ही मन  बुदबुदा लिया. लेकिन इस फल को तो पहले भी देखा था.  बेर के बराबर हो गए थे. अब भी एक दो थे जो छोटे बैगन की तरह रंग रूप लिए हुए थे. एक तोड़ लिया, माताजी को दिखाने. आखिर वही तो बतायेंगी और बचपन से ही उन्होंने ही तो बताया भी है. घर पर उनके हाथ में रख दिया. माँ के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव स्पष्ट दिख रहे थे. तुरंत बताया गया कि इसे हम लोग नहीं खाते. लेकिन पकने पर गरीबों के बच्चे खाते हैं. मलयालम में नाम भी बता दिया “रेमठ फल” (अनुवादित नाम). नाक से बहने वाले तरल पदार्थ सा स्वाद. गाँव के उन गरीब बच्चों की तस्वीर खिंच सी गयी जिनकी नाक बहती रहती है और जीभ ऊपर फिराकर चाट लेते हैं.

हमारे घर के दाहिनी तरफ एक कटहल के पेड़ के नीचे बड़े बड़े लम्बे पत्तों वाले पौधे उग आये थे जिनकी ऊँचाई ५/६ फीट रही होगी. उनमें बहुत ही सुन्दर सफ़ेद फूल लगे थे. पत्ते देखने में हल्दी  या अदरक जैसे थे. माताजी से पूछने पर कुछ अजीब सा नाम बताया और यह भी कहा कि १५/२० दिन में आयुर्वेदिक अस्पताल से लोग आकर उसकी जड़ें उखाड़ ले जायेंगे क्योंकि उनमें औषधीय गुण हैं. ऐसे ही लाल रंग के फूल वाले भी होते हैं. एक और कोने में हमें लाल वाली भी मिल गयी. ढूँढने  पर सफ़ेद वाले का अंग्रेजी नाम Crepe  Ginger और लाल वाले का Pink Cone Ginger मिला और यह भी पता चला कि ये दोनों अदरक के दूर के रिश्तेदार हैं.