बचपन में तितलियों का पीछा किया करते थे परन्तु पकड़ लिए जाने पर उनके परों से रंग छूट जाया करता और उँगलियों में समां जाता. मानों प्रकृति ने ही उनके परों पर रंगोली रची हो. फिर ध्यान चिड्डों (Dragonfly/Damselfly) पर पड़ा. उनकी पूँछ के कारण वे आसानी से पकड़ में आ जातीं. उनके भी सुन्दर सुन्दर पर हुआ करते थे. अब बाल काल की बात थी. हम बच्चों ने कुछ खेल सीख लिए थे. सब एक एक चिद्ड़े को पकड़ लाते और फिर खेल शुरू होता. उनसे वेट लिफ्टिंग करवाई जाती. उनकी पूँछ पकड़ कर छोटे छोटे कंकडों पर बिठाया जाता और ऊपर की तरफ उठाया जाता. चिद्ड़े उन कंकडों को उठा लेते. धीरे धीरे कंकडों के आकर को बड़ा करते जाते. जिस बच्चे का चिद्दा सबसे बड़े कंकड़ को उठा लेता उसकी जीत मानी जाती. लगभग एक आध घंटे तक यह खेल चलता. इसके बाद खेल का दूसरा दौर प्रारंभ होता. सभी बच्चे एक ही लम्बाई (लगभग ५ फीट) के धागे ले लेते और चिड्डों के पूँछ में गठान डाल देते. धागे के दूसरे सिरे को हाथ में पकडे चिद्ड़े को उड़ने देते, पतंग की तरह. जिसका चिद्डा सबसे ऊंचा उठता उसकी जीत होती. चिद्ड़े तो कुछ देर में ही थक कर जमीन पर बैठ जाते तब उन्हें धागे से अलग कर आजाद कर दिया जाता.
निश्चित ही हम लोगों का खेल उस निरीह प्राणी पर घोर अत्याचार ही था परन्तु आनंद के उन क्षणों में चिद्ड़े की पीड़ा का एहसास कभी नहीं हुआ. आज फिर नज़र पड़ी एक लाल चिद्ड़े पर और बालकाल की स्मृतियों में क्षण भर के लिए खो गया. सोचा क्यों न इन्हें संग्रहीत करूं, उन्हें अपने केमरे में.पकड़ कर. हैं न ये भी खूबसूरत ?
तितलियों की तरह चिड्डों का भी कायापलट तक एक जीवन चक्र होता है जो मात्र तीन चरणों में पूरा हो जाता है, अंडा, निम्फ फिर वयस्क चिद्डा. अंडे स्थिर जलीय भूमि में दी जाती है और अंडे से निकला हुआ पूँछ रहित निम्फ पानी में ही रहता है और अन्य छोटे जलीय जीवों को अपना आहार बनाता है. वह स्वयं भी मेंढकों का आहार भी बन जाया करता है. निम्फ का कायापलट चिद्ड़े के रूप में होता है जो उड़कर पानी के बाहर आ जाता है.वयस्क चिड्डों को पानी के ऊपर मंडराते हुए हमने देखा ही होगा. यह अंडे देने के लिए उपयुक्त जगह की तलाश में किया जाने वाला उपक्रम है. पूरे जीवन चक्र को दर्शाने वाला एक चित्र नीचे है.