१४ सितम्बर की बात है. कोच्ची में भाई के साथ कुछ विवादास्पद जगहों में जाना हुआ था. उनपर फिर कभी. अंत में एक अपेक्षाकृत छोटे मंदिर समूह के सामने भाई ने गाडी रोक दी. सड़क के बाजू में ही एक बोर्ड था जिसमें लिखा था “अगस्त्य मुनि का मंदिर”. सबसे खूबसूरत बात जिसने हमें प्रसन्न किया था वह इस बात का उल्लेख किया जाना कि सभी धर्मों के भक्त यहाँ आ सकते हैं. प्रवेश करते ही एक बड़ा सा मंडप बना है और सामने ही अगस्त्य मुनि का मंदिर है. यही एक मंदिर पहले बनाया गया और बाद में मंडप के बाएं और दायें बारह और मंदिर बनाये गए. इनमें अत्री, मार्कंडेय, भरद्वाज, धनवन्तरी, भृगु, नारद, वशिष्ट औशध गणपति, अरुंधती, लोपमुद्रादेवी, सौभाग्य महालक्ष्मी आदि विराजे हुए हैं. ऐसा कदाचित हम पहली बार देख रहे थे. थोडा बहुत विस्मय तो होना ही था. हमने एक चक्कर लगाया और बाहर की तरफ आ गए. इस बीच हमारे भाई साहब मंदिर के पुजारी से चिपके हुए थे.
वाह्य परिक्रमा पथ पर एक गौर वर्णीय व्यक्तित्व से आँखें चार हुईं और झिझकते हुए उन्होंने अंग्रेजी में पूछा कि क्या मै पूर्वांचल से हूँ. हमने उनके भ्रम को दूर किया तब पता चला कि वह स्वयं गुवाहाटी (असम) से आया हुआ है. मीडिया से जुड़ा हुआ है. अपना नाम नितिन शर्मा बताया था. इतना जानने के बाद अंग्रेजी में वार्तालाप का कोई औचित्य नहीं था इसलिए हमने हिंदी में आगे की बातचीत जारी रखी. नितिन जी ने ही बताया कि इस मंदिर के पीछे ही एक चिकित्सालय है जो अगस्त्य आश्रम कहलाता है. रोगियों के ठहरने के लिए सर्व सुविधायुक्त अतिथि गृह भी बने है. यहाँ रीढ़, मांसपेशियों, नसों, सभी प्रकार के वात रोग, घुटनों, टूटी हड्डियों आदि का कारगर उपचार होता है. मुख्यतः इनकी चिकित्सा प्रणाली में “सिद्धा या सिद्ध” “मर्म” तथा “पंचकर्म” का समावेश रहता है. “सिद्धा” के बारे में कहा जाता है कि यह आयुर्वेद से भी अधिक उन्नत पद्धति है. इसमें जड़ी बूटियों के अतिरिक्त जानवरों तथा जीव जंतुओं का भी प्रयोग होता है. शरीर में कई मर्म बिंदु होते हैं जिनपर दबाव डालकर एवं विभिन्न औषधीय तेलों से मालिश कर रोगी को राहत पहुंचाई जाती है. कुछ कुछ एक्यूप्रेशर जैसा. इन्हें एलोपेथी से कोई परहेज नहीं है. वास्तव में इस चिकित्सालय का मुख्य चिकित्सक एम् बी बी एस है परन्तु “सिद्ध” में सिद्धहस्त है. नितिन जी ने यह भी बताया कि उसके शरीर का बायाँ हिस्सा अक्षम हो चला था. वह यहाँ पर १८ दिनों से है और अब चलने फिरने लगा है. इसी बीच एक अन्य सज्जन आ गए. नितिन ने उनसे परिचय कराया. वह व्यक्ति आन्ध्र से आया हुआ था. उसकी दुर्घटना में पुट्ठे और कमर पर चोट आई थी. वह भी चल फिर रहा था.
यह आश्रम बस्ती से काफ़ी दूर था परंतु उनकी एक क्लिनिक तिरुपुनितुरा में भी है जहाँ साप्ताह में दो तीन दिन आश्रम के प्रमुख चिकित्सक बैठते हैं. इस आश्रम का खुद का वेब साइट भी है जहाँ उनसे संपर्क आदि की पूर्ण जानकारी मिलती है. http://www.agasthyasram.com/
फ़रवरी 16, 2013 को 3:16 पूर्वाह्न
ऐसी उपयोगी जानकारी जिसके लिए कामना है कि भगवान करे, किसी को इसकी आवश्यकता न पडे।
फ़रवरी 16, 2013 को 10:45 पूर्वाह्न
अगस्त्य के लिए गैर पौराणिक, रोचक कथाएं भी होंगी वहां.
फ़रवरी 16, 2013 को 2:48 अपराह्न
बहुत रोचक और उपयोगी वृतांत, शुभकामनाएं.
रामराम.
फ़रवरी 16, 2013 को 8:26 अपराह्न
आप लोगों ने अगत्स्य को न जाने क्या खिला पिला दिला वहीं रोक रखा 0इधर आने ही नहीं दिया 🙂 सिद्ध चिकित्सा के बारे में अच्छी जानकारी दी आपने !
फ़रवरी 16, 2013 को 8:32 अपराह्न
अगस्त्य मुनि और उनकी कथायें तो पहले से ही सम्मोहित सी करती रही हैं, यह पोस्ट भी अच्छी लगी।
इस मंदिर समूह की कंडीशनल एंटरेंस वाली बात और भी अच्छी लगी।
बहुत दिन बाद आपने कुछ पोस्ट किया, आपकी कुशलता जानकर बहुत ही अच्छा लगा 🙂
फ़रवरी 16, 2013 को 8:54 अपराह्न
रोचक और उपयोगी जाकारी दी आपने.
फ़रवरी 16, 2013 को 11:30 अपराह्न
बहुत दिनों बाद आप कि पोस्ट देखी,अच्छा लगा.
बहुत ही रोचक और उपयोगी जानकारी मिली.ऐसा जानकारियों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचना चाहिए.
………..
दक्षिण भारत में हिंदू धर्म और संस्कृति से सम्बन्धित बहुत कुछ अब भी सुरक्षित रखा हुआ है ,जिसके लिए उन्हें नमन है.
फ़रवरी 17, 2013 को 8:34 पूर्वाह्न
केरल मशहूर रहा है अपने आयुर्वेदिक प्रयोगों से , केरल जाने की इच्छा है ! बढ़िया जानकारी के लिए आपका आभार !
फ़रवरी 17, 2013 को 11:58 पूर्वाह्न
इस पुनीत पोस्ट के लिए बधाई साथ ही लिंक के लिए आभार।
फ़रवरी 17, 2013 को 8:04 अपराह्न
bahut achhi jankari .abhar
फ़रवरी 18, 2013 को 5:21 पूर्वाह्न
चित्र और विवरण के लिए आभार जितनी रोचक उतनी ही उपयोगी जानकारी! “सिद्ध में सिद्धहस्त” प्रयोग काव्यात्मक लगा
फ़रवरी 19, 2013 को 1:27 पूर्वाह्न
[…] पिछले एक पोस्ट में मैने उल्लेख किया था कि भाई के साथ कुछ विवादास्पद स्थलों को देखने निकल पड़े थे. उसने हमें चिन्मया इंटरनॅशनल फाउंडेशन जो शहर से २० किलोमीटर दूर वेलियनाड, एरनाकुलम जिले में है के सामने खड़ा कर दिया. हमने पूछा यार यहाँ क्यों ले आए. यहाँ तो वेदांत की बात होती है जो हमारे समझ के परे है. अब तक मैने अपने में किसी प्रकार की अध्यात्मिक रुचियों की परवरिश नहीं की है या असमर्थ रहा. उसने मुझसे आग्रह किया, चलिए तो आप निराश नहीं होंगे. […]
फ़रवरी 19, 2013 को 8:40 पूर्वाह्न
बहुत सटिक ओर ज्ञान वर्धक जानकारी के प्रेम ओर आभार….
फ़रवरी 22, 2013 को 1:58 अपराह्न
मरीजों के स्वास्थ्य लाभ का सही स्थान है।