पिछले कई दिनों से चेन्नई के एस ये एफ गेम्स विल्लेज (South Asian Federation Games Village) में अपने भाई के घर रह रहा हूँ. आए दिन घर पर मुख्य हाल में महिलाओं का जमावड़ा लगा करता. “नारायणीयम” का पाठ हो रहा है. हमें तो अपने शयन कक्ष में सिमट कर रहना पड़ रहा था. हाँ साथ के लिए दृष्टिहीन माताजी थीं और कंप्यूटर. ताका झाँकी करने पर पाया कि महिलाओं का एक बड़ा समूह, (जातिगत भेदभाव से परे), पूरी तन्मयता से नेत्रुत्व कर रही एक महिला के कहे गए संस्कृत श्लोकों को दुहरा रहा है. आयोजन के बाद प्रसाद भी वितरित होता रहा.
भागवत में लगभग 18000 श्लोक हैं जबकि नारायणीयम में पूरे कथानक को 1036 श्लोकों में तथा 100 खंडों (दशकम) में समेटा गया है. इसके प्रत्येक श्लोक भक्तिभाव से ओतप्रोत हैं और प्रथम पुरुष में लिखे गए हैं. भगवान विष्णु के दशावतार का वर्णन मत्स्य पुराण से प्रारंभ होता है. प्रत्येक अवतार में भगवान की लीला का गुणगान है. कहते हैं नारायणीयम के पठन पाठन से मानसिक शान्ति के अतिरिक्त शरीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बना रहता है. सभी बीमारियाँ भी दूर् हो जाती हैं.
1559/60 में जन्मे मेलपतुर नारायण भट्टतिरि की श्रेष्टतम कृति है “नारायणीयम” जो उन्होंने 27 वर्ष की आयु में रची थी. संस्कृत व्याकरण पर “प्रक्रियसर्वस्व” नामक उनका एक दूसरा ग्रन्थ भी काफ़ी चर्चित रहा. उनके और भी बहुतसी कृतियाँ हैं. वे एक प्रख्यात कवि, भाषा शास्त्री, गणितज्ञ एवं एक ज्योतिर्विद् रहे हैं उनका एक गुरु था “अच्युत पिशारडि”. पिशारडि लकवे से ग्रसित हो गए और अत्यधिक पीड़ा भुगत रहे थे. भट्टतिरि अपने गुरु के प्रति समर्पित थे. उनसे अपने गुरुजी का दुःख देखा नहीं गया. उन्होंने कृष्ण भगवान से प्रार्थना की कि गुरुजी कि बीमारी उन्हें लग जाए. वैसा हुआ भी. गुरुजी स्वस्थ हो गए और भट्टतिरि लकवे से ग्रस्त.
गुरुवयूर (गुरु वात पुरा) त्रिशूर जिले में एक नगर है. यहाँ भगवान विष्णु की श्री कृष्ण के रुप में आराधना होती है. यहाँ के श्री कृष्ण जिन्हें गुरुवायुरप्पन के नाम से जाना जाता है, केरल के करोड़ों लोगों के अभीष्ट हैं. काफी समय तक तो नारायण भट्टतिरि नें अपने द्वारा मोल लिए व्याधि के कष्ट को झेला फिर निदान के लिए गुरुवायुर के श्री कृष्ण के शरण जाने की सोची. उनकी इच्छानुसार उनके सहयोगियों एवं सहायकों ने मिलकर उन्हें गुरुवायुर के मन्दिर में पहुँचा दिया.वे चल फिर सकने की स्थति में भी नहीं थे. वहाँ पहुँचने पर उस समय मलयालम के महान कवि “तुंचत एज़्हुत्तचन” से मुलाकात हुई जिन्होंने उन्हें मत्स्य पुराण से अपनी आराधना प्रारंभ करने की सलाह दी. नारायण भट्टतिरि मअंदिर के मंडप में बैठकर रोज़ 10 श्लोकों का एक दशक सुनाते और उनके सहयोगी उन्हें लिपिबद्ध करते. इस प्रकार पूरे दशावतार का वर्णन 100 दिनों में पूरा हुआ और अन्तिम दिन चमत्कारिक रुप से वे पूर्णतः स्वस्थ भी हो गए. ऊपर से उन्हें भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन भी प्राप्त हुआ.
समापन के पूर्व अब वापस घर की बात. घर में बहू से पूछा तो बताया गया कि प्रत्येक अवतार के लिए अनुष्ठान भी होता रहा. एक ऊँची पट्टिका पर संबंधित अवतार की मूर्तियाँ या फिर तसवीर रख दी जाती थी और जैसी परंपरा है, दिया धूप बत्ती आदि प्रज्वलित किया जाता है. भोग के लिए कुछ ना कुछ पकवान बनता है और वही प्रसाद के रुप में वितरित होता है. प्रत्येक अवतार में आने वाली प्रमुख घटनाओं जैसे राम जन्म, राम का राज्याभिषेक, सीता स्वयम्वर, कृष्ण जन्म, रास लीला, रुक्मिणी विवाह आदि के समय उत्साह द्विगुणित हो जाता है. शयन कक्ष में ही कैद रहना कष्टदायक सा लग भी रहा था लेकिन हम लोगों की सुविधाओं का पूरा पूरा खयाल रखा गया था. खाने पीने की सभी सामग्रियाँ, फ्लास्क में गर्म काफ़ी सहित अन्दर ही उपलब्ध करा दी गयीं थीं. लेकिन रुक्मिणी विवाह के समय तसवीर लेने के बहाने हम बाहर निकल आए थे और पूरे कार्यक्रम का अवलोकन कर पाये.
रुक्मणि विवाह के पूर्व सन्ध्या पर लिए गए चित्र
तैय्यरिया तो नियत दिन के दो/तीन दिनों पूर्व से ही प्रारंभ हो चली थीं. निमंत्रण पत्र बाँट दिए गए थे, रुक्मिणी के लिए एक मिनि साड़ी (मूर्ति के लिए) तथा भांति भांति के पकवान जैसे लड्डू, मैसोरपाक, इमरती, हलवा आदि के लिए शादियों में पारंपरिक रुप से पकवान बनाने वाले एक परिवार को आदेश भी दिया जां चुका था. विवाह के लिए मुहूरत भी तय था और उस दिन किसी वास्तविक विवाह जैसा ही माहौल रहा. मुहूरत के समय ही रुक्मणि को जय घोष के साथ मंगल सूत्र भी पहनाया गया. कार्यक्रम के समाप्ति पर सभी प्रतिभागियों के लिए मध्हान सुरुचि भोज की व्यवस्था भी की गयी थी. हर एक को शादी की मिठायी से भरी थैली देकर विदा किया गया. इस पूरे आयोजन में मुझे यह समझ में नहीं आया कि वर् पक्ष का प्रतिनिधि कौन था.
अब तक कुल 80 दशकों का पाठ हो चुका है. आशंका है कि समापन का दिन हमारे लिए कष्टदायक रहेगा क्योंकि संपूर्ण नारायणीयम का पुनः पाठ अन्तिम दिन के लिए रखा गया है जो दिन भर चलेगा. शायद हमें घर से पलायन करना पड़ सकता है.