Archive for मार्च, 2013

नारायणीयम

मार्च 24, 2013

पिछले कई दिनों से चेन्नई के एस ये एफ गेम्स विल्लेज (South Asian Federation Games Village) में अपने भाई  के घर रह रहा हूँ.  आए दिन घर पर मुख्य हाल में महिलाओं का जमावड़ा लगा करता. “नारायणीयम” का पाठ हो रहा है.  हमें तो अपने शयन कक्ष में सिमट कर रहना पड़ रहा था. हाँ साथ के लिए दृष्टिहीन माताजी थीं और कंप्यूटर.  ताका झाँकी करने पर पाया कि  महिलाओं का एक बड़ा समूह, (जातिगत भेदभाव से परे), पूरी तन्मयता से नेत्रुत्व कर रही एक महिला के कहे गए संस्कृत श्लोकों को दुहरा रहा है. आयोजन के बाद प्रसाद भी वितरित होता रहा.

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भागवत में लगभग 18000 श्लोक हैं जबकि नारायणीयम में पूरे कथानक को 1036  श्लोकों में तथा 100 खंडों (दशकम) में समेटा गया है.  इसके प्रत्येक श्लोक भक्तिभाव से ओतप्रोत हैं और प्रथम पुरुष में लिखे गए हैं. भगवान विष्णु के दशावतार का वर्णन मत्स्य पुराण से प्रारंभ होता है. प्रत्येक अवतार में भगवान की लीला का गुणगान है.  कहते हैं नारायणीयम के पठन पाठन से मानसिक शान्ति के अतिरिक्त शरीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बना रहता है. सभी बीमारियाँ भी दूर् हो जाती हैं.

1559/60 में जन्मे मेलपतुर नारायण भट्टतिरि की श्रेष्टतम कृति है “नारायणीयम” जो उन्होंने 27 वर्ष की आयु में रची थी.   संस्कृत व्याकरण पर “प्रक्रियसर्वस्व” नामक उनका एक दूसरा ग्रन्थ भी काफ़ी चर्चित रहा. उनके और भी बहुतसी कृतियाँ हैं.  वे एक प्रख्यात कवि, भाषा शास्त्री, गणितज्ञ एवं एक ज्योतिर्विद् रहे हैं उनका एक गुरु था “अच्युत पिशारडि”. पिशारडि लकवे से ग्रसित हो गए और अत्यधिक पीड़ा भुगत रहे थे. भट्टतिरि अपने गुरु के प्रति समर्पित थे. उनसे अपने गुरुजी का दुःख देखा नहीं गया. उन्होंने कृष्ण भगवान  से प्रार्थना की कि गुरुजी  कि बीमारी उन्हें लग जाए. वैसा हुआ भी. गुरुजी स्वस्थ हो गए और भट्टतिरि लकवे से ग्रस्त.

Guruvayurappanगुरुवयूर (गुरु वात पुरा) त्रिशूर जिले में एक नगर है. यहाँ भगवान विष्णु की श्री कृष्ण के रुप में आराधना होती है. यहाँ के श्री कृष्ण जिन्हें गुरुवायुरप्पन के नाम से जाना जाता है, केरल के करोड़ों लोगों के अभीष्ट हैं. काफी समय तक तो नारायण भट्टतिरि नें अपने द्वारा मोल लिए व्याधि के कष्ट को झेला फिर निदान के लिए गुरुवायुर के श्री कृष्ण के शरण जाने की सोची. उनकी इच्छानुसार उनके सहयोगियों एवं सहायकों ने मिलकर उन्हें गुरुवायुर के मन्दिर में पहुँचा दिया.वे चल फिर सकने की स्थति में भी नहीं थे.  वहाँ पहुँचने पर उस समय मलयालम के महान कवि  “तुंचत एज़्हुत्तचन” से मुलाकात हुई जिन्होंने उन्हें मत्स्य पुराण से अपनी आराधना प्रारंभ करने की सलाह दी. नारायण भट्टतिरि मअंदिर के मंडप में बैठकर रोज़ 10 श्लोकों का एक दशक सुनाते और उनके सहयोगी उन्हें लिपिबद्ध करते. इस प्रकार पूरे दशावतार का वर्णन 100 दिनों में पूरा हुआ और अन्तिम दिन चमत्कारिक रुप से वे पूर्णतः स्वस्थ भी हो गए. ऊपर से उन्हें भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन भी प्राप्त हुआ.

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समापन के पूर्व अब वापस घर की बात.  घर में बहू से पूछा तो बताया गया कि प्रत्येक अवतार के लिए अनुष्ठान भी होता रहा. एक ऊँची पट्टिका पर संबंधित अवतार की मूर्तियाँ या फिर तसवीर रख दी जाती थी और जैसी परंपरा है, दिया धूप बत्ती आदि प्रज्वलित किया जाता है. भोग के लिए कुछ ना कुछ पकवान बनता है और वही प्रसाद के रुप में वितरित होता है. प्रत्येक अवतार में आने वाली प्रमुख घटनाओं जैसे राम जन्म, राम का राज्याभिषेक, सीता स्वयम्वर, कृष्ण जन्म, रास लीला, रुक्मिणी विवाह आदि के समय उत्साह द्विगुणित हो जाता है. शयन कक्ष में ही कैद रहना कष्टदायक सा लग भी रहा था लेकिन हम लोगों की सुविधाओं का पूरा पूरा खयाल रखा गया था. खाने पीने की सभी सामग्रियाँ, फ्लास्क में गर्म काफ़ी सहित अन्दर ही उपलब्ध करा दी गयीं थीं.  लेकिन रुक्मिणी विवाह के समय तसवीर लेने के बहाने हम बाहर निकल आए थे और पूरे कार्यक्रम का अवलोकन कर पाये.

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IMG_3905रुक्मणि विवाह के पूर्व सन्ध्या पर लिए गए चित्र

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तैय्यरिया तो नियत दिन के दो/तीन दिनों पूर्व से ही प्रारंभ हो चली थीं. निमंत्रण पत्र बाँट दिए गए थे, रुक्मिणी के लिए एक मिनि साड़ी (मूर्ति के लिए) तथा भांति भांति के पकवान जैसे लड्डू, मैसोरपाक, इमरती, हलवा आदि के लिए शादियों में पारंपरिक रुप से पकवान बनाने वाले एक परिवार को आदेश भी दिया जां चुका था. विवाह के लिए मुहूरत भी तय था और उस दिन किसी वास्तविक विवाह जैसा ही माहौल रहा. मुहूरत के समय ही रुक्मणि को जय घोष के साथ मंगल सूत्र भी पहनाया गया. कार्यक्रम के समाप्ति पर सभी प्रतिभागियों के लिए मध्हान सुरुचि भोज की व्यवस्था भी की गयी थी. हर एक को शादी की मिठायी से भरी थैली देकर विदा किया गया.  इस पूरे आयोजन में मुझे यह समझ में नहीं आया कि वर् पक्ष का प्रतिनिधि कौन था.???????????????????????????????

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अब तक कुल 80 दशकों का पाठ हो चुका है. आशंका है कि समापन का दिन हमारे लिए कष्टदायक रहेगा क्योंकि संपूर्ण नारायणीयम का पुनः  पाठ अन्तिम दिन के लिए रखा गया है जो दिन भर चलेगा. शायद हमें घर से पलायन करना पड़ सकता है.

श्मशान शयनि

मार्च 13, 2013
???????????????????????????????तमिलनाडु के पोल्लाचि शहर से लगभग 16 किलोमीटर दूर् आनमलै में (कोयम्बटूर से 60 किलोमीटर) एक देवी का भव्य मन्दिर है. नाम है मासानी अम्मन (मरघट की माता). मूलतः नाम मासान शयनि मिलता है जिसका अर्थ है श्मशान मॆं सोने वाली.  साधारणतया हम मन्दिर के गर्भ गृहमें प्रतिष्ठित मूर्ति को खड़ी या बैठी हुई स्थिति में ही देखते हैं परन्तु यहाँ इस मन्दिर में 15 फीट लंबी और चार हाथों वाली देवी की मूर्ति लेटी अवस्था में पायी जाती है. दो हाथ ऊपर उठे हुए हैं तो दो नीचे की तरफ़.  हाथों में त्रिशुल, डमरु, सर्प तथा मानव खोपड़ी लिए हुए है.
KONICA MINOLTA DIGITAL CAMERAयहाँ की देवी अत्यधिक शक्तिशाली मानी जाती है और हजारों लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए यहाँ आते हैं. मंगलवार और गुरुवार के दिन यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है. मान्यता है कि यहाँ न्याय मिलता है. किसी के यहाँ चोरी हुई हो, व्यापार में हानि हुई हो, दुश्मनों के द्वारा परेशानी हो रही हो आदि सभी कष्टों से मुक्ति मिलने  के लिए मानो यह मन्दिर एक समाधान केन्द्र हो.  भक्त अपने साथ किलो दो किलो सूखी लाल मिर्च लेकर आते है. नहा धोकर भभूत लगा पूरी आस्था के साथ वहाँ पर रखे ओखली में पानी डाल कर पीसते है. पीसने के बाद पूर्व में तो मूर्ति पर ही लेप चढ़ाया जाता था परन्तु आजकल बाहर एक शिला बनी है (नीति कल्ल) उसपर ही लेप चढ़ा दिया जाता है.   कहते हैं कि जिस व्यक्ति के द्वारा कष्ट पहुँचा है उसे पीड़ा होती है और स्वयमेव ही वह् सुधर जाता है. जैसे अदालत में हम मामला दायर करते हैं वैसे ही यहाँ याचिका दायर की जा सकती है. अपनी समस्या और अनुरोध एक कागज पर लिख कर पुजारी को देना होता है जो आपकी अर्जी को देवी के त्रिशुल के पास रख देता है. पूरी आस्था से दी हुई याचिका पर अनुकूल परिणाम 3 सप्ताह में ही मिलने की बात कही जाती है.
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Neethikallu
Masani ammanमन्दिर के इतिहास के बारे में तो कोई ख़ास जानकारी नहीं मिलती परन्तु गर्भ गृह बिलकुल आधुनिक लगता है. मूर्ति को भी पेंट कर रखा है, संभव है कि पुराने मन्दिर का विस्तार कर आधुनिक स्वरूप दे दिया गया हो.  प्रवेश द्वार (गोपुरम) निर्विवाद रुप से  दक्षिण भारतीय शैली की है. मेरा तो अनुमान है कि यह मन्दिर कोई 250/300 वर्ष पुराना रहा होगा हालाँकि कहानियाँ तो उसे ईसा पूर्व पहुँचाने की क्षमता रखती है. अब जब कहानियों कि बात आयी तो सबसे अधिक प्रचलित मिथक कुछ इस प्रकार है.
सदियों पहले वहाँ नन्नन नाम का  एक स्थानीय शासक हुआ करता था. वहाँ के अलियर नदी के तट पर उसका एक विशाल आम का बगीचा था. उसके बगीचे से आम तोड़ने पर सख्त पाबंदी थी और निगाह रखने के लिए पहरेदार नियुक्त किए गए थे. आम चुराने वाले या चुराने की कोशिश करने वाले के लिए मृत्यु दंड निर्धारित था.
एक दिन की बात है. कुछ कन्याये नदी में नहाने के लिए आयीं. एक कन्या ने देखा कि एक आम बहते हुए आ रहा है. कन्या ने झट तैरकर आम को हथिया लिया और खाने लगी. ऊपर से पहरेदार ने यह देख् लिया और कन्या को पकड़कर स्थानीय शासक के पास ले गया जहाँ कन्या ने अपनी सफाई भी दी. कहा कि उसने चोरी नहीं की थी. आम तो बहते हुए नदी में आ रहा था. परन्तु उसकी एक नहीं सुनी गयी और मृत्यु दंड का फ़ैसला सुना दिया गया. लड़की का पिता कोई समृद्ध व्यक्ति था. उसने भी मिन्नत की और अपनी पुत्री के वजन के बराबर सोने का आम बनवा कर देने तथा साथ में 81 हाथियों को भेंट स्वरूप देने की पेशकश की. शासक बदा अड़ियल था. उसने एक नहीं सुनी और लड़की को सूली पर चढवा दिया.
इस घटना से लड़की के परिजन आग बबूला हुए और एक सेना संघठित कर स्थानीय शासक को युद्ध में ना केवल हराया बल्कि उसे मार गिराया. उधर गाँव वालों ने लड़की के मृत देह को श्मशान में दफना दिया. कुछ समय पश्चात उसी जगह एक विशालकाय मूर्ति गढ़ी गयी जिसे वहाँ लिटा दिया गया. अब क्योंकि मूर्ति बना दी गयी  तो पूजा भी होनी ही थी.आगे चलकर वहाँ एक मन्दिर बन गया जो अब विशाल हो चला है. अब तो मासानी अम्मन को एक जाग्रुत देवी के रुप में जाना जाने लगा है.
हमने भी वहाँ एक याचिका लगा रखीं है. शायद श्रद्धा में कुछ कमी रह गयी होगी अन्यथा अब तक तो उपकृत हो गए होते.