काँचीपुरम के सैकड़ों मंदिरों में से सबसे वृहद एकाम्बरेश्वर का शिव मन्दिर है जो शहर के उत्तर दिशा में स्थित है. बस्ती में स्थित 108 शिव मंदिरों में भी यह अग्रणी है. कई जगह इसे एकाम्बरनाथ(र) भी कहा गया है. यह मन्दिर 23 एकड़ में फैला हुआ है तथा इसके गोपुरम की ऊँचाई 194 फीट है. इस कारण यह गोपुरम एक अलग श्रेणी में रखा जाता है. दक्षिण भारत में पंच तत्वों यथा अग्नि रुप में, जल रुप में, आकाश का बोध कराती, वायु का एहसास दिलाती और पृथ्वी को इंगित करती शिव लिंगों की अवधारणा अलग अलग पाँच जगहों में मिलती हैं. एकाम्बरेश्वर में पृथ्वी तत्व मिट्टी से बने लिंग से परिलक्षित होता है. अतः यह मन्दिर यहाँ अपूर्व श्रद्धा का केन्द्र है. प्राचीन 63 शैव भक्तों (नायनार) ने भी इस मन्दिर की गौरव गाथा अपनी रचनाओं में की है.
मन्दिर की प्राचीनता के बारे में पूछ्ने पर आपको इसके कम से कम 3000 वर्ष या उससे भी पुराना होने का दंभ भरा जायेगा. वेदों से भी पुराना बता दें तब भी मुझे आश्चर्य नहीं होता. अपने इष्ट के प्रति अनुराग लोगों के दिलो दिमाग पर हावी रहता है. इस मन्दिर से जुड़ी कई कहानियाँ हैं. पार्वती जी द्वारा शिव को प्राप्त करने के लिए वहाँ एक आम के पेड़ के नीचे मिट्टी/रेत से ही शिव लिंग बनाकर घोर तपस्या किए जाने की बात कही जाती है. शिवजी जान बूझ कर पार्वती जी के तप में व्यवधान उत्पन्न करते हैं परन्तु पार्वती जी अडिग रहती है. प्रसन्न होकर शिव जी पार्वती जी से विवाह कर लेते हैं. पार्वती जी के द्वारा तप किए जाने की कहानी कई जगह प्रचलित है.
अपने अल्प समय के भ्रमण में यहाँ 7 वीं सदी के पल्लवों की विशिष्ठ स्थापत्य शैली देखने को नहीं मिली. उनके द्वारा बनवाये गए खम्बों पर सिंह की आकृति उकेरी रहती हैं और ऐसे शिल्पांकन को पल्लवों की पहचान के रुप में देखा जाता है. प्राचीन तमिल सहित्य में मन्दिर के गुण गान को मद्दे नजर यह धारणा बनायी जा सकती है कि सर्व प्रथम मन्दिर को पल्लवों ने ही बनवाया होगा. 10 वीं सदी में चोल राजाओं द्वारा मन्दिर का नवर्निर्माण कराया गया और 15 वीं सदी में विजयनगर के सम्राटों द्वारा राजगोपुरम सहित बड़े पैमाने पे विस्तार कार्य संपादित किये गये. तंजावूर के नायकों का भी काफी योगदान रहा है.
मन्दिर के अहाते में ही 5 अलग अलग दालान/आँगन हैं जिनमें से एक में गणेश जी का छोटा मन्दिर और एक तालाब भी है. दूसरों में कई छोटे छोटे मन्दिर बने हैं. मुख्य मन्दिर के सामने तो एक बड़ा सा मंडप है. मंडप के अन्दर भी नंदी जी विराजमान हैं और बाहर भी. विदेशियों के मन्दिर प्रवेश पर कोई रोक टोक नहीं है परन्तु गर्भ गृह से उन्हें एक निश्चित दूरी बनायी रखनी होती है. तदाशय की सूचना एक पटल पर लिखी भी गयी है. सबसे अच्छी बात यह रही कि फोटोग्राफी पर प्रतिबंध नहीं है परन्तु गर्भ गृह के सामने कैमरा निकालने पर भृकुटियां तन जाती हैं. . परिक्रमा पथ के रुप में बहुत ही चौड़ा गलियारा विजयनगर राजाओं द्वारा बनवा दिया गया था. इसके लिए लगभग 1000 दैत्याकार खम्बे बने हैं. दीवार के बगल से ही 1008 शिव लिंगों की कतार है. मन्दिर के पीछे एक जगह एक चबूतरा और मन्दिर बना है जहाँ एक आम का पेड़ है. इस पेड़ की शाखाओं में अलग अलग स्वाद के फल लगते हैं. इस पेड़ को भी बाबा आदम के समय का बताया जाता है. मन्दिर के अहाते में ही मंडप युक्त तालाब है जिसे शिव गंगा तीर्थम कहते हैं. एक दूसरा तालाब भी है परन्तु वह् मन्दिर के उस हिस्से में था जो पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया था. शायद कुछ काम चल रहा था.
नव ग्रहों के मंडप में सभी गृह अपने अपने वाहनों पर आरूढ़ हैं. ऐसा अन्यत्र अल्प ज्ञात है. अन्दर ही एक विष्णु का मन्दिर भी है जिसे वैष्णव आचार्यों ने महत्वपूर्ण माना है और यह मन्दिर वैष्णवों के 108 दिव्य स्थलों में एक है. बताया गया कि यहाँ माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली सप्तमी (रथ सप्तमी) के दिन गर्भ गृह में स्थित शिव लिंग पर सूर्य की किरणें सीधी पड़़ती है.
बाहरी दीवार के अन्दर की तरफ़ जिन पत्थरों का प्रयोग हुआ है उनमें बुद्ध की मूर्तियां दिखाई देती हैं. इससे ऐसा प्रतीत होता है मानो किन्हीं बौद्ध विहार/केन्द्र के खंडहरों से प्राप्त पत्थरों का यहाँ प्रयोग किया गया है. यह भी संभव है कि वे जैन तीर्थंकर हों. वैसे यह निर्माण काफी बाद का है. राज गोपुरम का लकड़ी का द्वार काफी ऊँचा है और मज़बूत भी. उसे रोके रखने के लिए एक पत्थर के गोले का प्रयोग हो रहा था. अब क्योंकि बाहर निकल ही रहे थे, एक बार पुनः पूरे मन्दिर को मन में बसा लेने की कोशिश की तब परकोटे की ऊँची दीवार पर नजर स्थिर हुई. ऐसा एहसास हुआ मानो मन्दिर का प्रयोग भूत काल में शत्रु द्वारा आक्रमण किये जाने पर नागरिकों को पनाह देने के लिए भी किया जाता रहा हो.
हमने जो समय मन्दिर में बिताया वह् शायद पर्याप्त नहीं था. इतने विशाल परिसर को भली भांति देखने के लिए कम से कं 3/4 घंटे तो चाहिए ही.