तिरुवन्नामलई

187  किलोमीटर चलकर चेन्नई से तिरुवन्नामलई पहुँच गए.  सुबह 9.30 बजे हम उस होटल के सामने थे जहाँ भाई साहब को एक बैठक में भाग लेना था. वहीँ हम सब के नाश्ते का भी इंतज़ाम था. एक कमरा भी उपलब्ध था जहाँ फ्रेश हुआ जा सकता था. हमारे साथ आये एक रिश्तेदार दम्पति के लिए वह सुविधाजनक रहा.    नाश्ते के बाद भाई को वहीँ छोड हम लोग यहाँ के अन्नामलैयार  (शिव) मंदिर  हेतु निकल पडे. यहाँ के शिव जी को अरुणाचलेश्वर भी कहते हैं.   यहाँ अन्नामलै के आगे “यार” एक आदर सूचक प्रयोग है.  इस मंदिर के प्रति  लोगों में  जबरदस्त विश्वास पाया जाता है और यहाँ के अन्नामलै पहाड़ और उसके चारों  तरफ का पूरा इलाका ही परम सिद्ध क्षेत्र के रूप में विख्यात है.  इस पवित्र  पहाड़ की  भी यहाँ शिव लिंग स्वरुप मान्यता है.  यह वही जगह है जहाँ कुत्तों को भी सिद्धि मिलने की कल्पना हमने कभी की थी.  जैसा मैंने अपने एक पोस्ट में बताया था, पञ्च तत्वों में से अलग अलग तत्व पर केन्द्रित शिव के पांच स्थल हैं जिन्हें पञ्च भूत स्थल के नाम से जाना जाता है.  अन्नामलै में  शिव, अग्नि (तपिश) स्वरुप हैं.

Annamalaiyar Temple

एक बार अपनी  आदत के अनुसार पर्वती जी ने खेल खेल में शिव जी की आँखों को कुछ क्षणों के लिए बंद कर दिया था.  परिणामस्वरूप  पूरा भ्रह्मांड अंधकारमय हो गया. पर्वती जी को तपस्या करनी पडी (न जाने ऐसे कितने बार किया होगा!) तब जाकर शिव जी अन्नामलै के पहाड़  पर एक अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए जिससे जगत में रोशनी लौट आई.  इसके पश्चात शिव और पार्वती जी एकीकृत होकर अर्ध नारीश्वर के रूप में प्रकट हुए.

एक ही कहानी का बारम्बार  कई स्थलों के लिए प्रयुक्त किया जाना कुछ अटपटा सा लगने लगा है इस लिए एक दूसरी कहानी का सहारा लेते हैं.  श्रेष्टता को लेकर एक बार ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बीच विवाद उठ खडा हुआ.  शिव जी अन्नामलै पहाड की चोटी पर एक अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए.  ब्रह्मा और विष्णु को उस स्तंभ की ऊंचाई और गहराई मापने का दाइत्व बना.  ब्रह्मा ऊपर की तरफ गए और   विष्णु वराह रूप में जमीन खोदते हुए नीचे की ओर  रवाना हुए.  विष्णु जी के भरसक प्रयास करने पर भी उस अग्नि स्तंभ की गहराई ज्ञात नहीं कर पाए और नतमस्तक हो गए परन्तु ब्रह्माजी झूट बोलकर शिव जी के कोपभाजक बने. लिंगोद्भव का यही दृष्टांत भी है.

IMG_4095

IMG_4089

IMG_4080

IMG_4091

IMG_4104

इस मंदिर के कुछ भागों में चोल राजाओं के 9  वीं  सदी के उत्कीर्ण लेख प्राप्त हुए हैं. उन्होंने  उस इलाके पर 400 वर्षों तक शासन किया था. परन्तु मंदिर का अस्तित्व संभवतः उससे भी पूर्व का है क्योंकि प्रसिद्द शैव भक्त सम्बन्दर एवं अप्पर ने 7 वीं सदी में यहाँ आराधना की थी और अपने काव्य संग्रह में गुणगान भी किया है. पल्लवों के अन्यत्र प्राप्त होने वाले शिलालेखों में भी तिरुवन्नामलई का उल्लेख मिलता है. मंदिर को भव्यता प्रदान करने में होयशाला एवं विजयनगर राजवंशों का भी बहुत बडा हाथ रहा है.

IMG_4110मंदिर का रास्ता बाज़ार से होकर गुजरता है. जैसा हर जगह होता है यहाँ भी मंदिर के सामने कतार से कई दूकाने हैं जहाँ पूजा सामग्री उपलब्ध होती है. पूरब की तरफ खुले (मुख्य) राजगोपुरम से होते हुए हम लोगों ने एक बड़े  अहाते में प्रवेश किया. अन्दर घुसते ही मंदिर की भव्यता का अनुमान होने लगा. अभी तो मंजिल दूर थी परंतु पश्चिम दिशा से आती तेज हवाओं के झोंकों से पैर लडखडाने लगे थे. मुश्किल से एक दूसरे  गोपुरम को भी पार किया तो जाना कि तीसरा भी है. उसके बाद ही मंदिर का मूल निर्माण प्रकट हुआ. बायीं तरफ से अन्दर जाने के पूर्व एक अति विशाल गणेश जी को नमन कर आगे बढ़े. भक्तों की भीड़ तो लगी थी परन्तु रेलमपेल वाली स्थिति नहीं थी. मंडप के आगे गर्भगृह था और उसी के अन्दर एक अर्धमंडप  भी. क्योंकि हम लोग कुछ विशिष्ठ श्रेणी के भ्रष्टाचारी थे इस लिए अर्धमंडप  में बैठकर शिव जी के सानिध्य में कुछ देर रह पाने का योग बना.    हम ऐसे विशिष्ट देव के समक्ष पहुँच कर आत्मविभोर हो रहे थे. गर्भगृह में विष्णु और सूर्य देव   की  उपस्थिति का उल्लेख देखा था परन्तु हमने तो अपनी  दृष्टि वहां के उस परमेश्वर पर ही केन्द्रित कर रखी थी.   अन्दर का तापमान अत्यधिक होते हुए भी एक सुखद अनुभूति हो रही थी.  प्रार्थना कर सब लोग कुछ मांगते हैं परन्तू हमारी तो शिव जी ने मति भ्रष्ट कर दी थी. थोडी देर बाद बिन कुछ मांगे बेरंग बाहर निकल आये. बगल में ही पर्वती जी का मंदिर है. जिन्हें यहाँ उन्नामलई कहा जाता है.  यहाँ भी पहले गणेश जी को नमन कर ही प्रवेश करना होता है.  एक ना समझ पाने वाली बात यह थी कि यहाँ गणपति और पर्वती दोनों के समक्ष नन्दी की ही प्रतिमा बनी है.

IMG_4116

दर्शनों के पश्चात हम लोग मंदिर के अहातों में चक्कर काट आये. केमरे का प्रयोग वर्जित था लेकिन नजर बचाकर कुछ चित्र तो ले ही लिए. लोगों में ऐसा विश्वास है कि इस नगर में सिद्धों का भी वास है  और इस जानकारी का असर यह पड़ा कि जब भी कोई भिक्षा मांगते सामने आ जाता उसमें हम किसी सिद्ध की छवि पाने लगे. यहीं  एक जगह पातालेश्वर भी हैं जहाँ रमण महर्षि तपस्या किया करते थे. उस जगह को भी देख बाहर  निकल ही रहे थे कि कुछ ईसाई नन्स को मंदिर परिसर में देख थोडा आश्चर्य हुआ. लगता है वे भी शिव के वशीभूत हो चले हैं. 

IMG_4072

IMG_4070

IMG_4067

IMG_4069

अब बच गया अन्नामलै का पवित्र पहाड़ जिसका चक्कर (यह गिरिवलम कहलाता है)  हर पौर्णमी (पुन्नी) के दिन भक्त लोग समूह बनाकर नंगे पाँव काटते  हैं. एक चक्कर मात्र 14 किलोमीटर का पड़ता है.  हम लोगोंने वाहन  से ही एक चक्कर लगाने का मन बना लिया. अब यह रास्ता डामरीकृत है और अच्छी रोशनी की भी व्यवस्था है.रास्ते में श्मशान और यज्ञं स्थल आदि भी दिखे.  पहाड़ के चारों  तरफ अनेकों  मंदिर  बने हैं और  यात्रियों की सुविधा के लिए बावड़ियाँ भी परन्तू वे जीर्ण शीर्ण हैं. 

तमिलों के कार्तिक माह में (नवम्बर – दिसंबर) इस मंदिर में 10 दिनों का एक उत्सव मनाया जाता है और अंतिम दिन कार्तिक दीपं के नाम से अन्नामलै पहाड की चोटी पर 3 टन  घी का प्रयोग करते हुए विशाल दीप प्रज्वलित किया जाता है. उस समय वहां जो भक्तों की भीड़ उमड़ती है  बहुत ही रोमांचित करती है. क्योंकि तिरुवन्नामलई को एक सिद्ध क्षेत्र माना जाता है इसलिए यहाँ बहुत सारे बाबाओं के आश्रम भी हैं. इनमें उल्लेखनीय रमण महर्षि और योगी रामसूरत कुमार जी का है.

13 Responses to “तिरुवन्नामलई”

  1. राहुल सिंह Says:

    आनंददायक.
    लिंगोद्भव कथा में केतकी के फूल की झूठी गवाही भी है.

  2. ताऊ रामपुरिया Says:

    बहुत ही जानकारीपरक आलेख, सुंदर चित्र.

    रामराम.

  3. sanjay @ mo sam kaun.....? Says:

    हम भी मति भ्रष्ट वाले ही हैं, जब कभी ऐसी किसी जगह जाना होता है तो अभिभूत होकर ही लौट आते हैं। बिना माँगे ही जिसने इतना कुछ दे रखा है उससे और माँगे भी क्या?
    आपके माध्यम से घर में बैठे हुये इन धार्मिक- सांस्कृतिक केन्द्रों से परिचित हो पा रहे हैं, आभार स्वीकार करें।

  4. Gyandutt Pandey Says:

    रमण महर्षि के विषय में पढ़ते हुये अन्नमलाई/अरुणांचल का बारम्बार जिक्र है। आपकी पोस्ट के माध्यम से सचित्र दर्शन हुये।
    धन्यवाद!

  5. Kajal Kumar Says:

    धन्‍यवाद एक और सुंदर यात्रा करवाने के लि‍ए

  6. ramakant singh Says:

    कथा का रोचक वर्णन आपने बाबूजी की कथाओं का स्मरण करवा दिया

  7. HARSHVARDHAN Says:

    सुन्दर तस्वीरों के साथ एक सुन्दर प्रस्तुति।। आपका सहर्ष धन्यवाद।

    नये लेख : ब्लॉग से कमाई का एक बढ़िया साधन : AdsOpedia

    ग्राहम बेल की आवाज़ और कुदरत के कानून से इंसाफ।

  8. प्रवीण पाण्डेय Says:

    इतने पास होकर भी इतने दूर हैं, इन सिद्ध स्थानों में जा सकते हैं।

  9. arvind mishra Says:

    “परन्तु ब्रह्माजी झूट बोलकर शिव जी के कोपभाजक बने.”
    यही कारण है कि इक्का दुक्का छोड़कर ब्रह्मा का भारत में न कोई मंदिर है न ही आम जन में पूज्य ही हैं!

  10. Alpana Says:

    शिव बाबा की आप पर असीम कृपा ऐसी ही बनी रहे ,उनके सानिध्य का अवसर आप को मिला धन्य भाग हैं आप के.
    आप के यात्रा वृतांत में रोचकता है और शिव पुराण कीई कथा -कहानियां कितनी सच कितनी मिथ्या यह तो ईश्वर जाने लेकिन अच्छी लगती हैं पढ़ने -सुनने में!
    .इस स्थान पर नंवबर-दिसंबर माह में खासी रौनक रहती होगी..चोरी छुपे खींचे गए चित्रों हेतु आभार इनके ज़रिए हम भी तिरुवन्नामलाई घूम आए.

  11. ब्लॉग - चिठ्ठा Says:

    आपके ब्लॉग को “ब्लॉग – चिठ्ठा” में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।

  12. Pratik Pandey Says:

    आपका ब्लॉग एक बार काफ़ी पहले देखा था। तब बहुत पसंद आया और इसीलिए बुकमार्क भी किया था। फिर कंप्यूटर ख़राब होने की वजह से यूआरएल खो गया था। अब पुनः मिला है और सामग्री अभी भी उतनी ही पठनीय है। इसके लिए अनेकानेक साधुवाद।

    तिरुवन्नामलई से जुड़ी कथा रोचक है और आपका विवरण शानदार। कभी मौक़ा मिला तो ज़रूर जाऊंगा।

  13. सतीश सक्सेना Says:

    आनंद आ गया , आपके फोटो लेख का मज़ा बढाने में कामयाब हैं !

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s


%d bloggers like this: