बचपन में अपने गाँव से वापस आने पर कटहल के बारे में जब भी बात निकलती तो हम अपने दोस्तों से कहते “हमारे गाँव के घर में जो कटहल का पेड़ है उसमें “ये” बड़े बड़े पत्ते होते हैं, बिलकुल पपीते के पत्तों की तरह, लेकिन फल छोटे छोटे”. मुझे याद है, पूछने पर पिताजी ने बताया था कि यह कटहल नहीं है. हालाकि मलयालम में इसे कडचक्का ही कहते है और चक्का का अर्थ कटहल होता है. उन्होंने समझाते हुए कहा था कि इन्हें पुर्तगाली लेकर आये थे, शायद मलक्का से और भारत में पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में जहाँ उनका अधिपत्य था लगवा दिया. इन्हें ब्रेड फ्रुट कहते हैं और उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों के मूल निवासियों का प्रमुख भोजन रहा है. वे उन्हें उबाल कर या भून कर खाया करते हैं.
घर के सामने ही और घर से सटा बरगद की तरह एक बड़ा ब्रेड फ्रुट पेड हुआ करता था और खूब फल लगा करते थे. वैसे हम लोगों के लिए यह फल निषिद्ध रहा. फिरंगी था ना. हमारे दादाजी बरामदे में आराम कुर्सी पे बैठ पान चबाते रहते थे और उनकी निगाह दूर बने गेट पर होती.
स्थानीय ईसाई समाज के लिए यह फल परम प्रिय थी. कोई न कोई तो रोज ही आता और दादाजी उसी को पेड़ पर चढ कर तोड लेने कहते. 1950 के दशक में प्रति नग चार आने मिलते. लगभग प्रति दिन दस रुपये की कमायी हो जाती. उस पेड से घर को नुक्सान भी पहुँच रहा था. उसकी जड़ें घर के अन्दर घुस आतीं और दीवार के कोनों में पौधे उग आते. दूसरी समस्या रोशनी की भी थी. घर के सामने अँधेरा छाया रहता और खोकला भी हो चुका था. परन्तु हम लोगों के लिए वह कल्प वृक्ष जैसा था. 1960 के लगभग वहां अकाल की स्थिति बन गई. घर में लगे बांस के वृक्ष सूख गए परन्तु गेहूं जैसे बीज भी लगे. उस अकाल में हम लोगों ने बांस के बीज का प्रयोग गेहूं जैसा किया और ब्रेड फ्रूट की सब्जी बनने लगी. ब्रेड फ्रूट को आलू के जैसे प्रयोग करते. साम्बार के लिए बड़ी उपयुक्त पाई गई थी. आलू की चिप्स की तरह हमारे यहाँ उससे भी चिप्स बनते. दादाजी के गुजर जाने पर ही पिताजी ने अपने विवेक का प्रयोग करते हुए उसे कटवा दिया. परन्तु उसकी जड से पनपे एक पौधे को दूर लगा दिया जो अब बड़ा हो चुका है और फल भी लग रहे हैं.
अबकी बार जब घर जाना हुआ था तो हम अपने कल्प वृख से मिले. अक्सर ही ऐसा होता कि जिस मौसम में हम गाँव जाते उस समय कभी कभार ही फल देख पाते. इस बार एक फल मिला और पूरे पेड़ पर फल लगने की पूर्व की स्थिति ही बनी थी.
कटहल की शैशव अवस्था
कटहल के कोमल पत्ते
ब्रेड फ्रुट की अपेक्षाकृत कोमल सतह
कटहल की कठोर सतह (छिलका)
घर में कटहलों के भी कुछ पेड हैं और जैसा सब जानते हैं कि कटहल अधिकतर तने पर ही लगते हैं जबकि ब्रेड फ्रूट शाखाओं पे लगते हैं नीचे नीचे के कटहल तोडे जा चुके थे और उनका जाम बनवा कर सब भाई बहन ले गए. अब जो बचे हैं इतने ऊपर हैं कि उन्हें तोडे कौन. वे पक पक कर धडाम से धराशाई हो रहे हैं और कोई नज़दीक भी नहीं जाता.
इस पोस्ट के माध्यम से दोनों प्रकार के कटहलों पर एक तुलनात्मक संक्षिप्त समझ ही बन सकेगी. ब्रेड फ्रूट के पेड़ के बारे में अधिक और विस्तृत जानकारी यहाँ उपलब्ध है.
चित्र ३ और ४ विकिपीडिया से
अक्टूबर 6, 2013 को 8:53 पूर्वाह्न
वृक्ष जीवन है आपने याद दिल दिया
आपको समर्पित
सौ पुत्र से बेहतर एक कुआँ , सौ कुआँ से बेहतर एक तालाब
सौ तालाब से बेहतर एक वृक्ष , क्योकि वृक्ष परोपकार के लिए
अक्टूबर 6, 2013 को 9:53 पूर्वाह्न
”ब्रेड फ्रूट” नाम का आशय होगा !
अक्टूबर 6, 2013 को 10:08 पूर्वाह्न
@श्री राहुल सिंह : काटे जाने पर ब्रेड की खुशबु आती है
अक्टूबर 6, 2013 को 10:10 पूर्वाह्न
फेसबुक के माध्यम से
Rajkumar Singh सुन्दर चित्र और जानकारी .आज जाना की ब्रेड फ्रूट भारत में भी है और हो सकता है .एक मजेदार वाक्य है ८६ का न्यू यॉर्क में .तब पता नहीं था और मैं और मेरे मित्र डा. श्रीवास्तव ब्रेडफ्रूट भूल से ले आये कटहल समझ और पूरबिया ढंग से मसालेदार सब्जी बना डाली .जब खाया तो …………………… 🙂
अक्टूबर 6, 2013 को 12:01 अपराह्न
मेरे लिए एकदम नई जानकारी। आभार।
अक्टूबर 6, 2013 को 4:46 अपराह्न
तो यह बाओबाब नहीं कुछ और है ? वानस्पतिक नाम बताईयेगा ?
अक्टूबर 6, 2013 को 4:56 अपराह्न
चित्र में देखने पर तो बहुत समानता लगती है ब्रेड-फ्रूट और कटहल में!
नाम याद रहेगा – कडचक्का!
(आपके पास तो जानकारी का खजाना है सुब्रमनियन जी!)
अक्टूबर 6, 2013 को 5:07 अपराह्न
बिल्कुल नई जानकारी मिली, आभार.
रामराम.
अक्टूबर 6, 2013 को 5:14 अपराह्न
@ डा अरविन्द मिश्रा: : यह बाओबाब कतई नहीं है. मैंने अपने आपको अपने संस्मरण तक सीमत रखा और आगे की जानकारी के लिए अंत में लिंक दे रखा है. अलबत्ता लिंक नीला नहीं हो पाया परन्तु काम करता है.. वानस्पतिक नाम Artocarpus altilis है
अक्टूबर 6, 2013 को 7:30 अपराह्न
प्रजाति तो कटहल की ही दिखती है, नर मादा वाला लोचा तो नहीं है सरजी?
अक्टूबर 7, 2013 को 6:56 अपराह्न
दोनों “कजिन” लगते हैं। सुंदर ज्ञानवर्धक लेख।
अक्टूबर 8, 2013 को 1:22 पूर्वाह्न
रोचक लेख।
मुझे बचपन से ही ब्रेडफ्रुट के बारे में बहुत जिज्ञासा रही है। सदा इसे अपने बगीचे में उगाना चाहा है। अभी भी यदि बीज मिल जाएँ तो बोनसाई बनाने का यत्न तो अवश्य करूँगी।
घुघूती बासूती
अक्टूबर 9, 2013 को 8:30 पूर्वाह्न
On Face Book
Subhash Bhattacharya :Where is that jam you have shared with your brothers this time? I would also like to taste it.
अक्टूबर 9, 2013 को 1:43 अपराह्न
रोचक। कटहल के इस परिजन के बारे में पहली बार जाना।
अक्टूबर 10, 2013 को 8:31 पूर्वाह्न
रोचक जानकारी..
अक्टूबर 13, 2013 को 12:29 अपराह्न
कटहल समझ कर एक दिन बाज़ार से इसे ले आई थी लेकिन काटा तो समझ नहीं आया बनाऊं क्या और कैसे?फेंक दिया ..तब तक मालूम नहीं था कि यह ब्रेड फ्रूट भी कुछ होता है .
बहुत अच्छी और नयी जानकारी मिली.आभार.
अक्टूबर 14, 2013 को 12:13 अपराह्न
पहली बार देखकर तो मैं भी कटहल ही समझ चुका था। आज पता चला कि ब्रेड फ्रूट कहा जाता है। दिलचस्प जानकारी।
अक्टूबर 19, 2013 को 4:15 अपराह्न
ब्रेड फ्रूट की पुनरुत्पत्ति उसकी जड़ से होती है. पुर्तगालियों ने उसकी पौधे ही साथ लाये होंगे. सुना है की ब्रेड फ्रूट के बड़े अछे पकवान कोंकण देश में बनता है. श्रीलंका में भी ब्रेड फ्रूट के तरह तरह के मसालेदार सब्जियां बनती है.
नवम्बर 8, 2013 को 10:06 अपराह्न
Bread fruit का नाम तो सुना था आज जान भी लिया की कटहल का ही चचेरा फुफेरा भाई है। आपके लेख चित्रों से और भी मुखर होजाते हैं ।
मई 21, 2014 को 2:48 अपराह्न
GOOD
जुलाई 21, 2014 को 7:09 पूर्वाह्न
आपके नितांत पारिवारिक कल्पवृक्ष का परिचय जानकार अच्छा लगा।