अन्टार्क्टिका (दक्षिणी ध्रुव) में बहु आयामी वैज्ञानिक अन्वेषण हेतु कुछ दूसरे विकसित देशों की तर्ज पर भारत ने भी अपना कार्यक्रम बनाया और अपना पहला भू केंद्र वहां सन 1983 में स्थापित किया. नाम दिया गया “दक्षिण गंगोत्रि”. इस केंद्र को बंद कर 1990 में “मैत्री” नामसे एक दूसरा केंद्र स्थापित हुआ जो अभी भी कार्यरत है. अपनी प्रतिष्ठा को बढाने के लिए एक तीसरे केंद्र को स्थापित करने का निर्णय सन 2012 में क्रियान्वित किया गया. इस केंद्र का नाम “भारती” रखा गया जो एक बेहद दुर्गम स्थल “लारस्मान पहाड़ी” पर है. यह कोई ऊंची पहाड़ी नहीं है महज उस बर्फीले इलाके में पथरीली जगह है जो समुद्र के पास ही है. हमारे “मैत्री” नामक भू केंद्र से “भारती” की दूरी लगभग 3000 किलोमीटर है और दोनों जगह जाने के लिए दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन से गर्मियों में साधारणतया समुद्री मार्ग उपयुक्त रहता है. वहां पहुँचने के लिए बरफ काटते चलने वाली जहाज़ का प्रयोग होता है और गति धीमी होने के कारण यात्रा ३ सप्ताह से अधिक की भी हो सकती है “भारती” भू केंद्र के पास हेलिपेड भी है.
हमारा भू केंद्र “भारती” ऐसा दिखता है
पिछले वर्ष शायद अगस्त के महीने में मुझे पता चला था कि मेरा भतीजा, जिसने विद्युत् अभियांत्रिकी में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली थी, अन्टार्कटिका अभियान दल के लिए चुना गया है. शीघ्र ही भारत में बर्फीले जगहों का आदी होने के लिए उसे प्रशिक्षण दिया गया और अभियान के मुख्यालय गोवा में कुछ दिनों के लिए रखा गया. फिर वह दिन भी आ गया जब उसने मुंबई से केप टाउन के लिए उडान भर दी. “भारती” के लिए जाने वाला यह पहला दल था हलाकि उस केंद्र के निर्माण के लिए पूर्व में एक दल जाकर अपना काम कर लिया था.
केप टाउन में एक सांस्कृतिक संध्या
केप टाउन में कुछ भ्रमण
केप टाउन पहुँचने के बाद भतीजे से एक फ़ोन प्राप्त हुआ था. वहां दो चार दिन रुकने के बाद पूरे दल को बरफ फोडू जहाज़ में लाद कर दक्षिण ध्रुव के हमारे “भारती” केंद्र” के लिए रवाना कर दिया गया. इसके बाद मार्च तक उससे कोई संपर्क नहीं बन पाया. इधर माता पिता परेशान. कई बार मेल भेजे परन्तु कोई जवाब नहीं मिल पाया. अतः अभियान के गोवा मुख्यालय से भी संपर्क किया गया. मार्च में पहली बार उसने “भारती” से ही फ़ोन किया कि वह ठीक है. बस इतना ही. बाद में उससे फ़ोन प्राप्त करने के अन्तराल में काफी कमी हुई. एक बार जब उसका फ़ोन आया था तो मुझसे भी बात हुई. यों कहें कि सभी रिश्तेदारों से एक एक कर बात हो सकी. उस समय उसने बताया था कि जाते ही उपग्रहीय संचार व्यवस्था को व्यवस्थित करने में उन्हें जुटना पड़ा था. तीसरे चित्र के बायीं तरफ जो दो गोले दिख रहे हैं वे ही उपग्रहीय संचार के लिए बने अन्टेना हैं.
उस इलाके में आवागमन का साधन – पिस्टन बुली 300
अभिभावकों की परेशानियों को समझते हुए अभियान मुख्यालय ने एक अच्छी व्यवस्था कर दी. भारत का ही एक दूरभाष नंबर उपलब्ध कराया गया. उस नंबर को डायल कर एक एक्सटेंशन नंबर भी डायल करें तो यहाँ से हम उपग्रहीय दूरभाष के जरिये सीधे बात करने में सक्षम हो गये. इसके लिए एक निश्चित समय निर्धारित किया गया. यह व्यवस्था सब को रास आई और सराही गई. मैंने भी कई बार संपर्क किया ताकि उसे संबल मिले और साथ ही अपना कुछ ज्ञान वर्धन भी कर पाया.
पहली बार ही मेरे पूछने पर उसने बताया था कि केप टाउन से वहां पहुँचने में लगभग 28 दिन लग गए थे. फिर मैंने यह जानना चाहा कि उसे क्या करना पड़ता है तो बताया कि सब को सब काम करना पड़ता है. झाड़ू पोछा से खाना बनाने तक. तब मैंने कहाँ वहां झाड़ू पोछे की क्या जरूरत है. इस पर उसने बताया कि उसके इलाके में सबसे तेज हवाएँ चलती हैं जिसके कारण उस पथरीले इलाके के पत्थर लुढ़कते हैं और डस्ट उड़कर केंद्र के अन्दर पहुँचता है. उसने हवा की गति को कुछ नॉट्स में बताया जो पल्ले नहीं पड़ा.
दक्षिण ध्रुव में वैसे तो ६ माह गर्मी का मौसम होता है (शून्य डिग्री) तो बचे ६ माह ठण्ड का (-40 डिग्री). उसी तरह ६ माह दिन रहता तो ६ माह रात. परन्तु “भारती जहाँ है वह दक्षिण ध्रुव के केंद्र में न होकर कुछ ऊपर है. इस लिए यहाँ गर्मियों में दिन लगभग 18 घंटे का होता है फिर कुछ कुछ अँधेरा सा होने लगता है. वैसे ही सर्दियों में जब रात रह्ती है, क्षितिज के नीचे सूर्य के होने से रंग बिरंगी रौशनी बिखरी होती है. भतीजे ने एक बार बताया था कि गर्मियों में कभी कभी बाहर का दृश्य खतरनाक रहता है. खतरनाक शब्द से हम चौंके और पुछा क्या उस समय बाहर निकलने से जीवन को खतरा होता है? तो उसने हँसते हुए कहा नहीं ताऊ बेहद सुन्दर लगता है. मतलब यह हुआ कि बेहद सुन्दर उसे खतरनाक लगा. इस प्राकृतिक खेल को उसने कुछ विस्तार से भी समझाया. पृथ्वी की ओक्सिजेन का जब आकाश के नैट्रोजेन से मिलन होता है तो बेहद खूबसूरत छठा बनती है इसे “अरोरा” कहते हैं. मैंने उससे वहां के कुछ चित्र भेजने के लिए कहा था परन्तु उसे सहज रूप से नेट पहुँच में नहीं थी. अभी अभी उसने फेसबुक के अपने अल्बम में डाल कर सूचित किया है.
खनिज के रूप में वहां गार्नेट नामक रत्न चट्टानों में पाया जाता है. हमने मजाक में कहा था 5/10 किलो ले आना तो उसने झट से कहा था “एक तो मुझे उसकी पहचान नहीं है और यहाँ से कुछ ले जाना मना है”. वहां वनस्पती तो है ही नहीं हाँ पेंगुइन बहुत दिखते हैं इसके अलावा कुछ समुद्री जंतु भी.
और यही है वह खतरनाक अरोरा – नेट से प्राप्त किया
अभियान दल के द्वारा प्रति दिन विसर्जित मल की प्रोसेसिंग अत्याधुनिक संयंत्र द्वारा की जाती है और दीगर कचरा एक बडे टंकी में डाल दिया जाता है. दल के वापसी पर इस कचरे को साथ ले जाना होता है जिसे बीच समुद्र में दफ़न कर देते हैं. शुक्र है पूरा कचरा बायो डिग्रेड़ेबल होता है. यही प्रक्रिया दूसरे देश वाले भी अपनाए हुए हैं. आपसी सद्भाव बनाए रखने के लिए और कुछ कुछ एकाकी पन से उबरने के लिए जितने भी देशों के केंद्र दक्षिणी ध्रुव पर हैं वे आपस में एक दूसरे से मिलने जाया करते हैं और कभी कभी कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करते रहते हैं.
मार्च या अप्रेल में भतीजे के वापस आ जाने की उम्मीद है और हम सब बेसब्री से उसके इंतज़ार में हैं.
अक्टूबर 16, 2013 को 8:44 पूर्वाह्न
बहुत सुदंर फोटो. ऐसे पहले नहीं देखे थे. इस जानकारी के लिए आपका आभार. मैं वहाँ कभी नहीं जाऊँगा इसका पूर्ण विश्वास है 🙂
अक्टूबर 16, 2013 को 9:16 पूर्वाह्न
वाह. बहुत सुंदर चित्र हैं.
अक्टूबर 16, 2013 को 11:20 पूर्वाह्न
vah…maja aa gaya padh kar aur chitra nihar kar!
अक्टूबर 16, 2013 को 12:32 अपराह्न
बहुत बढ़िया. इसका पूरा ब्योरा भेजते रहें.
अक्टूबर 16, 2013 को 12:58 अपराह्न
अति सुंदर
अक्टूबर 16, 2013 को 1:42 अपराह्न
मज़ेदार और रोचक जानकारी! विज्ञान ईश्वर को प्रकृति के करीब ले आता है।
अक्टूबर 16, 2013 को 2:02 अपराह्न
Shri Vinay Kumar Vaidya said on Face Book:
PN Subramanian sAhab, I got it in my mailbox, saw and read on mallar….but there as always something goes wrong when I try to comment. So I have stopped commenting . Regards and Thanks.
अक्टूबर 16, 2013 को 4:43 अपराह्न
वाह!
अक्टूबर 16, 2013 को 5:30 अपराह्न
अनिर्वचनीय -भतीजे की सकुशल वापसी की शुभकामनाएं
अक्टूबर 17, 2013 को 7:56 पूर्वाह्न
शुरुवाती चित्र देश गौरव के लगे बाद के चित्रों में ख़ूबसूरती को हाशिये में धकेल अकेलेपन का भाव तारी हो गया ! खूबसूरत से बढ़कर बीहड़ / वीरानापन ! आपके भतीजे ने दुनिया भर के भतीजों के मिलकर साथ वीरानेपन का तोड़ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के अलावा भी निकाल लिया है , आख़िरी फोटो कम से कम यही संकेत देती है 🙂
शानदार आलेख के लिये आपको साधुवाद ,इसकी वज़ह से मैं खुद भी, आभासी तौर पर ही सही , वहां हाज़िर हो गया था ! कचरा विसर्जन और गार्नेट ना ला पाने वाले मुद्दे अच्छे लगे !
आपके भतीजे के लिये अशेष शुभकामनाएं !
अक्टूबर 17, 2013 को 8:08 पूर्वाह्न
अजनबी दक्षिणी ध्रुव से अपनापन महसूस हो रहा.
अक्टूबर 17, 2013 को 12:28 अपराह्न
आश्चर्य ही है कि ये दृश्य भी अपनी धरती के ही हिस्से के ही हैं।
अक्टूबर 17, 2013 को 6:05 अपराह्न
आपकी लिखी रचना मुझे बहुत अच्छी लगी ………
शनिवार 19/10/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
में आपकी प्रतीक्षा करूँगी…. आइएगा न….
धन्यवाद!
अक्टूबर 19, 2013 को 7:00 पूर्वाह्न
उत्कृष्ट चित्रों के साथ प्रकृति के रहस्य की मनोरंजक जानकारी|
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अक्टूबर 19, 2013 को 11:36 पूर्वाह्न
मनमोहक सुनहरे पलों की जीवंत सैर कराने हेतु धन्यवाद ..
अक्टूबर 19, 2013 को 3:52 अपराह्न
सामान्य दुनिया से अलग और एक दुनिया. बहुत ही रोचक वाचन.
संपत
अक्टूबर 26, 2013 को 8:27 पूर्वाह्न
काफी जानकारी दी आपने, मुझे तो अंटार्टिका की ठण्ड के नाम से कंपकपी छूटने लगती है.
अक्टूबर 28, 2013 को 1:16 अपराह्न
सुन्दर सचित्र रोचक जानकारी .धन्यवाद !
अक्टूबर 29, 2013 को 6:33 अपराह्न
बहुत अच्छा एवं जानकारी से भरपूर चित्रात्मक लेख आपने लिखा है|
अक्टूबर 31, 2013 को 4:04 पूर्वाह्न
वाह, लाजवाब पोस्ट। अप्रतिम सौन्दर्य और रोचक जानकारी। आभार!
अक्टूबर 31, 2013 को 6:31 पूर्वाह्न
सबकुछ अतिसुन्दर है चित्र, लेखन और जानकारी
भतीजे राम को ढेरों आशीर्वाद !
नवम्बर 8, 2013 को 9:05 पूर्वाह्न
मज़ेदार और रोचक जानकारी! मनमोहक दुनिया है|
आपके भतीजे के लिये बहुत बहुत शुभकामनाएं !
नवम्बर 8, 2013 को 9:59 अपराह्न
बहुत ही रोचक और शानदार चित्र भी जानदार। आपके भतीजे की बदौलत हम भी एन्टारटिका की सैर कर पाए। खतरनाक दृष्य तो कमाल के हैं जैसे बंगला में बोलते हैं भीषण शुंदर। बहुत दिनों बाद आना हुआ इधर पर आप के ब्लॉग पर हमेशा कुछ अद्भुत मिलता है।
मार्च 24, 2016 को 11:31 अपराह्न
बहुत सुंदर वर्णन किया आपने।नई और ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ सुंदर तस्वीर भी देखने को मिली।