चेन्नई के आर्मीनियाई सड़क से गुजरते हुए एक मंदिर के सामने रुक गया. पता चला कि यह यहाँ का कच्छपेश्वर मंदिर है. वैसे मेरी जानकारी में कच्छपेश्वर का भव्य एवं विशाल मंदिर कांचीपुरम में है. समुद्र मंथन के समय जब मेरु पर्वत पानी में धंसता चला जा रहा था तो विष्णु ने कूर्म (कछुआ) रूप धारण कर नीचे से पर्वत को उठा लिया था और मंथन सुचारू रूप से चल पाया. परन्तु इस प्रक्रिया में सागर का जल स्तर बढ्ने लगा. कहते हैं विष्णु कुछ अहंकारी हो गया था तब शिव ने उस कछुए का मान मर्दन किया और उसके खोल को अपने गले में लटका लिया था. कई जगह शिव लिंग पर कछुआ हार में लटका मिलता है और यही परंपरा आगे भी चली तथा लोग गले की माला में एक छोटे कछुए का पेंडेंट बना कर पहनने लगे. विष्णु को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने शिव की अराधना की, वह भी कांचीपुरम में जाकर. इस लिए इस मंदिर का शिव कच्छपेश्वर कहलाया.
चेन्नई के एक श्रेष्टि तलवै चेट्टियार नित्य ही शिव की आराधना के लिए कांचीपुरम जाया करते थे. एक बार भारी बारिश के कारण वे नहीं जा सके. उन्होंने ही लगभग सन 1720 में चेन्नई में ही कच्छपेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था. मंदिर वैसे विशाल तो नहीं है परन्तु चेन्नई जैसे शहर में उस मंदिर की एक अलग पहचान है. इस मंदिर में शिव लिंग का आधार पांच खण्डों का है और सबसे नीचे कछुआ बना हुआ है. शिव लिंग के पीछे पांच सर वाले सदाशिव की मूर्ति है जो साधारणतया दिखाई नहीं देती. पुजारी से कह कर आरती करवाएं तो दिख जाती है. एक कक्ष में सभी तमिल शैव संतों (नायनार) की मूर्तियाँ करीने से रखी हुई हैं और उनका विवरण भी नीचे दिया हुआ है.
दर्शन कर बाहर आ गये. अहाते में ही और छोटे छोटे मंदिर विभिन्न देवी देवताओं के हैं परन्तु न मालूम क्यों मुझमें उन सबको देखने की रुचि नहीं थी. शायद इसलिए कि वे सब बहुत ज्यादा पुराने नहीं थे. परिक्रमा कर लेने की सोची और एक चक्कर लगा रहे थे तब मंदिर के वाह्य दीवार से लगे कुछ पेड़ों ने आकर्षित किया. एक पेड़ के तने में ही छोटे कटहल के आकार के दो फल लगे थे. एक दो तो डगाल पर भी थे. साथ में भांजी थी जो आकाशवाणी में अनुवादक है. उसने उस फल का तामिल नाम बताया “तिरु वोट्टू काई” मैंने कहा अब हिंदी में अनुवाद करो. खीसें निपोरते रह गई. हाँ इतना जरूर बताया कि इस फल के सूखने पर दो भागों में बाँट कर भिक्षा पात्र बनाया जाता है.
घर वापसी के बाद उस फल के बारे में अधिक जनकारी प्राप्त करने की कोशिश की. इसे अंग्रेजी में Calabash Tree (Crescentia Cujete) के नाम से जाना जाता है तथा मूलतः मध्य अमरीका का है. अब तो यह हर उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में पाया जाता है. एक जगह तो लिखा मिला कि इसका गूदा कुछ कुछ जहरीला भी है. शायद इसलिए कि उसमें हाइड्रो सायानिक अम्ल होता है. परन्तु इसमें कई औषधीय गुण भी हैं. इसके गूदे से सिरप बनती है जो विभिन्न स्वांस रोगों यथा अस्थमा, खांसी आदि में कारगर मानी गई है. इसके अतिरिक्त पेट दर्द में भी फायदेमंद है. इसके पत्तियों का रस रक्त चाप को कम करता है.
इसके सूखे खोल से भिक्षा पात्र के अतिरिक्त अलंकरण हेतु विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुएं बनती हैं. घरों में फल आदि रखने के लिए भी उस पात्र का प्रयोग होता है. मुखौटे भी बनाये जाते हैं. वाद्य यंत्र भी बनाये जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि उससे बने पात्र में रखी खाद्य सामग्री ख़राब नहीं होती.
नवम्बर 23, 2013 को 8:05 पूर्वाह्न
नई जानकारी कच्छप-शिव संबंध और इस फल की
नवम्बर 23, 2013 को 8:31 पूर्वाह्न
अच्छी जानकारी। अगर फोंट साइज छोटा और लीडिंग ऑटो रखेंगे तो पढ़ने में सुविधा रहेगी।
नवम्बर 23, 2013 को 9:39 पूर्वाह्न
फल की जानकारी भी अच्छी लगी
नवम्बर 23, 2013 को 10:51 पूर्वाह्न
एकदम नयी और अद्भुत जानकारी !
खासकर फल और उसके खोल के बारे में जो कुछ जाना वह बहुत अच्छा और ज्ञानवर्धक लगा.
बहुत-बहुत आभार .
नवम्बर 23, 2013 को 1:18 अपराह्न
फल की जानकारी नई थी. 🙂 धन्यवाद.
नवम्बर 23, 2013 को 8:01 अपराह्न
नई जानकारियाँ मिलीं, आपकी इस पोस्ट से.. खासकर कि कच्छप वाली बात..
नवम्बर 23, 2013 को 10:04 अपराह्न
बेहतरीन जानकारी। भिक्षा-पात्र के लिये इस फ़ल का प्रयोग ’ऑप्टिमम यूटिलाईज़ेशन’ का नमूना है।
नवम्बर 24, 2013 को 8:26 पूर्वाह्न
Very nicely written
नवम्बर 24, 2013 को 11:11 पूर्वाह्न
बहुत ही नायाब जानकारी, शुभकामनाएं.
रामराम.
नवम्बर 25, 2013 को 12:58 पूर्वाह्न
उम्दा जानकारी..
नवम्बर 26, 2013 को 7:46 पूर्वाह्न
शायद आपको ध्यान हो, कछुए के पेंडेंट वाली एक प्रतिमा जेठानी मंदिर, ताला, बिलासपुर में है, लेकिन वह शिव की नहीं.
नवम्बर 26, 2013 को 7:50 पूर्वाह्न
यानि फल भी कछुआ-पीठी मजबूत होता है.
नवम्बर 27, 2013 को 11:19 अपराह्न
bhiksha paatr ki jankari aur kachchhapeshwar mandir ki mahima ke liye aabhar
नवम्बर 28, 2013 को 5:14 अपराह्न
पेड़ हमें कितना कुछ देते हैं !
नवम्बर 30, 2013 को 10:44 अपराह्न
Bahut achha laga,…nai jankari bhi mili …aapki guide bhi dhanyavad ki patra hain …han aap jitani jankari bhale na ho …kintu prarambhik jankari to unhon ne hi diya
दिसम्बर 2, 2013 को 7:02 अपराह्न
प्रकृति की रोचक कृतियाँ..
जनवरी 25, 2014 को 9:36 पूर्वाह्न
आपके शब्दों और चित्रों के माध्यम से प्रकृति के साथ साक्षात्कार करना एक अलग तरह का सुख देता है। आभार आपका।
जनवरी 25, 2014 को 5:59 अपराह्न
अद्भुत अनुपम अनुभव होता है आपकी किसी भी लेख का….
जुलाई 12, 2014 को 7:44 अपराह्न
[…] के नियमित स्तंभ ‘डेली डायरी’ में मल्हार और हुक्कुम का […]