Archive for the ‘Archaeology’ Category

हुक्कुम का पेड़ – कच्छपेश्वर मंदिर चेन्नई

नवम्बर 23, 2013

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चेन्नई के आर्मीनियाई सड़क से गुजरते हुए एक मंदिर के सामने रुक गया. पता चला कि यह यहाँ का कच्छपेश्वर  मंदिर है.  वैसे मेरी जानकारी में कच्छपेश्वर का भव्य एवं विशाल मंदिर कांचीपुरम में है. समुद्र मंथन के समय जब मेरु पर्वत पानी में धंसता चला जा रहा था तो विष्णु ने कूर्म (कछुआ) रूप धारण कर नीचे से पर्वत को उठा लिया था और मंथन सुचारू रूप से चल पाया.   परन्तु  इस    प्रक्रिया में सागर का  जल  स्तर  बढ्ने  लगा.   कहते हैं विष्णु कुछ  अहंकारी हो गया था तब शिव ने उस कछुए का  मान मर्दन किया  और उसके खोल को अपने गले में लटका लिया था. कई जगह शिव लिंग पर कछुआ हार में लटका मिलता है और यही परंपरा आगे भी चली तथा लोग गले की माला में एक छोटे कछुए का पेंडेंट बना कर पहनने लगे. विष्णु को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने शिव की अराधना की, वह भी कांचीपुरम में जाकर. इस लिए इस मंदिर का शिव कच्छपेश्वर कहलाया.

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चेन्नई के एक श्रेष्टि तलवै चेट्टियार नित्य ही शिव की आराधना के लिए कांचीपुरम जाया करते थे. एक बार भारी बारिश के कारण वे नहीं जा सके. उन्होंने ही लगभग सन 1720 में चेन्नई में ही कच्छपेश्वर  मंदिर का निर्माण करवाया था. मंदिर  वैसे विशाल तो नहीं है परन्तु चेन्नई जैसे शहर में उस मंदिर की एक अलग पहचान है.  इस मंदिर में शिव लिंग का आधार पांच खण्डों का है और सबसे नीचे कछुआ बना हुआ है. शिव लिंग के पीछे पांच सर वाले सदाशिव की मूर्ति है जो साधारणतया दिखाई नहीं देती. पुजारी से कह कर आरती करवाएं तो दिख जाती है. एक कक्ष में सभी तमिल शैव संतों (नायनार) की मूर्तियाँ करीने से रखी हुई हैं और उनका विवरण भी नीचे दिया हुआ है. IMG_4052

दर्शन कर बाहर आ गये. अहाते में ही और छोटे छोटे मंदिर विभिन्न देवी देवताओं के हैं परन्तु न मालूम क्यों मुझमें  उन सबको देखने की रुचि  नहीं थी. शायद  इसलिए कि वे सब बहुत ज्यादा पुराने नहीं थे.  परिक्रमा कर लेने की सोची और एक चक्कर लगा रहे थे तब मंदिर के वाह्य दीवार से लगे कुछ पेड़ों ने आकर्षित किया. एक पेड़ के तने में ही छोटे कटहल के आकार के दो फल लगे थे. एक दो तो डगाल पर भी थे. साथ में भांजी थी जो आकाशवाणी में अनुवादक है.  उसने उस फल का तामिल नाम बताया “तिरु वोट्टू काई” मैंने कहा अब हिंदी में अनुवाद करो.  खीसें निपोरते रह गई.  हाँ इतना जरूर बताया कि इस फल के सूखने पर दो भागों में बाँट कर भिक्षा पात्र बनाया जाता है.Calabash tree

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घर वापसी के बाद उस फल के बारे में अधिक जनकारी प्राप्त करने की कोशिश की.  इसे अंग्रेजी में Calabash Tree (Crescentia Cujete) के नाम से जाना जाता है तथा मूलतः मध्य अमरीका का है. अब तो यह हर उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में पाया जाता है. एक जगह तो लिखा मिला कि इसका गूदा कुछ कुछ जहरीला भी है. शायद इसलिए कि उसमें हाइड्रो सायानिक अम्ल होता है. परन्तु इसमें कई औषधीय गुण भी हैं. इसके गूदे से सिरप बनती है जो विभिन्न स्वांस रोगों यथा अस्थमा, खांसी आदि में कारगर मानी गई है. इसके अतिरिक्त पेट दर्द में भी फायदेमंद है. इसके पत्तियों का रस रक्त चाप को कम करता है.

इसके सूखे खोल से भिक्षा पात्र के अतिरिक्त अलंकरण हेतु  विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुएं बनती हैं. घरों में फल आदि  रखने के लिए भी उस पात्र का प्रयोग होता है. मुखौटे भी बनाये जाते हैं. वाद्य यंत्र भी बनाये जाते हैं. ऐसी  मान्यता है कि उससे बने पात्र में रखी खाद्य सामग्री ख़राब नहीं होती.

गूगल तुझे सलाम – कर्कटेश्वर को ढूंड निकाला

अगस्त 20, 2013

चेन्नई में चार माह बिताने के बाद अपनी माँ को साथ ले गाँव के अपने घर पहुंचा. मेरी एक भतीजी जजकी के लिए गाँव आ गई थी जिस कारण माताराम को भय था कि उसकी  देख रेख में लोगों को असुविधा हो सकती है. इसलिए यहाँ से पलायन कर अपने दूसरे बेटे के साथ रहने चली गई थी. 

भतीजी जो मेरी रुचियों से परिचित थी, ने कुछ तस्वीरें दिखाईं. अपने मियाँ के साथ तंजावूर के आस पास कभी घूमने गई थी और कुछ मंदिरों में भी जाना हुआ था.  दिखाई गई तस्वीरों में से एक हमें अजीब सी लगी.  एक शिव  लिंग दिख रहा था और उसके सामने केकड़े जैसी एक आकृति थी. हमने उससे पूछा कि यह कहाँ की है तो स्पष्ट  कुछ बता सकने में असमर्थ रही. केवल इतनी जानकारी मिली कि कहीं दीवार या खम्बे में बनी  थी. हालाकि तस्वीर कुछ भोंडी सी ही है लेकिन सामने एक चुनौती तो थी ही. हमने घर में सबसे पूछा कि क्या दिख रहा है. किसी को गणेश की सूंड नज़र आ रही थी तो किसी को मकड़ी. मुझे एक केकड़ा दिख रहा था. लेकिन समझ में यह नहीं आ रही थी कि वहां केकड़ा या मकड़ी क्यों बनाई गई होगी. 

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राहुल सिंह जी बार बार याद आ रहे थे. इसके पूर्व कि उन्हें कष्ट दूं, हमने सोचा देखें गूगल बाबा क्या कहते हैं. हमने उनसे पूछा कि क्या मकड़ी ने शिव की पूजा की थी और उत्तर में हमें वह आंध्र  में श्रीकालहस्ति पहुंचा दिया. तब पता चला कि मकड़ी के लिए ही  “श्री” प्रयुक्त हुआ है. अब क्योंकि हमें मालूम था कि भतीजी तो श्रीकालहस्ति गई ही नहीं थी इसलिए दूसरे  विकल्प “केकड़े” का प्रयोग किया. बडी सुखद अनुभूति रही यह जानकार कि तंजावूर के  पास कर्कटेश्वर के नाम से एक शिव मंदिर भी है. साथ लिए गए और कुछ चित्र भी थे जिनसे मिलान करने पर पुष्टि हो गई. कहानी कुछ इस प्रकार है:

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एक बार ऋषि दुर्वासा तपस्यारत थे. उधर से गुजरते हुए एक गन्धर्व ने कोई ऐरागैर समझ कर दुर्वासा के बुढापे का बहुत मजाक उड़ाया परन्तु उन्होंने कोई प्रतिक्रिया प्रकट नहीं की. दुर्वासा की चुप्पी देख गन्धर्व जोर जोर से ताली बजाने लगा.  अपनी  तपस्या में व्यवधान से त्रस्त होकर दुर्वासा कुपित हुए और उस गन्धर्व को श्राप देकर केकड़ा बना दिया. गन्धर्व को अपनी गलती का जब एहसास हुआ तो दुर्वासा के सामने क्षमा याचना करते हुए  गिडगिडाने लगा. श्राप मुक्ति के लिए दुर्वासा ने केकड़ा बन चुके गन्धर्व को शिव के आराधना की सलाह दी.

कावेरी नदी के उत्तरी किनारे की रेत पर पहले से एक शिव लिंग विद्यमान था. वहीँ असुरों पर विजय प्राप्ति के लिए इंद्र देव शिव की पूजा हेतु फूल इकठ्ठा कर रखता.  केकड़े के रूप में गन्धर्व उन फूलों में से एक उठा लाता और  शिव लिंग पर अर्पित करता. इंद्र के फूलों की संख्या 1008 नहीं हो पाती थी. हर रोज एक फूल कम पड़ जाने के रहस्य का इंद्र को भान हुआ तो गुस्से में आकर केकड़े पर तलवार चला दी. इसके पहले कि केकड़े पर तलवार लग पाती शिव जी ने अपने लिंग में एक छिद्र बना दिया और केकड़े को  छुप जाने के लिए जगह बना दी. तलवार की वार शिव लिंग पर पड़ गई. शिव जी ने प्रकट होकर इंद्र की उद्दंडता  की भर्त्सना की और  विनम्र होने की नसीहत भी दी.

कहते हैं एक बार एक चोल राजा लकवे से ग्रसित हो गया. सभी प्रकार का उपचार प्रभावहीन रहा तब राजा ने शिव की आराधना की.  एक दिन एक वृद्ध  दम्पति उस राजा से मिलने आई और जल में  पवित्र भभूत मिलाकर पीने दिया. वह एक चमत्कार ही था जिससे राजा एकदम ठीक हो गया. राजा ने उस दम्पति को अपने यहाँ राज वैद के रूप में नियुक्त करना चाहा परन्तु  यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं हुआ. इसपर राजा ने उन्हें  स्वर्ण, हीरे, जवाहरात आदि देने की कोशिश की और दम्पती ने उन्हें भी ठुकरा दिया. अंततः दम्पति ने राजा से नदी किनारे स्थित शिव लिंग के लिए मंदिर बनाए जाने का आग्रह भर किया. राजाने उन्हें शिव और पर्वती मानते हुए इनकी इच्छानुसार एक मंदिर का निर्माण करवा दिया.

क्योंकि इस जगह केकड़े रुपी गन्धर्व को भगवान् शिव ने मोक्ष प्रदान  किया था इसलिए यहाँ शिव जी “कर्कटेश्वर” कहलाये. ऐसा विश्वास किया जाता है कि यहाँ के  शिव लिंग में बने  छिद्र में ही केकड़ा छुप गया था और इंद्र द्वारा तलवार चलाये जाने से बना निशान भी लिंग पर बना हुआ है. इस मंदिर में गणेश, कार्तिकेय के अतिरिक्त अम्बिका (पार्वती) की  दो मूर्तियाँ हैं. पहले बनी मूर्ति गायब हो गई थी तो दूसरी बनाई  गई, फिर पुरानी भी मिल गई, अतः दोनों की प्रतिष्ठा हो गई थी.

यह मंदिर कावेरी नदी किनारे तंजावूर जिले के वेपतूर के पास है  और सम्बन्दर नामके शिव भक्त (नायनार) ने अपने तेवारम (काव्य संग्रह) में इस मंदिर  का गुणगान  किया हुआ है.  लोगों में ऐसा विश्वास है कि इस मंदिर में जाने से केंसर सहित सभी व्याधियां दूर हो जाती हैं.