बरसात के बाद बाड़ियों (फेंसिंग) में अचानक प्रकट होने वाला एक असाधारणसा फ़ूल है बचनाग या ग्लोरी लिली (ग्लोरियोसा सुपरबा). कलिहारी, अग्निशिखा आदि नाम भी मिलते हैं. इससे हमारी मुलाकात बहुत ही पुरानी है, जब हम छोटे हुआ करते थे. उसकी चटक रंगों और मकड़ी जैसी बनावट के कारण हमें बहुत ही ज्यादा प्यारी लगी थी और जब नहीं रहा गया तो हम तोड़ लाये थे. माँ ने अच्छी डांट पिलाई और बहुत दूर फेंक आने को कहा. आने के बाद साबुन से हाथ धुलाये गए थे. बताया गया था कि वह बहुत ही जहरीला है और हिदायत दी गयी थी कि आगे से कभी उसके पास भी मत जाना. पिछले कुछ वर्षों से कही देखा भी नहीं, अपने घर में भी नहीं. भारतीय डाक द्वारा फूलों पर भी डाक टिकटों की एक सेट निकाली गयी थी जिसमे ग्लोरी लिली को भी दर्शाया गया था. हमने तो पूरी सेट ही मंगवा ली थी. पढने को मिला था कि विगत कुछ वर्षों में इस फूल के पौधे का औषधीय प्रयोग के लिए बड़े पैमाने पर दोहन किया जा रहा है इसलिए वे लुप्त प्रायः हो चले हैं. साथ में यह भी जाना था कि तमिलनाडु में २००० एकड़ में इसकी खेती हो रही है. इसके बीजों का निर्यात होता है और किसान खूब कमा रहे हैं. संदर्भवश यह ज़िम्बाब्वे का राष्ट्रीय पुष्प है. तामिलनाडू ने भी इसे प्रादेशिक पुष्प बनाकर सम्मानित किया हुआ है.
इस बार अपने ही घर की झाड़ियों में वही फूल खिला दिखा जिसे देख कर मन प्रसन्न हो गया. वह एक बेल पर लगी थी. अगल बगल के पेड़ पौधों का सहारा लेते हुए वह ऊपर उठती है. इसके लिए उसकी नोकदार पत्तियां (with tendrils) ही सहायक होती हैं. क्योंकि उसके बेल को पहचान गया था इसलिए एक दूसरी जगह भी उसके पौधे को पहचान गया था. उसपर एक कली लगी थी एकदम हरी. डंठल से नीचे की तरफ लटके हुये. वह जब खिलता है तो उसकी पंखुड़िया हलके पीले रंग लिए हुये हरी होती हैं. शनै शनै पंखुड़ियों का रंग बदलता जाता है. वे पीली हो जाती है और सिरे लालिमा लेने लगते हैं. जब फूल विकसित हो जाता है तो डंठल को घेरते हुये पंखुडियां ऊपर की तरफ उठ जाती हैं. तीन चार दिनों में ही पूरा का पूरा फूल लाल हो जाता है. दो तीन दिन बाद पंखुडियां झड जाती हैं. इस तरह एक फूल लगभग आठ दिनों तक रंग बदलते हुये बना रहता है.
इसकी बेल में फल्लियाँ लगती हैं जिसमें लाल रंग के बीज होते हैं. इस अवस्था को हम नहीं देख पाए. इन बीजों से पौधे उगाये जा सकते हैं. इसकी जड़ें गांठदार (tuberous) होती हैं और पौधे उगाने के लिए ट्युबर्स का भी प्रयोग किया जा सकता है. जैसे मेरी माँ ने बताया था इस पौधे का हर भाग अत्यधिक जहरीला है. बेल या पत्तियों का शरीर से संपर्क मात्र से समस्या हो सकती है. कोल्शिसाइन (Colchicines) नामक तत्व इसका कारक है. कुछ जगह तो लिखा है कि इसके रस का मात्र ६ माइक्रोग्राम का सेवन आत्मघाती हो सकता है. कुछ जगह ६ के बदले ६० माइक्रोग्राम की बात कही गयी है. कहते हैं आत्महत्या के लिए इसकी जड़ों को चूस लिया करते थे.
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, इस पौधे और उसकी जड़ों के रस का प्रयोग सर्पदंश सहित विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता है.