Archive for the ‘Personal’ Category

गंगा इमली Camachile (Pithecellobium dulce)

मई 27, 2014

Ganga ImlI

अभी कुछ दिनों पूर्व फेसबुक पर बागवानी की शौकीन एक महिला ने एक चित्र  डाला था और उस फल के बीज उपलब्ध कराने की पेशकश की थी.  फोटो को देख मैं उछल पड़ा क्योंकि एक तो बचपन की ढेर सारी यादें इसके साथ जुडी थीं और इस फल को दशाब्दियों से नहीं देखा था. जब कभी भी याद आई तो दोस्तों को या बच्चों को बताने की कोशिश की थी लेकिन समझा नहीं सका था. मैंने तो सोचा था कि इसके पेड लुप्त हो गए हैं.

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बात गंगा इमली की ही है. हम लोग अंग्रेजी इमली कहते थे. एक पाकिस्तानी फेसबुकिया ने इसका नाम जंगल जलेबी बताया. बचपन में गर्मियों की  भरी दुपहरी में दोस्तों के साथ गुलेल, डंडे आदि से लैस होकर शहर के बाहरी तरफ जाया करते थे जहाँ काफ़ी पेड थे. पेड बहुत बड़े थे और कटीले भी. इस कारण  ऊपर चढ़ने में परेशानी होती थी. डंडों  से शाखाओं को प्रहार कर गिराते थे और अपनी  अपनी  जेबों में ठूंस ठूंस कर भर लाते थे. उन्हीं पेड़ों के आगे एक बार बढ चले थे, एक पहाडी के तले जहाँ खजूर के पेड के पोले  तने में एक लाश रखी देख भाग आये थे. घर आते ही बुखार चढ आया था.  जेब से गंगा इमलियों की बरामदगी मेरी जम कर धुनाई का कारण बनी.

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आज पुनः एक बार फोटो में गंगा इमली देख कर मन प्रसन्न हो गया  बचपन में तो ज्ञान नहीं था. लेकिन अब मालूम हुआ कि यह फल मूलतः मेक्सिको का है और दक्षिण पूर्व एशिया में बहुतायत से पाया जाता है. फिलिप्पीन में न केवल इसे कच्चा ही खाया जाता है बल्कि  चौके में भी कई प्रकार के व्यजन बनाने में प्रयुक्त होता है.

इस फल में प्रोटीन, वसा, कार्बोहैड्रेट, केल्शियम, फास्फोरस, लौह, थायामिन, रिबोफ्लेविन आदि तत्व भरपूर मात्र में पाए जाते हैं. इसके पेड की छाल  के काढे से पेचिश का इलाज किया जाता है.  त्वचा रोगों, मधुमेह और आँख के जलन में भी इसका इस्तेमाल होता है. पत्तियों का रस दर्द निवारक का काम भी करती है और यौन संचारित रोगों में भी कारगर है . इसके पेड की लकड़ी का उपयोग इमारती लकड़ी की तरह ही किया जा सकता है.

यदि आपके गाँव / शहर में हो तो बताएं.

जापानी दम्पति मेहमान बने

मार्च 6, 2013

हमारे लिए फरवरी का प्रथम सप्ताह कुछ ख़ास रहा. मुंबई से मेरे एक दूर् की साली का फोन आया था और वे अपने जापानी मेहमान को लेकर भोपाल आना चाह रही थीं. वैसे मेरी तरफ़ से उन्हें पहले ही निमंत्रण था लेकिन मुझे थोड़ी सी दुविधा थी. ठैरने के लिए तो घर पर ही बेहतरीन  सुविधा उपलब्ध करायी जा सकती थी  और वाहन भी उपलब्ध था परन्तु चिंता उनके खान पान की थी. मैंने बग़ैर झिझके अपनी बात रख दी थी तिस पर साली ने कहा जीजाजी मै हूँ ना. चौका मैं संभाल लूँगी. बस मुझे तो यही चाहिए भी था.

उन्हें हवाई अड्डे से लिवा लाने के लिए पुत्र से आग्रह किया था और वह् खुशी खुशी राजी हो गया था. अब चूँकि मेरी गाड़ी 5 लोगोंको झेल नहीं सकती थी इसलिए एक लंबी गाड़ी “तवेरा” का इंतजाम भी कर लिया गया. नियत समय पर वे पहुँच गए और घर पर उनके नहाने धोने के लिए गर्म पानी का इंतजाम तो था ही परन्तु पता चला वे सब कुछ कर के ही निकले थे.

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केंजी ताजीमा 80 वर्ष के हैं और एक कलाकार भी. उन्हें अँगरेजी बिलकुल भी नहीं आती परन्तु उनकी पत्नी मिचिको जो 70 वर्ष की हैं, अँगरेजी में वार्तालाप करने में सक्षम हैं. हर एक दो साल में इनका भारत आना होता है और वे अपनी कलाकृतियों को मुंबई के जहाँगीर आर्ट गेलेरी में प्रदर्शित भी करते आए हैं. इस बार भोपाल आने का मकसद केवल एक ही था और वह् था भीमबेटका के शैल चित्रों का अवलोकन.

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चूँकि वे तीन दिन रहने वाले थे, हमने उन्हें साँची, विदिशा, उदयगिरि, भोजपुर आदि जगहों के भ्रमण का सुझाव दिया और वे मान गए. तदनुसार रोज़ आराम से सभी जगहों को देख् भी आए. हाँ मेरा पुत्र भी उनके साथ ही था.

घर पर रहते हुए केंजी सुबह शाम अकेले ही बाहर निकल पड़ते और साथ होता उनका एक स्केच बुक जिस में वे रेखा चित्र बना लाते. उन्हें ही वे बड़े कैनवास पर फुरसत से घर वापसी के बाद अभिव्यक्त करेंगे.

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मंगलवार के दिन हमारे मुहल्ले में हाट भरता है और सब के सब हाट देखने गए थे. मटर उन्हें सस्ती लगी सो दो किलो खरीद भी लाये. मुझे दोनों पति पत्नी बड़े सरल स्वभाव के लगे. खान पान के लिए कोई विशेष व्यवस्था की जरूरत नहीं पड़ी. रोटी,सब्जी, दाल, चावल, साम्बार से पूरी तरह संतुष्ट थे.

जाते जाते केंजी ने हिन्दी में कहा “मुझे बड़ी खुशी हुई”