Archive for the ‘Photography’ Category

कोको Cocoa

दिसम्बर 13, 2011

संयोगवश आज कोको दिवस है.

हम सब भाई बहन केरल के अपने घर में इकट्ठे  हुए थे अपने दिवंगत पिता की जन्म शताब्दी मानाने. मैं अपना केमरा लिए बागीचे की बाड के आस पास घूम रहा था. बहुतेरे जंगली बेल आदि उग आये थे जिनमे खूबसूरत फूल या फल लगे थे. जो अच्छे लगे उनकी तस्वीर ले रहा था. एक भाई निकट आया और बोला  “अपने ताऊ  के बगीचे के छोर में एक अनजाना पेड़ है और फल भी लगा है. मैंने कभी ऐसा फल नहीं देखा है”. वहां हमारी इंजिनियर भांजी  भी हाथ में केमरा लिए थी. उस से हमने कह दिया “चल, मामा कुछ बता रहें हैं, फोटो खींच कर आते हैं”. पास ही था. फोटो भी खींच ली और दो तीन फल भी तोड़ लाये.

अपने घर के गेट के पास पहुँचने पर दूसरे भाई भी इकठ्ठा हो गए. कोच्ची में रहने वाले भाई ने फल को देख तपाक से बोला “यह तो कोको है”. उसे पूरा विश्वास  था क्योंकि पहले भी देख चुका था. अब बहस शुरू हुई कि यह पेड़ वहां आया कहाँ से क्योंकि ताऊ जी का घर बरसों से बंद पड़ा है. देख रेख भी नहीं हो रही है. मेरे पास कुछ  जानकारी थी. ७/८ साल पहले केडबरी कंपनी वालों ने कोको की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए पौधे वितरित किये थे और कहा था कि पूरा उत्पाद वे खरीद लेंगे. संभवतः यह पेड़ भी उसी समय का होगा. और लोगों के बाड़े में भी ऐसे पेड़ होंगे, जिन्हें हम लोगों ने नहीं देखा है. बात सबके द्वारा मान ली गयी.

अब उस फल का पोस्ट मार्टम होना था. वह भी किया गया. जिस फल को हमने काटा वह कुछ कुछ पका था.  सफ़ेद आवरण (सीताफल जैसा) में लिपटे बीज थे. आवरण को छीलने पर कोफ्फी के बीज जैसा दिखा. चख कर देखा तो गूदा मीठा लगा, कुछ कुछ पके कटहल जैसा स्वाद. दूसरे फल की बारी आई. वह कुछ अधिक कड़ा था. गूदे में उतनी मिठास नहीं थी. तीसरे को काट कर सबने खाया.

कोको को वैज्ञानिक  भाषा में थिओब्रोमा केकाओ(Theobroma cacao) कहा गया है. यह  देवताओं का भोज्य पदार्थ है, ऐसा  माना गया है दक्षिण अमरीका के माया संस्कृति के मिथकों में. इसके बीजों को भून कर पीस लिया जाता है जिसका प्रयोग चोकलेट में होता है. मुझे याद है, वर्षों पहले होटलों में पेय पदार्थ के रूप में चाय, कोफी, ओवलटिन  के अतिरिक्त कोको भी मिला करता था. गरम दूध में एक छोटी चम्मच कोको और शक्कर मिलाकर दिया जाता था. इंस्टेंट  कोफ्फी की तरह.

कोको लेटिन अमरीकी मूल का है परन्तु विश्व के अन्य उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में भी पाया जाता है. इसके  सबसे बड़े  उत्पादक ऐवोरी कोस्ट और घाना हैं जो उत्तर पश्चिम  अफ्रीका में हैं.  मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप  में कोको का सेवन लाभकारी माना गया है.


हेलिकोनिया Heliconia

नवम्बर 7, 2011

अपने बच्चों की पैदायिश  के बाद उन्हें बढ़ते हुए देखने में एक अलग प्रकार के सुख की अनुभूति होती है. बच्चे का करवट बदलना, घुटनों के बल जमीन पे रेंगना, छोटी छोटी चीजों को पकड़ना, खड़े होना, चलना, दौड़ना ऐसे बहुतेरे पड़ाव होते हैं. कुछ कुछ यही अनुभूति अपने पालतू जानवरों को लेकर होती है. अपने द्वारा रोपे गए बीज का अंकुरित होना, पौधा बनना, उसका बढ़ना, फूल लगना आदि भी हमें उतना ही प्रफुल्लित करने की क्षमता रखते हैं.

वर्षों पहले हम कोंकण तट पर गए हुए थे. वहां हमने “हेलिकोनिया” नामक एक पौधा देखा जिसमें बड़े सुन्दर फूल लटक रहे थे. अंग्रेजी में उसे lobster claw (झींगे  का पंजा) कहते हैं. पहले भी देखा था परन्तु अब हम उसके जड़ों  में खोदकर एक छोटा पौधा उठा लाये थे. २ साल के बाद फूल खिले फिर कुछ कारणों वश हमें उसे जमीन से उखाड़ कर गमले में रखना पड़ा. अब चार साल होने को हैं. फूलों का कहीं अता पता नहीं है.

 यह तो वैसा ही हुआ कि बच्चा बड़ा तो हो रहा था परन्तु कंठ नहीं फूट रहे थे. चिंता हुई और कुछ जानकारी हासिल की. पता चला कि हेलिकोनिया तो उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में ही पनपता है. गर्मी भी हो अच्छी बारिश भी. यहाँ कुछ वर्षों से अपर्याप्त वर्षा हो रही थी. इस वर्ष ईश्वर की कृपा से सभी नदियाँ और जलाशय उफान पर हैं. हमारा हेलिकोनिया भी प्रफुल्लित हो उठा और एक कली प्रकट हुई. चार छै   दिनों के बाद पंखुड़ी निकली. कुछ दिनों बाद एक और पंखुड़ी और इस तरह यह सिलसिला चलता रहा. अबतक छै पंखुड़ियां निकल चुकी हैं और इसके आगे कुछ बढ़ोतरी की सम्भावना नहीं रही. गमले में रखने के कारण यह स्थिति बनी होगी अन्यथा इसके फूल काफी लम्बाई ले लेते हैं. इसकी अनेकों प्रजातियाँ पायी जाती हैं. प्रस्तुत है मेरे  अपने हेलिकोनिया (Heliconia rostrata) के क्रमवार चित्र.