हम मुंबई प्रवास पर थे. हमारी सहधर्मिणी का मैका जो ठैरा. उसे पैरों में गठियावात के कारण तकलीफ रहा करती थी. परन्तु किसी नई जगह या फ़िर मन्दिर आदि जाने की बात की जावे तो पूरा दर्द काफूर हो जाया करता. यही हुआ जब उसके भाई ने असली महालक्ष्मी मन्दिर जाने की बात कही. टिकटों का इंतज़ाम किया गया और दोनों परिवार निकल पड़े महालक्ष्मी एक्सप्रेस से महालक्ष्मी को देखने कोल्हापुर. गाड़ी शाम को छूटती है और सुबह सुबह छत्रपति शाहूजी महाराज टर्मिनस (यही नाम है कोल्हापुर के स्टेशन का) पहुँच जाते हैं. नजदीक के ही एक होटल में कमरे लेकर स्नान पान से निवृत्त हो तैयार हो जाते हैं. हमें बताया गया था की २० किलोमीटर की दूरी पर पन्हाला नाम का एक किला भी है और समुद्र सतह से ३१७७ फीट की ऊंचाई के कारण वहां का हिल स्टेशन भी कहलाता है. प्रातःकालीन दर्शन का वक्त गुजर चुका था. अब क्योंकि मन्दिर जाने का कोई औचित्य नहीं था इसलिए एक टैक्सी लेकर पन्हाला देख आने का कार्यक्रम बनाया गया.
दक्खन के बड़े किलों में से एक पन्हाला भी है जिसका निर्माण शिल्हर शासक भोज II द्वारा सन ११७८ से १२०९ के बीच सहयाद्री पर्वत श्रंखला से जुड़े ऊंचे भूभाग पर करवाया गया था. इस किले का आकार कुछ त्रिकोण सा है और चारों तरफ़ के परकोटे की लम्बाई लगभग ७.२५ किलीमीटर बताई जाती है.
यह किला कई राज वंशों के आधीन रह चुका है. यादवों, बहमनी, आदिलशाही आदि के हाथों से होते होते सन १६७३ में शिवाजी के कब्जे में आ गया. वैसे शिवाजी इस किले पर सन १६५९ से ही लगातार आक्रमण करता रहा है. शिवाजी ने इस किले को अपना मुख्यालय बना लिया था. हलाकि शिवाजी पूरे वक्त किसी न किसी सैनिक अभियान में लगे रहे लेकिन यही वह जगह है जहाँ उन्होंने ने सबसे अधिक समय बिताया था. सन १६८९ से दो बार यह किला औरंगजेब के कब्जे में भी चला गया था लेकिन हर बार मराठे उसे वापस लेने में सफल रहे.
किले के पहुँच मार्ग में ही तालाब के सामने हरे और सफ़ेद रंग से पुती एक दरगाह है जिसके थोड़ा आगे जाकर तीन दरवाज़े से प्रवेश करते हैं. किले के अन्दर एक कोठी हमें दिखाई गई (जो इब्राहीम आदिलशाह द्वारा सन १५०० में निर्मित सज्जा कोठी कहलाती है) जहाँ शिवाजी के ज्येष्ठ चिरंजीव संभाजी को पिता द्वारा ही कैद कर रखा गया था. शिवाजी संभाजी की उद्दंडता, ऐय्याशी आदि के कारण परेशान हो गया था. इसी किले में शिवाजी को सिद्दी जोहर की सेना ने ४ महीने तक घेरे रखा और अंततः एक बारिश की रात शिवाजी वहां से निकल भागा जब की उसका स्वामिभक्त सेनापति बाजी प्रभु देशपांडे ने दुश्मनों को पवनखिंड में रोके रखा और अंततः अपने प्राणों की आहुति दी. किले के अन्दर ही अन्न भण्डारण (अम्बरखाना) एवं जल संग्रहण की बड़ी ही उत्तम व्यवस्था की गई है. कुछ दीवारों/दरवाजों में हमने देखा कि पत्थरों की जोड़ जहाँ होती है वहा शीशा भरा गया है. इसके वैज्ञानिक पक्ष के बारे में हम अनभिग्य हैं. ऊपर किले से नीचे और चारों तरफ़ का नैसर्गिक सौन्दर्य मनमोहक है.
किले से बाहर निकलकर वापस कोल्हापुर की ओर बढ़ चले. तभी एक अच्छा सा ढाबा दिखा जहाँ हम लोगों ने दुपहर का खाना खाया. भोजन में ३ या चार प्रकार की सब्जियां थी. अंकुरित दालों की एक कटोरी भी दी गई जिसे ऊसल कहते हैं. कुल मिला कर खाना अच्छा लगा और बड़े ही सस्ते में निपट गए.
फ़रवरी 9, 2009 को 6:54 पूर्वाह्न
पन्हाला बहुत पहले गये थे और काफी दिनोँ वहाम रहे थे और सारी जगह घूम घूम कर देखीँ थीँ
वहाँ सुश्री लता मँगेशकर जी का घर भी है –
– लावण्या
फ़रवरी 9, 2009 को 7:11 पूर्वाह्न
बहुत जानकारी भरा -शुक्रिया !
फ़रवरी 9, 2009 को 7:44 पूर्वाह्न
बहुत अच्छी जानकरी ! अभी तो जल्दी जल्दी पढ़ा है शाम को आकर फ़िर फुर्सत से पढेंगे !
फ़रवरी 9, 2009 को 8:42 पूर्वाह्न
अच्छी जानकारियां दी आपने। आप न केवल स्थानों का इतिहास बताते हैं अपितु वहां पहुंचने का रास्ता और साधन भी बताते हैं। पर्यटनोत्सुकों के लिए आपकी ये पोस्टें सहायक तो हैं ही, मार्गदर्शक और प्रोत्साहक भी हैं।
फ़रवरी 9, 2009 को 9:06 पूर्वाह्न
पन्हाला …..हमने तो ये नाम ही पहली बार सुना है हाँ कोल्हापुर सुना है …चित्र और विवरण लाजवाब….कभी जाना हुआ तो ये जानकारी बहुत काम आएगी..आभार..”
Regards
फ़रवरी 9, 2009 को 9:09 पूर्वाह्न
मराठा प्रभुत्व के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव.नई नवेली जानकारी.शुक्रिया.
फ़रवरी 9, 2009 को 9:29 पूर्वाह्न
mere liye aisi jaankaree bahut mahatv rakhti hai kyon ki mujhe kahi bhi bhraman ka avsar nahi mila is amulya jaankari ke liye dhanyvaad
फ़रवरी 9, 2009 को 9:30 पूर्वाह्न
पन्हाला नाम तो हमने भी पहली बार सुना है. कोल्हापुर के सम्बन्ध में जानकारी देने का आभार.
फ़रवरी 9, 2009 को 9:55 पूर्वाह्न
रोचक और ज्ञानवर्द्धक।
फ़रवरी 9, 2009 को 10:01 पूर्वाह्न
बहुत ही अच्छी और रोचक जानकारी है.चित्र भी अच्छे लगे.
ऐसा लगता है..ताऊ जी की पहेलियों के लिए तैयारियों में आप के ब्लॉग से भी मदद मिलेगी.
‘पत्थरों के जोड़ में शीशा भरे जाने का वैज्ञानिक पक्ष भी पता करना पड़ेगा!.ऐसा करने के पीछे जरुर कोई न कोई कारण रहा होगा.’
‘उसल-पाव ‘सुना है बहुत स्वादिष्ट होता है.
अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा.
फ़रवरी 9, 2009 को 10:25 पूर्वाह्न
हमेशा की तरह रोचक व ज्ञानवर्धक. तस्वीरें पोस्ट को जिवंत बना देती है.
फ़रवरी 9, 2009 को 11:30 पूर्वाह्न
बहुत रोचक जानकारी आपने दी है. धन्यवाद.
फ़रवरी 9, 2009 को 2:12 अपराह्न
भाई वाह ….आपने यात्रा व्रतांत को खासा दिलचस्प बना के पेश किया है
फ़रवरी 9, 2009 को 3:01 अपराह्न
आपका लेख निसंदेह ज्ञानवर्धक सुगम और रोचक है, इतिहास की बात शायद
उतनी जरूरी नहीं जितना कि खुली आंखों से अपनी धरोहर को देखा जाए आपकी तरह.
फ़रवरी 9, 2009 को 4:38 अपराह्न
ऐसी जगह तो हम चने खाकर भी काम चला लेंगे। बेहतरीन चित्रों से सजा सुरुचिपूर्ण वृतांत पढ़कर आनंद आया।
फ़रवरी 9, 2009 को 4:56 अपराह्न
इतिहास के इस अध्याय की सुंदर जानकारी दी आपने.
फ़रवरी 9, 2009 को 5:05 अपराह्न
आपका यह लेख भी हमेशा की तरह ज्ञान वर्धक और रोचक है चित्र भी काफ़ी आकर्षक है । पढ़ कर अच्छा लगा । आपने लिखा कि आपकी श्री मतीजी को वायु विकार कि तकलीफ है ,इस तकलीफ मे लहसुन बहुत ही कारगर औषधी है । इसको सरसों के तेल मे मिला कर मसाज करने से बहुत आराम मिलता है
फ़रवरी 9, 2009 को 5:33 अपराह्न
एक बार फिर बहुत अच्छी तस्वीरों के साथ एक जानकारी भरा पोस्ट।
फ़रवरी 9, 2009 को 5:44 अपराह्न
Wah Dada behtar jaankaai dee aapne..
फ़रवरी 9, 2009 को 6:54 अपराह्न
बहुत खूब!!
कोल्हापुर नाम देखते ही मैं चला आया. इतना समृद्ध नगर है कि सब कुछ देखने भर के लिये कम से कम एक हफ्ता चाहिये.
आपका वर्णन पढ कर यादें ताजी हो गईं
सस्नेह — शास्त्री
फ़रवरी 9, 2009 को 7:56 अपराह्न
kya kaha jaaye, aapki lekhan shaili ka jawab nahin.
फ़रवरी 9, 2009 को 7:58 अपराह्न
पोस्ट आप बहुत बढ़िया लिखते हैं। सब आंखों के सामने आ जाता है।
I am curious about ऊसल। Is it simply mixture of sprouted daals or some preparation is involved.
फ़रवरी 9, 2009 को 8:54 अपराह्न
SUBRAMANIYAM JI.
BADE HI KAAM KI BAAT PATA CHALI.
LEKIN SABSE JYADA KAAM KEE BAAT HAI KI KOLHAPUR KE STATION KO HI CHHATRAPATI SAHUJI MAHARAJ TRMS KAHTE HAIN.
AUR HAAN MAINE AAPSE AAPKA PHONE NO. MAANGA THA. LEKIN APKI TARAF SE KOI RESPONSE NAHI AAYA.
फ़रवरी 10, 2009 को 2:21 पूर्वाह्न
कल रात को मेने काफ़ी ट्राई किया, लेकिन पुरानी पोस्ट ही दिख रही थी, काम के दिनो, मुझे शाम को ही समय मिलता है.
बहुत सुंदर ढंग से आप ने विवरण किया, ओर साथ मै सुंदर सूंदर चित्र भी,ओर आप के लिखने मै भी एक जादू है, कि मन बार बार पढने को करता है,
उसे पैरों में गठियावात के कारण तकलीफ रहा करती थी. परन्तु किसी नई जगह या फ़िर मन्दिर आदि जाने की बात की जावे तो पूरा दर्द काफूर हो जाया करता, यह वाक्या बहुत सुंदर लगा, हमारी बीबी को कितनी भी गहरी नींद आई हो आप उन्से एक बार पूछ लो फ़िल्म देखे, बस एक दम से चुस्त हो कर पुछेगी हां , कोन सी…:)
धन्यवाद
फ़रवरी 10, 2009 को 9:29 पूर्वाह्न
WAH SAHAB BAHOT HI BADHIYA AUR ROCHAK JAANKARI AAPNE DI,BAHOT HI DHANDAR LIKHA HAI AAPNE MARATHA PRABHUTAWA KO… DHERO BADHAI AAPKO SAHAB….
ARSH
फ़रवरी 10, 2009 को 10:31 पूर्वाह्न
Rochak jankari
फ़रवरी 10, 2009 को 12:17 अपराह्न
बहुत बढ़िया. आभार.
फ़रवरी 10, 2009 को 1:14 अपराह्न
अच्छी एतिहासिक जानकारी दी है।आभार।
फ़रवरी 10, 2009 को 1:16 अपराह्न
अच्छी एतिहासिक जानकारी दी है तथा बहुत ही रोचक व ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आभार।
फ़रवरी 10, 2009 को 6:32 अपराह्न
बहुत ही विस्तत और रोचक जानकारी देने के लिए धन्यवाद। जिन जगहों पर कभी गए नहीं उनके बारे में पढकर बहुत अच्छा लगा।
फ़रवरी 11, 2009 को 7:11 अपराह्न
chaliye ek aur destination jud gaya list mein 🙂
Dhanyawaad is jaankaari ke liye.
फ़रवरी 11, 2009 को 8:09 अपराह्न
सुन्दर सफ़र कराया आपने।उसळ का तो जवाब नही है।
फ़रवरी 12, 2009 को 7:23 पूर्वाह्न
कोल्हापुर के सम्बन्ध में एतिहासिक , विस्तत और रोचक जानकारी देने का आभार!!! यह लेख भी हमेशा की तरह ज्ञान वर्धक और रोचक है चित्र भी काफ़ी आकर्षक है । पढ़ कर अच्छा लगा ।
फ़रवरी 12, 2009 को 11:55 पूर्वाह्न
सुब्रमणियम जी,पोस्ट तो आपकी हमेशा की तरह रोचकता एवं ज्ञानवर्धक जानकारी से भरपूर है ही. लेकिन आज मैं बहुत डरते डरते टिप्पणी करने आया हूं, ये सोचकर कि कहीं भरी जवानी में हमारा नाम बूढों की श्रेणी में न लिख लिया जाए.
वो इसलिए कि आपने अपनी पोस्ट के अन्त में लिखा है कि इस प्रविष्टि के बाद हम कोल्हापुर चलेंगे. लेकिन इस बीच एक पोस्ट युवाओं के लिए भी.हमने सोचा कि अगली पोस्ट युवाओं के लिए लिख रहे हैं तो इसका मतलब हुआ कि ये वाली पोस्ट शायद बुजुर्गों के लिए होगी.. बस इसीलिए डरते डरते आए कि कहीं बुजुर्गवार का ठप्पा न लग जाए.
फ़रवरी 12, 2009 को 12:14 अपराह्न
जानकारी को इतने रोचक अंदाज मे आप लिखते है कि पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है मानो हम वहीं पर हो ।
फ़रवरी 12, 2009 को 8:28 अपराह्न
एक बह्युत अच्छी जानकारी
फ़रवरी 12, 2009 को 10:45 अपराह्न
shukriya is jaankari ke liye
फ़रवरी 13, 2009 को 6:09 अपराह्न
बहुत अच्छी जानकरी मिली. ऊसल मुझे अब तक याद है,
फ़रवरी 14, 2009 को 10:47 पूर्वाह्न
बह्युत अच्छी जानकारी
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : वेलेंटाइन, पिंक चडडी, खतरनाक एनीमिया, गीत, गजल, व्यंग्य ,लंगोटान्दोलन आदि का भरपूर समावेश
फ़रवरी 14, 2009 को 9:54 अपराह्न
बहुत बढ़िया वर्णन !
फ़रवरी 15, 2009 को 4:39 अपराह्न
आठ साल पहले गये थे कोल्हापुर और पन्हाळा । पर आपकी तस्वीरें और वर्णन नें य़ादें ताजा करने के साथ जानकारी से भी समृध्द कर दिया ।
फ़रवरी 16, 2009 को 10:24 पूर्वाह्न
[…] का वास है By पा.ना. सुब्रमणियन पिछली पोस्ट में आपने पन्हाला के किले क…. अब कोल्हापुर चलते हैं. पन्हाला से […]
फ़रवरी 25, 2009 को 10:09 पूर्वाह्न
पन्हाला (कोल्हापुर) कभी मराठों की राजधानी थी
By पा.ना. सुब्रमणियन
teen-darwajaहम मुंबई प्रवास पर थे. हमारी सहधर्मिणी का मैका जो ठैरा. उसे पैरों में गठियावात के कारण तकलीफ रहा करती थी. परन्तु किसी नई जगह या फ़िर मन्दिर आदि जाने की बात की जावे तो पूरा दर्द काफूर हो जाया करता. यही हुआ जब उसके भाई ने असली महालक्ष्मी मन्दिर जाने की बात कही. टिकटों का इंतज़ाम किया गया और दोनों परिवार निकल पड़े महालक्ष्मी एक्सप्रेस से महालक्ष्मी को देखने कोल्हापुर. गाड़ी शाम को छूटती है और सुबह सुबह छत्रपति शाहूजी महाराज टर्मिनस (यही नाम है कोल्हापुर के स्टेशन का) पहुँच जाते हैं. नजदीक के ही एक होटल में कमरे लेकर स्नान पान से निवृत्त हो तैयार हो जाते हैं. हमें बताया गया था की २० किलोमीटर की दूरी पर पन्हाला नाम का एक किला भी है और समुद्र सतह से ३१७७ फीट की ऊंचाई के कारण वहां का हिल स्टेशन भी कहलाता है. प्रातःकालीन दर्शन का वक्त गुजर चुका था. अब क्योंकि मन्दिर जाने का कोई औचित्य नहीं था इसलिए एक टैक्सी लेकर पन्हाला देख आने का कार्यक्रम बनाया गया.
panhala-fort-kolhapurदक्खन के बड़े किलों में से एक पन्हाला भी है जिसका निर्माण शिल्हर शासक भोज II द्वारा सन ११७८ से १२०९ के बीच सहयाद्री पर्वत श्रंखला से जुड़े ऊंचे भूभाग पर करवाया गया था. इस किले का आकार कुछ त्रिकोण सा है और चारों तरफ़ के परकोटे की लम्बाई लगभग ७.२५ किलीमीटर बताई जाती है.
यह किला कई राज वंशों के आधीन रह चुका है. यादवों, बहमनी, आदिलशाही आदि के हाथों से होते होते सन १६७३ में शिवाजी के कब्जे में आ गया. वैसे शिवाजी इस किले पर सन १६५९ से ही लगातार आक्रमण करता रहा है. शिवाजी ने इस किले को अपना मुख्यालय बना लिया था. हलाकि शिवाजी पूरे वक्त किसी न किसी सैनिक अभियान में लगे रहे लेकिन यही वह जगह है जहाँ उन्होंने ने सबसे अधिक समय बिताया था. सन १६८९ से दो बार यह किला औरंगजेब के कब्जे में भी चला गया था लेकिन हर बार मराठे उसे वापस लेने में सफल रहे.
panhala-3729_4किले के पहुँच मार्ग में ही तालाब के सामने हरे और सफ़ेद रंग से पुती एक दरगाह है जिसके थोड़ा आगे जाकर तीन दरवाज़े से प्रवेश करते हैं. किले के अन्दर एक कोठी हमें दिखाई गई (जो इब्राहीम आदिलशाह द्वारा सन १५०० में निर्मित सज्जा कोठी कहलाती है) जहाँ शिवाजी के ज्येष्ठ चिरंजीव संभाजी को पिता द्वारा ही कैद कर रखा गया था. शिवाजी संभाजी की उद्दंडता, ऐय्याशी आदि के कारण परेशान हो गया था. इसी किले में शिवाजी को सिद्दी जोहर की सेना ने ४ महीने तक घेरे रखा और अंततः एक बारिश की रात शिवाजी वहां से निकल भागा जब की उसका स्वामिभक्त सेनापति बाजी प्रभु देशपांडे ने दुश्मनों को पवनखिंड में रोके रखा और अंततः अपने प्राणों की आहुति दी. किले के अन्दर ही अन्न भण्डारण (अम्बरखाना) एवं जल संग्रहण की बड़ी ही उत्तम व्यवस्था की गई है. कुछ दीवारों/दरवाजों में हमने देखा कि पत्थरों की जोड़ जहाँ होती है वहा शीशा भरा गया है. इसके वैज्ञानिक पक्ष के बारे में हम अनभिग्य हैं. ऊपर किले से नीचे और चारों तरफ़ का नैसर्गिक सौन्दर्य मनमोहक है.
panhalafort3किले से बाहर निकलकर वापस कोल्हापुर की ओर बढ़ चले. तभी एक अच्छा सा ढाबा दिखा जहाँ हम लोगों ने दुपहर का खाना खाया. भोजन में ३ या चार प्रकार की सब्जियां थी. अंकुरित दालों की एक कटोरी भी दी गई जिसे ऊसल कहते हैं. कुल मिला कर खाना अच्छा लगा और बड़े ही सस्ते में निपट गए.
इस प्रविष्टि के बाद हम कोल्हापुर चलेंगे. लेकिन इस बीच एक पोस्ट युवाओं के लिए भी.
मार्च 11, 2009 को 11:31 अपराह्न
friends panhala is very big,beautifull fort in india
अप्रैल 15, 2009 को 12:00 अपराह्न
panahala is beautiful fort its situated near the karvirnagari,very interesting place u can enjoy there. U must visit once in your life.
मार्च 29, 2010 को 7:04 अपराह्न
I like every fort. Panhala my best fort because the Shivaji maharaj Fort
अगस्त 9, 2011 को 10:09 अपराह्न
बहुत बढ़िया जानकारियाँ। निश्चित ही आपकी पोस्ट गागर में सागर होती हैं।
सितम्बर 10, 2017 को 1:26 अपराह्न
जहाँ शिवाजी के ज्येष्ठ चिरंजीव संभाजी को पिता द्वारा ही कैद कर रखा गया था. शिवाजी संभाजी की उद्दंडता, ऐय्याशी आदि के कारण परेशान हो गया था
यह गलत है.
मई 14, 2018 को 12:35 अपराह्न
झूटा और असत्य इतिहास .
सावधान ! शिवपुत्र संभाजी की विषय मे सर्वस्वी असत्य इतिहास आपने ब्लॉग मे लिखा है . कृपया माफी मांगे !