१० जून २०१२:
हमारे शिकारे के खिवैय्या शफी भाई के परिवार से सुबह मिलना एक बड़ा ही सुखद अनुभव रहा. आज हम लोगों को ९४ किलोमीटर दूर पहलगाम के लिए निकलना है. हमारे कश्मीर यात्रा के पहले पडाव श्रीनगर को अलविदा कहते हुए इंतज़ार करती गाड़ियों में अपने सामान लदवा दिए. श्रीनगर में शहर से लगी हुए कई अन्य महत्वपूर्ण जगहें हैं जो समयाभाव के कारण छूट रहीं थीं. जैसे शंकराचार्य का मंदिर (तख़्त-ए-सुलेमान), ट्यूलिप उद्यान, शालीमार बाग़ (इसे तो जान बूझ कर हमारे लोगोंने ही छोड़ दिया था), परीमहल, झेलम नदी में नौका विहार करते हुए श्रीनगर के नज़ारे, हरि परबत पर बना किला और उसी के अन्दर शारिका भगवती (जगदम्बा) का मंदिर (खीर भवानी जो कश्मीरी पंडितों की कुल देवी स्वरुप है), हम्ज़ा मखदूम का दरगाह और गुरुद्वारा जिसे छट्टी पादशाही के नाम से जाना जाता है वगैरह वगैरह . इन सबके लिए कम से कम २ और दिन चाहिए थी.
पहलगाम के लिए निकलना हुआ तो ड्राइवर महोदय से निवेदन किया कि कम से कम हरि परबत के नीचे बने दरवाज़े को दिखलाते चले . वैसे जाना भी उधर से ही था. यह इलाका रैनावारी कहलाता है. दरवाजे के सामने गाडी रुकी तो बगैर समय गँवाए हम अन्दर ताक झाँक करने चले गए. पर्वत के ऊपर किला है और नीचे परकोटा है. यहीं से रास्ता जाता है. अकबर ने कभी यहाँ एक “नगर नागोर” बसाने की सोची थी परन्तु यहाँ तो अपने आप बसी हुई है. हमारे ड्राइवर जी का कहना था कि यह बसावट “अनआथोरायिस्ड” है.
एक बहुत ही पुरानी तस्वीर – काठी दरवाज़ा
बस हमें केवाल इतने से ही संतुष्टि कर लेनी पड़ी जब कि ऊपर जाने के लिए रास्ता था जो मुझे ललचा रहा था. अपनी पसंद को दूसरों पर थोपना भी अच्छा नहीं लगा. शहर के तंग रास्तों को छोड़ चौड़े रास्तों से निकलते हुए कुछ दूकाने दिखी जहाँ वहीँ की रीड/Reed (एकदम पतली बेंत जैसी) से बनी प्यारी प्यारी टोकरियाँ और अन्य घरेलु उपयोग की वस्तुएं सजी हुई थी. कुछ आगे चलने पर पत्थर को तराश कर बनाये गए बर्तन और अन्य सामग्रियां दिखीं. अब हम शहर से बाहर आ गए थे और गाडी पूरी रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी. टक-टकी निगाहों से हम देखे जा रहे थे, तलाश थी अवन्तिपुरा की जो श्रीनगर से ३० किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है. वहां रोकने के लिए कह रक्खा था. एक कस्बे से जब गाडी गुजर रही थी तो कुछ खंडहर दिखे. हमने कहा रोको रोको. ड्राइवर ने गाडी रोकते हुए कहा सर मैं तो रोक ही रहा था. यही अवन्तिपुरा था. एक अत्यंत भव्य विष्णु मंदिर यहाँ ९ वीं शताब्दी में अवन्तिवर्मन के द्वारा बनवाया गया था. काफिरों ने इसे ध्वस्त कर दिया. अरे! यह क्या कह और कर रहा हूँ. इस मंदिर के बारे में तो अलग पोस्ट बननी ही है.
रास्ते में बहुत से पारंपरिक मकान दिखे जिनको देखकर लगा कि लोग इनका रख रखाव नहीं कर रहे हैं. मेरी पुत्री ने कहा देखिये इनमें कोई नहीं रहता. हमने इतना ध्यान नहीं दिया था. बात सही थी. पर क्यों? हम कश्मीर के सौन्दर्य को हृदयंगम करने में लगे थे कि उन कश्मीरी पंडितों का ख्याल ही नहीं रहा जिन्हें अपना घर बार छोड़ कर १९९० में पलायन करना पड़ा था. मन खट्टा हुआ जा रहा था. हमने अपना ध्यान यात्रा पर ही केन्द्रित करना उचित समझा. पहलगाम अभी दूर है. हमने ड्राइवर साहब से अनुरोध किया कि वे हमें उनके ग्रामीण इलाकों से भी रूबरू करवाते चलें. इतने में ही एक मोड़ आई जहाँ लिखा था “एपिल वेली”, यहीं से गाड़ी मुख्य मार्ग छोड़ आगे बढ़ने लगी. रास्ते में भेड़ों को हांकते चरवाहे दिखे तभी ड्राइवर साहब ने बताया कि पहलगाम का नाम इन्हीं चरवाहों की वजह से पड़ा है. पहलगाम का मतलब होता है चरवाहों की घाटी या बस्ती. कश्मीरी में चरवाहे के लिए शायद पोहल कहा जाता है.
एक जगह हमें बताया गया कि ये अखरोट के पेड़ हैं. आगे चल कर सेव और चेरी के भी बगान थे परन्तु या तो फल नहीं लगे थे या फिर बहुत ही छोटे छोटे थे. एक बात और पता चली. अब कश्मीर में सेव की खेती कम होती जा रही है. सेव का स्थान चेरी और किवी (न्यूज़ीलैण्ड वाली) ने ले लिया है. तस्वीरें चलती गाडी से ही ले रहे थे. इस इलाके में चावल की खेती खूब होती है. महिलायें धान की रोपाई में लगे हुए दिख रहे थे बिलकुल उसी तरह जैसे हम देश के अन्यत्र भागों में भी देखते हैं. फिर एक गाँव आया. यहाँ के मकान सभी अच्छे थे और ऐसा लग रहा था मानो उनका जीवन स्तर काफी ऊंचा हो. कुछ शुद्ध लकड़ी के बने दो मंजिला छोटे मकान भी दिखे
जिनका उपयोग संभवतः नहीं हो रहा था. उसी तरह की लकड़ी की दूकाने भी कहीं कहीं दिखीं थी. बताया गया था कि नीचे दूकान लगती है और ऊपर का हिस्सा रहने के लिए प्रयुक्त होता है. बस यही एक झलक थी. इसके बाद हम लोग पहलगाम जाने वाले मुख्य मार्ग से जुड़ गए.
अब हम लोग पहलगाम के कुछ करीब थे. सामने एक नदी दिख रही थी जिसे लिद्दर (Liddar) (मूलतः लम्बोदरी) कहा जाता है. यहाँ का माहौल बहुत ही खुशनुमा था. रमणीयता से अभिभूत हो एक फोटो सेशन के लिए गाडी रुकवाई. इस नदी में रेफ्टिंग का आयोजन भी होता है.
कुछ देर में हम लोग पहलगाम के बाज़ार में थे. अब तक बड़ा खुला मौसम था. अचानक से बारिश शुरू हो गयी. वहां एक नामी गिरामी होटल है “नत्थू की रसोई” जहाँ हम लोगोंने बढ़िया खाना खाया और हम लोगों के लिए निर्धारित होटल में पहुँच गए. होटल बहुत दूर ऊँचाई पर ऐसी जगह (लाडिपुरा) थी जहाँ से बस्ती में आना जाना बहुत कठिन था क्योंकि गाँव की सड़क कीचड से भरी थी. था परन्तु चारों तरफ दृश्य नयनाभिराम रहा. यहाँ एक रात ही रुकना हुआ. सुबह वहां से एक दूसरे होटल में चले गए थे.
अगस्त 7, 2012 को 6:40 पूर्वाह्न
हमेशा की तरह सुन्दर चित्र और वर्णन! धन्यवाद!
अगस्त 7, 2012 को 7:35 पूर्वाह्न
वाओ अनुभव… हरियाली की तो बात ही कुछ और है! नदी तो हमे बुलाती सी लग रही है!!
अगस्त 7, 2012 को 7:59 पूर्वाह्न
वर्णन बहुत बढ़िया रहा. फोटो देख कर आनंद आया. कुछ यादें भी जाग उठीं.
अगस्त 7, 2012 को 8:05 पूर्वाह्न
सुन्दर दृश्य, सुन्दर वर्णन..
अगस्त 7, 2012 को 9:10 पूर्वाह्न
Sundar rochak aur manbhavan!
अगस्त 7, 2012 को 9:41 पूर्वाह्न
अपना घर तो सबको प्यारा होता है, लेकिन यह घर- कश्मीर कैसे छूटा होगा.
अगस्त 7, 2012 को 10:12 पूर्वाह्न
आज की पोस्ट सरपट भागती दिखी ! आपसे एक गुजारिश है ज़रा आहिस्ता बढाइये यात्रा को , बीच में कई चीजें आपने विस्तार से नहीं कह पाईं , जबकि हर नुक्ते पर आप अलग पोस्ट दे सकते हैं मैं ये जानता हूं !
जी करता है हर फोटो पर अलग से एक कमेन्ट करूं पर इतने सारी फोटो ? मेरा तो दम ही निकल जाएगा !
मेरे कहने का मतलब ये है कि आप शानदार , आपकी फोटोज शानदार , आपकी पोस्ट भी शानदार पर इतना तेज तेज दौड़ाईयेगा तो हम लुत्फंदोज़ नहीं हो पायेंगे !
अगस्त 7, 2012 को 10:28 पूर्वाह्न
hamesha ki tarah acchhee jaanakaaree|
अगस्त 7, 2012 को 5:57 अपराह्न
कृष्ण चंदर का उपन्यास था पहलगाम का बदनाम -आज इतने समय बाद फिर पहलगाम का इतना विविधता भरा वर्णन सामने आया है -कुछ दृश्य तो सचमुच जमीनी लग ही नहीं रहे ……
अगस्त 8, 2012 को 5:47 अपराह्न
@अली सैय्यद:
“आज की पोस्ट सरपट भागती दिखी” मुझे लगने लगा है कि कश्मीर मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा है. कमसे कम दो पोस्ट और लगेंगे. जल्दी समेटने के चक्कर में संभव है कि लेखन सतही होता जा रहा हो.
अगस्त 8, 2012 को 8:30 अपराह्न
बहुत ही अच्छा वर्णन .
अब तक की सभी पोस्टें पढ़ कर ऐसा लगा कि जीवन में एक बार तो कश्मीर देखना चाहिए.
हरियाली और बर्फ के चित्र देखकर आँखों को राहत मिलती है.
सभी चित्र बेहद सुन्दर.
अगस्त 9, 2012 को 6:24 पूर्वाह्न
कितना अच्छा होता यदि आप डाक्यूमेण्ट्री निर्माता होते। तब शब्दिक सुख, चाक्षुष सुख में बदल जाता। अधिक आनन्द आता -अवर्णनीय।
अगस्त 9, 2012 को 6:25 पूर्वाह्न
कितना अच्छा होता यदि आप डाक्यूमण्ट्री निर्माता होते। तब शाब्दिक सुख, चाक्षुष सुख में बदल जाता। अधिक आनन्द आता। अवर्णनीय।
अगस्त 9, 2012 को 9:04 पूर्वाह्न
खेद है कि आपकी टिपण्णी स्पेम में चली गयी थी. यदि मैं डाक्यूमण्ट्री निर्माता होता तो ब्लॉग्गिंग नहीं करता और आपसे दोस्ती भी नहीं हो पाती. सीडी बना बनाकर फूटपाथ पे बेच रहा होता.
अगस्त 9, 2012 को 1:50 अपराह्न
शनिवार 11/08/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!
अगस्त 9, 2012 को 5:41 अपराह्न
वर्षों पहले जाना हुआ था। जब कश्मीर सचमुच स्वर्ग था।
अगस्त 9, 2012 को 7:08 अपराह्न
काफिरों ने ध्वस्त कर दिया? अगली पोस्ट तक उत्सुकता बनी रहेगी|
अगस्त 11, 2012 को 3:54 अपराह्न
बहुत ही मनोरम दृश्य ! हाँ , मैं भी अली सैयद जी से सहमत हूँ . आपकी ये यात्रा दो-तीन पोस्ट ख़त्म करने का जुल्म न कीजिये . देश के इस खुबसूरत राज्य की इतनी प्यारी जानकारी अन्य किसी स्रोत या माध्यम से नहीं मिल सकती है . उम्मीद है , हमारी बात पर ध्यान दिया जायेगा . सादर !
अगस्त 11, 2012 को 6:27 अपराह्न
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अगस्त 13, 2012 को 2:39 अपराह्न
Lovely pictures sir.
अगस्त 15, 2012 को 4:12 अपराह्न
आपकी पोस्ट आज दोबारा देखी उतना ही आनंद आया /:-)