पिछले एक पोस्ट में मैने उल्लेख किया था कि भाई के साथ कुछ विवादास्पद स्थलों को देखने निकल पड़े थे. उसने हमें चिन्मया इंटरनॅशनल फाउंडेशन जो शहर से २० किलोमीटर दूर वेलियनाड, एरनाकुलम जिले में है के सामने खड़ा कर दिया. हमने पूछा यार यहाँ क्यों ले आए. यहाँ तो वेदांत की बात होती है जो हमारे समझ के परे है. अब तक मैने अपने में किसी प्रकार की अध्यात्मिक रुचियों की परवरिश नहीं की है या असमर्थ रहा. उसने मुझसे आग्रह किया, चलिए तो आप निराश नहीं होंगे.
नंबूतिरी ब्राह्मणों का आवास “मना” या “इल्लम” कहलाता है. इनकी बनावट एक विशिष्ट शैली की होती है जिसे नालुकेट्टू कहते हैं. घर के बीचों बीच एक बड़ा दालान होता है और चारों तरफ विभिन्न प्रायोजनों के लिए निर्माण. ऐसा ही एक विशाल “मना” दिखाई पड़ा और भाई ने बताया कि यह प्राचीनतम है जब कि देखने से ऐसा नहीं लगता. संभवतः अच्छे और सतत रख रखाव के कारण. या फिर जीर्णोद्धार से ही इतने पुराने, भवन का यह स्वरूप हो. विदित हो कि चिन्मया मिशन ने इस पूरे परिसर का अधिग्रहण कर लिया है.
पूरा परिसर लगभग ८.५ एकड़ में फैला हुआ है और इसी के अंदर चिन्मया फाउंडेशन के कार्यालय, सभा कक्ष, छात्रावास, केंटीन आदि भी हैं. बाईं तरफ नंबूदिरी परिवार के नहाने धोने के लिए एक छोटा तालाब भी है जिसमें स्त्री और पुरुषों के लिए अलग अलग घाट बने हैं. यहाँ रख रखाव की कमी दिख रही थी. कुछ ही दूरी पर कुलदेव के लिए मंदिर भी बना हुआ है.
महिलाओं को बाहर ताका झाँकी करने के लिए बनी व्यवस्था
इन सब के अवलोकन के बाद हमलोगों ने मुख्य “मना” के अंदरूनी भाग में प्रवेश किया. अंदर चारों तरफ गलियारा है और उनसे लगे कई कक्ष और बीच में बड़ा सा दालान. आगंतुकों से बतियाने, कृषि उपज को ग्रहण कर भंडारण करने आदि की भी अलग व्यवस्थाएँ हैं. अधिकतर कक्ष बंद रखे गये हैं परंतु गलियारे से चारों तरफ घूमा जा सकता है.
घूमते हुए भवन के पीछे की तरफ बने एक कक्ष से रोशनी आ रही थी. अंदर एक दिया जल रहा था और झाँक कर देखा तो पता चला कि वहाँ बैठ कर लोग ध्यान लगाते हैं. कमरे के बाहर एक ग्रेनाइट फलक पर जो लिखा था उसने चौका दिया. उसमे लिखा था कि आदि शंकराचार्य उसी कक्ष में पैदा हुए थे. अबतक की मान्य धारणा के अनुसार उनका जन्म कालड़ी में ही हुआ था.
हम जिस “मना” की चर्चा कर रहे हैं यही मेलपज़्हूर मना कहलाता है और यही निर्विवाद रूप से शंकराचार्य जी की माता आर्यांबा अंतर्जनम का मायका था. नंबूदिरी परिवारों की महिला सदस्यों को “अंतर्जनम” संबोधित किया जाता है. आर्यांबा का विवाह शशालम (जो बाद में कालड़ी कहलाया) के शिवशरमन नंबूदिरी से हुआ था. नंबूदिरी परिवारों में पहला प्रसव भी ससुराल में ही होता है. दूसरी तरफ लोग दबी ज़बान से कहते हैं कि आर्यांबा के गर्भ धारण के समय ही उनके पति का देहांत हो गया था और इस कारण उन्हें अपने मायके लौटना पड़ा था. वैसे यह भी तय है शंकराचार्य जी का उपनयन संस्कार अपने ननिहाल में ही हुआ था और उसके बाद ही वे वापस कालड़ी आए थे. विषय से परिचित शोधकर्ताओं का मानना है और जो आम धारणा भी है, यही इंगित करता है कि आर्यांबा के पति शिवशरमन की मृत्यु शंकराचार्य जी के जन्म के तीन वर्ष बाद ही हुई थी. एक आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि शंकराचार्य जी को नंबूदिरी समुदाय से समुचित सम्मान नहीं मिला.
नाग लिंग (Canon ball tree flower) के पुष्पों ने हमे विदा किया
फ़रवरी 19, 2013 को 6:47 पूर्वाह्न
A curious new information indeed!
फ़रवरी 19, 2013 को 7:33 पूर्वाह्न
बढिया जानकारी , लगता है कि वहां पर पर्दा व्यवस्था है और ये जो तालाब है क्या ये पुराने जमाने में इस्तेमाल होता था या आज भी चलन में है वैसे रखरखाव से तो लगता है कि अब इसका इस्तेमाल नही होता
फ़रवरी 19, 2013 को 8:14 पूर्वाह्न
अध्यात्मिक रुचि न हो फिर भी रोचक और आकर्षक केन्द्र जान पड़ता है यह.
फ़रवरी 19, 2013 को 8:35 पूर्वाह्न
बढिया जानकारी
फ़रवरी 19, 2013 को 9:13 पूर्वाह्न
शंकराचार्य के बारे में जानकारी को पूरा करिए। अतृप्त करके ही छोड़ दिया। अच्छी जानकारी मिली। आभार।
फ़रवरी 19, 2013 को 9:23 पूर्वाह्न
साफ़ सुथरा आश्रम स्वच्छ कमरे , बरामदा, फूल के साथ काई से अटा पड़ा सरोवर मन को खिचता है . बहुत सूक्ष्म जानकारी के लिए आभार।
फ़रवरी 19, 2013 को 9:56 पूर्वाह्न
सुन्दर। बहुत ही सुन्दर। सब कुछ सुन्दर ही सुन्दर। विवरण भी और चित्र भी।
फ़रवरी 19, 2013 को 10:06 पूर्वाह्न
बहुत बढिया जानकारी मिली, शुभकामनाएं.
रामराम.
फ़रवरी 19, 2013 को 5:16 अपराह्न
यह जानकारी एकदम नयी है.
बहुत खुशी हुई कि अभी तक ये स्थल संरक्षित और सुरक्षित है.यकीनन बहुत अच्छी देख रेख की जाती है .
इस स्थान के चित्र देखकर ही लगता है कि वहाँ पर गहन शांति का अनुभव हुआ होगा
नागलिंग पुष्प बहुत ही सुन्दर है.
फ़रवरी 19, 2013 को 6:41 अपराह्न
जीवंत प्रस्तुति। क्या महिलाओं पर कुछ पाबंदियां हैं?
फ़रवरी 19, 2013 को 6:56 अपराह्न
आपका चिट्ठा टिप्पणी लेने में आनाकानी कर रहा है.
खैर, भारत अगर कहीं है तो दक्षिण में है.
यहाँ अंग्रेजी का बोलबाला कुछ और ही बयाँ कर रहा है
.-
संजय बेंगाणी
फ़रवरी 19, 2013 को 7:02 अपराह्न
@गगन शर्मा:
नम्बूदिरि महिलाओं को अंतर्जनम कहा जाता है. अन्तःपुर में रहनेवाले. विशेष अवसरों को छोड़ वे बाहर नहीं जा सकते और यदि जाते भी हैं तो ताड़ के पत्ते से बने छते को लेकर चलते हैं और अपना मुँह छिपाये रखते हैं.
फ़रवरी 19, 2013 को 8:52 अपराह्न
HARI OM….SUNDAR CHITRAN!!
फ़रवरी 20, 2013 को 1:40 अपराह्न
Anna,
I remember the day when we visited this place. It was not a sunny day. The interiors of the house too was not very bright, typical of a Kerala brahmin house. I am wondering how you could manage to fix the camera at the appropriate angles to give the correct perspectives of the visual (the verandah, inner courtyard, etc) with sufficient lighting. Hats off to you.
I am privy to the topic dealt. Next please cover Trichur Vadakkunnathan Temple where Aadi Shankara’s “Samadhi” is said to exist.
फ़रवरी 21, 2013 को 1:47 अपराह्न
आद्य शंकराचार्य के विषय में एक जगह उल्लेख आता है कि मछली पत्तनम में यज्ञोपवीत संस्कार कराते हुए उन्होने अपने कुल का परिचय कुछ इस प्रकार दिया था। इसके आगे की पंक्ति मैं भूल चुका हूँ।
“आचार्य शंकरो नाम त्वष्टा कुल न संशय”
फ़रवरी 25, 2013 को 9:51 अपराह्न
Surprising Facts : शंकराचार्य जी को नंबूदिरी समुदाय से समुचित सम्मान नहीं मिला.