दक्षिण भारत में चेन्नई से ८३ किलोमीटर की दूरी पर चेंगलपेट के पास एक कस्बा है “उतीरामेरूर” और आबादी लगभग २३०००. यह सन ८८० के दशक में चोल वॅशी राजा परंतगा सुंदरा चोल के आधीन था. उस राजाओं के जमाने में भी ग्राम प्रशासन में प्रजातंत्र का जो अनोखा उदाहरण मिलता है, उससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उन दिनों हमारी सामाजिक व्यवस्था कितनी सुसभ्य और उन्नत थी. बस अड्डे के पास ही एक शिव मंदिर है. उसकी दीवारों पर चारों तरफ हमारे संविधान की धाराओं की तरह ग्राम प्रशासन से संबंधित विस्तृत नियमावली उत्कीर्ण है जिसमें ग्राम सभा के सदस्यों के निर्वाचन विधि का भी उल्लेख मिलता है. इसे राजा परंतगा सुंदरा चोल ने अपने शासन के १४ वें वर्ष उत्कीर्ण करवाया था. उन दिनों ग्राम सभा के सदस्यों के निर्वाचन हेतु जो पद्धति अपनाई जाती थी उसे “कुडमोलै पद्धति” कहा गया है. कूडम का अर्थ होता है मटका और ओलै ताड़ के पत्ते को कहते है. गाँव के केंद्र में कहीं एक बड़े मटके को रख दिया जाता था और नागरिक, उम्मेदवारों में से अपने पसंद के व्यक्ति का नाम एक ताड़ पत्र पर लिख कर मटके (Ballot Box) में डाल दिया करते थे. बाद में उसकी गणना होती थी और ग्राम सभा के सदस्यों का चुनाव हो जाया करता था.
उत्कीण अभिलेखों के आधार पर कहा जा सकता है कि ग्राम सभा कि सदस्यता के लिए जो निर्धारित मानदंड थे वे हमें शर्मिंदा करते हैं. निर्वाचन में भाग लेने के लिए जो पात्रताएँ दर्शाई गई हैं वे निम्नानुसार हैं.
१. प्रत्येक उम्मेदवार के पास एक चौथाई वेली (भूमि का क्षेत्र) कृषि भूमि का होना आवश्यक है.
२. अनिवार्यतः उसके पास स्वयं का घर हो.
३. आयु ३५ या उससे अधिक परंतु ७० वर्ष से कम हो.
४. मूल भूत शिक्षा प्राप्त किया हो और वेदों का ज्ञाता हो.
५. पिछले तीन वर्षों में उस पद पर ना रहा हो.
ऐसे व्यक्ति ग्राम सभा के सदस्य नहीं बन सकते:
१. जिसने शासन को अपनी आय का ब्योरा ना दिया हो.
२. यदि कोई भ्रष्ट आचरण का दोषी पाया गया हो तो उसके खुद के अतिरिक्त उससे रक्त से जुड़ा कोई भी व्यक्ति सात पीढ़ियों तक अयोग्य रहेगा.
३. जिसने अपने कर ना चुकाए हों.
४. गृहस्त रह कर पर स्त्री गमन का दोषी.
५. हत्यारा, मिथ्या भाषी और दारूखोर.
६. जिस किसी ने दूसरे के धन का हनन किया हो.
७. जो ऐसे भोज्य पदार्थ का सेवन करता हो जो मनुष्यों के खाने योग्य ना हो.
ग्राम सभा के सदस्यों का कार्यकाल वैसे तो ३६० दिनों का ही रहता था परंतु इस बीच किसी सदस्य को अनुचित कर्मों के लिए दोषी पाए जाने पर बलपूर्वक हटाए जाने की भी व्यवस्था थी. उस समय के लोगों की प्रशासनिक एवं राजनैतिक सूजबूझ का अंदाज़ा इसी बात से लगता है कि लोक सेवकों के लिए वैयक्तिक तथा सार्वजनिक जीवन में आचरण के लिए आदर्श मानक निर्धारित थे.
ग़लत आचरण के लिए जुर्माने की व्यवस्था बनाई गयी थी. जुर्माना ग्राम सभा ही लगाती थी और जिसे भी यह सज़ा मिलती, उसे दुष्ट कह कर पुकारा जाता. जुर्माने की राशि प्रशासक द्वारा उसी वित्तीय वर्ष में वसूलना होता था अन्यथा ग्राम सभा संज्ञान लेते हुए स्वयं मामले का निपटारा करती. जुर्माने की राशि के पटाने में देरी किए जाने पर विलंब शुल्क भी लगाया जाता था. निर्वाचित सदस्य भी ग़लतियों के लिए जुर्माने के भोगी बन सकते थे.
इन्हीं शिलालेखों से पता चलता है कि स्वर्ण या स्वर्ण आभूषणों के व्यवसाय को पारदर्शी बनाए रखने के लिए स्वर्ण के परीक्शण कि व्यवस्था बनाई गयी थी. इसके लिए एक १० सदस्यों वाली समिति होती थी जो स्वर्ण तथा उससे बने आभूषणों को सत्यापित करती थी. ३ माह में एक बार ग्राम सभा के सम्मुख उपस्थित होकर इस समिति को शपथ लेना होता था कि उन्होने कोई भ्रष्ट आचरण नहीं किया है. इसी तरह अलग अलग कार्यों के लिए समितियों का गठन किया जाता था जैसे, जल आपूर्ति, उद्यान तथा वानिकी, कृषि उन्नयन आदि आदि. और ऐसे हर समिति के लिए अलग से दिशा निर्देश भी दिए गये है.
सार्वजनिक विद्यालयों में व्याख्यताओं की नियुक्ति के भी नियम थे. अनिवार्य रूप से वे शास्त्रों, वेदों आदि के ज्ञाता रहते थे और सदैव बाहर से ही बुलाए जाते थे.
एक वो थे और एक हम हैं!
मंदिर का चित्र: सरवनन अय्यर
as.saravanan@gmail.com
जनवरी 26, 2009 को 8:11 पूर्वाह्न
कुछ बात है की ह्स्ती मिटती नहीं हमारी……
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाऐं
जनवरी 26, 2009 को 8:42 पूर्वाह्न
आपने इस मौके पर बेहतरीन जानकारी उपलब्ध कराई । अगर ये नियमावली आज लागू हो जाए तो देश में नेताओं का अकाल पड जाएगा । इस नियमावली को अपनाया जाए ,तो वर्तमान समय का राजनीतिक- सामाजिक संकट खत्म हो जाएगा ।
जनवरी 26, 2009 को 9:36 पूर्वाह्न
गज़ब की जानकारी दी आपने.
आपको, आपके परिवार एवं मित्रों को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई! वंदे मातरम!
जनवरी 26, 2009 को 9:46 पूर्वाह्न
वाह दादा वाह.. क्या बात है…. बढ़िया जानकारियों का खज़ाना है आपके पास…
जनवरी 26, 2009 को 10:05 पूर्वाह्न
आज के दिन इससे श्रेष्ठ प्रस्तुति और क्या हो सकती है? यही है वास्तविक गणतन्त्र-‘तन्त्र’ जो ‘गण’ के प्रति उत्तरदायी हो।
आपकी इस पोस्ट का उपयोग अन्यत्र करने के लिए अनुमति दें।
गणतन्त्र की आत्मा से सामुख्य कराने के लिए कोटि-कोटि साधुवाद।
जनवरी 26, 2009 को 10:09 पूर्वाह्न
सुन्दर. हमारे अतित से रूबरू करवाने के लिए.
जिन कारणों से तब व्यक्ति अयोग्य करार दिया जाता था, वे आज योग्यताएं है.
जनवरी 26, 2009 को 10:10 पूर्वाह्न
बहुत ही रोचक जानकारी देने के लिये आभार। परन्तु यह गणतन्त्र तो रोमन रिपब्लिक जैसा ही था। इसमें संपत्तिशाली वर्गों का वर्चस्व ही सुनिश्चित किया गया था। संपत्तिहीन वर्ग का कोई भी व्यक्ति चुना नहीं जा सकता था। शिक्षा और वेदों के अध्ययन की शर्त के कारण कोई भी शूद्र निर्वाचित नहीं हो सकता था। तत्कालीन समाज की दृश्टि से यह यह गणतन्त्र एक प्रगतिशील कदम था परन्तु ये हमारा
आज का आदर्श तो नहीं बन सकता।
जनवरी 26, 2009 को 10:46 पूर्वाह्न
आपने पूरा अतीत हि स्मरण करवा दिया.
गणतंत्र दिवस की बधाई और घणी रामराम जी.
जनवरी 26, 2009 को 10:59 पूर्वाह्न
वाह वह तो रामराज्य था !
जनवरी 26, 2009 को 12:40 अपराह्न
बहुत सुंदर…. गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं…!
जनवरी 26, 2009 को 1:42 अपराह्न
अति रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी है, यह तो !
और, इसी को कहेंगे सार्थक ब्लागिंग ।
आपने मन मोह लिया सुब्रह्ममनियम जी ।
जनवरी 26, 2009 को 1:52 अपराह्न
@ Dr. Amar jyoti
हालाँकि ब्लागलेखक से इतर किसी अन्य को निराकरण करने का अधिकार है, या नहीं ?
यह तो नहीं जानता.. पर मुझे लगता है, कि सुब्रह्ममनियम जी का मन्तव्य केवल अपने अतीत कि परंपराओं को हमारे सम्मुख लाने का ही है । और, यह सत्य है कि हममे से शायद ही कोई यह जानकारी पहले से रखता रहा होगा ।
यदि हम वर्तमान में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति ही सचेत नहीं रह पा रहे हैं तो,इस पोस्ट में संदर्भित जानकारियों की समीक्षा या आलोचना करने से क्या लाभ… ?
जनवरी 26, 2009 को 2:31 अपराह्न
गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ।
बहुत रोचक जानकारी दी है। धन्यवाद।
मेरे विचार में भूमि होने आदि को योग्यता इसलिए बताया होगा कि जिसके पास अचल सम्पत्ति हो वह अचानक घपला करके भाग नहीं सकता। यह एक तरह से नागरिक की अपने क्षेत्र से जुड़ाव की गारंटी रही होगी।
वेदों का ज्ञान शायद वैसे ही जैसे आज हम पढ़े लिखे नेता पाने की चाहत रखते हैं।
शूद्रों व गरीबों को वंचित रखना उद्देश्य रहा होगा कहा नहीं जा सकता। यदि किसी भी जाति के व्यक्ति को वेद पढ़ने व सम्पत्ति अर्जित करने का अधिकार भी रहा होता तो यह सब उचित ही होता।
घुघूती बासूती
जनवरी 26, 2009 को 3:06 अपराह्न
बहुत रोचक ऍतिहासिक जानकारी दी आपने। मगध साम्राज्य के ज़माने में वैशाली का लिच्छवी गणतंत्र भी प्रजातांत्रिक परम्पराओं का वहन करने की दृष्टि से अनोखा था।
जनवरी 26, 2009 को 3:49 अपराह्न
अगर कुछ सामंती नियमों को छोड़ दें तो बेहतर प्रजातंत्र था। अब तो भ्रष्टतंत्र है।
जनवरी 26, 2009 को 5:28 अपराह्न
गज़ब की जानकारी दी आपने.
आपको, आपके परिवार एवं मित्रों को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई! वंदे मातरम!
जनवरी 26, 2009 को 5:45 अपराह्न
अपने पुरखों के नीति मत्ता के बारे में जानकर बहुत गर्व महसूस हुआ और अपने वर्तमान की नीतिमत्ता को जानते हुए शर्म. आप वास्तव में कुछ अनसुनी अनदेखी जानकारी देते हैं . आपका ब्लॉग्गिंग सार्थक है.
जनवरी 26, 2009 को 8:13 अपराह्न
@Dr.Amar Kumar ji,
मेरा मन्तव्य आलोचना का नहीं था। आलेख का अन्तिम वाक्य है ‘एक वो थे और…’। इससे ऐसा लगता है जैसे लोकतन्त्र का वह स्वरूप आज के लोकतन्त्र से बेहतर था। मेरा मानना है कि अपनी सारी कमज़ोरियों के बावज़ूद आज का समाज तत्कालीन समाज की अपेक्षा अधिक लोकतान्त्रिक है।जो कमज़ोरियां/कमियां आज दिखती हैं वे कठोर संघर्ष से ही दूर होंगी और भविष्य में लोकतन्त्र का और भी परिष्कृत रूप विकसित होगा।
@अमर ज्योति जी:
आपका आभार. हमने कुछ पंक्तियों को लाल अक्षरों में दिखाया है. हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी हमारे दृष्टिकोण से समाज मे व्याप्त भ्रष्टाचार है. निश्चित रूप से कुछ अंशों में ही सही उनकी व्यवस्था कारगर थी.
सुब्रमणियन
जनवरी 26, 2009 को 9:52 अपराह्न
बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने, लेकिन आज हो तो सब इस से उलटा हो रहा है, क्योकि यह सविधान भी तो हम ने अपनी अकल से नही लिखा, बल्कि इधर उधर से इक्ठ्ठा कर के हमारे सामने परोस दिया….
आप का लेख पढ कर लगा की हम तरक्की तो बिलकुल भी नही कर रहे, वरना अगर हम तरक्की करते तो दुनिया मै एक मिशाल कायम करते
आप का धन्यवाद
जनवरी 26, 2009 को 9:57 अपराह्न
जितना जानेँ वही बहुत है समाज के बारे मेँ –
गणतँत्र दिवस की शुभेच्छाएँ
और अतीत मेँ रची बसी
इस गणतात्रिक परम्परा से परिचित करवाने के लिये धन्यवाद सुब्रह्ममणियम जी….
जनवरी 26, 2009 को 10:15 अपराह्न
अतीत के इस ज्ञान से सुधरेगा वर्तमान शायद । धन्यवाद ।
जनवरी 27, 2009 को 9:18 पूर्वाह्न
उस प्राचीन व्यवस्था की जानकारी का आभार. हमें संविधान के विभिन्न प्रावधान आयात करने से पूर्व एक बार अपने अतीत की ओर भी देख लेना उचित रहता.
(gandhivichar.blogspot.com)
जनवरी 27, 2009 को 11:03 पूर्वाह्न
Gantantra diwas ki shubhkaamnaye.
achhi jankari.
जनवरी 27, 2009 को 4:10 अपराह्न
बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख.
जानकारी से पता चलता है,की उस समय की शासन व्यवस्था कितनी साफ़ सुथरी रही होगी और पारदर्शी भी.
दक्षिण भारत के स्मारकों के बारे में कृपया और भी जानकारियाँ बांटिये,प्रतीक्षा रहेगी.,
जनवरी 27, 2009 को 6:26 अपराह्न
आपके ब्लॉग पर पहले भी आती रही हूं. काफ़ी रोचक जानकारी दी है आपने. खास तौर से लाल पंक्तियों मे इंगित सात पीढ़ियों तक फिर से चुनाव के लिए खड़े ना हो पाने की बात वाकई बहुत महत्वपूर्ण थी. बात सिर्फ़ शासन के नियमों की नहीं है, ज़रूरी यह भी है की उनका पालन करने वाले लोग कैसे थे. हमारा आज का जो संविधान है उसमें बहुत से लूपहोल्स निकाल लिए हैं हमारे पॉलिटिशियन्स ने, वरना कहीं ज़्यादा डीटेल मे कॉन्स्टिट्यूशन बनाया ही डेमॉक्रेसी की फंक्षनिंग के लिए है. इस लेख को पढ़ कर यह भी पता चलता है की हमारा यहाँ कितने दिन पहले से ऐसी व्यवस्था रही धन्यवाद आपका.
जनवरी 27, 2009 को 8:33 अपराह्न
नई जानकारी मिली ,शुक्रिया
जनवरी 27, 2009 को 11:15 अपराह्न
बहुत अच्छी जानकारी आपने दी. सही बात तो यह है कि लोकतंत्र हमारे लिए कोई नई बात नही है. शासन की यह प्रणाली हमारे यहाँ कई सहस्राब्दियों से चली आ रही थी. गौतम बुद्ध को वैशाली सबसे अधिक प्रिय इसीलिए थी क्योंकि वहा गणतंत्र था. गणतंत्र उन्हें सर्वाधिक प्रिय इसीलिए था क्योंकि यह उनके संस्कार में था. असल में उनके पिता शुद्धोदन जिस राज्य के शासक थे, वह शाक्य गणराज्य भी लोकतांत्रिक शासन प्रणाली वाला था. तो क़रीब ढाई-तीन हज़ार साल से तो यहाँ लोकतंत्र होने का सीधा सबूत है. हाँ, लोकतंत्र का पतन यहँ शुरू हुआ है यवनों के आक्रमण के बाद से और लोकतंत्र के पतन के साथ ही देश का पतन भी शुरू हो गया है.
जनवरी 28, 2009 को 6:36 पूर्वाह्न
राजतन्त्र के अधीन तथाकथित “प्रजातंत्र”.
एक वर्ग विशेष के हितों को ध्यान में रखकर बनाये गए इस नियमावली से राजतन्त्र की पूरी झलक आ रही है-
1. मूल भूत शिक्षा प्राप्त किया हो और वेदों का ज्ञाता हो- इस लेख से यह स्पष्ट नही हो पा रहा की उस समय गावों में कितने लोग शिक्षित होते थे और शिक्षा की क्या व्यवस्था थी. आज से १००० साल पहले शिक्षा की आवश्यकता एक वर्ग विशेष के लिए ही समझी जाती थी. और इस नियम के अंतर्गत पहले ही उम्मीदवारी को एक वर्ग के साथ जोड़ दिया गया था. कैसे सभी वर्गों की भागीदारी सम्भव थी. शेष लोग का अधिकार केवल मत देने तक ही सीमित रहा होगा.
अन्य दो नियम
2. प्रत्येक उम्मेदवार के पास एक चौथाई वेली (भूमि का क्षेत्र) कृषि भूमि का होना आवश्यक है.
3. अनिवार्यतः उसके पास स्वयं का घर हो.
उपर्युक्त दो योग्यता भी वाही लोग बहुत ही आसानी से पूरी करते थे जो पहले नियम को पूरा करते थे. किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए अयोग्य कर देना की उसके पास अपनी भूमि नही है कहाँ तक उचित था. घर की कोई परिभाषा नही दी गई है लेख में. क्या जो लोग फूस की झोपडियों में रहते थे उसे घर कहा जाता था या नही…शायद नही …अगर हाँ तो कौन सा व्यक्ति रहा होगा जिसके पास घर नही होता था. उस समय तो किराये पर रहने की भी धारणा न थी.
ऐसे व्यक्ति ग्राम सभा के सदस्य नहीं बन सकते:
१. जिसने शासन को अपनी आय का ब्योरा ना दिया हो- १००० साल पहले आय का व्योरा कौन लोग शासन को देते थे. निःसंदेह जिनकी एक अच्छी आय होती होगी….जो लोग पढ़े लिखे होते होंगे.
२. यदि कोई भ्रष्ट आचरण का दोषी पाया गया हो तो उसके खुद के अतिरिक्त उससे रक्त से जुड़ा कोई भी व्यक्ति सात पीढ़ियों तक अयोग्य रहेगा.— एक व्यक्ति के दोषों की सजा दूसरा कोई क्यों भुगते ?
७. जो ऐसे भोज्य पदार्थ का सेवन करता हो जो मनुष्यों के खाने योग्य ना हो.- मनुष्य के ना खाने योग्य कौन से भोज्य पदार्थ थे?
मैं विनय के साथ कहना चाहता हूँ की मुझे इस व्यवस्था में कहीं प्रजातंत्र नही नज़र आता है. अपनी छोटी सोच के लिए मैं सबसे क्षमा प्रार्थी हूँ.
जनवरी 28, 2009 को 4:00 अपराह्न
good post yar
जनवरी 28, 2009 को 6:37 अपराह्न
आपकी ये पोस्ट पढ़कर मज़ा आ रहा है. मैं अंग्रेज़ी मल्हार का तो पाठक हूँ ही पर अब इसका भी फैन हो गया.
दक्षिण भारत में अभिलेखीय संपदा का भण्डार है जो तत्कालीन समाज का चित्र आज हमारे सामने रखती है.वहाँ उर, सभा और नगरं नामकी सामाजिक समितियां थी.सभा सिर्फ़ ब्राहमणों की समिति थी जिसका प्रतिनिधि उदाहरण उतर्मेरुर अभिलेख में मिलता है.ब्रह्मण वहाँ भी मुख्यतः उत्तर भारत की पौराणिक, वर्णाश्रम धर्म की संस्कृति लेकर आए थे,इसलिए उनकी सभा के नियम संभवतः पूरे समाज की व्यवस्था पर लागु नही होते.
विज्ञ लेखक से इस पर और रौशनी की अपेक्षा है.
जनवरी 28, 2009 को 7:52 अपराह्न
आपका जितना भी साधुवाद अदा किया जाये, कम है. ऐसी ऐसी नायाब जानकारी, वो भी घर बैठे सचित्र, बहुत बहुत आभार.
जनवरी 28, 2009 को 8:32 अपराह्न
सुब्रमनियम जी,
लगता है कि ये संविधान तेलुगु भाषा में है. इसका अर्थ हुआ कि इसे लोक जीवन से जोड़कर ही बनाया गया था. बढ़िया काम की जानकारी
और ये प्रताप जी क्या कह रहे हैं? मेरे हिसाब से प्रताप जी छोटी सोच के रोग से पीड़ित हैं.
इन्हें जवाब दीजिये. इनकी तसल्ली कीजिये.
जनवरी 28, 2009 को 10:03 अपराह्न
रोचक जानकारी देने के लिये बहुत आभार
जनवरी 28, 2009 को 11:18 अपराह्न
आज ऐसे ही व्यक्ति हमारे देश की किसी सभा के सदस्य हो सकते हैं :
१. जिसने शासन को अपनी आय का ब्योरा ना दिया हो.
२. भ्रष्ट आचरण का दोषी
३. जिसने अपने कर ना चुकाए हों.
४. गृहस्त रह कर पर स्त्री गमन का दोषी.
५. हत्यारा, मिथ्या भाषी और दारूखोर.
६. जिस किसी ने दूसरे के धन का हनन किया हो.
७. जो ऐसे भोज्य पदार्थ का सेवन करता हो जो मनुष्यों के खाने योग्य ना हो.
जनवरी 29, 2009 को 10:29 पूर्वाह्न
जानकारी से भरपूर्ण पोस्ट है । और इस पोस्ट ने हमें हमारे हिस्ट्री पढने के दिन याद दिला दिए ।
जनवरी 29, 2009 को 1:00 अपराह्न
वाह ! अपने प्रकार की अनूठी जानकारी पेश की है आपने ! इस प्रकार आप प्राचीन भारतीय इतिहास तथा समाज के बेहतरीन पहलू के बारे में जागरूकता जाग्रत करने में कामयाब हैं ! देश के लिए अमूल्य सेवा है आपकी !
सादर नमस्कार !
जनवरी 29, 2009 को 8:11 अपराह्न
नयी जानकारी मिली। आभार।
जनवरी 30, 2009 को 9:34 अपराह्न
यह तो बहुत महत्वपूर्ण बात बताई आपने उतीरामेरूर के बारे में।
फ़रवरी 12, 2009 को 7:43 पूर्वाह्न
अगर ये नियमावली आज लागू हो जाए तो देश में नेताओं का अकाल पड जाएगा । इस नियमावली को अपनाया जाए ,तो वर्तमान समय का राजनीतिक- सामाजिक संकट खत्म हो जाएगा!!!
धन्यवाद आपका!!!!
अप्रैल 18, 2009 को 1:41 पूर्वाह्न
अनूठी जानकारी….हमे पाषाणों पर उत्कीर्ण इतिहास से बहुत कुछ सीखने समझने की ज़रूरत है।
जुलाई 23, 2009 को 1:08 अपराह्न
excellent information is given with photograph avidences . These are the pillars of anciant india. Easy to follow.
अगस्त 24, 2009 को 7:50 पूर्वाह्न
Very interesting to know the roots of the democracy in our land.
नवम्बर 16, 2010 को 1:02 अपराह्न
my ias subject is history for mains exam that improved my subject
अक्टूबर 16, 2014 को 11:08 पूर्वाह्न
Rajtantra me gram sabha ka gathan thik hai, par loktantra me parivartan ki jarurat hai.
जून 4, 2016 को 5:13 अपराह्न
विवेचना तथ्यपूर्ण है मै संतुष्ट हूँ फिर जाने क्यों ऐसा लगता है कि कोई कमी रह गयी है काश वह कमी पूरा हो जाता तो शायद जानकारी की जिज्ञाषा अधूरी नहीं रहती |