कपालीश्वर

चेन्नई की सबसे पुरानी और घनी आबादी वाली बस्ती है मयिलापुर. प्रख्यात कपालीश्वर का मंदिर भी यहीं है. भगवान् शिव ने ब्रह्मा जी के अनादरपूर्ण व्यवहार से कुपित होकर उनके एक सर (कपाल) को कलम कर दिया था. ब्रह्माजी ने उन्हें मनाने के लिए इसी जगह एक शिव लिंग की स्थापना की थी इसलिए यहाँ शिव को कपालीश्वर नाम पड़ा. यहाँ देवी पार्वती “कर्पगाम्बाल” कहलाती हैं. एक दूसरी कहानी यह भी है कि कर्पगाम्बाल को श्रापग्रस्त होने पर मोर (मयूर) के रूप में रहना पड़ा था और श्राप से मुक्त होने के लिए यहीं पर भगवान् शिव की आराधना की थी. तामिल में मोर को मईल कहते हैं इसलिए भी यह स्थल मयिलापुर कहलाया. एक और कहानी है कि यहाँ शिव जी को मोर के रूप में पूजा जाता था और अब वह मूल मूर्ति जिना (जैन) कांची  में है.

५ वीं से लेकर  १० वीं शताब्दी के बीच के भक्ति काल में ६३ शैव भक्त (संत) हुए हैं जो दलित समेत समाज के विभिन्न वर्गों से रहे हैं. इन्हें  नायनार कहा जाता है.    दक्षिण के सभी बड़े शिव मंदिरों में इनकी मूर्तियाँ कतारबद्ध देखी जा सकती हैं. इनमें “अप्पर”, “सुन्दरर” और “सम्बन्दर” अग्रणी हैं. भगवान् शिव का गुण गान करते इनकी बड़ी प्रतिष्ठित रचनाएं हैं जिनकी  प्राचीन तमिल साहित्य में अनमोल रत्नों की तरह मान्यता है. उनकी ही रचनाओं में कपालीश्वर  के मंदिर को समुद्र से सटा हुआ बताया गया है. इस मंदिर को पल्लवों के शासन काल में ७ वीं सदी का बना बताया जाता है परन्तु मंदिर स्थापत्य के दृष्टिकोण से यह ४ या ५ सौ वर्षों पुराना ही माना जाता है. वस्तुतः यह मंदिर पहले वहां से २/३ किलोमीटर दूर समुद्र तट पर ही था जिसे पुर्तगालियों ने १६ वीं सदी में सेंट थोमस के कब्र की तलाश में नष्ट कर दिया था. आज भी वर्त्तमान मंदिर में १२ वीं सदी के कुछ खंडित शिलालेख पाए जाते हैं जो संभवतः समुद्र तट से समेटे गए थे. एक ऐतिहासिक सत्य यह भी है कि वर्त्तमान क्षेत्र जहाँ कपालीश्वर  का मंदिर बना है,  वह जैन सम्प्रदाय का केंद्र रहा होगा क्योंकि इस मंदिर से एक मयूर की प्रतिमा का जिना कांची स्थानांतरित कर दिया जाना  चेन्नई में उस काल में जैन मत के प्रभावहीन हो जाने का संकेत देता है.

कपालीश्वर  के मंदिर के बारे में जानकारियाँ  तो थीं परन्तु अपने मित्रों के नयन सुख हेतु कुछ चित्रों का जुगाड़ करने ७ फ़रवरी के अपरान्ह निकल पड़े थे. ४ बज रहे थे और धूप भी कडाके की थी. मंदिर तो पहुँच गए परन्तु फिर छाया चित्रों पर प्रतिबन्ध देख मन उचट गया. कुछ बाहर से ही ले लिए. पूर्व  और पश्चिम की तरफ से दो प्रवेश द्वार (गोपुरम) हैं और अन्दर कपालीश्वर तथा कर्पगाम्बाल (पार्वती) के अतिरिक्त  नृत्य गणेश, कार्तिकेय, नवग्रहों आदि के मंदिर भी अवस्थित हैं. हम मंदिर के पश्चिमी (पार्श्व) भाग से प्रविष्ट हुए थे क्योंकि उसी तरफ एक बड़ा तालाब है जहाँ से दृश्यांकन मनोहर होता है.

अन्दर घूमते हुए मंदिर के प्रांगण  में ही  एक फूलों से आच्छादित  पेड़ दिखा. यह वहां का स्थल वृक्ष था.  जेब से केमरा निकाला ही था कि आवाज आई “ये ये यहाँ फोटो नहीं”,  एक बार और मन मसोसकर रह गए और फिर कुछ भी देखे बगैर पीछे से ही बाहर निकल पड़े. हाँ उस पेड़ को वहां पुन्नई कहते हैं. चेन्नई के ऐसे पेड़ों में वह सबसे पुराना कहा जाता है. संस्कृत में पुन्नगा, नाग चंपा  अथवा पुरुषकेशर. वैज्ञानिक नाम Calophyllum inophyllum है. यह पेड़ उष्ण कटिबंधीय है. फूल सुन्दर और सुगन्धित होते हैं.  इसके बीज से हरे रंग का तेल निकलता है जिसका औषधीय प्रयोग के अतिरिक्त प्रसाधन सामग्रियों जैसे क्रीम अदि में उपयोग होता है. आजकल कुछ जगहों में इन पेड़ों को बड़े पैमाने में लगाया जा रहा है क्योंकि इसके बीजों का तेल भी डीज़ल का विकल्प माना गया है. इस पेड़ की एक और खूबी भी है. साधारणतया यह अपने आप उगता है (हाँ कोई कारक तो होगा ही) और उन्हीं जगहों पर होता है जहाँ नीचे पानी का स्रोत हो. इसका यह भी मतलब हुआ कि यह नैसर्गिक रूप से  जहाँ भी पाया जाता है उसके पास कुआँ खोदने पर एकदम कम गहराई में ही पानी उपलब्ध हो जाती है.

मंदिर से निकल कर वहां के पवित्र तालाब के दूसरी छोर तक जाना हुआ जहाँ से मंदिर का विहंगम दृश्य दिखलाई पड़ता है. वहीँ लगी हुई मुख्य सड़क भी है और तालाब में प्रवेश के लिए मात्र एक द्वार है. वहां भी पुलिस तैनात थी. कुछ आधुनिक (हवा भरे जाने वाला) नाव तालाब में उतारे जा रहे थे. पता चला उस दिन मंदिर में कोई उत्सव है और संध्या  देवताओं का नौका विहार कार्यक्रम है. अन्दर घुसने के लिए एक पुलिस जवान ने तो मना ही कर दिया था बाद में एक तीन तारा वाले से  अनुरोध करने पर १० मिनट के लिए हमें अन्दर जाने की अनुमति मिल गयी. हम इतने से ही संतुष्ट थे.

20 Responses to “कपालीश्वर”

  1. ramakant singh Says:

    nice

  2. ramakant singh Says:

    nice information

  3. Ishwar karun Says:

    kal mandir mein ther yani rath yatra hai aur parson 63 naayanmaron ko palki per ghumane ka samaroh bhi,hindu dharm mein bhagwan ka rath khinchne se swarg prapti ki garanti bhi mil jati hai,yah bhi ki rath khinchne wale ko putra prapti hoti hai aur jinko putra hai rath khichna unka kartavya bataya gaya hai…vartman ka chennai mahanagar isi gaon ke as pas basana shuru hua tha…apne jis pushpa ka vivaran diya hai uske theek uttar mein maulshri ka per bhi hai jo prachintam gyat pushpo mein ek hai aur uska ullekh pauranik grantho mein hai,kalidas(8 vi shati) ke sahityamein bhi…achhe aalekh ke liye sadhuvad.
    ishwar karun,chennai.

  4. Saralhindi Says:

    very nice place to visit.
    Om jay Kapaalishwar….

    .ભારત કી સરલ આસાન લિપિ મેં હિન્દી લિખને કી કોશિશ કરો……………….ક્ષૈતિજ લાઇનોં કો અલવિદા !…..યદિ આપ અંગ્રેજી મેં હિન્દી લિખ સકતે હો તો ક્યોં નહીં ગુજરાતી મેં?ગુજરાતી લિપિ વો લિપિ હૈં જિસમેં હિંદી આસાની સે ક્ષૈતિજ લાઇનોં કે બિના લિખી જાતી હૈં! વો હિંદી કા સરલ રૂપ હૈં ઔર લિખ ને મૈં આસન હૈં !

  5. Saralhindi Says:

  6. राहुल सिंह Says:

    ठीक है, दर्शन तो हुए. र्इंधन के लिए जेट्रोफा या रतनजोत का बड़ा जोर रहा है यहां- ”तेल नहीं अब खाड़ी से … बाड़ी से” जैसे स्‍लोगन भी बने और इसके बीज खा लेने से बच्‍चों की तबियत बिगड़ने के समाचार आते रहते हैं.

  7. arvind mishra Says:

    कपालीश्वर यात्रा का नयनाभिराम वर्णन -बिना अनुमति के भी पर्याप्त फोटू हीच लिए आपतो 🙂

  8. Dr. Monika Sharma Says:

    Jankari deti ek sunder chitramayi Post….. Abhar

  9. shikha varshney Says:

    ये फूल वाले पेड की जानकारी गज़ब रही .यह मंदिर देखा तो शायद हमने भी है पर आपके चित्रों में बेहद सुन्दर लग रहा है.

  10. Rahul Says:

    A lovely informative post:)

  11. RAJ SINH Says:

    Behtareen.!

  12. Himanshu Says:

    चुपचाप पढ़ कर सरकने की आदत हो गयी थी!

    यहाँ आना एक अद्भुत यात्रा-अनुभव है ! आभार ।

  13. समीर लाल Says:

    सुन्दर वर्णन-सुन्दर चित्र..कपालीश्वर का मंदिर -यहाँ मैं जा चुका हूँ. पढ़कर अच्छा लगा.

  14. प्रवीण पाण्डेय Says:

    पास में ही है, किसी दिन घूमने का विचार बनाते हैं।

  15. sktyagi Says:

    यही- जो ठान लिया उसे कर छोडने की जिद और हिम्मत आपको विशिष्ठ बनाती है और आपकी पोस्ट को खूबसूरत!

  16. pujaupadhyay Says:

    सोचती हूँ कि इतनी चीज़ें आपको याद कैसे रहती हैं…आप क्या साथ में कॉपी कलम लेकर चलते हैं? घूमते हुए इतने डीटेल में चीज़ें याद नहीं रहती मुझे. हर बार आपके ब्लॉग पर इतना रोचक कुछ पढ़ने को मिलता है कि चकित रह जाती हूँ.

    इन फूलों को पहले भी देखा था और इनकी भीनी खुशबू की भी याद है कहीं अटकी हुयी…नाम तब मालूम नहीं था. चित्र बहुत खूबसूरत आये हैं.

    फिर से इतनी अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद 🙂

  17. विष्‍णु बैरागी Says:

    सदैव की तरह नयनाभिराम चित्रों सहित रोचक और महत्‍वपूर्ण जानकारी।

    ऐसे स्‍थानों के चित्रांकन का निषेध समझ में नहीं आता। चित्रों से तो ऐसे स्‍थानों की प्रसिध्दि बढती है और पर्यटकों की संख्‍या भी।

  18. अली सैयद Says:

    एक से बढ़कर एक नयनाभिराम चित्र और शानदार जानकारी , प्रचलित किंवदंतियां यह प्रतीति भी कराती हैं कि शिव इस महादेश के एकमेव आदि देव हैं देवों में उनकी प्रधानता के संकेत देती इन कथाओं से प्राचीन भारत के इतिहास की कई परतें खुलती हैं कई घटनाओं की पुष्टि होती है !

  19. Jyoti Mishra Says:

    by reading your posts… I feel like there is so n so many places to visit in /india itself 🙂

    Again an awesome read !!

  20. Bhushan Says:

    फोटो न खींचने देने की पाबंदी एक हज़ार रु. की है तो ब्लॉगर की फोटो खींचने की तमन्ना एक करोड़ की है. बहुत सुंदर पोस्ट.

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