कहते हैं यहाँ ज्ञान मिलता है

दक्षिण के छोटे कस्बों, गाँव खेड़ों के हिन्दुओं का मंदिर जाकर  देवी/देवताओं का दर्शन करना साधारणतया उनके दैनिक दिन चर्या का एक हिस्सा होता है. वहीँ शहरों या बड़े कस्बे के लोग अपनी व्यस्तताओं के कारण यह कार्य कुछ विशेष अवसरों/पर्वों पर ही कर पाते हैं. ऐसा नहीं है कि नित्य मंदिर जाने वाले नहीं होते परन्तु उनकी संख्या कम ही होती है. १३ जुलाई को हमारे छोटे भाईसाहब के विवाह की रजत जयंती थी. देवताओं का आशीर्वाद तो लेना ही था. कहाँ चलें वाली दुविधा थी. चेन्नई में तीन महत्वपूर्ण शक्ति  स्थलों की बात सुन रखी थी. एक जगह इच्छाएं पूर्ण होती हैं (इच्छाशक्ति) दूसरी जगह ज्ञान प्राप्ति होती है (ज्ञान शक्ति) और तीसरी जगह कार्य सिद्धि होती है (क्रिया शक्ति). हम लोगोंने ज्ञान प्राप्ति का उपक्रम किया और शाम को निकल पड़े चेन्नई के उत्तरी हिस्से में स्थित  तिरुवोत्तियूर के लिए.

यहाँ पर एक प्राचीन मंदिर समूह है जो एक ही परकोटे के अन्दर है. नाम कहलाता है त्यागराज एवं वडी वुडै अम्मान मंदिर. यह नाम वास्तव में भ्रामक हैं   क्योंकि यह मूलतः शिव और पार्वती का मंदिर है जो अलग अलग हैं. वडी वुडै अम्मान पार्वती जी के लिए ही अभिप्रेरित है. यहाँ एक और नाम प्रचलित है “त्रिपुरसुन्दरी” इन्हीं  की प्रतिष्ठा में महान राम भक्त,  संत एवं संगीतज्ञं त्यागराज (१७६७ – १८४७) ने अपनी पांच रचनाओं (कृतियों) को समर्पित किया था. वे सभी रचनाएं यहाँ  गर्भगृह के बाहर उत्कीर्ण की गयी हैं. त्यागराज जी के लिए भी एक मंदिर बना हुआ है और उन्हें सोमस्कंद स्वरुप मान्यता दी गयी है. यहाँ के शिव मंदिर का प्राचीनतम नाम आदिपुरेश्वर ज्ञात हुआ  है.

शाम ढलने के पूर्व ही हम लोग मंदिर पहुँच गए थे. सामने ही विशालकाय सात मंजिल वाला राजगोपुरम दिख रहा था परन्तु वह  टाट पट्टियों  से पूरी तरह ढंका था. रख रखाव का कार्य जोरों पर था. अन्दर घुसने पर अन्दर कई मंदिर दिखे परन्तु सब में कुछ काम हो रहा था. अन्दर वैसे तस्वीर खींचने पर प्रतिबन्ध था परन्तु बाहर से भी कुछ दिखे तब तो कोई बात बनती.

आदिपुरेश्वर का मुख्य मंदिर  पीछे से अर्ध वृत्ताकार है (गज पृष्ठ) तथा गर्भ गृह में भगवान् शिव के तीन स्वरुप बताये जाते हैं. एक अग्नि अथवा ज्योति, दूसरा एक चौड़ी दीमक की बाम्बी और तीसरा बाम्बी के अन्दर का भाग  जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती. दीमक की बाम्बी को सोने के कवच (पत्तर) से ढांक रखा है जिसे वर्ष में एक बार कार्तिक महीने के पौर्णमी के दिन श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ हटा दिया जाता है. आदिपुरेश्वर के मुख्य मंदिर के मंडप में नटराज हैं और गलियारे में ६३ नायनारों (शिव भक्तों) की मूर्तियाँ तथा कई शिव लिंग हैं. इनमें एक विशिष्ट मूर्ति एकपद शिव की है.  शिव में ही ब्रह्मा और विष्णु भी समाहित हैं. इसी मंदिर के बगल में एक और शिव मंदिर है जिसके गर्भगृह में बड़ा सा शिवलिंग है. इसे तिरुवोत्तीश्वर कहा जाता है.  गणेश, कार्तिकेय, दक्षिणामूर्ति आदि के भी अनेकों छोटे छोटे मंदिर हैं. एक छोटे मंदिर के शिवलिंग को जगन्नाथ कहा जाता है. २७ नक्षत्रों को भी एक गलियारे में लिंग रूप में दर्शाया गया है. ऐसा अन्यत्र नहीं देखा गया है. इस विशाल मंदिर में, मंडपों में एवं गलियारों में  में रखे गए मूर्तियाँ बेहिसाब हैं.

खम्बों पर सुन्दर कारीगरी है और सैकड़ों उत्कीर्ण लेख हैं. उनमें से कुछ पल्लवों के काल (७ वीं सदी) के बताये गए हैं और दूसरे अधिकतर चोल वंशीय हैं. उनमें पूरा इतिहास भरा पड़ा है. मंदिर के लिए निश्चित आय के स्रोत हेतु कृषि भूमि दिए जाने, दैनिक कार्य संचालन , उत्सवों के बारे में और यहाँ तक कि दिए में तेल की व्यवस्था तक की बातें कहीं गयी हैं. ११ वीं सदी में चोल शासन के समय मंदिर का काफी विस्तार किया गया था और इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि चोल शासक मंदिर  के उत्सवों में पूरे उत्साह से भाग लिया करते थे. यहाँ देवदासियां समूह में देवी के समक्ष नृत्य भी किया करती थीं. १५ वीं सदी में भी विजयनगर शासकों द्वारा निर्माण कराये गए थे.

हम जब देवी त्रिपुरसुन्दरी के दर्शनार्थ कतार में खड़े थे तो हमें मंदिर के दीवार के बगल से ही लगा हुआ एक खम्बा दिखा जिसका ऊपरी हिस्सा टूट चूका था. यह वहां के पुराने निर्माण का अवशेष ही था. बचे हुते खम्बे के हिस्से में सिंह की आकृति बनी थी. तत्काल दिमाग में बात कौंधी. यह तो पल्लवों की शैली रही है. ऐसे सिंह आकृति वाले खम्बे कांचीपुरम के कैलाशनाथ   तथा महाबलिपुरम के मंदिरों में भी देखे थे जो  पल्लवों के द्वारा बनवाये गए थे. अब हमें यह मानने के लिए कि मूलतः  तिरुवोत्तियूर में भी पल्लवों का ही मंदिर था, कोई शंका नहीं रही. देवी त्रिपुरसुन्दरी का मंदिर वैसे बाहर से तो आकर्षक नहीं लगा परन्तु अन्दर का मंडप बहुत सुन्दर है. परिक्रमा के लिए गलियारे का आभाव था. देवी गर्भगृह में खड़ी हुई दर्शाई गयी हैं और उनका अलंकरण भी प्रभावी था. जैसा पहले ही बताया गया है, यह देवी चेन्नई वासियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उन्हें बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है. ज्ञान शक्ति पीठ  भी तो है. श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ रहती है और अक्सर होता है कि लोग इस देवी के दर्शन कर ही संतुष्ट हो जाते हैं. अतः शिव तथा अन्य देवताओं के पास पहुँचने वाले कम हो जाते हैं.

जैसा हमने अपने पूर्व के एक पोस्ट में बताया था, ८ वीं सदी में अप्पर, सुन्दरर और सम्बन्दर नामके तीन धुरंदर शिव भक्त हुए हैं जिन्होंने अपने काव्य संग्रह “तेवारम” में यहाँ के मंदिरों की महिमा का बखान किया है. सुन्दरर यहीं के रहने वाले थे.  ८ वीं सदी में ही आदि शंकराचार्य जी का यहाँ आगमन हुआ था जिन्होंने देवी के मंदिर में श्री चक्र स्थापित कर देवी के उग्र स्वभाव को शांत किया था. यह बातें इस बात की ओर इंगित करती हैं कि यह मंदिर उनके आने के पूर्व से ही यहाँ अस्तित्व में था. ९ वीं सदी में यहाँ एक मठ के अस्तित्व का भी पता चलता है.   मंदिर के प्रांगण    में ही दो विशाल मंडप हैं जहाँ आज भी कोई न कोई कार्यक्रम होता रहता है. भूतकाल में यह मंदिर वैदिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था. तमिल रामायण के रचयिता कंबर (११८० – १२५०) ने यहीं पर वाल्मीकि रचित संस्कृत रामायण का अध्ययन किया था.

अँधेरा हो चला था और  घर जाने का वक्त हो गया था तभी सामने से रथ पे सवार  देवी की झांकी निकलते दिखी. उस नयनाभिराम चल समारोह के बाद वापस लौट आये थे.

21 Responses to “कहते हैं यहाँ ज्ञान मिलता है”

  1. arvind mishra Says:

    तमिल रामायण के रचयिता कंबर या कंबन ?
    आप पौराणिकता और पुरातत्व के चतुर चितेरे हैं और आपकी ऐतिहासिक दृष्टि भी प्रखर है !

  2. ramakant singh Says:

    महत्वपूर्ण जानकारी सहित सुन्दर चित्रों का संयोजन आभार

  3. हरि जोशी Says:

    लगा कि हम भी आपके साथ ज्ञान प्राप्‍त कर रहे हैं

  4. s k tyagi Says:

    सही कहते हैं, यहाँ (आपकी पोस्ट पर) वाकई ज्ञान मिलता है! रोचकता सो अलग…..

  5. Alpana Says:

    बेहद सुंदर और अद्भुत लगा इस वृतांत को पढ़ कर।
    इस स्थान के बारे में पहले कभी सुना -देखा नहीं,
    आप ने देवी की रथ की सवारी भी देखी ,इतने अनोखे स्थलों की यात्रा कर रहे हैं सौभाग्यशाली हैं ।
    हम आप के द्वारा इस स्थानों का आँखों देखा वर्णन पढ़ पा रहे हैं ,नवीन jaankariyan मिल रही हैं ,आप का आभार।

    एक चित्र में एक महिला स्कूटर चलाने की स्थिति में दिख रही है ,उनकी बेटी स्कूटर पर बैठ रही है , चेन्नई में ऐसा देख कर अच्छा लगा ।

  6. प्रवीण पाण्डेय Says:

    और ज्ञान मिला..

  7. पा.ना. सुब्रमणियन Says:

    @डा. अरविन्द मिश्र:
    आपका आभार. कंबन ही वास्तविक नाम था परन्तु श्रद्धा पूर्वक जब उनका नाम लिया जाता है तो वे कंबर कहलाते हैं. जैसे रामन के लिए रामर, अरविन्दन के लिए अरविंदर कहा जाएगा. कुछ कुछ “जी” के सदृश.

  8. Smart Indian - अनुराग शर्मा Says:

    – इच्छाशक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति
    – पूरी जानकारी और चित्र अच्छे लगे, आभार!

  9. राहुल सिंह Says:

    ज्ञानवर्धक और सूचनापूर्ण. कंबन-कंबर भी स्‍पष्‍ट हुआ.

  10. विष्‍णु बैरागी Says:

    अब कौन जाए तिरुवोत्तियूर? हमने तो आपकी ऑंखों, कलम और कैमरे से सब कुछ तो देख लिया! सुन्‍दर। बहुत ही सुन्‍दर।

  11. udantashtari Says:

    जानवर्धन का आभार…उत्तम जानकारी

  12. meghnet Says:

    हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक पोस्ट. पुराने मंदिरों के चित्र कहीं उधर उस पार ले जाते हैं. आपका आभार.

  13. shikha varshney Says:

    यह मंदिर देख तो रखे थे .आज विस्तृत ज्ञान मिला.

  14. sanjay bengani Says:

    ज्ञान प्राप्त कर लिया 🙂

  15. Gyandutt Pandey Says:

    अभी हाल ही मेँ मैने बिश्वनाथ घोष की तेमरिण्ड सिटी ( Tamarind City ) पढ़ी है, जिसमें चेन्नै के विविध आयामों का वर्णन है।
    आपकी पोस्ट पढ़ कर उस पुस्तक में चित्रों के अभाव की पूर्ति हो गयी!

  16. Gagan Sharma Says:

    सदा की भांति सुंदर प्रस्तुति। आपके सौजन्य से ऐसी-ऐसी जगहों के बारे में जानकारी मिल पाती है जिनका नाम भी नहीं सुना था, जाना तो दूर की बात है। आभार।

  17. प्रतिभा सक्सेना Says:

    दक्षिण ने भारतीय संस्कृति के अनेक तत्व सुरक्षित रखे हैं . विस्तृत जानकारी हेतु आभार !

  18. Asha Joglekar Says:

    आपकी ज्ञान पीठ की पोस्ट पढ कर आनंद आ गया । आपकी पोस्ट हमेशा ही कुछ नई जानकारी देती है और चित्रों से सब कुछ बिना सव्यं गये सामने आ जाता है ।

  19. sanjay @ mo sam kaun.....? Says:

    ज्ञान प्राप्ति वाला आपका विकल्प निस्संदेह सर्वोत्तम रहा, आप्के साथ साथ हम सबको भी इस मंदिर स्थल के बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ। आभार आपका।

  20. My Unfinished Life (@MyUnfinishedlyf) Says:

    on our south India tour , we came across such magnificent temples like this one and we were in awe!!

    http://sushmita-smile.blogspot.in/

  21. Net Plus Says:

    thanks for knowledge

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