नाहरगढ़ या शेरगढ़ (जयपुर)

हमें नाहरगढ़ के बारे में मालूम नहीं था परतु आमेर से दिख रहा था इसलिए अपने आटो चालक से उसके बारे में पुछा तो उसने बताया कि वह तो नाहरगढ़ है. उसने हमें निरुत्साहित भी कर दिया यह कह कर कि वहां कुछ नहीं है. संभवतः उसे हमें वहां ले जाने की इक्षा नहीं थी. खैर हम लोग आमेर से जयपुर शहर के अन्दर घूमते हुए अपने होटल में वापस आ गए. फिर हमने नाहरगढ़ के बारे में पूछ ताछ करी तो पता चला की शाम ४.३० के बाद वहां प्रवेश नहीं दिया जाता. दूसरे दिन जाने का कार्यक्रम बना और हम लोग बाज़ार घूमने निकल गए थे.

आरावली की पर्वत श्रृंखला के कोर (edge) पर आमेर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस किले को सवाई राजा जैसिंह द्वितीय ने सन १७३४ में बनवाया था. यहाँ एक किंवदंती है कि कोई एक नाहर सिंह नामके राजपूत की प्रेतात्मा वहां भटका करती थी. किले के निर्माण में व्यावधान भी उपस्थित किया करती थी. अतः तांत्रिकों से सलाह ली गयी और उस किले को उस प्रेतात्मा के नाम पर नाहरगढ़ रखने से प्रेतबाधा दूर हो गयी थी. १९ वीं शताब्दी में सवाई राम सिंह और सवाई माधो सिंह के द्वारा भी किले के अन्दर भवनों का निर्माण कराया गया था जिनकी हालत ठीक ठाक है जब कि पुराने निर्माण जीर्ण शीर्ण हो चले हैं. यहाँ के राजा सवाई राम सिंह के नौ रानियों के लिए अलग अलग आवास खंड बनवाए गए हैं जो सबसे सुन्दर भी हैं. इनमे शौच आदि के लिए आधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था की गयी थी. किले के पश्चिम भाग में “पड़ाव” नामका एक रेस्तरां भी है जहाँ खान पान की पूरी व्यवस्र्था है. बियर प्रेमियों के लिए वह भी उपलब्ध है, हाँ कुछ अधिक कीमत पर. कहते हैं कि यहाँ से सूर्यास्त बहुत ही सुन्दर दिखता है. परन्तु हम पूरा दिन वहां गुजारना नहीं चाहते थे इसलिए दुपहर में ही वापस जयपुर के अन्य ऐतिहासिक स्थलों को देखने लिकल गए.

अब इन चित्रों का रसास्वादन करें. किसी ने पूर्व में भी लिखा था कि हम तो आमेर घूम आये परन्तु चित्रों से ही पता चला था कि वह जगह इतनी सुन्दर है. हमारे समझ में नहीं आया कि जब हम किसी ऐतिहासिक जगह को देखते हैं तो हम क्या कर रहे होते हैं. चित्र इतने सुन्दर क्यों दिखते है. क्या यह कोई दृष्टि भ्रम है.1. NAHARGARH

2. Entranceऊपर के चित्र में मुख्य प्रवेश द्वार है

3.Patioदालान

4.Madhavendra Bhawanमाधवेन्द्र भवन (महल)

5.Portal

6.Door

7.Window

8.INTERIOR

9.Decoration

10.FRESCO

11.Window

12.Terraceछत

13Jaipur Viewजयपुर का विहंगम दृश्य

14.Jal Mahalदूर से दिखता जल महल

सभी चित्र श्री जिल Gil के सौजन्य से

trotter@sapo.pt

34 Responses to “नाहरगढ़ या शेरगढ़ (जयपुर)”

  1. समीर लाल Says:

    आनन्द आ गया चित्रावलोकन करके. आभार.

  2. Dr.Manoj Mishra Says:

    बहुत सुंदर चित्रों के साथ ,उपयोगी जानकारी .मैं इस जगह को नहीं देख पाया था ,आज आपने विस्तृत दिखा दिया .

  3. Dr.Arvind Mishra Says:

    वाह कोई शक नहीं ! अद्भुत है !

  4. दिनेशराय द्विवेदी Says:

    आप ने जयपुर के नाहर गढ़ के सुंदर चित्र प्रस्तुत कर हम राजस्थान वालों को जीत लिया। इतने चित्र तो कभी एक साथ किसी एलबम में नहीं देखे।

  5. Ratan Singh Says:

    बहुत सुंदर चित्रों के साथ ,उपयोगी जानकारी

  6. हिमांशु Says:

    जोधपुर, जयपुर तो घूम आया हूँ , पर यहाँ इतने विस्तार से इन चित्रों को देखना और जानकारियाँ प्राप्त करना अच्छा अनुभव है । आभार ।

  7. Abhishek Says:

    Vakai chitron se hi pata chal ja raha hai ki jagah kitni sundar hai !

  8. संजय बेंगाणी Says:

    सुन्दर!

    नाहरगढ़ देखना रह गया था, कमी पूरी हुई 🙂

    चित्र वास्तव में बहुत सुन्दर दिखते है.

    एक सुझाव: गूगल मैप में स्थान को अंकित कर अगर चिट्ठे पर लगाया जाय तो जिन्हे पयर्टन का शौक है उनके लिए चिट्ठा और उपयोगी हो जाएगा.

  9. Raj Says:

    Adbhut ….vakai bemisaal jagah hai…..

  10. ताऊ रामपुरिया Says:

    हमेशा की तरह शानदार पोस्ट है. आपकी यह बात वाकई सच है कि नाहरगढ किले को कोई भी जाने को तैयार नही होता और ना ही लोग वहां जाने की सलाह देते हैं. बहुत सुंदर चित्र हैं. आनंद आया.

    रामराम.

  11. पं.डी.के.शर्मा "वत्स" Says:

    सुन्दर चित्रों से सजी हुई बेहतरीन पोस्ट ………….सचमुच घर बैठे ही घूमने का आनन्द आ गया।

  12. ali syed Says:

    आदरणीय सुब्रमनियन जी , इन ऐतिहासिक भवनों को बाहर से देख कर अच्छा लगता है और उन कारीगरों / शिल्पियों की कल्पनाशीलता और उन मजदूरों के अथक परिश्रम को नमन करने की इच्छा होती है ! …..उस समय भवन निर्माण कला के लिए मेकेनिकल सपोर्ट था ही कितना ?

    लेकिन एक व्यक्तिगत बात कहूं : जब भी इंटीरियर डेकोरेशन देखता हूँ , इतनी सघन पच्चीकारी, कई बार अर्थहीन आकृतियाँ , बेहद चटख रंग , प्रकृति के विरुद्ध , भड़कीले से ! सोचता हूँ यहाँ रहता कौन था ? अगर मैं एक रात भी रह जाऊं तो मेरा दम घुट जायेगा ! या शायद किसी नशे में बेसुध होऊं तभी रात गुजार सकूंगा !

  13. Vineeta Yashswi Says:

    humesha ki tarah jankariyo se bhara vivarn…

  14. PN Subramanian Says:

    @श्री सैय्यद ___अली
    आपकी बात से हम पूरी तरह सहमत हैं. हम भी पागल हो जायेंगे उन कमरों में. इन भवनों के अन्दर रहने वाले भी घुट घुट के ही मरे होंगे. या फिर उन लोगों की पसंद ही वैसी रही होगी. एक बार हम भी रुके थे ओरछा के शीश महल में (जिसे होटल बना दिया गया है). रात भर नींद नहीं आई. बाहर की छत पर चहलकदमी करते रहे.उसके बाद हमने सिंचाई विभाग के रेस्ट हाउस को अपना ठिकाना बनाया. महीने में एक दो बार जाना ही पड़ता था.

    सस्नेह,
    सुब्रमणियन

  15. राज भाटिया Says:

    सुंदर चित्र के संग अनोखी लेखनी हो तो लेख मै चार चांद लग जाते है, बहुत ही सुंदर ढंग से आप ने सारी जानकारी दी , आप अपने सभी लेखो को गुगल विकिपिडियां मै क्यो नही डालते, हमारी तरह लाखो ओर लोगो को भी लाभ पहुचेगां,ओर चित्र भी गुगल मेप मै तो ओर भी अच्छा लगेगा.

    धन्यवाद

    मुझे शिकायत है
    पराया देश
    छोटी छोटी बातें
    नन्हे मुन्हे

  16. Isht Deo Sankrityaayan Says:

    अच्छी जानकारी है.

  17. रंजना. Says:

    आपने पुरानी यादे ताज़ा करवा दीं….बड़ा ही आनंद आया….सुन्दर पोस्ट के लिए आभार….

  18. sciblog Says:

    बडा भव्य महल है। मौका लगा तो जरूर देखा जाएगा।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

  19. aadityaranjan Says:

    बहुत सुन्दर.. पर जय वाण कहां है?

    रंजन

  20. MUSAFIR JAT Says:

    सुब्रमनियम जी,
    गया तो नहीं हूँ अभी तक, पर आप लगातार जयपुर की ही पोस्टें लगा रहे हो तो ये पोस्टें उत्प्रेरक का काम कर रही हैं. अबकी सर्दियों में जाऊँगा. पक्का. गर्मियों में तो बस हिमालय पर ही जाने का मन करता है.

  21. yoginder moudgil Says:

    Wah…wa

    atyant sunder

    wah..

  22. Rajesh Says:

    Very interesting. I had been to this place and found it really very nice. The view of Jal Mahal from here is fantastic.

  23. Alpana Verma Says:

    बहुत ही सुन्दर चित्र हैं.जयपुर या कहीये राजस्थान की कलाकारी तो निराली है-अद्भुत है.

    आप ने जो अपने लेख में यह प्रश्न किया है –‘हमारे समझ में नहीं आया कि जब हम किसी ऐतिहासिक जगह को देखते हैं तो हम क्या कर रहे होते हैं. चित्र इतने सुन्दर क्यों दिखते है. क्या यह कोई दृष्टि भ्रम है.’
    –उस के जवाब में मैं यह khahungi की जब भी हम प्रयतन के लिए niklte हैं या तो parivaar के साथ होते हैं या फिर mitr mandali के साथ और अगर akele भी हुए तो …१-समय इतना नहीं होता की एक एक कलाकारी को ध्यान से देखते chalen–
    2-जब kayee लोग साथ होते हैं तो कोई कहीं जा रहा है कोई कहीं atak गया बस–सब को sambhalne में लगे rahtey हैं–srsari nazron से dekhtey chaltey हैं–
    3-kayee chitron में जो कलाकारी की barikiyan camere का lens zoom कर के dikhata है वह हमारी aankhen duur से नहीं देख paati.
    4-जब नेट पर site पर–pictures dekhtey हैं तो poori fursat से dhyan से barikiyan देख patey हैं और उनको सही mayne में तब ही appreciate कर pate हैं.
    5-अगर गाइड साथ होता है तब वह भी इतनी tezi से dikhata -batata है की aadhi बात samjh आती है aadhi नहीं–!

    –adhiktar लोगों के साथ mukhy factor समय की kami का होता है..

  24. jc joshi Says:

    सुंदर चित्रों के लिए धन्यवाद् !! सचमुच भारत में कलाकारी बहुत विकसित थी प्राचीन काल में…”खँडहर बतलाते हैं की ईमारत कभी बुलंद थी” को सार्थक करते हुए…मैंने १९६२ में अम्बेर का किला देखा था जब हम विद्यार्थी पिलानी से जयपुर सर्वे के प्रोजेक्ट पर गए थे. और आपके द्वारा प्रस्तुत चित्रों से ही पता चला है कि वहां क्या क्या है !!

    फिर दुबारा जयपुर जाना लगभग ६ वर्ष पूर्व संभव हुआ, किन्तु तब हम पुष्कर में ब्रह्मा का मंदिर देखने गए थे – अम्बेर का किला दूर से ही दिखाई पड़ा था…

  25. ज्ञान दत्त पाण्डेय Says:

    आपने अच्छा बताया। यह स्थान अब देखना है।

  26. saumant mishra Says:

    १९७९ में जब नाहर गढ़ गया तो इमर्जेंसी के दौरान वह केन्द्र सरकार के नियंत्रण में था। एक प्रयास किया तो रक्षकों की चेतावनी ‘काँई सा कठे जाणों?’ नें पैर ठिठका दिये। आज आप के माध्यम से दर्शन हो गये। धन्यवाद।

  27. shobhana Says:

    bhut achi yatra karvai apne nahargadh ki .mai abhi pchle disambar me hi nahrgadh gai thi vha ak bhoj ka aayojan tha .vaise vha jyada vyvstha khane ki nhi hoti hai phle se ordar karna pdta hai .kitu sachmuch vha se jaypur ka drshy bada mnmohak dikhai deta hai .
    mai klpnaji ki bat se shmat hu ki asa kyo ?ak bat aur hai hmse jyada videshi prytak jyada dhyan se dekhte hai aor bhut hi bariki se photo lete hai isliye unke dvara liye gye photograf jtada sharp hote hai .

  28. - लावण्या Says:

    सुँदर चित्रोँ को देखकर सारे स्थान देखने का मन हो आया –
    नाहर सिँह का इतिहास जानने की जिज्ञासा हो गई है
    – लावण्या

  29. RAJ SINH Says:

    हमेशा की तरह . आपके साथ हम भी घूम रहे हैं . सुन्दर .

  30. mamta Says:

    अगर हम ग़लत नही है तो इसी रेस्तौरेंट के साथ ही एक कमरा बिल्कुल शाही style का बना हुआ था (नब्बे के दशक मे )जिसमे बहुत सारी खिड़कियाँ बनी हुई थी और हमारे पतिदेव की इच्छा थी की वहां एक दिन रुका जाए पर लोगों से पूछने पर की यहाँ कोई रुकता है तो उन लोगों ने कहा की बहुत कम ,कभी-कभी । और साथ ही ये बताया की रात मे न तो रेस्तौरेंट मे और नही वहां कोई गार्ड होता है ।
    और ये सोचकर की अगर रात मे कुछ हो गया तो किसी को पता भी नही चलेगा , हम लोगों ने वहां न रुकने मे ही भलाई समझी थी क्यूंकि उस ज़माने मे मोबाइल नही था । और वहां फ़ोन भी नही था ।

  31. Isht Deo Sankrityaayan Says:

    बहुत बढ़िया. अच्छा लगा पूरा पढ़कर और चित्र देख कर भी.

  32. dhirusingh Says:

    नाहरगढ़ में जाकर पता चला की राजा सहब नौ रानी रखते थे और बहुत भारी थे . लेकिन महल के जीने सीडिया बहुत पतली है . पता नहीं महलो में यह कमी क्यों . हवा महल में भी यही बात है

  33. arvind Says:

    i can’t belive this palace you now come inhouse and enjoy with family so thanks malhal palace wow

  34. arvind Says:

    this palace is a very beautiful come and look thanks

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