कल ही अलबेला खत्री जी के ब्लॉग पर जाना हुआ और और देखिये क्या लिखा है उन्होंने जयपुर के बारे में:
सुबह गुलाबी शाम गुलाबी
दिवस गुलाबी रात गुलाबी
जित देखूं तित बात गुलाबी
हमारे पिछले तीन आलेख जयपुर से ही सम्बंधित रहे. लेकिन जयपुर के ऐतिहासिक स्मारकों के बारे में कह नहीं पाए थे. सबसे पहली बात तो यही होगी की इस शहर को गुलाबी नगरी क्यों कर कहा जाता है. उत्तर भी सीधा है, क्योंकि सभी भवन हलके कत्थई रंग से रंगे हुए हैं. वहां पाए जाने वाले पत्थर के रंग के, जिनसे बहुतेरे प्राचीन भवनों का निर्माण हुआ था. लेकिन इतना ही नहीं है. सन १८७६ में इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ तथा युवराज अलबर्ट के आगमन पर शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित कर दिया गया था और तब से ही जयपुर गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) कहलाने लगी. भले ही नगर निगम क्षेत्र लगभग ६५ वर्ग किलोमीटर हो परन्तु वास्तविक गुलाबी नगरी तो १० वर्ग किलोमीटर के दायरे में सिमटी हुई है. सन १७२७ में सवाई राजा जय सिह द्वीतीय के द्वारा इस नगर की स्थापना की गयी थी और कुछ लोग तो मानते हैं की संभवतः यह भारत की सर्वप्रथम योजनाबद्ध तरीके की बसावट रही है. किसी किले के सदृश यह शहर भी एक परकोटे के अन्दर बसाया गया है. नगर में प्रवेश के लिए सात द्वार हैं.
जैसे कुतुब मीनार दिल्ली की पहचान है वैसे ही “हवा महल” जयपुर की पहचान है. आमेर जाने वाले मुख्य मार्ग पर इसे सन १७९९ में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने महल की स्त्रियों को शहर के बाज़ार को निहारने और हवा खोरी करने के लिए बनवाया था. पिरामिड नुमा इस पांच मंजिले भवन में जो राज प्रसाद से लगा हुआ है, कुल ९५३ झरोखे बने हुए हैं.पीछे से ऊपर जाया भी जा सकता है.
हमारी नज़र में जयपुर की दूसरी बड़ी पहचान वहां की वेधशाला “जंतर मंतर” की है. यह सवाई राजा जैसिंह ने ही खगोलीय अध्ययन हेतु बनवाई थी. उन्होंने ही ऐसी वेधशालाएं दिल्ली सहित चार अन्य नगरों में भी बनवाई थीं.यहाँ की वेधशाला बहुत ही अच्छी स्थिति में है क्योंकि रखरखाव पर विशेष ध्यान दिया गया है. वैसे तो यहाँ बहुत सारे यंत्र लगे हुए हैं परन्तु उनकी कार्यप्रणाली को समझ पाना हमारे बस का रोग नहीं था.
यह हमारे समझ में आ रहा है. वेधशाला से ही नाहरगढ़ का किला दिख रहा है
अब हम आते हैं जयपुर शहर के केंद्र में स्थित सिटी पैलेस में. रियासत के वैभव का एक अनूठा एहसास. इस परिसर के अन्दर कई भव्य इमारते है. यहाँ दाखिल होते हैं इस सिंह द्वार के जरिये
यह दरवाजा विशाल भी है और खूबसूरत भी
नीचे के दोनों चित्र चन्द्र महल के हैं. यह इमारत सात मंजिलों की है. हम लोग केवल प्रथम दो तलों को ही देख सकते हैं क्योंकि वे संग्रहालय के हिस्से हैं. हर मंजिल का अलग नाम है. इनमे महत्वपूर्ण तो शोभा महल है जो चौथी मंजिल पर है. कहते हैं कि यहाँ स्वर्ण, शीशे और अभ्रक की कलाकारी है. सबसे ऊपर की मंजिल मुकुट महल कहलाती है. सही भी है. मुकुट की तरह ही तो लगती है.
अब जो चित्र है यह मुबारक महल का है. महल में आनेवाले अतिथियों के स्वागत हेतु. इसे १९ वीं सदी के उत्तरार्ध में बनवाया था महाराजा माधो सिंह द्वीतीय ने. इसके नीचे वाले हिस्से में कार्यालय और ग्रंथालय हैं जब कि ऊपर की मजिल में वस्त्रों का संग्रहालय.
यह राजेंद्र पोल कहलाता है. इसी से गुजरकर दीवान-ए-ख़ास तक पहुँचते हैंये रहा दीवान-ये-ख़ास
नीचे के दोनों ही चित्र रिद्धी सिद्धि पोल के हैं. पहला तो दीवान-ए-ख़ास से लिया गया है.
यहाँ एक प्रीतम चौक नामका दालान भी है और प्रवेश के लिए चार सुन्दर अलंकृत द्वार. सबसे सुन्दर तो दूसरा वाला ही है जहाँ हमारे जिल दम्पति अपने हसीन लम्हों को समेट रहे हैं.
हमने सुन रखा था कि एक भारतीय राजा जब इंग्लैंड गया तो साथ में पीने के लिए एक बहुत बड़े भारी चांदी के घडे में गंगा जल ले गया था. अब पता चला कि वह राजा सवाई माधो सिंह द्वितीय था. सचमुच वे दो घडे विश्व के घडों में सबसे बड़े थे और गिन्निस बुक इस बात की पुष्टि करता है.यहाँ उनके दर्शन भी हो गए.
देखिये बंदूकों को गोलाई में एक ढाल के चारों ओर दीवार पर कितना सुन्दर सजाया गया है
हम लोगोंने रामबाग में बने प्रिन्स अलबर्ट हॉल को भी देखा था जिसमे एक संग्रहालय है. इनके अतिरिक्त देखने के लिए जयपुर में और भी बहुत सारी जगहें हैं. जैसे गैटोर, नाहरगढ़ की तलहटी में राजाओं के स्मारक (छतरियां), मोती डोंगरी (यहाँ का गणेश मंदिर प्रसिद्द है), और बहुत से मंदिर आदि. जलमहल को तो हम लोगों ने सड़क पर खड़े होकर दूर से ही देखा था. नाहरगढ़ से भी सुन्दर दिखता है. जयगढ़ को भी देखने से चूक गए. कहते हैं वह भी अच्छे हालत में है. वहां की जल संग्रहण प्रणालि पुराने लोगों की बुद्धिमता का प्रतीक है. चारों ओर पहाडियों से घिरे तलहटी में जल संगृहीत होता था. हमें बहुत खेद है कि जयगढ़ नहीं जा पाए हमें तो लगा कि केवल भ्रमण के लिए कम से कम चार या पांच दिन देना होगा. हमारे पास समय नहीं था. मायूस होकर लौट आये. एक बार फिर आने की आस लिए.
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सभी चित्र श्री जिल Gil के सौजन्य से
trotter@sapo.pt
जून 29, 2009 को 6:19 पूर्वाह्न
आपनें तो पूरा शहर फिर से घुमा दिया ,शहर जितना खूबसूरत है उससे भी खूबसूरत आपकी प्रस्तुति .
जून 29, 2009 को 6:47 पूर्वाह्न
सुंदर चित्र .. सुंदर प्रस्तुति ।
जून 29, 2009 को 7:29 पूर्वाह्न
सुंदर प्रस्तुति ।
जून 29, 2009 को 7:33 पूर्वाह्न
सुबह सुबह जयपुर दर्शन करवा कर आप ने गुलाबों की खुशबू फैला दी।
जून 29, 2009 को 7:48 पूर्वाह्न
Jai ho……………………जवाब नहीं इस गुलाबी प्रस्तुति का
जून 29, 2009 को 7:59 पूर्वाह्न
दिल थाम कर देखा पूरा प्रस्तुतिकरण!! आभार मित्र!!
जून 29, 2009 को 8:27 पूर्वाह्न
वाह आपने तो पूरा जयपुर घुमा दिया और पुरानी यादें ताजी हो गईं।
जून 29, 2009 को 8:52 पूर्वाह्न
सच कहा इस गुलाबी नगरी की हर फिजा जैसे गुलाबी हो……दो बार जाना हुआ है जयपुर आज ये तस्वीरें देख कर फिर से सभी यादे तजा हो आई …आभार इस प्रस्तुती के लिए.
regards
जून 29, 2009 को 9:25 पूर्वाह्न
वाह सुबह सुबह तबियत एकदम गुलाबी गुलाबी कर दी आपने. धन्यवाद.
रामराम.
जून 29, 2009 को 9:33 पूर्वाह्न
दिल में फिर हूक सी उठ गयी, अपने शहर की तस्वीरें देखकर। जितना सुंदर श्ाहर है उतनी ही सुंदर इसकी आत्मा भी है। जयपुर जैसा ग्लेमर किसी और शहर में नहीं। अभी तो बहुत कुछ शेष है। इतना भर ही नहीं है जयपुर। सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई।
जून 29, 2009 को 9:45 पूर्वाह्न
हमें भी यही सुना है की जयपुर भारत की सर्वप्रथम योजनाबद्ध तरीके की बसावट रही है.
आप ने सुन्दर चित्रों के ज़रिये आज एक बार फिर जयपुर शहर की सैर करा दी.
शुक्रिया.
जून 29, 2009 को 10:00 पूर्वाह्न
सुन्दर चित्रों के साथ रोचक जानकारी भी मिली. धन्यवाद.
जून 29, 2009 को 10:26 पूर्वाह्न
शहर अच्छा है या प्रस्तुति…. सोंच रही हूँ .
जून 29, 2009 को 10:59 पूर्वाह्न
मान्य,सुब्रमण्यम, जी ,कभी-कभी आप से इर्ष्या होती है , ये पर्यटन जो आपकी खुशकिस्मती है ..तमाम लोग बेंक बेलेंस रख कर भी घूम नही- देख नही पाते हें ..लिखना या एसा विवरण देना भी क्या हर किसी के बहुत बार जाना हुआ है..जयपुर तो कई बार, ,बचपन के कई साल राजस्थान मैं गुजरे हें पिटा राजस्थान मैं ही थे..इसलिए राजस्थान तो जैसे विस्मृत होता ही नही जब भेरोंसिंग शेखावत की सरकार थी ,..तब उनके आमंत्रण पर जानाहुआ था राजस्थानी खाना,रहन-सहन सबसे बड़ा आदर-सत्कार ..जादुई था और साबरी ब्रदर्स की कव्वाली ..आपने थोडा सा भुला हुआ याद दिला दिया आपके चित्रों और लिखे को सुरक्षित कर लेती हूँ…बस लाजवाब पोस्ट है हमेशा की तरह पिछली पोस्ट मैं जलमहल और इसमें जयपुर पेलेस सभी चित्रों के साथ खूबसूरत हे
जून 29, 2009 को 11:18 पूर्वाह्न
वेधशाला या जंतर मंतर ने बहुत प्रभावित किया था. शानदार सोच व गणना की ललक. उतनी से प्रभावी वहाँ की साफ सफाई थी.
जून 29, 2009 को 11:27 पूर्वाह्न
Beautiful city and nice wonderful presentation.I’m thinking to go Jayapur.
जून 29, 2009 को 11:28 पूर्वाह्न
Beautiful city and wonderful presentation.I’m thinking to go Jayapur.
जून 29, 2009 को 11:28 पूर्वाह्न
manbhavan chitron aur vivaran se man me hajar gulab mahak gaye .
जून 29, 2009 को 12:52 अपराह्न
इस गुलाबी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद!
जून 29, 2009 को 1:44 अपराह्न
वाह्! सुब्रमणियम जी, मन प्रसन्न हो गया गुलाबी नगरी की यात्रा करके……..अति सुन्दर प्रस्तुति!!!!!!!!
जून 29, 2009 को 2:07 अपराह्न
अजी गुस्सा आता है अपने ऊपर, इतना सुंदर भारत छोड कर हम क्यो दुनिया के इतने सारे शहर ओर देश घुम आये, हमारा भारत क्या कम खुब सुरत है, आप ने चित्र ओर शव्दो से हमे तो पुरा शहर ही घुमा दिया, बहुत ही सूंदर चित्र, मन मोहक.
धन्यवाद
जून 29, 2009 को 2:18 अपराह्न
Rajsthan meri sabse pasandida jagah hai…aapki ye post dekh ke mujhe kitni khushi hui mai shabdo mai nahi bata sakti…
mere liye to apki ye post aaj tak ki sabse achhi post rahi
bahut shukriya…
जून 29, 2009 को 2:23 अपराह्न
sसुब्रह्मणियम जी आपका ब्लोग देख कर तो मेरा भी घूमने का मन होने लगा है शायद मैने भी शुरुयात कर दी है मगर अभी तो दिल्ली तक ही पहुन्छि हूँ अगर आप ऐसी पोस्तें ही दिखाते रहे तो इस भयानक गर्मी मे रजस्थान जाना ही पडेगा छाहे कुछ्ह भी हो जाये मेरे लिये तो ये सब आश्च्र्य से कम नहीं है आपका घर बैठे ही भारत दर्शन करवाने के लिये धन्यवाद्
जून 29, 2009 को 4:49 अपराह्न
जनवरी 2006 में जयपुर जाना हुआ था, आपका आलेख पढकर वे यादें फिर से ताजा हो गयीं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जून 29, 2009 को 5:06 अपराह्न
बहुत खूब.. आपकी नज़र से जयपुर को देखकर ऐसा लगा जैसे मैं अपने ही शहर को पहली बार देख रहा हूं.. आभार
जून 29, 2009 को 5:49 अपराह्न
आपके इस प्रस्तुतीकरण को देख कर दिल भी गुलाबी गुलाबी हो गया है । चित्र बहुत ही खूब सूरत है
जून 29, 2009 को 6:43 अपराह्न
अभी तक हम जयपुर गए नहीं. पढ़कर लगता है कि अब जाना भी नहीं चाहिए, सारी जानकारी और चित्र तो देख लिए हैं.
जून 29, 2009 को 7:24 अपराह्न
बहुत ही बेहतरीन फोटो। बगैर गए घूम लिए हम।
जून 29, 2009 को 7:40 अपराह्न
बहुत सुन्दर चित्र.. अच्छा लगा
(बहुत ज्यादा चित्र है, लोड होने में बहुत समय लग रहा है…. अगर थोडे थोडॆ या कम रिजोल्युशन के चित्र डाले तो सुविधा रहेगी)
रंजन
जून 29, 2009 को 8:15 अपराह्न
बहुत अच्छी तरह से आपने यहाँ की सैर करवा दी है शुक्रिया
जून 29, 2009 को 10:21 अपराह्न
जयपुर बजरिये आपके तो स्तब्ध करती प्रस्तुति है -बहुत खूब !
जून 29, 2009 को 11:13 अपराह्न
आपके साथ घूमने का आनन्द ही अलग है ,
घूमने के साथ जानकारी का खज़ाना .
जून 30, 2009 को 7:48 पूर्वाह्न
अति सुन्दर, आपके चित्र तो सचमुच के जयपुर से कहीं ज़्यादा खूबसूरत लग रहे हैं.
जून 30, 2009 को 8:58 पूर्वाह्न
आप हमेशा की तरह बडे ही परिश्रम से पोस्ट तैय्यार करते है, और ढेर सारी जानकारी देते है.
आपकी साईट तो पर्यटन विभाग की ओफ़िशियल साईट होनी चाहिये!!
जून 30, 2009 को 9:11 पूर्वाह्न
बेहतरीन शैली, फोटोग्राफी आपकी इन महत्वपूर्ण कार्य को अमर रखेंगी !बार बार पढने का मन करता है !
जून 30, 2009 को 12:14 अपराह्न
बहुत अच्छी प्रस्तुति…..अभी पिछले साल ही जयपुर जाना हुआ था…..तकरीबन सभी जगहें देखी थी मगर अब लग रहा है यदि ये जानकारी पहले मिल गयी होती तो घूमने में और आनंद आता……खैर अगली बार के लिए तैयार हैं हम…..वैसे आमेर का किला भी काफी अच्छी जगह है….
हमसफ़र यादों का…….
जून 30, 2009 को 8:10 अपराह्न
जयपुर से गुजरा हूं, पर इतनी तन्मयता से नहीं देखा था। आपने एक नये अन्दाज में दिखा दिया।
हमेशा की तरह बेहतरीन पोस्ट!
जून 30, 2009 को 8:51 अपराह्न
गुलाबी नगरी जयपुर के बारे में सचित्र बढ़िया जानकारी दी है आपने . आभार
जुलाई 1, 2009 को 1:02 पूर्वाह्न
सुब्रमण्यम, जी
जयपुर की सचित्र झाँकी करवाने का शुक्रिया जी ~~ जिल के चित्र सुँदर लगे
– लावण्या
जुलाई 1, 2009 को 12:38 अपराह्न
आदरणीय सुब्रमनियन जी
आपके चक्कर में कई परिवारों (जैसे मेरा) का बजट गडबडा जायेगा ! आपका ? ( या जिल का ) कैमरा छीन भी तो नहीं सकते ! इतनी सुन्दर सुन्दर पोस्ट देते हैं ! कभी कुछ बदसूरत जगहों की फोटो भी दिखाइए ! पर्यटन को हतोत्साहित करने वाली ? प्लीज !
जुलाई 2, 2009 को 12:12 पूर्वाह्न
पहली बार जब जयपुर गया था तो जिस गुलाबी नगरी की परिकल्पना की थी वो मुझे नहीं दिखाया। मुझे आज तक नहीं समझ आया कि हल्कर कत्थई को लोग गुलाबी कैसे कह सकते हैं?
जुलाई 2, 2009 को 12:12 पूर्वाह्न
पहली बार जब जयपुर गया था तो जिस गुलाबी नगरी की परिकल्पना की थी वो मुझे नहीं दिखा। मुझे आज तक नहीं समझ आया कि हल्कर कत्थई को लोग गुलाबी कैसे कह सकते हैं?
जुलाई 2, 2009 को 12:42 पूर्वाह्न
आपके ब्लॉग पर इतिहास जीवंत हो जाता है। जयपुर के बारे में इतना सब कुछ बताने-दिखाने के लिए आभार।
जुलाई 2, 2009 को 11:15 पूर्वाह्न
जयपुर की हमारी यादों को ताजा करने का शुक्रिया ।
जितनी सुंदर फोटो उतनी ही सुंदर प्रस्तुति भी है ।
जुलाई 3, 2009 को 9:41 पूर्वाह्न
apne aap ghumne par jaypur itna khoobsurt nahi laga jitna aapne dikhaya
जुलाई 6, 2009 को 12:16 पूर्वाह्न
dhnywad ji
aapne to bhuthi achhe se jaypur ki sair karva di .
aabhar
दिसम्बर 6, 2009 को 11:00 पूर्वाह्न
सुबह जयपुर दर्शन करवा कर आप ने गुलाबों की खुशबू फैला दी।
mai abhi rahta to jaipur mai hnu lekin kbhi shi nahi dekha aj ynha dekha kar lagat ak bar jaipur ko sahi dekhunga
Thankys aapko jo itni khubsurt prastuti de ak bar or THANKS
दिसम्बर 6, 2009 को 11:05 पूर्वाह्न
सुबह जयपुर दर्शन करवा कर आप ने गुलाबों की खुशबू फैला दी।
mai abhi rahta to jaipur mai hnu lekin kbhi shi nahi dekha aj ynha dekha kar lagat ak bar jaipur ko sahi dekhunga
Thankys aapko jo itni khubsurt prastuti de ak bar or THANKS