पांच या छह माह पूर्व स्थानीय समाचार पात्र में एक खबर छपी थी कि उत्तर प्रदेश के अमरोहा में एक बिच्छू दरगाह है. ८०० साल पहले सैय्यद सर्बुद्दीन ईरान से यहाँ आये थे. संभवतः कोई सूफी संत रहे होंगे. उन्हें बिच्छू वाले बाबा भी कहा जाता है. इस दरगाह के अन्दर अनेकों बिच्छू स्वतंत्र घूमते रहते हैं परन्तु किसी को डंक नहीं मारते. परन्तु दरगाह के बाहर पाए जाने वाले बिच्छू बाबा के प्रभाव से मुक्त है तथापि उनसे बचना पड़ता है.
अब हम केरल जा रहे हैं. यह प्रांत भी सर्पों का प्रदेश कहला सकता है. प्राचीन काल से ही जब वहां वैदिक धर्म या बौद्ध धर्म का भी प्रवेश नहीं हुआ था, सर्प पूजा वहां की परंपरा रही है. आदिम जातियों की परम्पराओं को देखे तो बात बिलकुल साफ़ है. आदमी जिन जिन से भी डरता था उन्हें पूजने लगा था. आज भी केरल के पुराने घरों के दक्षिण पश्चिम भाग में एक चबूतरा होगा जिसपर सर्पों की प्रतिमाएँ लगी होती है. इन्हें “पाम्बुम कावु या सर्प कावु” कहा जाता है. इस भाग में जंगल जैसा वातावरण होता है. प्राकृतिक वनस्पतियों को यों ही बढ़ने दिया जाता है. हम कह सकते हैं कि सर्पों के लिए निर्मित उस क्षेत्र में मानव द्वारा किसी भी प्रकार से अतिक्रमण नहीं किया जाता. नित्य चबूतरे पर दिया भी जलाया जाता है. मान्यता है कि जिन घरों में ऐसी व्यवस्था है वहां सर्पों का कोई प्रकोप नहीं होता. लगभग सभी संस्कृतियों में सर्पों को विशिष्ट स्थान प्राप्त है और हाल की खोजों से पता चलता है कि सर्पों की पूजा का विधान ७०,००० वर्ष पूर्व से ही है. भारत के मंदिरों में भी सर्पों को किसी न किसी रूप में प्रर्दशित किया गया है. कितनी ही पौराणिक कथाएँ उनसे जुडी हुई हैं. केरल में भी कई मंदिर सर्पों पर केन्द्रित हैं परन्तु कुछ एक अति विशिष्ट भी हैं.
मन्नारशाला :
मन्नारशाला, आलापुज्हा (अलेप्पी) से मात्र ३७ किलोमीटर की दूरी पर है. कोल्लम (quilon) जाने वाले रस्ते पर हरिपाड नामक छोटे शहर के पास ही. यहाँ पर है एक मंदिर जो नागराज और उनकी संगिनी नागयक्षी को समर्पित. यह मंदिर १६ एकड़ के भूभाग पर फैला हुआ है और जिधर देखो आपको सर्पों की प्रतिमाएँ ही दिखेंगी जिनकी संख्या ३०,००० के ऊपर बताई जाती हैं. और तो और अन्दर भी कई सर्प निर्भीक होकर स्वछन्द विचरण करते पाए जा सकते है. चलते समय सावधानी बरतनी पड़ेगी कि कहीं हमारे पैर उनपर न पड़ जाएँ. कहा तो जाता है कि वे भक्तों को नहीं डसते परन्तु आखिर जंगली जीव जो ठैरे . इस कलियुग में हम कैसे भरोसा कर लें.
एक मिथक के अनुसार महाभारत काल में खंडावा नामक कोई वन प्रदेश था जिसे जला दिया गया था. परन्तु एक हिस्सा बचा रहा जहाँ वहां के सर्पों ने और अन्य जीव जंतुओं ने शरण ले ली. मन्नारशाला वही जगह बताई जाती है. मंदिर परिसर से ही लगा हुआ एक नम्बूदिरी का साधारण सा खानदानी घर (मना/इल्लम) है. मंदिर के मूलस्थान में पूजा अर्चना आदि का कार्य वहां के नम्बूदिरी घराने की बहू निभाती है. उन्हें वहां अम्मा कह कर संबोधित किया जाता है. शादी शुदा होने के उपरांत भी वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए दूसरे पुजारी परिवार के साथ अलग कमरे में निवास करती है. इस मंदिर के सन्दर्भ में हमने “मूलस्थान” का प्रयोग किया है. जिस मंदिर में हम नागराज के दर्शन करते हैं वह मूलस्थान नहीं है. यह कुछ ताज महल में मुमताज महल की कब्र की तरह है जहाँ वास्तविक कब्र नीचे है और ऊपर जहाँ हम देख रहे होते हैं वह दिखावे के लिए है. ऐसा ही कुछ यहाँ भी है. इस से अधिक हमें जानकारी भी नहीं है..
कहा जाता है कि उस खानदान की एक स्त्री निस्संतान थी. उसके अधेड़ होने के बाद भी उसकी प्रार्थना से वासुकी प्रसन्न हुआ और उसकी कोख से एक पांच सर लिया हुआ नागराज और एक बालक ने जन्म लिया. उसी नागराज की प्रतिमा इस मंदिर में लगी है. यहाँ की महिमा यह है
कि निस्संतान दम्पति यहाँ आकर यदि प्रार्थना करें तो उन्हें संतान प्राप्ति होती है. इसके लिए दम्पति को मंदिर से लगे तालाब (बावडी) में नहाकर गीले कपडों में ही दर्शन हेतु जाना होता है. साथ में ले जाना होता है एक कांसे का पात्र जिसका मुह चौडा होता है. इसे वहां उरुली कहते है. उस उरुली को पलट कर रख दिया जाता है. संतान प्राप्ति अथवा मनोकामना पूर्ण होने पर लोग वापस मंदिर में आकर अपने द्वारा रखे गए उरुली को उठाकर सीधा रख देते हैं औरउसमें चढावा आदि रख दिया जाता है. इस मंदिर से जुडी और भी बहुत सारी किंवदंतियाँ हैं.
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एक वीडियो युट्यूब में प्राप्त हुआ. नीचे दे रहे हैं
चित्र: वनमाली आश्रम के सौजन्य से
जुलाई 20, 2009 को 6:47 पूर्वाह्न
रोचक जानकारी -पहला चित्र नदारद है ! सर्प पूजा का भारत में एक भरा पुरा इतिहास पुराण रहा है !
जुलाई 20, 2009 को 6:59 पूर्वाह्न
बहुत सुंदर पोस्ट। इन पांबुम कावों (सर्प वन) का पर्यावरण की दृष्टि से भी महत्व है। इस तरह के पवित्र वन दक्षिण और पूर्वी भारत में खूब पाए जाते हैं। इन्हें अंग्रेजी में सेक्रेड ग्रोव भी कहा जाता है। अनेक लुप्त प्राय वनस्पतियों को बचाने में इनका योगदान रहा है।
आपने सही कहा केरल को सांपों का प्रदेश कहना उचित है। ऐतीह्यमाला में भी संपों को लेकर अनेक कथाएं हैं। जल्दी ही इस तरह की कुछ कहानियां अपने ब्लोग केरल पुराण में पोस्ट करूंगा।
जुलाई 20, 2009 को 7:26 पूर्वाह्न
रोचक जानकारी
जुलाई 20, 2009 को 7:32 पूर्वाह्न
किसी जगह के बारे में किंवदंतियाँ तो सही भी हो सकती हैं गलत भी .. पर बहुत जानकारी भरा आलेख होता है आपका .. धन्यवाद !!
जुलाई 20, 2009 को 8:29 पूर्वाह्न
प्रकृति में संतुलन के लिए उनका होना भी जरुरी है ! सुन्दर प्रविष्टि !
वैसे आप डर रहे थे कि इन रेंगने वाले जीवों पर आपका पैर पड़ गया तो …?
मेरा ख्याल है कि इनसे ज्यादा दो पैरों से चलने वाले जीवों से सावधान रहना चाहिए !
जुलाई 20, 2009 को 8:32 पूर्वाह्न
मैं तो सोच रहा था कि चित्र में कोई वास्तविक सांप दिखायी पड़ेगा।
जुलाई 20, 2009 को 8:49 पूर्वाह्न
कल ही डिस्कवरी पर किंग कोबरा पर एक शानदार कार्यक्रम देखा है और आज उसी क्षेत्र से जुडा एक उतना ही शानदार आलेख यहाँ पढ़ा रहा हूँ.
राजस्थान में भी सर्प पूजा चलन में है और गोगाजी के रूप में सांप पूजित होता है.
दक्षिण में अभी भी प्राचीन मूल विश्वास जिंदा है.आप आलेख को लेकर जो तैयारी करते है उससे ईर्ष्या होती है:)
जुलाई 20, 2009 को 9:12 पूर्वाह्न
हमारे देश में सर्प पूजा काफी प्राचीन समय से होती आ रही है . खासकर हिन्दू नागदेवता को देवता का स्वरुप मानते है और उनका पूजन पाठ करते है . अभी कुछ दिनों बाद नागपंचमी आने वाली है और इस तारतम्य में में आपके द्वारा सरगार्वित सचित्र रोचक जानकारी प्रस्तुत की गई है इस हेतु आपका आभारी हूँ .
जुलाई 20, 2009 को 10:54 पूर्वाह्न
साँपों के प्रति हमारे यहाँ वैर भाव न हो कर सम्मान का भाव रहता है.
बहुत ही सुन्दर जानकारी.
जुलाई 20, 2009 को 11:03 पूर्वाह्न
Hamesha ki tarah rochak post.
जुलाई 20, 2009 को 11:04 पूर्वाह्न
Hamesha ki tarah rochak jankari.
जुलाई 20, 2009 को 12:38 अपराह्न
बढियां जानकारी!!!
आपने सर्प पूजा को ७०००० वर्ष लिखा है या ७००० वर्ष? क्योंकि सर्पों के पूजा के संदर्भ ऋग्वेदों में मिलते हैं, और उसका समय ७००० से १०००० साल पहले का माना जाता है.
वैसे यह खुलासा कोई ज़रूरी नहीं , बात की एहमियत है, अंकों की नहीं.
जुलाई 20, 2009 को 12:39 अपराह्न
भढिया जानकारी!!!
जुलाई 20, 2009 को 12:40 अपराह्न
आपने सर्प पूजा को ७०००० वर्ष लिखा है या ७००० वर्ष? क्योंकि सर्पों के पूजा के संदर्भ ऋग्वेदों में मिलते हैं, और उसका समय ७००० से १०००० साल पहले का माना जाता है.
वैसे यह खुलासा कोई ज़रूरी नहीं , बात की एहमियत है, अंकों की नहीं.
जुलाई 20, 2009 को 12:56 अपराह्न
रोचक जानकारी दी है आपने ..सर्प देख कर एक भय ही जागता है मन में ..
जुलाई 20, 2009 को 1:02 अपराह्न
दिलचस्प पोस्ट है. अच्छी जानकारी दी है. धन्यवाद.
जुलाई 20, 2009 को 1:03 अपराह्न
आ.सुब्रमनियम जी ,सच कहा आपने ये बात बिलकुल सच है आदमी जिन चीजों से डरता है उन सबको पूजने लगता है आज की आपकी पोस्ट वाकई इंटरेस्टिंग है आप बड़ी लगन से पोस्ट तयार भी करतें हें, साथ ही यु टूब द्वारा मिली जानकारी और चित्र अद्भूत हें ..आपके केरल पुराण का इन्तजार रहेगा सच ये भी की सर्प पौराणिक काल से हमारे साथ हें और दया और पूजा दोनों के हकदार हें, पर्यावरण की दृष्टी से भी और चूँकि वो एक निरीह प्राणी है…कुछ समय पहले नागपुर मैं एक सांप की रीढ़ की हड्डी का आपरेशन किया गया था आपको मालुम ही होगा ….मुझे तो वाकई दुनिया मैं सर्प राज के अलावा किसी से डर नहीं लगता …..आपकी इस पोस्ट पर प्रतिकिर्या भी संभवता डर के कारण ही बड़ी हो गई है …. सरलता से लिखी गई जानकारी अच्छी लगी
जुलाई 20, 2009 को 1:51 अपराह्न
बहुत रोचक जानकारी दी है आपने.
रामराम.
जुलाई 20, 2009 को 1:57 अपराह्न
भारतीय परम्परा में सर्प सदैव से पूजित रहे हैं । बेहद रोचक और ज्ञानवर्धक पोस्ट । आभार ।
जुलाई 20, 2009 को 2:08 अपराह्न
Rochak ewam adbhut.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जुलाई 20, 2009 को 2:41 अपराह्न
पहले तो खोलते हुये डर लगा सांम्प के तो नाम से ही डर लगता है मगर ्रोचक जानकारी लिये ये पोस्त अद्भुत है तस्वीरें और विडिओ ने रचकता और बढा दी है आभार्
जुलाई 20, 2009 को 5:03 अपराह्न
अब तो कहीं और ही नजर आते हैं.
जुलाई 20, 2009 को 5:08 अपराह्न
Video to nahin dekh saka, magar mahatwapurn jaankari mili. Dhanyavad.
जुलाई 20, 2009 को 6:44 अपराह्न
आपकी मेहनत हर पोस्ट से झलकती है।
यह बिल्कुल सच है कि इंसान ने उसी को भगवान बना दिया जिससे उसे डर लगता था।
जुलाई 20, 2009 को 7:26 अपराह्न
I surfed and read a lot …..about it this week as i wrote an article on it..
thanks for information and pictures.
[It is just a co-incident !!!!!!!we have planned for this place to ask … as naagpanchami is near…:)..now have to think of some other place.:)
जुलाई 20, 2009 को 8:31 अपराह्न
adbhut jankaree uttam chitr
जुलाई 20, 2009 को 10:04 अपराह्न
अच्छी और रोचक जानकारी.
जुलाई 20, 2009 को 10:18 अपराह्न
नई जानकारी थी। हम तक पहुँचाने का आभार !
जुलाई 20, 2009 को 10:43 अपराह्न
रोचक जानकारी एवं सुन्दर चित्रों सहित एक बहुत बढिया पोस्ट…….
मेरे विचार से शायद आदिकाल से प्रत्येक सभ्यता में सर्प जाति को बहुत महत्व दिया गया है।
जुलाई 21, 2009 को 9:25 पूर्वाह्न
सांप की कथा आकर्षक है.
जुलाई 21, 2009 को 12:08 अपराह्न
hamesha jaise . utkrishth jankaree .
DHANYVAD.
जुलाई 21, 2009 को 1:20 अपराह्न
bahut rochak jankari .jisse ham darte hai uski puja karne lgte hai .bhut kuch kh deta hai .is puja ke kai rup ho skte hai .
bdhiya post .
dhnywad
जुलाई 21, 2009 को 6:57 अपराह्न
ADBHUT.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जुलाई 22, 2009 को 5:54 पूर्वाह्न
रोचक जानकारी।
जुलाई 22, 2009 को 2:50 अपराह्न
सुब्रम्हणियम जी आपका यह भी लेख विशेष रहा । सर्प मंदिर की जानकारी खासी दिलचस्प थी ।
जुलाई 22, 2009 को 4:52 अपराह्न
bahut sundar jaankaari ,
जुलाई 23, 2009 को 10:03 पूर्वाह्न
रोचक पोस्ट्।सर्प पूजन तो बचपन से ही सुनते आ रहे है और कहानिया भी।मेरे ननिहाल के पास भी एक मंदिर है नागदेवता का।सालो से उस सड़क से गुजरता आ रहा था और हर बार अगली बार दर्शन करुंगा कह कर टाल रहा था।पिछले साल वंहा के दर्शन किये थे।भिलटेक नाम है गांव का।पौष माह के हर रविवार को वंहा मेला लगता है।सुना है सर्पदंश से पीड़ित लोग वंहा सांपकी तरह ही रेंगने लगते हैं।सिर्फ़ सुना है देखा नही।बहुत मान्यता ह उस मंदिर की।भिलटेक चांदुर रेल्वे से नांदगांव खण्डेश्वर सड़क पर स्थित है अमरावती ज़िले मे।
जुलाई 24, 2009 को 12:34 पूर्वाह्न
KHAANDAV VAN ko Arjun aur Shri Krishna ne jala diya tha tub Kayee tarah ke SARP aur Naag , wahan se bhage aur Keral mei ees Mandir mei ashray liya hoga.
Badhiya jaankari bharee post — ( sorry to post my comment in Eng. I do not have access to my PC @ the moment – please bear with me )
जुलाई 24, 2009 को 7:56 अपराह्न
amroha ke bichhoo dargah ke bare to pahli bar hi sun rahe hain.
or rajasthan ke bikaner ke pas ek mandir bhi to hai jahan choohe rahte hain.
जुलाई 25, 2009 को 8:59 अपराह्न
हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति में सभी जानवरों का अपना अलग महत्व है!और हम अच्छे भाग्य के लिये उनकी पूजा करते हैं!ये हमारे ऋषि-मुनियों के द्वारा जानवरों के संरक्षण से संबन्धित बनाई गई परंपरा आज के इस वैज्ञानिक युग के काफ़ी करीब लगती है!आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी है!
जुलाई 27, 2009 को 9:39 पूर्वाह्न
सर्प पूजा देश में विभिन्न रूपों में बहुत प्रचलित है, निष्ठा और श्रद्धा के ये शक्ति केंद्र मंदिर हिन्दू दर्शन के अभिन्न अंग हैं और रहेंगे !
पुरातन मान्यताओं के बारे में वैज्ञानिक द्रष्टि से विचार करना उचित नहीं हैं !
अक्टूबर 26, 2011 को 6:14 पूर्वाह्न
Bahut Acha laga.
Thank u in sab jankari k liye.