इसी वर्ष चेन्नई प्रवास के वक्त वहां से महाबलीपुरम जाते समय, ४५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मगरमच्छ संरक्षण केंद्र (Madras Crocodile Bank) पर रुकना हुआ था क्योंकि यह हमारे द्वारा अनदेखा रहा है. मजे की बात यह है कि यह कोई सरकारी उपक्रम नहीं है. सन १९७६ में इसकी स्थापना कुछ अन्य मित्रों के साथ रोमुलस व्हिटेकर दम्पति ने की थी. प्रारंभ में यहाँ केवल ३० मगरमच्छ ही थे जो वहां प्राप्त संरक्षण के कारण बढ़कर २६०० के लगभग हो गए हैं.
दावा किया जाता है कि यह केंद्र विश्व भर में सरीसृपों (रेंगनेवाले जीव जंतुओं) का सबसे बड़ा चिड़िया घर है. यहाँ अब न केवल भारतीय मूल के मगरमच्छ, घड़ियाल पनप रहे है अपितु विश्व भर से लायी गयी विभिन्न प्रजातियों के भी दर्शन होते हैं. हमें एक बात खल रही थी, भारतीय प्रजातियों को बड़ी संख्या में छोटे बाड़े और गंदे बदबूदार पानी में गुजारा करना पड़ता है जबकि इन्हीं के विदेशी बंधू सानंद अच्छे बड़े बाड़े में रखे गए हैं. संभवतः भारतीयों की यही नियति है.
बदबूदार माहौल और पानी का कारण भी समझ में आ रहा था. पूरा क्षेत्र घने ऊंचे पेड़ों से आच्छादित है जिनपर हज़ारों की संख्या में बगुले विराजमान थे. उनका मल विसर्जन प्रदूषण उत्पन्न कर रहा था. यहाँ भ्रमण करते समय टोपी या रूमाल से सर ढांक रखना आवश्यक लगता है.
तामिलनाडू की एक जनजाति “ईरुला” सर्पों को पकड़ने के कौशल के लिए प्रख्यात है. उनके कौशल के सदुपयोग के लिए एक अलग से सहकारी समिति बनायी गयी है जो इसी केंद्र के अन्दर अपना अड्डा स्थापित किये हुए है. सर्पों को मटकों में रखा गया था.
यहाँ सर्प विष संग्रहित किया जाता है. सर्प विष की कीमत हज़ारों रुपये प्रति ग्राम है. यही उस सहकारी समिति के आय का स्रोत भी है.
दर्शकों को उस प्रक्रिया से अवगत भी किया जाता है. सर्पों के प्रदर्शन दौरान एक ईरुला जनजाति के व्यक्ति ने एक वाइपर के बारे में बड़ी रोचक जानकारी दी. उसने कहा, “यूं टच”, “स्प्रिंग जम्प” एंड “बाईट”. “नो टच” “नो बाईट”. सब को बात समझ में आ गयी.
प्रसंगवश चेन्नई के गिंडी क्षेत्र में एक स्नेक पार्क है जहाँ सर्पों का अधिक अच्छा अध्ययन हो सकता है.
एक उपयोगी लिंक: http://www.madrascrocodilebank.org/cms/
जून 15, 2011 को 10:13 अपराह्न
इतने मगरमच्छ पहली बार एक साथ देखे।
जून 15, 2011 को 10:24 अपराह्न
हमारा कोटमी ही बेहतर.
जून 15, 2011 को 11:21 अपराह्न
मैं गया हूँ इस पार्क में…तब भी बदबू से रुकना मुश्किल था …..
बढ़िया तस्वीरें और विवरण.
जून 16, 2011 को 12:11 पूर्वाह्न
व्हिटकर महोदय ने काफी काम किया है.
जून 16, 2011 को 3:41 पूर्वाह्न
हमेशा की तरह आनंदमय ! वैसे सबसे ज्यादा मगरमच्छ तो दिल्ली में हैं और उनकी नयी नयी पौध विकसित हो रही है !
जून 16, 2011 को 5:52 पूर्वाह्न
मगरमच्छ फ़ार्म चेन्नई पर जबरदस्त प्रस्तुति
जून 16, 2011 को 6:35 पूर्वाह्न
” “यूं टच”, “स्प्रिंग जम्प” एंड “बाईट”. “नो टच” “नो बाईट”.” – बंदा स्प्राईट पीने वाला लगा:)
जून 16, 2011 को 6:54 पूर्वाह्न
आपके माध्यम से चैन्नैई ही नहीं अपितु कोटमी होते हुए मंद्कू द्वीप तक की यात्रा का आनंद उठाया. धन्यवाद !
विचार उठा मन में कि ८४ लाख योनियों में से गुजरते हुए हम भी कभी विष्णु के प्रथम अवतार, अनंत मगरमच्छों में से एक, रहे होंगे… और इस लम्बी यात्रा तय करते अब अनंत में से एक लल्लू… 🙂
जून 16, 2011 को 8:19 पूर्वाह्न
ऊपर वाले दो चित्र वाकई रोंगटे खडे कर देने वाले हैं।
जून 16, 2011 को 9:26 पूर्वाह्न
पोस्ट खुली तो पेड़ और पेड़ की जड़ें लगीं. फिर मालूम हुआ कि ये तो मगरमच्छ हैं. बढ़िया आलेख. भारतीय मगरमच्छों के साथ हुए ऐसे सलूक के लिए खेद हुआ. इसे नियती नहीं ‘पाप’ मानना चाहिए.
जून 16, 2011 को 9:44 पूर्वाह्न
बढ़िया जानकारी और फोटो ! शुभकामनायें आपको !!
जून 16, 2011 को 10:26 पूर्वाह्न
this is a magnificent scene …… not very often you come across something like this.
Simply superb !!!
जून 16, 2011 को 11:06 पूर्वाह्न
जिवंत विवरण और फोटो।
बहुत दिनों से आपका इंतजार है, अलग सा पर।
जून 16, 2011 को 12:32 अपराह्न
जानकर अच्छा लगा. लेकिन बन्धु दुनिया का सबसे बड़ा मगरमच्छ संरक्षण केन्द्र हमारी नई दिल्ली में ही है. वह भी आश्चर्यचकित करने वाला एक और तथ्य आपको बताएं कि वह केन्द्र कोई नदी-झील में नहीं, बल्कि एक पहाड़ी पर है. कभी मौक़ा मिले तो उस पर लिखें. पूरे देश के लोग पढ़ेंगे.
जून 16, 2011 को 2:07 अपराह्न
बचपन में मद्रास घूमने जब आई थी तभी ये जगह भी देखि थी…उस वक्त बड़ा डर लगा था इतने सारे मगरमच्छ एक साथ देख कर…लगता था अगर बाहर निकल गए तो.
इनके बारे में फिर से जानना अच्छा लगा.
जून 16, 2011 को 7:32 अपराह्न
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जून 16, 2011 को 9:55 अपराह्न
रोचक,…!
धन्यवाद !
जून 16, 2011 को 10:03 अपराह्न
एक बार फिर अनूठी और महत्त्वपूर्ण जानकारी. धन्यवाद.
जून 17, 2011 को 7:19 पूर्वाह्न
अच्छा लगा जानकर। लखनऊ में भी है एक घडियाल प्रजनन केन्द्र।
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ब्लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी…
आई साइबोर्ग, नैतिकता की धज्जियाँ…
जून 17, 2011 को 12:22 अपराह्न
दुर्लभ चित्र खीचते है और नई नई जानकारी मिलती है आपसे । राजसिंह ने तो एक नई पौध के बारे में जानकारी दी है क्या विचार है श्रीमान के उनकी इस पौध वाबत
जून 17, 2011 को 7:59 अपराह्न
बहुत ही जानकारीपूर्ण आलेख..
मगरमच्छ संरक्षण केन्द्र के विषय में काफी विस्तार से जानकारी मिली .
जून 21, 2011 को 9:54 अपराह्न
जबरदस्त फ़ोटो
जून 22, 2011 को 8:21 पूर्वाह्न
सुब्रमणियन जी नमस्ते,
आपने अच्छी जानकारी दी, वैसे मैं पाण्डीचेरी कई बार गया, लेकिन स्नेकपार्क नहीं जा पाया। अबकी बार अवश्य ही जाउंगा। ये एक सांप के विषय में जानकारी इधर भी दें। कुछ संशय है।
जून 25, 2011 को 9:04 अपराह्न
Itte sare magarmachch ek sath. hum to ek ki photo lene ko itani jaddojehad karate rahe. Chennai ka snake park to dekha hai humne. Itani wistrut jankari ka abhar.