वृहदेश्वर और तामिल में कहेंगे ब्रिहदेश्वरर अर्थात ब्रिहदेश्वर “जी”; और वे सचमुच ही वृहद् हैं. पूर्व में इस मंदिर का नाम राजराजेश्वर था. शिवलिंग की ऊंचाई ९ फीट है और गोलाई २३.५ फीट. इसके पूर्व सबसे विशाल शिवलिंग हमने अपने भोपाल के भोजपुर में देखा था. परन्तु यहाँ तो हमें चक्कर आ गया. बाकायदा शिवलिंग के शीर्ष भाग में पहुँचने के लिए सीढियां बनी हुई है जिस का प्रयोग वहां के गुरुक्कल (पुजारी) करते हैं. तंजावूर या तंजोर के हृदय स्थली में बना यह मंदिर निश्चित ही वृहद् है विशाल है और भारत के सभी मंदिरों में सबसे ऊंचा भी है. मंदिर २३७.९ मीटर लम्बा और ११९.१ मीटर चौड़ा है. गर्भ गृह के ऊपर बना विमान (शिखर) ६४.८ मीटर ऊंचा है. इसके तेरह मंजिल या स्तर हैं. इस मंदिर के निर्माण के पूर्व यह भू भाग नैमिचरन्य भिक्षुओं की निवास स्थली थी. एक और बात याद आई, दक्षिण के मंदिरों का प्रवेश द्वार बहुत ऊंचा होता है जिन्हें गोपुरम कहते हैं और मंदिर के गर्भ गृह का शिरोभाग अपेक्षाकृत छोटा होता है. कई लोगों ने तिरुपति तो देखा ही होगा. वहां भी यही स्थिति है. परन्तु तंजावूर का ब्रिहदेश्वर मंदिर ठीक इसके विपरीत है. गर्भगृह का शिरोभाग जिसे विमान कहते है, गगनचुम्बी है और प्रवेश द्वार एवं मंडप उसके सामने एकदम बौने लगते हैं. यहाँ के शिल्प को देख हम तो हतप्रभ हो गए थे. इस मंदिर का निर्माण चोल वंश के महाप्रतापी राजा, राजा राजा चोल के द्वारा सन १००४ में प्रारंभ किया गया था जो मात्र ६ वर्षों में ही सन १०१० तक पूरा हो गया था. पूरे ग्रेनाईट पत्थरों से बना यह विश्व का अकेला मंदिर है. उस समय के चोल साम्राज्य के वैभव को दर्शाता हुआ यह पिछले १००० वर्षों से लोगों को गौरवान्वित कर रहा है. यूनेस्को ने इस मंदिर को विश्व धरोहरों की सूची में स्थान दिया है. इस मंदिर के बारे में कुछ लिखना सही मायनों में सूरज को मोमबत्ती दिखाने जैसा ही लग रहा है.
इस भव्य मंदिर में प्रवेश के लिए तीन द्वार हैं जिसमें पहला तो मात्र द्वार ही है परन्तु उसके आगे के दोनों प्रवेश द्वार गोपुरम हैं. पहले गोपुरम का नाम केरलान्थगन है. केरल के चेर राजा भास्कर रवि वर्मन पर विजय प्राप्ति की याद में बनाया गया. इस पहले गोपुरम के पांच स्तर हैं और यहाँ शिव के विभिन्न स्वरूपों को यहाँ तक भिकारी के रूप में भी दर्शाया गया है. दूसरा गोपुरम राज राजन कहलाता है.
राजराजन गोपुरम के बाएं दायें दो १६ फीट ऊंचे एक ही पत्थर पर बने द्वारपाल हैं. तत्व ज्ञानियों के द्वारा बताया गया है कि इन दो मूर्तियों के द्वारा संकेत दिया जा रहा है कि सब का मालिक एक ही है जो सर्व व्यापी है.
इन तीन द्वारों को पार कर हम पहुँचते हैं नंदी मंडप के सामने. ६ मीटर ऊंचा और एक ही पत्थर से तराशा गया यह नंदी भारत के विशालतम नंदियों में से एक है. इस मंडप का निर्माण कृष्ण देव राय, विजयनगर के नायक शासक द्वारा १६ वीं सदी में करवाया गया था. इसके बाद आता है ध्वज स्तम्भ जिसके चौकोर आधार पर ताम्बे की प्लेटों में गणपति, कार्तिकेय, शिव पार्वती आदि के सुन्दर चित्र उकेरे गए हैं.
यहाँ से आगे बढ़ने पर मुख्य मंदिर का मंडप है, जो काफी विशाल है. ऊपर जाने के लिए अच्छी चौड़ी सीढियां बनी हुई हैं. यहाँ से मंदिर के बाएं बनी ऊची दीवार दिखेगी जिसके साथ लम्बा गलियारा (Corridor) भी है. परकोटे की दीवार पर छोटे छोटे नंदी बने हुए हैं जिनकी संख्या १००८ है (जोड़ ९) वहीँ बरामदे में २५२ शिव लिंग स्थापित किये गए हैं (इनका भी जोड़ ९ बनता है). १००८ नंदियों और २५२ शिवलिंगों को मिलाकर हमें जो संख्या मिलती है वह १२६० है और इन्हें पुनः जोड़ा जाए तो फिर वही ९ का चक्कर चलता दिख रहा है.
गलियारे की दीवारें भित्ति चित्रों (Murals/Frescoes) से सजी हैं. संभवतः इन्हें मराठों के शासन काल में (१८ वीं सदी) में उकेरा गया था. वैसे चोल शासन काल के भित्ति चित्र मंदिर के ऊपर बने दो तलों पर हैं जहाँ आम आदमी का जाना निषिद्ध है.
चलिए आगे बढ़ते हैं. शिवजी के दर्शन जो करने हैं. सीढ़ियों से होकर मंडप में प्रवेश करेंगे फिर आगे बढ़ कर मंदिर के गर्भगृह में. अब यहाँ अन्दर तो चित्र लेना प्रतिबंधित है. खैर हमने जुगाड़ कर लिया और चुरा लिया किसी और का. उसने भी चोरी छिपे ही लिया होगा. किसी प्रकार के अपराध बोध से इस कारण अपने आप को मुक्त होने का स्वांग रच रहे हैं.
दर्शन के बाद पीछे के द्वार से बाहर निकल कर अब चारों तरफ घूम घूम कर देखना है.
परकोटे वाली दीवार से लगी गलियारे का जायजा लिया जा सकता है जहाँ शिव लिंगों की फौज खड़ी है. मंदिर के चारों तरफ छोटे बड़े और कई देवी देवताओं के मंदिर बने हैं जैसे
कार्तिकेय, विनायक, हनुमान, नटराज एवं पेरिया नायकी (पर्वती).इन मंदिरों को अलग अलग काल खंड में बनाया गया है परन्तु मुख्य मंदिर के साथ पूरा समन्वय रखा गया है.
यहाँ देखिये, मंदिर के अन्दर अभिषेक के पानी के निकासी की कितनी कलात्मक व्यवस्था है. नीचे की टंकी एक ही पत्थर को तराश कर बनायीं गयी है जिसके भारवाहक चार सिंह हैं. हमने कहीं पढ़ा है कि इस प्रकार की टंकियों में महाभारत आदि के कुछ दृष्टान्तों को दर्शाया गया है.
मंदिर के दीवारों में चारों तरफ शिलालेख हैं जिनमें तत्कालीन समाज, साहित्य, कला, संस्कृति आदि पर विस्तार से जानकारी दी गयी है. शोधकर्ताओं के लिए अनमोल साहित्य.
इस मंदिर को समझने के लिए पूरा एक दिन भी पर्याप्त नहीं है. हम लोग तो बस भूख के मारे बाहर निकलने के लिए विवश हो गए. निकलते निकलते राज गोपुरम पर एक बार और निगाह डाली. बताया गया है कि यहाँ मंदिर को बनाने वाले शिल्पियों की छोटी छोटी मूर्तियाँ गढ़ी गयी है. एक विवादास्पद मूर्ति किसी अंग्रेज की लगती है. एक और मूर्ति तो किसी विदेशी महिला की भी लग रही है. भित्ति चित्रों के लिए यूरोपीय तकनीक के प्रयोग की जानकारी मिलती है और संभव है कि विदेश से किसी कलाकार की सेवायें ली गयी हों. लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि इस मंदिर के शिल्पियों ने इस मूर्ति के द्वारा भविष्य वाणी कर रखी है कि यहाँ अंग्रेजों का शासन आएगा. यह भी रोचक है कि हम लोग बीती हुई बातों/घटनाओं को वर्त्तमान में और वर्त्तमान को भविष्य का निरूपित करने में माहिर रहे हैं.
चलते चलते, इस मंदिर के बारे में दो और मिथक हैं. एक तो मंदिर के शीर्ष पर रखा हुआ आमलक ८१ टन वजनी एक साबुत पाषाण पिंड है. शोधकर्ताओं की माने तो वे अलग अलग टुकड़ों से निर्मित है. दूसरी बात जो कही जाती है वह कि इस मंदिर की परछाईं जमीन पर नहीं पड़ती.
अगस्त 10, 2010 को 8:59 पूर्वाह्न
आपके सांस्कृतिक भ्रमण अप्रतिम हैं।
अगस्त 10, 2010 को 9:02 पूर्वाह्न
आश्चर्य होता है कि १००० साल पहले के शिल्पी इन पाषाण खण्डों को तरतीब से लगाते कैसे थे ! गज़ब के सृजन धर्मी कलाकार / मजदूर रहे होंगे वे ! हैट धारी प्रतिमा देखकर मैं भी चौंका था पर यूरोपियन तकनीक के प्रयोग वाला आपका तर्क जम गया इसके साथ ही अंग्रेजों के राज वाली भविष्वाणी का तर्क भी मजेदार लगा !
अभिषेक के पानी की निकासी की व्यवस्था की कलात्मकता …वाह ! अदभुत सौंदर्य है मंदिर के उत्कीर्ण प्रस्तरों में ! उन्हें गढ़ने वाले हाथों को नमन और…
उनकी फोटो खींचने ( चोरी की फोटो समेत ) वाले महानुभाव को कोटिशः प्रणाम !
अगस्त 10, 2010 को 9:21 पूर्वाह्न
अद्भुत ,भव्य ,मीनाक्षी मंदिर से भी गुरुतर ….बहुत आभार और हाँ छाया तो दृष्टव्य है !
अगस्त 10, 2010 को 9:27 पूर्वाह्न
adbhoot hai …… majaa aagayaa..
arsh
अगस्त 10, 2010 को 9:36 पूर्वाह्न
aअद्भुत सुन्दर और भव्यस्थानों के दर्शन केवल आपकी पोस्ट्स मे ही मिलते हैं मुझे लगता है कि बिना कहीं जाये मै पूरे भारत के दर्शन आपकी पोस्ट्स मे ही कर लूँगी। धन्यवाद।
अगस्त 10, 2010 को 9:42 पूर्वाह्न
सुबह सुबह ब्रिहदेश्वर मंदिर, के दर्शन करने को मिले, मन भाव भिवोर हो गया, एक से एक अनुपम क्रति, अद्भुत शिल्प कला , कितना मनोहारी द्रश्य है यहाँ…….आभार
regards
अगस्त 10, 2010 को 10:35 पूर्वाह्न
॥ नैमिषारण्य ॥
बृहदेश्वर के दर्शन कर धन्य हो गए हम !
किन्तु धन्यवाद के पात्र तो बेशक आप ही हैं ।
सादर,
अगस्त 10, 2010 को 12:15 अपराह्न
सदा की भांति चित्र ही सारी कथा कह रहे हैं। मैं इस मन्दिर के तकनीकी पहलुओं (प्लान, एलिवेश, निर्माण सामग्री, निर्माण विधि, निर्माण अवधि आदि) के बारे में अधिक जानना चाहता हूँ।
अगस्त 10, 2010 को 12:16 अपराह्न
सुना सुना ही था तंजावूर के बारे में, आज देख भी लिया आपकी आँखों. बेहद आकर्षक तस्वीरें और उतनी ही जानदार प्रस्तुति.
अगस्त 10, 2010 को 1:06 अपराह्न
सुब्रमणियन जी, सुंदर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद्!
‘भारत’ में अनादिकाल से सौर मंडल के ‘नवग्रहों’ यानि ९ ग्रहों (सूर्य से शनि तक ९ सदस्यों) को पृथ्वी/ ब्रह्माण्ड पर उपलब्ध जीवन हेतु कार्यरत माना गया है,,, जबकि यूरोप यानि पश्छिम में वीनस यानि शुक्र (छठे ग्रह) को (भारत में पार्वती-पुत्र कार्तिकेय को ‘मायावी’) श्रृष्टि की सुन्दर रचना का उत्तरदायी माना गया,,,यद्यपि किसी काल में भारत में मानव का लक्ष्य माया को भेदना जाना गया…जिसके लिए पार्वती-पुत्र गणेश (मंगल ग्रह) की सहायता आवश्यक मानी गयी जिसे शिव-पार्वती पृथ्वी का राज सौंप गए, श्रृष्टि की रचना के पश्चात…
अगस्त 10, 2010 को 2:35 अपराह्न
Sir, it is really a fantastic description about the temple.When i was in the Institute of Archaeology,for a period i had a chance to survey and conduct a detailed study of the temple.Besides i participated in the conservation work of the paintings.So here I would like to add some thing about this wonder heritage.
The original temple name is Brihadeswar which is dedicated to Siva whom the king Rajaraja built and named after him as Rajarajeswar Udayar. The king presented a gold finial to be planted on the top of the temple(according to the inscriptions on the plinth).Besides the descriptions of the gold and bronze images are also on this inscriptions.Fortunately some described bronzes are housed in the temple(now in the custody of ASI).One inscription reveals that Rajaraja built two big roads for the 400 dancing girls (devadasi) which tradition we can see in the Jagannath temple at Puri in the 13th c.a.d.
PAINTING:
The most interesting feature is the wall painting.These paintings are of early Chola period.But some paintings are of Nayak Period(17th c.a.d).The best scene is the various stories of siva.The most interesting depiction is the scene of Rajaraja with his teacher Karuvur devar (according to the eminent art historians).These paintings in south india remind us of the famous paintings of Sittanvasal and Kanchipuram of Pallava period.
Then in the inner walls of the first floor,one can see the marvelous art of this period.The series of One Hundred and Eight dance forms carved here which shows the forgotten plastic art of that period.
अगस्त 10, 2010 को 3:19 अपराह्न
आपके सुंदर चित्रों के माध्यम से खूबसूरत वास्तुशिल्प के दर्शन हुए और शब्दों के माध्यम से नई जानकारी। आभार।
अगस्त 10, 2010 को 5:12 अपराह्न
हमारे ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों से जुड़ी आपकी प्रस्तुति वाकई सराहनीय है. सब लोग सब जगह कहाँ जा पाते हैं? इससे हमें अपने ही अतुलनीय भारत के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है. इसके लिए आपको धन्यवाद देती हूँ.
अगस्त 10, 2010 को 5:38 अपराह्न
मैं अपनी दक्षिण यात्रा को याद कर रहा हूं. वृहदेश्वर में खड़ा होकर शायद सबको अपनी तुच्छता और दीनता का अनुभव होता है. दक्षिण से वापस आकर यही स्मृति हावी रहती है. रोचक पौस्ट पर अतुल की महत्वपूर्ण टिप्पणी.
अगस्त 10, 2010 को 7:38 अपराह्न
बहुत ही विस्तृत जानकारी मिली, और चित्र तो लाजवाब हैं ही. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
अगस्त 10, 2010 को 7:51 अपराह्न
thanks ..
अगस्त 10, 2010 को 9:25 अपराह्न
इसकी भव्यता देखते ही बनती है , फोटो अच्छे साइज़ के दिए हैं, इससे एनलार्ज करके देखने का आनंद ही अलग होता है ! इतनी बढ़िया विश्व धरोहर से परिचय कराने के लिए आपका आभार !
अगस्त 10, 2010 को 10:09 अपराह्न
सर,
भोजपुर वाला शिवलिंग तो हमने पिछले साल ही देखा था और उसकी विशालता देखकर दंग रह गये थे। आज आपने और भी चकित कर दिया।
बहुत खूबसूरत चित्र लगे।
घर बैठे इस पवित्र स्थान के दर्शन करवा दिये आपने, आभार स्वीकार करेम।
अगस्त 10, 2010 को 11:03 अपराह्न
बहुत खुब सुरत चित्र ओर बहुत सुंदर जानकारी हमेशा की तरह से, धन्यवाद
अगस्त 11, 2010 को 1:02 अपराह्न
१००० साल पुराने इस मंदिर के बारे में नयी जानकारियां मिलीं.
वाकई अद्भुत शिल्प और कलाकारी का उदाहरण है .चित्र बहुत अच्छे लगे.
नीचे से तीसरे चित्र में एक व्यक्ति को ‘हेट’ पहने दिखाया गया है.उस समय में ऐसा चित्र ?या इसे बाद में उकेरा गया होगा?
– किवदंती में कही बात में मंदिर की परछाईं वाली बात ‘किसी अन्य संदर्भ में कही गयी होगी.बहुत बहुत आभार वृहदेश्वर मंदिर के दर्शन कराने के लिए.
अगस्त 11, 2010 को 5:12 अपराह्न
आह…अद्भुत….
आनंद आ गया….
बहुत बहुत आभार आपका !!!
अगस्त 11, 2010 को 6:56 अपराह्न
सारा विवरण दोबारा पढ़ा है…मेरे प्रश्न का जवाब तो उसी चित्र के नीचे विवरण में आप ने दिया ही हुआ है …
अगस्त 11, 2010 को 7:44 अपराह्न
subrmanyan ji,
bahut hi achchha laga , rochak jankari dene ke liye shukriya.
अगस्त 11, 2010 को 10:51 अपराह्न
भव्य, अतिसुन्दर, महान एवम उत्कृष्ट शिल्पकला का नमूना
धन्यवाद
अगस्त 12, 2010 को 11:31 पूर्वाह्न
वाह! वाह! करते हुए पढ़ा. सुन्न्दर विवरण.
अगस्त 12, 2010 को 9:25 अपराह्न
बहुत सुंदर चित्र और विवरण !
अगस्त 12, 2010 को 9:48 अपराह्न
रोचक जानकारी।
अगस्त 12, 2010 को 9:49 अपराह्न
वाह जी!
मैंने सोचा था की देरी से आने के लिए आपसे माफ़ी मांगूंगा पर अब मुझे लग रहा है की मेने अपना ही नुक्सान किया होता अगर ना आ या होता आपके ब्लॉग पर !
एक और कला के बेहतरीन नमूने से अवगत कराया आपने आज ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
जल्द ही मुझे दक्षिण की लम्बी यात्रा करने की इच्छा हो रही है ! यूँ ही आप दर्शन करते रहिये ब्लॉग से ! एक दिन में निकल ही पडूंगा !
अगस्त 12, 2010 को 11:17 अपराह्न
har Aalekh main aapka mehnat dekhkar dang rah jati hun main. bahut siddat se kuch likhte hai aap. wakai bahut achchi jankari mili .
thanks,
अगस्त 12, 2010 को 11:45 अपराह्न
आदरणीय
ब्लाग पढने में देर हो गई क्योकि मै आजकल बेंगलोर में हूँ अपने एक साल के पोते निमांश के पास और वो इतना व्यस्त रखता है की लेपटाप को हाथ ही नहीं लगाने देता और गलती से खोल लिया तो फटाफट उसकी की निकल लेता है \
बहुत ही खूबसूरती से आपने तंजौर के शिवलिग और मन्दिर का चित्रमय विवरण दिया है करीब ६ साल पहले तमिलनाडू की यात्रा के दौरान हमने ये मन्दिर देखा था कितु टूरपॅकेज में फटाफट उपरी तौर से ही देखा था आपने इतना विस्तृत वर्णन दिया है की मानो अभी ही हमने वो यात्रा की हो | इन अतिहसिक मन्दिरों की उनके इतिहास के साथ यात्रा करवाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार |
अगस्त 13, 2010 को 6:10 पूर्वाह्न
अद्भुत…!!
अगस्त 13, 2010 को 9:18 अपराह्न
Many many thanks to you sir that u have provided valuable informations about this temple to the scholars and common man.Rearly it simple fantastic description.The addition of Atul also very intresting which provided valuable intresting information.
अगस्त 14, 2010 को 1:22 पूर्वाह्न
आपका बहुत आबार जो आपने ितने विशाल और प्राचीन शिवमंदिर के दर्शन ही नही करवाये वरन इतनी सारी जानकारी भी दे दी । हजार साल पहले का यह मंदिर आज भी कितनी अच्छी स्थिति में है । हमारे प्राचीन वास्तुकला का बेजोड नमूना ।
मंदसोर में भी एक पशुपतेश्वर मंदिर है । यह शिवलिंग, काठमांडू के पशुपतिनाथ की तरह पंचमुखी है और बहुत बडा है मुझे इसके डायमेन्शन की तो कोई जानकारी नही पर जब हम पढ रहे थे तभी किसी धोबी को सपना आया कि(ऐसा सुना था) मुझ पर कपडे ना धो मुझे निकलवा और तब यह मूर्ती निकली थी । आप भोपाल में रहते हैं तो जा सकते हैं । मंदसोर व्हाया रतलाम जाया जाता है ।
अगस्त 14, 2010 को 6:55 अपराह्न
बहुत सुंदर चित्रण… इस बार छुट्टियों में दक्षिण भारत का ही भ्रमण करने का इरादा है.. यहां ज़रूर जाएंगे
स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं
हैपी ब्लॉगिंग
अगस्त 15, 2010 को 1:40 अपराह्न
aapki ghumakkri chakit karti hai…prernaspad bhi..main kain baar sochta hoon ki kash main bhi itna ghoomta…aapko badhai…sadhuwaad….
अगस्त 15, 2010 को 7:08 अपराह्न
What beautiful architecture! The Cholas created masterpieces.
अगस्त 16, 2010 को 2:47 अपराह्न
इस विश्वधरोहर के बारे में जानकर अच्छा लगा। आभार।
अगस्त 16, 2010 को 8:15 अपराह्न
बहुत ही सारगार्वित सचित्र जानकारी दी है … फोटो बहुत बढ़िया हैं …आभार
अगस्त 17, 2010 को 10:30 पूर्वाह्न
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
सुन्दर तस्वीरों के साथ आपने शानदार रूप से प्रस्तुत किया है जो काबिले तारीफ़ है!
अगस्त 18, 2010 को 11:28 पूर्वाह्न
उन शिलपकारों की पूजा होनी चाहिए जिन्होंने अपना जीवन होम कर दिया होगा ऐसे अद्भुत शिल्प को रचने मे।
जब चित्रों को ही देख कर इंसान अभिभूत हो जाता है तो साक्षात दर्शन करने पर क्या हाल होता होगा।
एक बार फिर साधूवाद।
अगस्त 18, 2010 को 7:05 अपराह्न
चित्रों को देख कर ऐसा लगा जैसे मैं अभी भी वहां ही हूँ | धन्यवाद |
अगस्त 20, 2010 को 10:54 पूर्वाह्न
अभी ३-४ दिन पहले हमारी दीदी यहां घूम कर आई है और इस मंदिर की बहुत तारीफ़ कर रही थी और आज हमने आपकी ये पोस्ट पढ़ी। बहुत अच्छी लगी।
वैसे आपने तो पोस्ट काफी पहले लिखी है पर हम पढ़ नहीं पाए थे।
अगस्त 29, 2013 को 10:26 पूर्वाह्न
ye mandir kis shally me bana hai
फ़रवरी 28, 2014 को 10:11 पूर्वाह्न
तंजौर बहुत ख़ूबसूरत शहर है, मैं गया था एक दिन के लिए और तीन दिन रुक आया।
जनवरी 12, 2017 को 10:28 अपराह्न
परछाई वाली बात सत्य है लेकिन इस प्रकार से
की दिन के किसी एक पहर में मंदिर की परछाई चारों दिशाओं में कहीं भी नहीं पड़ती. अर्थात दुसरे पहर में जब सूर्य नारायण मंदिर के ठीक शिखर पर पहुँचते हैं तो मंदिर के पिरामिड आकार के कारण मंदिर की परछाई मंदिर के नींव में ही फस कर रह जाती है और आस पास कहीं दिखाई नहीं देती.
जून 25, 2017 को 12:06 अपराह्न
इसे पढते हुए ऐसा लग रहा था कि मैं स्वयं मदिर मे मौजूद हूँ और अपनी आंखों से ही वहाँ के सभी दृश्य देख रहा हूँ। मंदिर के बारे मे इतने विस्तार और अच्छी तरह से बताने के लिए आप का धन्यवाद।☺
जून 25, 2017 को 12:12 अपराह्न
इसे पढते हुए ऐसा लग रहा था कि मैं स्वयं मदिर मे मौजूद हूँ और अपनी आंखों से ही वहाँ के सभी दृश्य देख रहा हूँ। मंदिर के बारे मे इतने विस्तार और अच्छी तरह से बताने के लिए आप का धन्यवाद।
फ़रवरी 14, 2019 को 3:56 अपराह्न
मंदिर के बारे मे इतने विस्तार और अच्छी तरह से बताने के लिए आप का धन्यवाद।
जनवरी 16, 2022 को 9:12 अपराह्न
Any photograph of the sacred well pl.post