प्रागैतिहासिक कालीन मानव सभ्यता के पद चिन्ह वैसे तो समूचे भारत में यत्र तंत्र मिलती हैं परन्तु मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ एक ऐसा भूभाग है जहाँ इनकी प्रचुरता है. भोपाल के पास भीमबेटका के शैलाश्रय एवं उनमें प्राप्त होने वाले शैलचित्र तो अब जग प्रसिद्द हो चले हैं. UNESCO द्वारा इन्हें विश्व धरोहर के रूप में मान्यता भी दी गयी है. वैसे इस प्रकार के शैलचित्र तो रायगढ़ जिले के सिंघनपुर में (कबरा पहाड़), होशंगाबाद के निकट आदमगढ़, छतरपुर जिले के बिजावर से कुछ दूर पहाडियों पर, रायसेन जिले में बरेली तहसील के पाटनी गाँव में मृगेंद्रनाथ की गुफा के शैलचित्र, भोपाल के पास ही रायसेन जाने वाले मार्ग से लगी पहाडियों पर (चिडिया टोल) और अभी अभी होशंगाबाद के पास बुधनी से खबर आई थी कि वहां के एक पत्थर खदान में भी शैल चित्र पाए गए हैं. हो हल्ला मचा और प्रशासन को खदान की लीस निरस्त करनी पड़ी. भीमबेटका से ५ किलोमीटर की दूरी पर एक और जगह है “पेंगावन” जहाँ ३५ शैलाश्रय पाए गए है और यहाँ के शैल चित्र दुर्लभ माने गए हैं. इन सभी शैलचित्रों की प्राचीनता १०,००० से ३५,००० वर्ष की आंकी गयी है.
मध्य प्रदेश का इको टूरिस्म डेवेलोपमेंट बोर्ड पिछले कुछ वर्षों से जंगलों में छिपी ऐसी पुरा संपदाओं को चिन्हित करने और इन जगहों को पर्यटन के लिए आकर्षक बनाने के कार्य में लगा हुआ है और अब तक जो कार्य हुए हैं वे सराहनीय रहे हैं. अभी कुछ वर्षों पूर्व ही अखबार में खबर आई थी कि भोपाल से कोलार बाँध की ओर जाने वाले रास्ते के दाहिनी ओर पहाडियों पर भी शैल चित्र पाए गए हैं. उधर दूसरी ओर वन विभाग के द्वारा पर्यावरण पर्यटन को विकसित करने के लिए केरवा बाँध के पास बहुत सुन्दर मचान और झोपडियां आदि बनवाए गए हैं. पर्वतारोहण एवं पद यात्रा (ट्रेकिंग) आदि के कार्यक्रम भी संचालित किये जा रहे हैं. केरवा बाँध की तरफ समर्धा पर्वत श्रेणी में गणेश पहाडी पर कुछ शैलाश्रय भी मिले और वहां तक जाने के लिए जंगल के बीच से रास्ता भी बना दिया है. कोलर रोड से दिखने वाली पहाडी भी यही है. हमें यह जानकारी हमारे मित्र श्री आशीष जोशी, जो हमारे घर के सामने ही रहते हैं, ने बड़े उत्साह पूर्वक दी और कुछ चित्र भी उपलब्ध कराये.
उन्होंने एक और विचित्रता की और हमारा ध्यान आकृष्ट किया और वह था उन्हीं शैलाश्रयों से और कुछ दूरी पर माडिया कोट में पत्थरों से बना एक बड़ा सा वृत्त जिसकी गोलाई लगभाग ७० मीटर रही होगी. इसे श्री आशीष जोशी के साथ गए लोगों ने आदि मानवों द्वारा निर्मित कोई पवित्र स्थल रहे होने का अनुमान लगाया है. उन्होंने उसे टुम्युलस (Tumulus) की तरह उनके मृतकों के दफ़नाने की जगह भी सोच ली. हमने भी पाषाण युगीन कब्रगाह देश के अन्य भागों में देखे हैं और अमूमन सभी जगह हमने बड़े बड़े पाषाण खंडों को जमीन पर गडा हुआ पाया है. इसलिए माडिया कोट में पत्थरों से वृत्ताकार संरचना हमारे लिए कौतूहल का विषय है. चार पांच लोगों के सिवा अभी तो यह किसी की नज़र में नहीं आया है और यदि नज़र पड़ी भी हो तो इसे अनदेखा ही किया गया है. यह निश्चित रूप से मानव द्वारा ही निर्मित है और न कि प्राकृतिक रूप से बना हुआ.
विकिमापिया तथा गूगल अर्थ अब हमारे जैसे आम आदमी के लिए भी बहुत उपयोगी हो गया है. हमने पूरे भूभाग का अवलोकन किया तो एक बात सामने आई. होशंगाबाद से लेकर साँची और आगे तक एक पर्वत श्रृंखला है जिनपर चित्रांकित शैलाश्रय मिल रहे हैं. साथ ही इसी पर्वत श्रृंखला पर बौद्ध स्तूपों का निर्माण भी हुआ है. साँची तो सर्वविदित है परन्तु उसके अतिरिक्त, सतधारा, सोनारी और हलाली बाँध के इर्दगिर्द भी बहुत से स्तूप विद्यमान हैं जिनकी जानकारी कम लोगों को है. संभव है कि माडिया कोट में स्तूप बनाने की योजना रही हो और रेखांकित कर छोडना पड़ा हो अथवा पूरा बन जाने के बाद उजड़ गया हो या उजाड़ दिया गया हो. हमें तो उपग्रह के चित्र में एक और गोलाकार संरचना दिख रही है जो कुछ छोटी है. यह संदर्भित मुख्य वृत्त के दाहिनी ओर कुछ नीचे है. लगता है कि इस स्थल को भी तलाश है किसी वाकणकर जी का जो इन्हें कुछ अर्थ दे सकें.
सितम्बर माह में कुछ विशेषज्ञों को साथ ले स्थल का सूक्ष्म निरीक्षण एवं अध्ययन के लिए हम प्रयासरत हैं.
जुलाई 13, 2009 को 7:03 पूर्वाह्न
ये अलग जानकारी मिली!!
जुलाई 13, 2009 को 7:42 पूर्वाह्न
सुंदर जानकारी .. अच्छा प्रयास .. शुभकामनाएं !!
जुलाई 13, 2009 को 8:48 पूर्वाह्न
बहुत बडिया और रचक जानकारी के लिये धन्यवाद्
जुलाई 13, 2009 को 9:36 पूर्वाह्न
aapke prayas ko safalata mile aisi hamri kamana hai..gyanwardhan ka aabhar
जुलाई 13, 2009 को 10:17 पूर्वाह्न
रोचक
जुलाई 13, 2009 को 10:26 पूर्वाह्न
सुब्रमणियम जी, अब की बार तो बिल्कुल नयी और अनोखी जानकारी ढूंढ कर लाए हैं…….रोचक!!
जुलाई 13, 2009 को 11:04 पूर्वाह्न
बहुत अच्छी और दुर्लभ जानकारी के लिए शुक्रिया !
जुलाई 13, 2009 को 11:08 पूर्वाह्न
“…प्रागैतिहासिक कालीन मानव सभ्यता के पद चिन्ह वैसे तो समूचे भारत में यत्र तंत्र मिलती हैं परन्तु मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ एक ऐसा भूभाग है जहाँ इनकी प्रचुरता है…” आखिर कहना क्या चाहते हैं आप? क्या हम मप्र-छग के निवासी आप पर एक मानहानि का मुकदमा ठोंक दें? 🙂 🙂 🙂
ये तो मजाक हुआ, लेकिन सीरियसली कहता हूँ कि हमेशा की तरह उम्दा जानकारी… आप पर्यटन को एक रोचक अन्दाज़ में पेश करते हैं…
जुलाई 13, 2009 को 11:45 पूर्वाह्न
ham bhi bheem betka gye hai par apki khoj park ,tthay park jankari lajvab hai .agli post ka intjar rhega .
dhnywad
जुलाई 13, 2009 को 12:06 अपराह्न
इतनी गहन पड़ताल के लिए आपको धन्यवाद,यह आपके ही बस का है भी.
जुलाई 13, 2009 को 12:43 अपराह्न
इस बार अलग तरह का प्रयास, पर अनूठी जानकारी .हमारा ज्ञान वर्धन तो हो ही रहा है लेकिन रोचकता के साथ.
आपको अत्यंत साधुवाद.
जुलाई 13, 2009 को 1:03 अपराह्न
आदरणीय सुब्रमनियन जी ,
भित्तिचित्र / शैलचित्र अत्यंत मौलिक / विशुद्ध ‘ऐतिहासिक ( पाषाणीकृत ) दस्तावेज’ हैं ! क्या ये मुमकिन है की इन चित्रों के साथ इनकी ‘एनालिटिकल कमेंट्री’ भी साथ में जोड़ दी जाती ? मेरा मतलब यह है की पुरातत्वशास्त्री की नजर से इनका विवेचन ! वर्ना मुझ जैसे लोग इन्हें पाषण पर उकेरी गई सरल रेखाओं के चित्र मानकर , उस वक़्त के इंसान की प्रष्ठभूमि / हालत के बारे में कुछ भी ना जान सकेंगे !
वैसे तो १० से ३५ हजार वर्ष पूर्व के ,पुरखों का हस्त कौशल देख कर अच्छा ही लग रहा है !
आदर सहित
अली
जुलाई 13, 2009 को 1:13 अपराह्न
आपकी जानकारी और परिश्रम सराहनीय है.
आज वाकणकर जी जैसे साधक कहां हैं, जिन्होने भूखे प्यासे रह कर भी खोज में अपना सब कुछ लगा दिया.
मेरे बचपन के उनके स्मृति क्षण अभी तक मैने सहज कर रखे है, जब वे हमारे घर भोपाल में कई बार आकर रहते थे, भीमबेटका आते जाते….
अपको और आपकी टीम को शुभकामनायें….
जुलाई 13, 2009 को 2:22 अपराह्न
बहुत सुंदर जानकारी, काश अब हमारी सरकार इस की हिफ़ाजत करे ओर इसे लोगो के देखने के लिये सुनिश्चत ढंग से खोले जिस से इन्हे नुकसान भी ना हो ओर सब को इस का लाभ भी हो.
सच मै आप बहुत सारी अच्छी जानकारी देते है.
धन्यवाद
जुलाई 13, 2009 को 2:38 अपराह्न
बहुत रोचक और सुंदर जानकारी. धन्यवाद.
रामराम.
जुलाई 13, 2009 को 2:41 अपराह्न
Sthal ke adhyayan ka aapka pryas avashya safal ho. Shubhkaamnayein. Vaise Rock arts jaise avashesh Jhadkhand mein bhi kafi mile hain.
जुलाई 13, 2009 को 3:37 अपराह्न
बहुत ही रोचक जानकारी है ।
जुलाई 13, 2009 को 4:42 अपराह्न
जी हाँ बिलकुल इस पूरे क्षेत्र का विशेष भूगर्भीय और न्रिशाश्त्रीय निरीक्षण होना ही चाहिए !
जुलाई 13, 2009 को 6:00 अपराह्न
बहुत ही उत्साहजनक समाचार।
जुलाई 13, 2009 को 6:58 अपराह्न
अरे वाह, बहुत अद्भुत जानकारी दी आपने. इस धरोहर को सहेजे जाने की आवश्यकता है.
जुलाई 13, 2009 को 8:18 अपराह्न
आ सुब्रमन्यम जी बेहद रोचक ढंग से आपने लिखा और जानकारी एकत्रित की है ,हमतो हमेशा ही मन उचाट हो जाने पर या कभी भी आउटिंग का मन हो तो भीम बैठका जाते ही हें …आभार ….मैंने जन -फर मैं भीम बैठका पर एक कविता लिखी थी देखें ….बहुत सुंदर जगह ….
जुलाई 13, 2009 को 10:25 अपराह्न
इस जानकारी के लिए आभार
जुलाई 13, 2009 को 10:28 अपराह्न
बेहद रोचक जानकारी ! आपके प्रयासों को सफलता मिले
जुलाई 14, 2009 को 2:11 पूर्वाह्न
ऐसे शैलाश्रय फ्रान्स मेँ भी पाए गए है और वे भी यहाँ के शैल चित्रे से मिलते जुलते हैँ
आदि मानव पने अस्तित्त की निशानियाँ छोड गया है
– लावण्या
जुलाई 14, 2009 को 1:43 अपराह्न
शोध पूर्ण जानकारी और रोचक ढंग चित्रमय प्रस्तुति बहुत पसंद आई.
आप की और आप के सहयोगियों को भविष्य की पड़ताल के लिए शुभकामनायें.
उनके परिणाम जानने की उत्सुकता है.
जुलाई 14, 2009 को 4:01 अपराह्न
इन चित्रों से आदिमानव के प्रति अहो भाव जगता है!
जुलाई 14, 2009 को 5:48 अपराह्न
अच्छी जानकारी के लिए शुक्रिया. चित्र भी बहुत ही अच्छे हैं.
जुलाई 15, 2009 को 9:06 पूर्वाह्न
बेहद जानकारीपूर्ण बढ़िया आलेख और चित्र देखकर लग रहा है की जरुर देखना चाहिए बेहतरीन आलेख . आभार
जुलाई 15, 2009 को 1:08 अपराह्न
ये तो उत्साह जनक समाचार है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जुलाई 16, 2009 को 9:00 पूर्वाह्न
आप तो ज्ञान के ऐसे ऐसे अनमोल मोती खोज़ कर लाते हैं कि मै तो बस आपके शोध की कायल हूँ ।
हमेशा की तरह रोचक और सचित्र जानकारी ।
जुलाई 16, 2009 को 1:49 अपराह्न
bahut gyaanvardhak jaankari dene ke liye shukriya .
renu…
जुलाई 17, 2009 को 3:26 अपराह्न
आपके विचार मिले धन्यवाद आपका कहा मानते हुए वर्ड वेरिफिकेशन हटा दिया है अभी ब्लोगिंग सीख रहा हूँ आप मार्गदर्शन करते रहेंगे इसी आशा है ! मुझे वर्ड प्रेस के ब्लॉग के बारे में मेल से बताये की केसे html संपदित कर सकता हूँ
जुलाई 17, 2009 को 4:47 अपराह्न
Aise kuchh rock arts yaha uttarakhand mai bhi milte hai…aapne ye ek achhi jankari di hai…
जुलाई 25, 2009 को 10:49 पूर्वाह्न
bahut hi romanchk jaknkari.
आदरणीय, सुव्रामणियम साहब,
आपने सुझाव बहुत अच्छा ल्रगा । आपके सुझाव को स्वीकार करते हुए इस कमी को दूर करने का प्रयास करूगाँ । जानकारी के लिए बता दूं कि मुझे मालूम ही नहीं है कि वउZ वेरिफिकेशन कैसे लगाते या हटाते हैं फिर भी इसको हटाने के लिए किसी की मदद लेकर जरूर हटाऊगां ।
नवम्बर 14, 2009 को 5:05 पूर्वाह्न
भाई आप को सलाम बहुत बेहतर कार्य कर रहे है हमारे अतीत का संरक्षण और प्रसार
मार्च 18, 2011 को 12:31 अपराह्न
jamgarh [bareli] dis raisen[mp] m manav pdchinh he pls cont.09926508228
जनवरी 13, 2012 को 6:35 अपराह्न
बहुत उम्दा जानकारी से युक्त ब्लॉग। धन्यवाद.
जनवरी 4, 2014 को 2:57 अपराह्न
very nice …pic..
मार्च 10, 2021 को 11:12 अपराह्न
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