श्री पी.एन. संपत कुमार, कोचिन शिपयार्ड, कोच्ची
के आलेख का हिंदी रूपांतर
अंतरजाल में गोताखोरी करते हुए श्रीलंका के ऐतिहासिक विश्व धरोहर “सिगिरिया” के बारे में पहली बार सन २००४ में जाना था. मेरे एक साथी सपरिवार छुट्टियाँ मनाने श्रीलंका जाना चाह रहे थे और मुझसे आग्रह किया था कि उनके प्रस्तावित प्रवास के कार्यक्रम की रूपरेखा सुझा दूँ. उन दिनों श्रीलंका के राजनैतिक हालातों, अंदरूनी भागों में यात्रा के जोखिम, बहुत सारे सीढ़ियों को चढ़ पाने में उनकी पत्नी की असमर्थता आदि को ध्यान में रखते हुए उन्होंने सिगीरिया को तिलांजलि दे दी थी. परन्तु सिगिरिया के बारे में जानी हुई बातों ने उन दिनों ही मेरे मस्तिस्क में उत्कंठा के बीज रोपित कर दिए थे और उपयुक्त अवसर आने पर वहां घूम आने के लिए लालायित रहा.
सिगिरिया, श्रीलंका वासियों के लिए हमारे ताज महल से भी अधिक महत्वपूर्ण एवं अभीष्ट है. सिगिरिया संस्कृत मूल के सिंह गिरी का अपभ्रंश जान पड़ता है. ऐसी मान्यता है कि ५ वीं सदी में यह राजा कश्यप (सन ४७९ – ४९७) की राजधानी थी. कहते हैं कि अनुराधापुरा (सिगिरिया से ५० किलोमीटर उत्तर में) के राजा धातुसेन के पुत्र कस्सप्पा (कश्यप) ने अपने ही पिता का वध कर अपनी राजधानी अनुराधापुरा से सिगिरिया स्थानांतरित कर दिया था. उसे इस बात का भय था कि उसके सौतेले भाई मोग्गालाना को राजगद्दी सौंपी जायेगी. उसने सिगिरिया में एक सुन्दर नगर बसाया और १२१४ फीट ऊंचे उस गिरी के ऊपर अपना राजप्रसाद, वह भी मात्र ७ वर्षों में. यह जगह सुरम्य वादियों में बड़ी अनुकूल जगह थी क्योंकि वहां किसी शत्रु का पहुँच पाना भी कठिन था. उसका सौतेला भाई मोग्गालाना तो अपनी प्राण रक्षा के लिए भारत भाग गया परन्तु कुछ वर्षों बाद शक्तिशाली होकर वापस लौटा. दोनों भाईयों में युद्ध हुआ और कश्यप परास्त हो गया. शत्रु के हाथों मरने की अपेक्षा उसने अत्म्सम्मानार्थ आत्महत्या कर ली थी. उसके मरणोपरांत सिगिरिया को बौद्धों के तेरावड़ा एवं महायाना संप्रदायों के द्वारा अपने विहारों के लिए अनुकूल समझ प्रयुक्त किया जाता रहा. १६ वीं और १७ वीं सदी में यह स्थल कॅंडीयन राज्य के लिए एक सैनिक अड्डे के रूप में भी प्रयुक्त हुआ और तत्पश्चात शनै शनै खंडहरों में परिवर्तित हुआ. एक अंग्रेज पुरातत्ववेत्ता एच.सी.पी. बेल ने सिगिरिया को पुनः ढूंड निकाला. कुछ विद्वानों का मत है कि सिगिरिया की पहाड़ी के ऊपर कभी कोई राजप्रसाद नहीं रहा है और न ही वह कभी भी श्रीलंका की राजधानी रही है. वह प्रारंभ से ही एक बौद्ध केंद्र ही रहा है.
ये सभी बातें मस्तिष्क में घुसी हुई तो थीं ही, इसलिए जब हम लोगों ने इस वर्ष अप्रेल माह में छुट्टी मनाने श्रीलंका का कार्यक्रम बनाया तो, गाँठ बाँध ली थी कि सिगिरिया तो जाना ही है. हम लोग कोलम्बो से श्रीलंका के मध्य के शहर कंडी (Kandy) पहुँच वहीँ रहने की ठानी. वह एक रविवार का दिन था. सुबह नाश्ता कर एक टेक्सी दिनभर के लिए किराए में ले ली.(कंडी में तमिलों के भी कई रेस्तोरां दिखे थे). हमारे गाडी के चालक “तामुरा” (kandy cabs) का शिष्ट व्यवहार बड़ा अच्छा लगा था. वह कुछ कुछ तमिल और अंग्रेजी भी समझता था. जिस होटल में हम लोग रुके थे, वहां की मालकिन श्रीमती शकुंतला बड़ी मददगार साबित हुई. उसने हम लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में सेंडविच, सुगन्धित दूध के पेकेट और पानी की बोतले बंधवा दी थीं. फिर हम निकल पड़े सिगिरिया के लिए. रास्ते में ही “दाम्बुला” गुफा मंदिरों को देखने का कार्यक्रम भी था.
कंडी का मौसम बड़ा अविश्वसनीय रहता है. दो दिनों से घने घने बादलों की लुपा छुपी हो रही थी इसलिए रास्ते में ही बारिश में घिरने का अंदेशा बना हुआ था. महावेली नदी के किनारे किनारे कुछ मील (यहाँ अब भी गज और मील का ही चलन है) और फिर अरक्षित वनों के बीच से होते हुए हम लोग “मताला” नामके कस्बे में पहुंचे. यहाँ कुछ रुक कर एक एक कप श्रीलंका की चाय पी. फिर चहल कदमी करते हुए बस्ती के बीच ही बने बड़े देवी के मंदिर (मुथु मारि अम्मन) तक हो आये. मुझे बताया गया कि सन १९२७ में महात्मा गाँधी जी मताले आए थे और एक पाठशाला का शिलान्यास किया था.
नारियल के बागीचों और धान के खेतों के बीच से हम लोग आगे बढ़ चले. पूर्णतः अनजानी वादियों में से गुजरना बड़ा अच्छा लग रहा था. धान के खेत बुआई के लिए तैयार हो रहे थे. किसानों का भैंसों की सहायता से हल चलाते दिखना यहाँ के लिए सहज है. हवा में सोंधी सोंधी मिटटी की गंध घुली हुई थी. यदा कदा दिख जाने वाले ग्रामीण घर भारत में मालाबार की याद दिला देते हैं. खपरैल वाले ऐसे घर बारिश के लिए बड़े अनुकूल भी होते हैं. सड़क के दोनों तरफ छोटी छोटी दूकानों में केले, फल, सब्जियां और नरम नारियल उपलब्ध थे. पर्यटन को यहाँ बड़ी गंभीरता से लिया जा रहा है. सड़क के दोनों तरफ बड़े बड़े पीपल या वट वृक्षों को देखना भी एक अनुभव रहा. यहाँ की सरकार के द्वारा इस प्रकार के वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया जाता है. इनसे भरपूर प्राणवायु (ओषजन) तो मिलती ही है, यह भी कहा जाता है कि ओज़ोन की परत भी सुरक्षित रहती है. दाम्बुला पहाड़ी के नीचे स्वर्ण मंदिर और भीमकाय बुद्ध
दाम्बुला गुफाओं की अग्रसर होते पर्यटक
चैत्य एवं पार्श्व में भित्ति चित्र तथा बुद्ध की प्रतिमाएं
जब सिगिरिया की दूरी लगभग १३ मील ही रह गयी थी, हम लोग दाम्बुला में थे. दानबुल्ला में एशिया महाद्वीप के गौतम बुद्ध को समर्पित महत्वपूर्ण गुफा मंदिर हैं. तीसरी सदी में पहाड़ी पर बने इन गुफा मंदिरों का तबसे ही अनवरत उपयोग किया जा रहा है. वहीँ एक अब भी कार्यरत विहार भी चल रहा है. दाम्बुला, बौद्ध धर्म से सम्बंधित अपने भित्ति चित्रों के लिए प्रख्यात है.
नीचे की ओर एक संग्रहालय भी है जहाँ बुद्ध के दन्त अवशेष से सम्बंधित जातक कथाओं को बताया गया है. दाम्बुला प्रेमी युगलों के लिए भी स्वर्ग सदृश माना जाता है. सड़क के किनारे की दूकानों में कमल के फूल, अगरबत्ती, स्मृति सामग्री, खाद्य पदार्थ आदि बहुतायत से उपलब्ध हैं. भारत के बाहर किसी बौद्ध पवित्र स्थल हमने पहले पहल ही देखा था फिर भी हमें निराशा ही हुई. शायद मन खट्टा हो गया था. ठीक है यह उनकी एक तीर्थ स्थली है परन्तु मैंने देखा कि वहां के कर्मकांडी भिक्षुओने स्थानीय गरीब जनता की आस्थाओं को अक्षुण्ण बनाये रखना ही अपना ध्येय बना रखा है.
यहाँ श्रीलंका वासियों को कोई प्रवेश शुल्क नहीं देना पड़ता परन्तु विदेशियों, भारतीयों सहित, को स्थानीय मुद्रा में २२०० रुपये देने पड़ते हैं (श्रीलंका का १ रूपया = भारतीय ०.४५ रुपये). बड़ी अजीब बात है की UNESCO के द्वारा धन उपलब्ध कराये जाने एवं अन्य राष्ट्रों जैसे जापान, म्यांमार आदि द्वारा उदारता पूर्वक सहायता दिए जाने के बावजूद विदेशियों को बलि का बकरा बनाया जाता है. श्रीलंका के ही अन्य स्मारकों आदि में सार्क सदस्य देशों के नागरिक प्रवेश शुल्क में ५०% छूट प्राप्त कर सकते हैं.
आगे जारी … दूसरा और अंतिम भाग
टैग: Sigiriya
सितम्बर 2, 2011 को 7:43 अपराह्न
सिगरिया तो बौद्धमय है -कुछ रामायण से जुड़े आख्यानों के स्थलों से भी श्रीलंका काफी पर्यटन -राजस्व प्राप्त कर रहा है -कभी उनका भी विवरण दें !
सितम्बर 2, 2011 को 7:59 अपराह्न
बहुत सुंदर ,सचित्र और रोचक पोस्ट.
मेरे लिए तो एकदम नयी जानकारी,बहुत धन्यवाद.
सितम्बर 2, 2011 को 8:07 अपराह्न
सुंदर यात्रा विवरण. भाई साहब, जिन मंदिरों में शुल्क लगता हो मैं वहाँ से दूर रहता हूँ. यहाँ पढ़ लिया है.
दुर्लभ चित्रों वाला आलेख बढ़िया बना है और अच्छी शैली में है.
सितम्बर 2, 2011 को 8:57 अपराह्न
सुन्दर चित्रों के साथ शानदार जानकारी|
way4host
सितम्बर 2, 2011 को 9:18 अपराह्न
सुंदर और रोमांचक. वैसे इस पर पहले भी देखा-पढ़ा था.
सितम्बर 2, 2011 को 10:29 अपराह्न
सुंदर चित्रों सहित इस जानकारी के लिये आभार.
रामराम.
सितम्बर 2, 2011 को 10:58 अपराह्न
बौद्ध धर्म के प्रचारको ने प्राचीन इतिहास को बौद्ध मय कर दिया . हमारे यहा भी अहिक्षत्र जो राजा द्रोपद का किला था उसे भी स्तूप साबित करने का प्र्यास किया है
सितम्बर 3, 2011 को 4:48 पूर्वाह्न
वाह जी वाह, श्रीलंका तो भारत का सांस्कृतिक साझेदार है। नयनाभिराम चित्र और रोचक वर्णन, मजा आ गया।
सितम्बर 3, 2011 को 7:02 पूर्वाह्न
सुब्र मणियन जी, अत्यंत रोचक सचित्र वर्णन!
मैं ‘सिगिरिया’ के बारे में और जानने के लिए उत्सुक हूँ… मैंने किसी जगह इसी पर्वत को उत्तराखंड में दिखाया गया पाया था, जिसे देख तब आश्चर्य हुआ था!… रहस्योद्घाटन के लिए धन्यवाद!
मैं अभी इतना ही कहूँगा कि जो हम उत्तर भारतीयों के लिए ‘शिवकाशी’ है, शायद दक्षिण भारतीयों (तमिल भाषियों) के लिए ‘सिवकासी’ है, औद्योगिक शहर जो प्रसिद्द है अग्नि विस्फोटक यंत्र अर्थाक्त माचिस के लिए और प्राकृतिक ज्वालामुखी समान पटाखों अनार, आदि के लिए… स्वयंभू शिव-लिंग समान ‘सिगिरी’ मुझे इस कारण अपभ्रंश लगा शिवगिरी का…
सितम्बर 3, 2011 को 7:42 पूर्वाह्न
अहा!! अद्भुत जानकारी और तस्वीरें..आनन्द आ गया….रोचक एवं दिलचस्प!!
सितम्बर 3, 2011 को 8:31 पूर्वाह्न
एन संपत कुमार साहब के आलेख से धार्मिक स्थलों और व्यावसायिकता से सम्बंधित कुछ सवाल उपजे हैं ! एक शानदार यात्रा संस्मरण जो पर्यटन से इतर भी सोचने को मजबूर करता है ! फिलहाल इतना ही , आलेख की दूसरी कड़ी पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया दर्ज कराते हैं !
आपके अनुवाद ने आलेख की ख़ूबसूरती बरकरार रखी है ! आपकी मेहनत को सलाम !
सितम्बर 3, 2011 को 8:33 पूर्वाह्न
हवा में तैरता महल, अद्भुत दृश्य।
सितम्बर 3, 2011 को 8:49 पूर्वाह्न
अद्भुत महल और लूट तो हर जगह मची हुई है, भारत में क्या काम लूट है विदेशियों के साथ, सभी जगह यही आलम है |
सितम्बर 3, 2011 को 10:00 पूर्वाह्न
bhut rochak post hwa me taira mehal ….wah phli baar dekha or pdha
regards
सितम्बर 3, 2011 को 12:35 अपराह्न
बहुत अच्छे यात्रा वृत्तांत का सुंदर अनुवाद है. कभी श्रीलंका जाने का मौक़ा मिला तो सिगिरिया ज़रूर जाऊंगा.
सितम्बर 3, 2011 को 1:37 अपराह्न
door desh kee janakari se parichit karane ke liye bahut bahut dhanyavad kyonki sab log har sthan ka darshanlabh nahin le pate.
सितम्बर 3, 2011 को 3:18 अपराह्न
अद्भुद…रोमांचक….
आभार…
सितम्बर 3, 2011 को 6:16 अपराह्न
‘पहाड़े वाली, शेरा वाली माता’ से कुछ कुछ समझ आया कि कैसे सिगिरिया को कैलाश पर्वत पर बैठे (नीलकंठ) शिव- (अमृत दायिनी विष्णु के मोहिनी रूप) पार्वती, पृथ्वी- (आकाश में) चन्द्र के मॉडल समान देखा गया हो सकता है…
सितम्बर 4, 2011 को 3:57 अपराह्न
Aerial view is amazing…dekh kar jaane ko dil kar aaya…shayad kisi din jaa sakun…
is adbhut jankari kee liye shukriya.
सितम्बर 4, 2011 को 6:08 अपराह्न
बिना पासपोर्ट वीसा के विदेश भ्रमण…उस पर महलों की सैर! शुक्रिया, सुब्रमनियन साहब.
सितम्बर 4, 2011 को 6:20 अपराह्न
सुंदर, अद्भुत, रोचक साथ ही विस्मयकारी।
सोच कर ही आश्चर्य होता है कि ऐसी पहाड़ी पर छोटा सा घर नहीं, महल कैसे बनाया गया होगा।
सितम्बर 4, 2011 को 7:15 अपराह्न
@ एस.के. त्यागी: सरजी पासपोर्ट और वीज़ा का चक्कर तो रहेगा ही. पहले तो पहुँचने पर वीज़ा मिल जाता था, अब पहले से ही भारत में प्राप्त करना होता है.
सितम्बर 4, 2011 को 8:19 अपराह्न
सर जी
भारत में भी तो विदेशियों को देना पड़ता है.
उस ऊंचाई पर निर्माण में श्रमिकों को कितना कष्ट हुआ होगा .
हमेशा की तरह रोचक पोस्ट .
सितम्बर 4, 2011 को 8:42 अपराह्न
चित्रों सहित,अद्भुत जानकारी के लिये आभार…
सितम्बर 4, 2011 को 10:12 अपराह्न
आपको और सम्पतजी को कोटि-कोटि धन्यवाद/आभार। यात्रा का पूरा-पूरा आनन्द आ गया। सुन्दर विवरण और मनमोहक चित्र। सब कुछ लाजवाब।
सितम्बर 4, 2011 को 11:05 अपराह्न
कोई १५ साल पहले हमारा सपरिवार श्रीलंका घूमना हुआ था उस समय हम भी इन स्थानों पर गए थे.हमारे एक स्थानीय मित्र थे उन्हीं के गाईडेंस में कुछ जगहें देखीं.मुझे तो ‘केंडी’ बहुत ही खूबसूरत और मनभावन लगा.
एक बार फिर उन दिनों का स्मरण हो आया.अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी.
बहुत ही अच्छा और जानकारी देने वाला लेख लगा.चित्र भी सुन्दर हैं.
सितम्बर 5, 2011 को 10:16 पूर्वाह्न
यह पहाड़ी कमाल की आश्चर्यजनक लगी ….आभार आपका !
सितम्बर 5, 2011 को 10:37 पूर्वाह्न
@डा. अरविन्द मिश्रा: हमारे भाई साहब ने कंडी (Kandy) प्रवास पर भी कुछ लिख भेजा है. उसमे अशोक वाटिका का उल्लेख आएगा परन्तु विस्तृत नहीं है. इस लिंक पर देखें, काफी जानकारी उपलब्ध है:
http://www.tourslanka.com/ramayana-sri-lanka.php
सितम्बर 5, 2011 को 6:59 अपराह्न
Beautiful images.;)
Thank you so much for your visit and kind words.;)
सितम्बर 6, 2011 को 12:37 अपराह्न
नयनाभिराम तस्वीरें। रोचक वृतांत
सितम्बर 9, 2011 को 12:57 पूर्वाह्न
अप्रतिम सौंदर्य! देखने लायक स्थान है. दिखने के लिए आभार.
घुघूती बासूती
सितम्बर 14, 2011 को 9:02 अपराह्न
आपके लेख शोध कार्य पर आधारित होते है इतनी विस्तृत और पूरी जानकारी आप देते है जो सचित्र भी होती है । आप का वर्णन पढकर जगह देखने को मन लालायित हो जाता है ।
दिसम्बर 16, 2011 को 5:54 अपराह्न
plz say something in english………..
जुलाई 19, 2019 को 6:42 अपराह्न
hello sir mujhe raja kashyap ki history mil sakti h
जुलाई 19, 2019 को 6:42 अपराह्न
ple mujhe unke bare m janna h
अक्टूबर 21, 2020 को 11:06 पूर्वाह्न
Informative article. Really liked the way of writing and the photographs attached to enrich the knowledge. Thanks