श्री पी.एन. संपत कुमार, कोचिन शिपयार्ड, कोच्ची
के आलेख का हिंदी रूपांतर
कंडी (Kandy) श्रीलंका की सांस्कृतिक राजधानी मानी जाती है और दूसरा बड़ा शहर भी. कंडी के शासकों ने ही बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया और इस नगर को एक पहचान दी. ऐसा माना जाता है कि गौतम बुद्ध के दन्त अवशेष भारत से चुरा कर यहाँ लाये गए थे ताकि उन्हें दुष्ट शासकों से संरक्षण प्राप्त हो सके. यह भी मान्यता है कि बुद्ध के दन्त अवशेष जहाँ भी रहेंगे, वहां समृद्धि रहेगी.
सिंहली के साथ साथ तामिल भी यहाँ की राजकीय भाषा है और लोग तामिल अथवा अंग्रेजी भी बोल लेते हैं. हमें पूर्व में ही चेताया गया था कि हम लोग स्थानीय लोगों से विवादास्पद मुद्दों पर बात न करें. तामिलों और सिंहलियों के बीच रिश्तों में मिठास की कमी है. बावजूद इसके हमने पाया कि सिंहल बाहुल इलाकों में भी हिन्दू मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार दोनों ही हो रहा है.
श्रीलंका में अच्छी सडकों का बेहतर जाल है और ब्रिटिश युग का रेलमार्ग भी सभी प्रमुख शहरों को आपस में जोडती हैं. हम लोगों ने सड़क और रेलमार्ग दोनों का जायजा लेने की सोची और प्रथम चरण में कोलम्बो से कंडी तक के तीन घंटे की यात्रा बस से करने की ठान ली थी.
एक घंटे में ही हमारी बस गरम, उमस भरी तटवर्ती समतल वादियों से पहाड़ियों में पहुच गयी. बस लगभग पूरी भरी थी. एक सिंहली कन्या जो ठीक मेरे पीछे बैठी थी, मुझे पिन्नावाला के हाथियों के अनाथालय के लिए उतरने का स्थल दिखा रही थी. उस अनाथालय को बारूदी सुरंगों में विकलांग हुए हाथियों और उनके बच्चों के लिए स्थापित किया गया था. आजकल यह स्थल एशियाई हाथियों का सबसे बड़ा केंद्र है. वह कन्या मुझे रेल संग्रहालय, बोटानिकल गार्डन आदि जाने का मार्ग भी बताती जा रही थी. इस बीच एक वयोवृद्ध महिला ने मेरे पुत्र के पैरों के पास भारी गठरी को रख दिया जिससे उसके पैरों के आराम में खलल पड़ रही थी. वह अपनी अप्रसन्नता जाहिर करने ही वाला था लेकिन मेरे घूरके देखने पर शांत हो गया.
हम लोगों ने ठहरने के लिए मूलभूत सुविधाओं से युक्त “सवाना लोज” में पहले ही से कमरे आरक्षित करा लिए थे. हवादार कमरे, अच्छे पलंग, अच्छा प्रसाधन और गरम पानी सभी कुछ तो था. लोज की मालकिन भूतल में निवास करती थी और ऊपर के तीनों तलों को अतिथि गृह बना लिया था. आवागमन के लिए ऑटो (टुक टुक) हर तरफ दीखते थे परन्तु वहां नगर यान (बसें) बेहतर विकल्प है. कंडी के लोग भी शारीरिक रूप से सुन्दर, सुडौल लगे भले वे अधिक गोरे न हों. वहां के पारंपरिक शास्त्रीय नृत्य का शायद असर हो. हमें कंडी में रहते हुए ऐसे नृत्य को देखने का सौभाग्य मिला जो कुछ कुछ युद्ध क्रीडा जैसे लग रहा था. संगीत और ढोलों का सामंजस्य भी गजब का था.
कंडी के बीचों बीच एक सुन्दर झील है, प्रसिद्द दन्त अवशेष मंदिर (डालडा मलिगवा) से लगी. विश्व भर में बौद्धों की यह पवित्रतम पूजास्थली है. विदेशियों के लिए प्रवेश दर रु. १००० (स्थानीय) एवं सार्क देशों के नागरिकों के लिए रु.५०० है. लिट्टे ने इस मंदिर को बम से उड़ाने की कोशिश की थी और उस समय आंशिक रूप से भवन को क्षति तो पहुंची ही थी साथ ही ८ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था.
श्रीलंका वाले हाथियों के दीवाने हैं. हर बौद्ध मंदिर में हाथी के दांतों को प्रदर्शित किया गया है. हमारे मैसूर दशहरे की तर्ज पर दन्त अवशेष मंदिर का वार्षिक उत्सव होता है जिसमें हाथियों का जुलूस और कंडी नृत्य विश्व प्रसिद्द हो चले हैं.
मुझे लगता है कि श्रीलंका वासियों की नागरिक भावना हम भारत वासियों से कही अच्छी हैं. कस्बे और शहर स्वच्छ रखे जाते हैं. कंडी शहर के कुछ हिस्से, सड़कें, चौरस्ते, पुरानी इमारतें, भूमिगत मार्ग इंग्लॅण्ड या यूरोप के किसी अनजाने शहर जैसे लगते हैं. यह उसके औपनिवेशिक अतीत का प्रभाव लगता है.
कंडी का एक दूसरा आकर्षण वहां से ५ मील दूर पेरादेनिया में स्थित राजकीय वनस्पति उद्यान (रोयल बोटानिकल गार्डेन) है जहाँ श्रीलंका के दुर्लभ से दुर्लभ पेड़ पौधों को संगहीत किया गया है. कहते हैं १५० एकड़ में फैले इस उद्यान की स्थापना कंडी के राजाओं के द्वारा १३ वीं सदी में किया गया था. बड़े पेशेवर एवं वैज्ञानिक तरीके से इस उद्यान की देख रेख की जाती है. यहाँ पेड़ पौधों की प्रजाति अनुसार अलग अलग खण्डों में विभाजित किया गया है. एक दिन में इस उद्यान को देख पाना असंभव लगता है. इस उद्यान को अनिवार्यतया देखना चाहये.
हम लोगों ने नुअरा एलिया नामके एक हिल स्टेशन को भी देखा. यह कंडी से ७० मील की दूरी पर है और अपने चाय बागानों के लिए प्रख्यात है. इसे श्रीलंका का स्विटज़रलेंड भी कहा जाता है. अंग्रेजों के जमाने में यह उनका आरामगाह हुआ करता था. कोलम्बो वासी भी गर्मी से बचने के लिए यहीं आते हैं. समय की कमी और रेल टिकट उपलब्ध नहीं होने के कारण हमने अपने प्रवास को एक दिन के लिए कर दिया. रु.४००० (स्थानीय)में एक टेक्सी ले ली थी. उन दिनों यहाँ स्कूलों की भी छुट्टी थी. हिल स्टेशन के बहुत बड़े भूभाग में चाय बागान और सम्बंधित कारखाने थे. एक बड़ी झील और सुन्दर उद्यान भी यहाँ के आकर्षण हैं.
यहीं हमें सीता मैय्या के मंदिर (सीता एलिया) के भी दर्शन हुए. इसे ही रामायण की अशोक वाटिका कहा जाता है. यहीं पर पवन पुत्र हनुमान ने अशोक वृक्ष के नीचे सीता मैय्या को ढून्ढ निकाला था. मंदिर के पुजारी ने हमें हनुमान जी द्वारा छोड़े गए पद चिन्हों को भी दिखाया था.
यहाँ हमें स्थानीय PWD की कार्य प्रणाली भी देखने को मिली. हुआ यों कि भूस्खलन के कारण सड़क अवरुद्ध हो गयी थी. एक बड़ा पेड़ भी धराशायी हो गया. उनकी दक्षता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मुश्किल से एक घंटे में सब कुछ ठीक हो गया. मिटटी हटाने और पेड़ काटने के लिए बड़ी बड़ी मशीने आ गयीं और हम लोग गंतव्य की और चल पड़े थे.
वापसी के लिए हम लोगों ने रेल से यात्रा करने की सोची. केवल तृतीय श्रेणी के ही टिकट उपलब्ध थे, जो काफी सस्ते थे. पहाड़ियों के बीच से रेल यात्रा का हमने भरपूर आनंद लिया. गाडी में ही बहुत बढ़िया नाश्ता और श्रीलंका की मशहूर चाय उपलब्ध हुई. कंडी से कोलम्बो की ढाई घंटे की यात्रा अविस्मरणीय रही.
सितम्बर 16, 2011 को 6:36 पूर्वाह्न
कंडी की यात्रा आलेख के ज़रिए से कर ली है. संपत जी को धन्यवाद. आनंद आया. फोटो ने चार चाँद लगा दिए. अब श्रीलंका सरकार हिंदू मान्यता वाले स्थलों का जीर्णोद्धार कर रही है. ज़ाहिर है कि पर्यटन और विदेशी मुद्रा उनका लक्ष्य है. मैंने देखा है कि श्रीलंका से सारनाथ आए सैलानियों को कुछ शरारती लोगों की गालियाँ और दुर्व्यवहार झेलना पड़ता है. कोरियाई लोगों को उन्हीं की भाषा में गालियाँ दी जाती हैं. शायद देश की सीमा लाँघते ही एक सांस्कृतिक प्रदर्शन देखने को मिल जाता है.
सितम्बर 16, 2011 को 7:31 पूर्वाह्न
श्रीलंका की ऐसी खबरें, ये नजारा मुश्किल से मिलता है, धन्यवाद.
सितम्बर 16, 2011 को 8:42 पूर्वाह्न
लेख से कैन्डी के बारे में जानकारी मिली. तमिलों के साथ क्या हुआ है, ये तो सभी को पता है, लेकिन चुप हैं.
सितम्बर 16, 2011 को 9:29 पूर्वाह्न
बिल्कुल अपने भारत जैसा।
सितम्बर 16, 2011 को 10:18 पूर्वाह्न
अच्छी लगी यह श्रीलंका यात्रा …शुभकामनायें आपको !
सितम्बर 16, 2011 को 10:32 पूर्वाह्न
श्रीलंका से एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक जानकारी. मगर कुछ ख़बरों से यहाँ के बौद्धों की भी धार्मिक सहिष्णुता कमजोर पड़ती जाने की संभावनाएं भी बनती नजर आ रही हैं.
सितम्बर 16, 2011 को 11:33 पूर्वाह्न
‘श्रीलंका वासियों की नागरिक भावना हम भारत वासियों से कही अच्छी हैं’….
बिलकुल सही कहा आपने !और साथ ही यह भी कहना चाहूंगी कि वे अपेक्षाकृत बहुत ही मिलनसार ,उन्मुक्त और हंसमुख होते हैं.
..इस लेख ने केंडी यात्रा की मेरी यादें ताज़ा कर दीं …वही मंदिर/वनस्पति उद्यान ..आदि…सब जैसे फिर से आँखों के सामने से गुज़र गया…मुझे याद है जब हम मिनी बस से वनस्पति उद्यान की तरफ जा रहे थे तो उस में हिंदी गाने बज रहे थे.उनके व्यवहार में भारतियों के प्रति आदर भी दिखाई देता है.
सुन्दर लेख और चित्रों के लिए लेखक को बधाई…
सितम्बर 16, 2011 को 2:16 अपराह्न
ये नजारा मुश्किल से मिलता है, धन्यवाद|
सितम्बर 16, 2011 को 3:06 अपराह्न
इतनी उत्कॄष्ट जानकारी चित्रों सहित मिलना मुश्किल है, बहुत आभार आपका.
रामराम.
सितम्बर 16, 2011 को 5:02 अपराह्न
सुन्दर चित्रों के साथ बहुत अच्छी जानकारी दी है इस लेख में ….बहुत -बहुत बधाई ….
सितम्बर 16, 2011 को 6:15 अपराह्न
फिर एक संग्रहणीय,नयनाभिराम पोस्ट,आभार.
सितम्बर 16, 2011 को 6:24 अपराह्न
श्रीलंका में सच में अशोक वाटिका के अवशेष सा कुछ है ये जान के बेहद अच्छा लगा..हमेशा सोचती थी की इधर अयोध्या, मिथिला सब कुछ तो भारत में गाहे बगाहे पढ़ने सुनने को मिल जाता है पर लंका के बारे में कभी नहीं पढ़ा…एक उत्सुकता रहती थी..शांत हुयी…
धन्यवाद
सितम्बर 16, 2011 को 7:04 अपराह्न
श्रीलंका भारत का हिस्सा नहीं रहा, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से साँस्कृतिक साम्यता महसूस होती है।
अभी तक इस जगह को हम कैंडी नाम से जानते रहे हैं(courtesy cricket commentary), आज विवरण पढ़ देखकर ऐसा ही एहसास हुआ जैसा बच्चों को कैंडी मुँह में डालते ही होता है – मधुर, मधुरतर फ़िर मधुरतम।
खूबसूरत पोस्ट शेयर करने के लिये आपका शुक्रिया।
सितम्बर 16, 2011 को 7:18 अपराह्न
@ श्री संजय,
मौर्य काल से ही श्रीलंका भारत के आधीन रहा है. जो भी वहां के राजा थे, वे दक्षिण के चोल और पांड्य शासकों के आधीन थे. यही एक कारण है की वहां तमिलों की एक बहुत बड़ी आबादी है. अब तामिल की बात आई तो यह भी बता दूँ की शुद्धता के दृष्टिकोण से जाफ्फ्ना (Jaffna – श्री लंका) की तामिल भाषा साहित्यिक और विशुद्ध मानी जाती है.
सितम्बर 16, 2011 को 7:48 अपराह्न
काफी कुछ जानने को मिला.सीता माता के पदचिन्ह और अशोक वाटिका के अवशेषों के बारे में एक बार टीवी पर एक कार्यक्रम देखा था .आज आपने तस्वीर भी दिखा दी.
ठीक ही कहा है आपने श्रीलंकन में नागरिक भावना शायद थोड़ी अधिक होती है.उनके शहर काफी स्वच्छ होते हैं.
बहुत बढ़िया यात्रा वृतांत .आभार.
सितम्बर 16, 2011 को 9:01 अपराह्न
बहुत सुन्दर चित्रों को आपने उत्तम जानकारी के साथ जिस अंदाज़ में प्रस्तुत कीया है …आभार आपका उसके लिए …
सितम्बर 17, 2011 को 3:54 पूर्वाह्न
कंडी के बारे में सुना सुना ही था…आजविस्तार से जानकारी पढ़कर और तस्वीरें देखकर आनन्द आ गया.
सितम्बर 17, 2011 को 8:34 पूर्वाह्न
कंडी को हाथ जोड़ नमन -माँ सीता स्थल को देख मन सम्मान -आह्लाद परिपूरित हुआ …
सितम्बर 17, 2011 को 12:08 अपराह्न
उत्तम वर्णन. हमें श्रीलंका के लोगों से सीख भी लेनी चाहिए. फोटोग्राफ़ भी आपने बहुत अच्छे लिए हैं.
सितम्बर 18, 2011 को 2:11 अपराह्न
मीठे से नाम वाली जगह की मधुर-मधुर यादें, साथ ही मिलती-जुलती कुछ-कुछ वैसी ही बातें जैसे भोली-भाली ग्रामिण महिला की गठड़ी, एक सुखद एहसास दिला गयीं। जब भी आपका लेख पढने को मिलता है तभी वहां जाने की इच्छा बलवती हो उठती है पर…….
सितम्बर 18, 2011 को 3:54 अपराह्न
सुन्दर सचित्र वर्णन के लिए दोनों भाइयों को धन्यवाद!
जैसा आपने जाफना के प्राचीन तमिल भाषियों के लिए कहा, वैसा ही मैंने भी सुना औरंगजेब की सेना के प्राचीन फौजी सिखों के बारे में जो ‘काले जादू’ से बचाव हेतु गुरु तेग बहादुर को साथ ले गए… और उनकी सहायता से ब्रह्मपुत्र नदी को एक अकेली शक्तिशाली तांत्रिक धोबन को हरा, उसके नाम पर रखे शहर ‘धुबड़ी’ से पार कर, असम, नौगाँव तक आसानी से पहुँच पाए… और वहाँ एक बड़ा गुरुद्वारा बनाये हुए बसे थे…वो किन्तु असमी बोलते हैं, और पंजाब के सिखों की तुलना में अधिक धार्मिक माने जाते हैं…
सितम्बर 18, 2011 को 4:15 अपराह्न
sachitra darshneey sthalon ka vivaran prastut karke aap blog jagat ko ek dharohar de rahe hain. apaki prastuti bahut hi sundar hoti hai aur hamen kuchh milta hai jo ham shayad isa tarah khoj kar pana chahen tab bhi nahin pa sakate hain. Blog ke roop men jab milta hai to bada aanand milta hai.
सितम्बर 19, 2011 को 6:20 पूर्वाह्न
हमेशा की तरह सारगर्भित, उपयोगी एवं सुंदर पोस्ट।
——
कभी देखा है ऐसा साँप?
उन्मुक्त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..
सितम्बर 19, 2011 को 8:25 पूर्वाह्न
डिस्कवरी चेनल में एक डाक्यूमेंट्री आई थी जिसमे श्रीलंका स्थित किसी पहाड़ में रावन की ममी होना बताया गया था. वहां तक डिस्कवरी की टीम गयी थी.
बढ़िया यात्रा वृतांत रहा, श्रीलंका के दर्शनीय स्थलों की जानकारी सहित. आभार
सितम्बर 19, 2011 को 12:45 अपराह्न
बहुत ही रोचक जानकारी उतनी ही रोचक शैली में.
आभार.
सितम्बर 20, 2011 को 5:08 अपराह्न
वाह! आपने तो हमें फिर से दुनिया की सैर करा दी…घर बैठे. चाय बागानों को देख कर तो मुन्नार की याद आ गयी! आपकी मुन्नार की पोस्ट पढने के बाद ही जून माह में हम वहां सपरिवार गए थे….खूब मज़ा आया . ऐसे ही एक दिन कंडी भी घूम आयेंगे!
सितम्बर 20, 2011 को 6:56 अपराह्न
sri lanka dikhane ke liye shukriya .
सितम्बर 26, 2011 को 4:27 पूर्वाह्न
लालू के अवसानवाली पोस्ट पढने के बाद इस पोस्ट पर आया। पढी कम, देखी ज्यादा। किन्तु जी नहीं लगा। लालू मन से नहीं उतर रहा।
सितम्बर 30, 2011 को 10:45 पूर्वाह्न
हम भी श्रीलंका घूम लिये… ‘यान’ जैसा शब्द अभी भी उपयोग में आ रहा है. यह हमारी सांझा विरासत है. एक संस्कृति के प्रतिक.
अक्टूबर 12, 2011 को 9:22 अपराह्न
हमने बौद्ध दर्शन को देश निकाला दे दिया पर वो जहां भी गया शिद्दत से फला फूला !
देह और दर्शन की मृत्यु और अमरता के दरम्यान यही मूलभूत अन्तर है कि देह स्वस्थ , सुदर्शन और सुडौल हो तो भी उसकी नश्वरता में कोई फ़र्क नहीं पड़ता पर दर्शन का बेहतर स्वास्थ्य उसे हरदम जीवित रखता है !
प्रविष्टि अदभुत और नयनाभिराम होने के साथ ही अकादमिक नवैय्यत की भी है सो इसके लिए प्रस्तोता को साधुवाद !
नागरिक कार्यों के लिए वे हमसे ज्यादा तत्पर और कर्मठ लगे !
जनवरी 8, 2012 को 6:46 अपराह्न
Lord Buddha was seen as very to hear the great loves
जनवरी 9, 2012 को 11:14 पूर्वाह्न
इसे कहते है दुनिया कि सैर. आपने हमें घर बैठे करवा दी. मौर्य शासनकाल में श्रीलंका भी हमारे देश के अधीन था. जबकि श्रीलंका से ही बौद्ध धर्म फला-फूला. हमारे देश को बौद्ध धर्म का जनक होने के नाते बौद्ध राष्ट्रो से काफी धन मिलता है जिसका उपयोग सरकार उस मद में नहीं करती है. काश दुनिया के अन्य बौद्ध राष्ट्रो से हम अपनी तुलना कर पाते.