आज्ञ बालिका दिवस है, इस बात का बोध हमें एक हिन्दी ब्लॉग “उडन तश्तरी” को पढ़कर ही हुआ. उसमे जीरो साईज़ का उल्लेख देख हमें भी कुछ लिख डालने की सूझी आख़िर प्रेरणा जो मिली है. बात ज़्यादा पुरानी नहीं है. मेरी पत्नी बंबई (ना बाबा मुंबई – ठाकरे खा जाएगा) जाने की सोच रही थी, उसका मायका जो ठैरा. मुझे साथ देना ही पड़ेगा, जिसका मुझे लेश मात्र भी मलाल नहीं था, क्योंकि मेरे दो भाई वहीं रहते हैं. एक के दो बेटे और दूसरे के दो बेटियाँ हैं १२ और १४ वर्ष की. भतीजियों से मुझे बड़ा प्रेम है या यों कहें कि सभी सुंदर कन्याओं से है. सोच रहा था कि उनके लिए क्या ले जाऊं.
शॉपिंग कॉंप्लेक्स (मेरा लेख “सामाजिक उत्तरदायित्व” देखें) के कॉरिडर में हम अक्सर कन्याओं को जीन्स पहने विंडो शॉपिंग करते देखा करते. इस ट्रेंड के चलते हमने सोचा अपनी भतीजियों के लिए जीन्स ही ले चलें. उनका नाप तो मालूम था नहीं लेकिन उन्हें पहले से बताना भी नहीं चाहते थे. वे दोनो एकदम दुबली पतली पर उँचे कद की थी. पर उनका कमर ? ढूंडते रह जाओगे. कुछ दूकानों में गया पर मुझे उनके लायक कोई जीन्स दिखी ही नहीं. निराशा हुई पर क्या करता. एक दिन एक चश्मे की दूकान में बैठा हुआ था. सामने कॉरिडर से हमने दो कन्याओं को जीन्स पहने गुज़रते देखा. उनमे एक थी ऊँची, दुबली पतली सुंदर सी. कमरिया देखो तो मुट्ठी में समा जाए. हमें तो ऐसी ही किसी की तलाश थी. सोचा पूछ लूँ “बेटे तुम्हें ऐसी जीन्स कहाँ से मिली या खरीदी”. पर झिझक गया. पूछें कैसे, बेचारी क्या सोचेगी. मैं उन्हें निहारता ही रह गया. एक और दिन पुनः इन दो लड़कियों से मुलाकात हो गयी. मैं उनके पीछे हो लिया और अपनी हथेली से उस लंबी लड़की के कमर का अंदाज़ा लगाता रहा. यह सिलसिला कुछ दिनों तक चला.
एक दिन हमने हिम्मत की. चश्मे की दूकान में ही बैठे थे. वह लड़की अपनी सहेली के साथ कॉरिडर में पुनः दिखी. हमने उसे रोक लिया. मैने उसका नाम पूछा और पता चला कि वह “प्रेरणा” है और पास के कॉलोनी में ही रहती है. ८ वीं में पढ़ती है. मैने उसे बता दिया कि मेरी एक भतीजी उसी के कद काठी की मुंबई में रहती है. मुझे उसके लिए जीन्स ले जाना है. मैने पूछा कि उसने कहाँ से खरीदी है. उसने हंसते हुए कहा “अंकल मेरे नाप की तो कहीं नहीं मिलती. कमर के साइज़ की देखूं तो लंबाई कम पड़ती है. लंबाई को देखूं तो कमर एकदम बड़ी रहती है. इसलिए सिलवाती हूँ.” अब मुझे पता चल गया था. मैने धन्यवाद दिया. हमारी दोस्ती हो चली थी. वह मुझे घर आने का निमंत्रण देकर आगे बढ़ जाती है. पर मैं उसके कमर की साइज़ नहीं पूछ सका. हारकर मैने अपने भतीजियों को फ़ोन किया और उनके जीन्स की लंबाई, कमर आदि का नाप मंगवा लिया. कपड़ा ख़रीदकर सिलवा भी लिया. मुंबई जाकर यह देख खुशी हुई कि मेरे द्वारा सिलवाए गये जीन्स एकदम ठीक ठाक रहे.
यहाँ अब “प्रेरणा” नवयुवती हो चली है. बहुत ही सुंदर सा चेहरा, दुबली पतली पर उँची ज़ीरो फिगर लिए हुए. अब भी पहले की तरह शॉपिंग कॉंप्लेक्स में अपने सहेली के साथ आती जाती है. शाम जब हम मित्रों के साथ बैठे होते हैं, उधर से गुज़रते हुए मुझे देख दोनों हाथ जोड़ कर, प्रसन्न मुद्रा में नमस्ते करना कभी नहीं भूलती. एक बार घुटने तक की तंग जीन्स, बगुले जैसी टाँगें, कटी बाहों वाली पीठ को प्रदर्शित करती टॉप आदि में उसे देख हमसे नहीं रहा गया. टोकने पर बड़े सहज रूप से हंसते हुए उसने कहा “अंकल ज़ीरो फिगर, – यही आजकल का फॅशन है”. मेरे मित्र मंडली के चेहरों पर कुटिल मुस्कुराहट थी. एक तो पूछ ही बैठा, यार चक्कर क्या है. रोज तुमको नमस्ते करती है. हमने कहा तुम नहीं समझोगे. यह अंदर की बात है.