Archive for जुलाई, 2011

कनक चंपा

जुलाई 20, 2011

कोयम्बतूर (कोवई भी कहते हैं) में रेस कोर्स रोड पर १५ दिनों के लिए रहना हुआ था. पहले ही दिन रात को भोजन के पश्चात कालोनी में टहल रहे थे. कुछ दूर जाने पर ही वातावरण में एक मादक सुगंध का आभास हुआ. पेड़ भी दिख गया और फूल लदे थे. हाथ में उस समय केमेरा न होने के कारण दूसरे दिन प्रातः चित्र लेने की सोची. दूसरे दिन जब पेड़ के पास पहुंचे तो लगभग सभी फूल झड चुके थे. एक फूल तक निशाना साधा जा सकता था. फूल सफ़ेद थे और काफी बड़े भी. तस्वीर ले ली. इस फूल से हमारा कभी वास्ता नहीं पड़ा था सो ज्ञान पिपासा की पूर्ति हेतु पहले तो वहां के चौकीदार से पूछ बैठे. उसने तामिल में नाम बताया “वेंनंगु”.

फिर कुछ जानकार मित्रों से पूछा. दूरभाष पर मैंने पेड़ और फूल की रूप रेखा बताई. हमारे बताने और उनके सझने में निश्चित रूप से गड़बड़ी हुई थी. चित्र को मोबाइल से भेजने की व्यवस्था भी नहीं थी. मन मसोस कर रह गए थे.

चेन्नई पहुँचने पर मै गूगल बाबा का शरणागत हुआ. पता चला कि इसके पेड़ को  “मेपल लीव्ड बयूर ट्री”  कहते हैं. मुख्यतः यह भारत और म्यांमार (बर्मा) में पाया जाता है. हिंदी में ही तीन नाम मिले. कनक चंपा, मुचकुंद तथा पद्म पुष्प. बंगाली में रोसु कुंडा तथा सिक्किम में इसे हाथीपैला कहते हैं. मतलब यह कि यह भारत में ही कई जगह पाया जाता है. वैज्ञानिक नाम Pterospermum acerifolium  इसकी लकड़ी लाल रंग की होती है और इसके तख्ते बनते हैं.

ब्लोगर बंधुओं से मुलाकात

जुलाई 15, 2011

इस वर्ष एक बड़ी घटना हुई. मेरी सहधर्मिणी का साथ छूट गया. परिवार के बहुत सारे सदस्य यहाँ आये और पारंपरिक कर्मकांडों के पश्चात मुझे अपने साथ ले गए. अपने गृह ग्राम में एक माह रहकर दूसरे भाई बहनों के यहाँ जाना हुआ. कोच्ची में मेरा एक और छोटा भाई रहता है. उसके साथ भी कई महत्वपूर्ण जगहों को देखना हुआ. कोच्ची में ही ब्लॉग जगत के एक धुरंदर शास्त्री जे.सी. फिलिप भी रहते हैं. हम लोगों की परंपरा के अनुसार स्वजनों के मरणोपरांत हम स्वयं होकर एक वर्ष तक किसी से भेंट करने नहीं जाया करते, परन्तु उनसे मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पाया और उन्हें सन्देश दे दिया कि हम मिलने आ रहे हैं. वे स्वयं भी चाहते थे कि मेरे साथ हो लें.  दुबारा संपर्क किये जाने पर उन्होंने अपनी व्यस्तता जताई. शायद कहीं बाहर जाने का कार्यक्रम था.  एक दिन दिमाग ख़राब हो गया और हमने सीधे पूछा कितने बजे से कब तक आप घर पर उपलब्ध होंगे. उन्होंने शाम का वक्त दिया. उन्होंने हमें उनके घर के नजदीक के त्रिक्काकरा (वामन) मंदिर से लिवा ले जाने की पेशकश की. हम ने भी लट्ठ चलाई. हमने कहा हम ढून्ढ लेंगे आप चिंता न करें.

अब हमें अपना कार्यक्रम बनाना था. हमने अपने भाई से कहा चलो पहले यहाँ के भूतपूर्व शासक के ग्रीष्मकालीन महल को सतही तौर पर देखते चलते हैं. वैसे वहां कई बार जाना हुआ था. वह महल आजकल संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है. हम लोग संग्रहालय पहुँच कर पीछे बने एक पारंपरिक (पुरानी साज सज्जा सहित) आवास में पहुंचे परन्तु अन्दर नहीं जा सके. वहां किसी फिल्म की शूटिंग चल रही थी. कुछ बालक सर मुंडाकर बटुक के वेश में थे जिन्हें अवकाश के समय आधुनिक प्लेट्स में खाना खिलाया जा रहा था. वहां एक बहुत ही बड़ा ताम्बे जल पात्र  प्रांगण में रखा हुआ था (वहीँ पड़ा रहता है). कुछ तस्वीरें लीं और उस घर के पीछे बने बावड़ी के भी चित्र लिए. इतने में शाम होने लगी तो फिर शास्त्री जी के घर के लिए निकल पड़े. जिस रास्ते से हम जा रहे थे वहां केरल की सबसे ऊंची ४४ मंजिला “चोइस” बिल्डिंग के दर्शन लाभ मिले. संध्या समय हम लोग शास्त्रीजी के दरवाजे पर थे.वास्तव में उस समय भी वे व्यस्त थे. उनके घर की पुरानी लाल सीमेंट का फर्श तोडा जा रहा था. अलमारियां बाहर पड़ी थीं. सब अस्त व्यस्त था. बावजूद इसके उन्होंने सपत्नीक हम लोगों के स्वागत में कोई कसर नहीं रखी. बातें भी खूब हुईं और हम लोग लौट पड़े थे.

मेरी पत्नी  के चल बसने  के दो  चार  दिनों  में ही अपने ब्लॉग जगत के भारी  भरकम  डा.अरविन्द  मिश्र  जी का भी मेरे निवास  पर आना  हुआ और खबर  पाकर  भोपाल  के ही एक  और युवा  ब्लोगर  श्री  सोमेश  सक्सेना  जी भी घर पधारे. मै उनका ह्रदय से आभारी हूँ. ब्लॉग जगत के अन्य मित्रों के स्नेह भरे सांत्वना दाई सन्देश भी ढेर सारे मिले. उनका भी ह्रदय से आभार. उन्हें भी मै संजो के रखूँगा.

आजकल आँखें बड़ी तकलीफ दे रही हैं इस कारण दूसरे ब्लोगों पर जाना नहीं हो पा रहा है. कल ही पता चला है कि दोनों आँखों में मोतिया बिंदु घर कर गयी है. मै सभी बंधुओं से करबद्ध  क्षमा चाहूँगा.