ब्रिटिश शासन काल में केरल का वर्त्तमान भूभाग तीन हिस्सों में बंटा हुआ था. उत्तरी हिस्सा जो मलाबार कहलाता था वह कभी केलिकट के ज़मोरिन (सामूदिरी) के आधीन था. टीपू सुलतान की सेना का सामना नहीं कर सका था अतः अपने स्वजनों को सुरक्षित जगह भेज अपने महल में आग लगा कर आत्म हत्या कर ली थी. अंग्रेजों ने टीपू को हराकर मालाबार को मद्रास प्रान्त का हिस्सा बना लिया. अतः उन दिनों मालाबार में सीधे अंग्रेजों का ही प्रशासन था. मालाबार को छोड़ दें तो केरल में अंग्रेजों के आधीन दो स्वतंत्र रियासतें थीं. मध्य भाग में कोचीन स्टेट जिसकी राजधानी कोचीन के निकट तिरुपुन्नीतरा में थी. दक्षिणी केरल त्रावनकोर (तिरुविदान्गूर) कहलाता था जिसकी राजधानी तिरुवनन्थपुरम रही. सन १५९२ से १६०९ तक इरविपिल्लई इरविवर्मा कुलशेखर पेरुमाल नामक राजा त्रावनकोर का शसक था. उसी के शासनकाल में पद्मनाभपुरम के किले के अन्दर एक राज प्रसाद बनवाया गया था. १४ वीं सदी के भी वहां कुछ निर्माण रहे हैं. एक आवासीय परिसर, जिसका प्रयोग पूर्ववर्ती राजाओं के द्वारा किया जाता रहा. यह किला ग्रेनाईट पत्थर का बना हुआ है जो लगभग ४ किलोमीटर लम्बा है. पश्चिमी घाट पर्वत श्रंखला के वेळी नामक पहाड़ के वृष्टिछाया में तथा वल्ली नामकी नदी के किनारे बने होने के कारण चारों तरफ का प्राकृतिक सौन्दर्य भी जबरदस्त है. उन दिनों त्रावनकोर की राजधानी यहीं पर थी जो सन १७९५ में तिरुवनन्थपुरम स्थानांतरित हो गयी.
यह घडी पिछले ३०० साल से चल रही है
मजे की बात है कि यह कवेलू वाला महल तामिलनाडू में है और तुक्काले नामक नगर से लगा हुआ है हालाकि राजप्रसाद का स्वामित्व और प्रशासन केरल शासन के ही आधीन है. राज्यों के पुनर्गठन में केरल का कुछ हिस्सा तामिलनाडू को आबंटित कर दिया गया था और इसमें कन्याकुमारी भी शामिल है. कवेलू वाला महल कह कर हमने अपनी पहली प्रतिक्रिया दी थी.जब हम किसी अनदेखी जगह जाते हैं और हमें वहां एक महल की प्रतीक्षा रहती है तो मानस पटल पर एक पूर्वाग्रह सा बन जाता है. परन्तु इस महल को केरल के पारंपरिक स्थापत्य एवं वास्तुकला का एक अनुपम उदाहरण माना जाता है. अन्दर से उसके विशाल क्षेत्र का तथा वहां के संग्रहालय का अवलोकन करने पर बात समझ में आती है. शीशम के लकड़ी का बना है और उस पर की गयी कारीगरी तो अप्रतिम है. फर्श एकदम चिकनी और चका चक. किसी विशेष विधि से निर्मित, जिसको दोहराया नहीं जा सका है.
यह मंत्रशाला है. यहाँ राजा मंत्रणाएं किया करते थे
यह भोजनशाला है. यहाँ १००० लोगों को एक साथ भोजन करने की सुविधा है
कटहल के एक ही तने से बना कलात्मक स्तम्भ
कई औषधीय वृक्षों के काष्ट से बनी पलंग
पद्मनाभपुरम, तिरुवनन्थपुरम से राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच ४७ पर ५५ किलोमीटर की दूरी पर कन्याकुमारी जाने वाले रस्ते पर ही पड़ता है. पद्मनाभपुरम जाने वाले रास्ते में एक और आकर्षण भी है. एक सुन्दर जलप्रपात. नाम है “तिर्पारप्पू” जो कुलशेखर नामक गाँव से लगा है. यहाँ जाने के लिए तिरुवनन्थपुरम से राष्ट्रीय राजमार्ग पर ४० किलोमीटर की दूरी पर “मार्तान्डम” पड़ता है. यहाँ से मुख मार्ग को छोड़ कर बायीं ओर १० किलोमीटर की दूरी पर यह प्रपात है.
यहाँ सैलानी स्नान का आनंद उठाते हैं. बच्चों के लिए एक स्विम्मिंग पूल बनायीं गयी है (अभी अभी). वहां के उद्यान भी बड़े मनमोहक हैं. यहाँ कुछ समय बिताना, परिवार के आनंद को द्विगुणित कर देगा. अब यहाँ से सीधे चलकर पद्मनाभपुरम में ही रुकेंगे. जलप्रपात का आनंद उठाने के लिए २० किलोमीटर का अतिरिक्त भार पड़ेगा.
कुछ उपयोगी लिनक्स:
१. केरल पर्यटन विकास निगम
२. गूगल का नक्शा